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लॉकडाउन के चलते घरेलू हिंसा के मामले बढ़े, महिला उत्पीड़न में यूपी सबसे आगे

राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक, घरेलू हिंसा की शिकायतें लगभग दोगुनी हो गईं हैं जबकि अभी सिर्फ ऑनलाइन शिकायतें ही आ रही हैं। घर बैठे पुरुष तनाव में अपनी भड़ास महिलाओं पर निकाल रहे हैं इसलिए ऐसी शिकायतें अधिक आ रही है।
Violence against women

‘लॉकडाउन की वजह से इस वक्त घरेलू हिंसा की बहुत-सी शिकायतें आ रही हैं। महिलाएं पुलिस तक नहीं पहुंच पा रहीं हैं या फिर वह पुलिस के पास नहीं जाना चाहती क्योंकि उन्हें डर है कि जब उनका पति पुलिस स्टेशन से एक-दो दिन बाद बाहर आ जाएगा तब और टॉर्चर करेगा। इस समय वह अपने पेरेंट्स के घर भी नहीं जा सकती हैं।’

ये बातें राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने देश में लागू लॉकडाउन के बीच महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर मिलने वाली शिकायतों के संदर्भ में कहीं। उन्होंने कहा कि घर बैठे पुरुष तनाव में अपनी भड़ास महिलाओं पर निकाल रहे हैं इसलिए ऐसी शिकायतें अधिक आ रही है।

हाल ही में जर्मन फेडरल एसोसिएशन ऑफ वीमन्स काउंसलिंग सेंटर्स एंड हेल्प लाईन्स (बीएफई) ने कोरोना महामारी के बीच घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों पर एक रिपोर्ट जारी करते हुए कहा था कि “कई लोगों के लिए उनका घर ही पहले से सुरक्षित नहीं है।”

इसे पढ़ें : कोरोना संकट के बीच दुनियाभर में बढ़े घरेलू हिंसा के मामले

बीएफई ने दुनिया के देशों को आगाह किया था कि सोशल आइसोलेशन के चलते लोगों में तनाव पैदा हो रहा है और इससे “महिलाओं और बच्चों के खिलाफ घरेलू और यौन हिंसा में बढ़ोत्तरी हो रही है।” 

पहले आस्ट्रेलिया, विक्टोरिया, श्रीलंका और कई देशों में बड़े पैमाने पर ऐसी घटनाएं देखने को मिली लेकिन अब भारत में भी इसका व्यापक असर देखने को मिल रहा हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग के मुताबिक, घरेलू हिंसा की शिकायतें लगभग दोगुनी हो गई हैं जबकि अभी सिर्फ ऑनलाइन शिकायतें ही आ रही हैं।

इस संबंध में गुरुवार, 2 अप्रैल को राष्ट्रीय महिला आयोग ने बीते 10 दिनों का आंकड़ा जारी किया। जिसके मुताबिक आयोग के पास 23 मार्च से 1 अप्रैल तक कुल 257 शिकायतें आईं हैं, जिसमें घरेलू हिंसा की करीब 69 शिकायतें दर्ज कराई गई हैं और ये एक के बाद एक बढ़ती जा रही हैं। कई शिकायतें आयोग की अध्यक्ष और स्टाफ को निजी ईमेल पर भी की गई हैं। इसी प्रकार, रेप या रेप की कोशिश की 13, सम्मान के साथ जीने के अधिकार के संबंध में 77 शिकायतें महिलाओं की ओर से मिली हैं। तो वहीं महिलाओं से साइबर अपराध के 15 मामले सामने आए हैं।

महिला उत्पीड़न मामले में यूपी टॉप पर

आयोग द्वारा जारी लिस्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश से सबसे अधिक 90 शिकायतें मिली हैं तो दिल्ली से 37 और बिहार, महाराष्ट्रा से 18, मध्य प्रदेश से 11, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान से 9 मामले दर्ज हुए हैं।

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राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरपर्सन रेखा शर्मा के अनुसार समाज के निचले तबके की ज्यादातर महिलाएं डाक के जरिए अपनी शिकायतें आयोग को भेजती हैं, लॉकडाउन की वजह से वो शिकायतें अभी तक आयोग के पास नहीं पहुंची हैं। इस लिहाज से यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। कई महिलाएं शिकायत ही नहीं करती होंगी क्योंकि उस दौरान मारपीट करनेवाला उनके सामने ही रहता होगा। उन्होंने बताया कि राज्य महिला आयोगों ने भी घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़त देखी है। कई महिलाएं इसलिए भी शिकायत नहीं करती हैं कि अगर उनके पति को पुलिस ले गई तो सास-ससुर उन्हें ताने देंगे।

