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ईडब्ल्यूएस कोटा: भाजपा, कांग्रेस ने श्रेय लेना चाहा; स्टालिन बोले-सामाजिक न्याय के संघर्ष को झटका

आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण को उच्चतम न्यायालय द्वारा बरकरार रखे जाने पर सोमवार को भाजपा और कांग्रेस ने इससे जुड़े संविधान संशोधन का श्रेय लेने की कोशिश की। वहीं, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने शीर्ष न्यायालय के फैसले की आलोचना की और इसे लंबे समय तक चले ‘‘सामाजिक न्याय के संघर्ष को झटका’’ करार दिया।
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फ़ोटो साभार: पीटीआई

नयी दिल्ली: आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए आरक्षण को उच्चतम न्यायालय द्वारा बरकरार रखे जाने पर सोमवार को भाजपा और कांग्रेस ने इससे जुड़े संविधान संशोधन का श्रेय लेने की कोशिश की। वहीं, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने शीर्ष न्यायालय के फैसले की आलोचना की और इसे लंबे समय तक चले ‘‘सामाजिक न्याय के संघर्ष को झटका’’ करार दिया।

उच्चतम न्यायालय ने एक  फैसले में शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान करने वाले 103वें संविधान संशोधन को 3:2 के बहुमत के फैसले से बरकरार रखा। न्यायालय ने कहा कि यह कोटा संविधान के ‘‘मूल ढांचे’’ का उल्लंघन नहीं करता है।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शीर्ष न्यायालय के फैसले की सराहना करते हुए कहा कि यह देश के गरीबों को सामाजिक न्याय प्रदान करने के ‘‘मिशन’’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जीत है।

केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि यह निहित स्वार्थ वाले दलों के चेहरे पर करारा तमाचा है, जिन्होंने अपने दुष्प्रचार के जरिये लोगों के बीच वैमनस्य पैदा करने का प्रयास किया।

भाजपा की वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया और निजी क्षेत्र में भी आरक्षण की मांग की।

कांग्रेस ने भी न्यायालय के फैसले का स्वागत किया, लेकिन कहा कि इस कोटे का प्रावधान करने वाला संविधान संशोधन मनमोहन सिंह सरकार द्वारा शुरू की गई प्रक्रिया का नतीजा था।

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि उनकी पार्टी उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करती है। उन्होंने कहा, ‘‘यह संविधान संशोधन 2005-06 में मनमोहन सिंह की सरकार द्वारा सिन्हो आयोग का गठन करके शुरू की गई प्रक्रिया का नतीजा है। आयोग ने जुलाई 2010 में अपनी रिपोर्ट दी थी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इसके बाद, व्यापक रूप से परामर्श किया गया और विधेयक 2014 तक तैयार कर लिया गया था। लेकिन मोदी सरकार को यह विधेयक पारित कराने में पांच साल लगा।’’

रमेश ने कहा, ‘‘यह जिक्र करना भी जरूरी है कि सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना को 2012 तक पूरा कर लिया गया था, जब मैं ग्रामीण विकास मंत्री था। मोदी सरकार को स्पष्ट करना होगा कि नयी जातिगत जनगणना को लेकर उसका क्या रुख है। कांग्रेस इसका समर्थन करती है और इसकी मांग भी करती है।’’

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि शीर्ष न्यायालय का फैसला गरीबों को न्याय दिलाने में मदद करेगा।

गहलोत ने वडोदरा में संवाददाताओं से कहा, ‘‘‘समितियां बनाई गयीं और आखिरकार 103वां संविधान संशोधन किया गया। मैं उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करता हूं। हमारी यह भावना होनी चाहिए कि गरीब व्यक्ति चाहे किसी भी समुदाय का हो, उसे न्याय मिले।’’

कांग्रेस के पूर्व नेता एवं पूर्व कानून मंत्री अश्विनी कुमार ने कहा कि न्यायालय का बहुमत वाला फैसला लोकतंत्र की समतावादी पहुंच के प्रगतिशील विकासक्रम में एक ऐतिहासिक क्षण है।