एक वीडियो संदेश जारी कर रेखा शर्मा ने मीडिया को बताया, “मुझे आज नैनीताल से एक शिकायत मिली है। जिसमें महिला ने कहा कि वह बाहर नहीं निकल पा रही है और उसने बताया कि घर में उसका पति उसके साथ मारपीट करता है लेकिन वह लॉकडाउन की वजह से दिल्ली अपने घर नहीं आ पा रही है।”

एक ओर देश में कोरोना का कहर जारी है। महामारी के वायरस को फैलने से रोकने के लिए संपूर्ण लॉकडाउन लागू है, करोड़ों लोग अपने घरों कैद हैं तो वहीं दूसरी ओर आधी आबादी संघर्ष कर रही है। पितृसत्ता की जड़ो में जकड़ा समाज रोज़ उसके अस्तित्व का एक नया इम्तिहान ले रहा है।

घरेलू हिंसा अभियान से जुड़े लोगों का कहना है कि लॉकडाउन के चलते महिलाएं घरेलू हिंसा झेलने को मज़बूर हैं। इस दौरान शिकायतें केवल उन महिलाओं द्वारा की जा रही हैं, जो शिक्षित हैं, जागरूक हैं। वास्तव में ये मामले कहीं ज्यादा हैं क्योंकि ग़रीब तबक़े से आने वाली महिलाओं के लिए अपने जीवनसाथी के हाथों उत्पीड़न की शिकायत कर पाना क़रीब क़रीब नामुमकिन है। इस लॉकडाउन के दौरान वे उन मर्दों के साथ रहने को मजबूर हैं, जो उनका लंबे समय से उत्पीड़न करते आए हैं।

पितृसत्तात्मक सोच और महिलाएं

महिला अधिकारों के लिए कार्यरत शबनम बताती हैं, “औरत और मर्द का फर्क हमारे समाज की सोच में हमेशा से रहा है। पहले पुरुष काम के लिए बाहर चले जाते थे तो शायद थोड़ी देर के लिए महिलाओं को पितृसत्ता के बंधन से मुक्ति मिल जाती थी। लेकिन अब जब पुरुष दिन भर घर में रहता है, तो जाहिर है उसकी सोच उस पर और हावी हो जाती है। अच्छी बात ये है कि अब महिलाएं शिक्षित हैं, जागरूकता बढ़ रही है इसकी वजह से अधिक मामले दर्ज हो रहे हैं। हालांकि अभी भी ऐसे मामलों की संख्या काफ़ी ज़्यादा है जो दर्ज नहीं हो पाते।”

गैर सरकारी संगठन 'मैत्री' के साथ काम करने वाली वकील मनीषा जोशी ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, जब लॉकडाउन के चलते दुनियाभर में महिलाओं के उत्पीड़न की खबरें आईं तभी ये बात साफ थी कि भारत में भी ऐसे मामले बहुत बड़ी संख्या में देखने को मिलेंगे। ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब दुनियाभर में संकट का दौर चल रहा है तब महिलाएं एक और संकट का सामना कर रही हैं। इस वक्त लोग घरों में बंद हैं तो जाहिर है ज्यादा चिड़चिड़ापन हो जाता है और इसकी सारी कसर फिर घर की औरतों पर ही निकलती है। ऐसे में कोशिश सामंजस्य की होनी चाहिए। काम में कमियां निकालने की बजाय पुरुषों को महिलाओं के काम में हाथ बंटाना चाहिए क्योंकि औरतों के लिए इस वक्त वर्क फ्राम होम के साथ ही घर की भी दोहरी जिम्मेदारी है।”

मनीषा आगे बताती हैं कि घरेलू हिंसा की जड़ पितृसत्तात्मक सोच में है- जिसमें महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझा जाता है। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार को माफ़ कर दिया जाता है और महिलाओं के साथ मार पीट को सही ठहराया जाता है। महिलाएं स्वीकार नहीं करना चाहती हैं कि वे घरेलू हिंसा का शिकार हैं। अपने घर में क्या चल रहा है, ये बताना नहीं चाहती।

गौरतलब है कि हमेशा से ही आपदाएं और महामारी महिलाओं के सामने दोहरी चुनौती खड़ी कर देती हैं। एक ओर उन्हें कठिन परिस्थिति का सामना करना होता है तो वहीं दूसरी ओर खुद को शोषण से बचाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। मौजूदा समय में घर में कैद होने के कारण महिलाओं के शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के मामले भी बढ़ गए हैं। ऐसे में महिला आयोग ने महिलाओं से अपील की कि अगर उनके साथ घरेलू हिंसा होती है तो पुलिस से संपर्क करने या राज्य महिला आयोगों तक पहुंचने की कोशिश करें।

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