उन्होंने एक बयान में कहा, ‘‘अपने सार में, यह स्वीकार करता है कि कहीं भी और किसी भी वर्ग में गरीबी सबसे बड़ी बाधक है और आर्थिक पिछड़ेपन से पीड़ित लोग एक कल्याणकारी राज्य में सरकार के सकारात्मक कार्य का लाभ पाने के हकदार हैं।’’

संसद ने भाजपा सरकार द्वारा लाये गये संविधान संशोधन विधेयक को 2019 में पारित किया था।

हालांकि, हर किसी ने न्यायालय के फैसले का स्वागत नहीं किया। कांग्रेस प्रवक्ता उदित राज ने कहा कि वह इस कदम का विरोध नहीं कर रहे हैं, लेकिन संविधान के नौ न्यायाधीशों की पीठ द्वारा लगाई गई 50 प्रतिशत की सीमा इस फैसले के साथ टूट गई है।

उदित राज ने कहा,‘‘30 वर्षों से, जब कभी हम इस न्यायालय में गये, उच्चतम न्यायालय ने सदा ही यह कहा कि यह लक्ष्मण रेखा पार नहीं करनी चाहिए और हमारे मामले खारिज कर दिये गये। मैं शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीशों की मानसिकता का मुद्दा उठा रहा हूं, ये लोग जातिवादी मानसिकता के हैं।’’ साथ ही, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि उनकी टिप्पणी व्यक्तिगत क्षमता से है और इसका कांग्रेस से कोई लेनादेना नहीं है।

भाजपा ने उनकी आलोचना करते हुए कहा कि उनके बयान ने विपक्षी दल की ‘‘गरीब विरोधी’’ मानसिकता को बेनकाब दिया है।
भाकपा-माले की पटना में पोलित ब्यूरो की चल रही बैठक को संबोधित करते हुए माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को दिए जा रहे 10 प्रतिशत आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट द्वारा वैध ठहराया जाना एक दुर्भाग्यपूर्ण फैसला है, जो संविधान की मूल भावना के भी विपरीत है. संविधान में आरक्षण की व्यवस्था आर्थिक आधार पर नहीं बल्कि सामाजिक, शैक्षिक व ऐतिहासिक पिछड़ेपन के आधार पर की गई है. जिस वक्त यह 10 प्रतिशत आरक्षण लागू किया जा रहा था, हमने उसका विरोध किया था और आज एक बार फिर अपना विरोध दर्ज करते हैं.

दूसरी ओर, न्यायालय द्वारा वंचितों के आरक्षणों को लेकर तरह-तरह की शर्तें और जमीनी डाटा कलेक्शन के नाम पर उसमें जारी कटौती को न्यायोचित ठहराया जा रहा है. वहीं, सामाजिक तौर पर ऊंचे पायदान पर खड़े लोगों के लिए विशेष आरक्षण के प्रावधान को बिना जमीनी हकीकत जाने न्यायसंगत ठहराना कत्तई उचित नहीं है. आठ लाख सालाना आमदनी को आधार बनाकर 10 प्रतिशत विशेष आरक्षण का प्रावधान आर्थिक तौर पर कमजोर सामाजिक समूह की भी हकमारी है.

उन्होंने कहा कि और भी बड़े संवैधानिक बेंच का गठन करके इस निर्णय पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए ।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का फैसला सदियों पुराने सामाजिक न्याय के संघर्ष को एक झटका है। उन्होंने कहा, हालांकि फैसले के गहन विश्लेषण के बाद कानूनी विशेषज्ञों से सलाह ली जाएगी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण के खिलाफ संघर्ष जारी रखने के लिए अगले कदम पर फैसला लिया जाएगा।

उन्होंने कहा, ‘‘सामाजिक न्याय की रक्षा के लिए पहला संविधान संशोधन कराने वाली तमिलनाडु की इस धरती से मैं समान विचारधारा वाले सभी संगठनों से सामाजिक न्याय की आवाज को पूरे देश में प्रतिध्वनित करने के लिए एकजुट होने का अनुरोध करता हूं।’’

विदुथलाई चिरूथैगल काची (वीसीके) प्रमुख थोल तिरूमावलन ने कहा कि शीर्ष न्यायालय का फैसला सभी जातियों के गरीबों के लिए नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह अगड़ी जातियों के गरीबों के लिए है। इस मामले में, यह आर्थिक मानदंड के आधार पर लिया गया फैसला कैसे है?’’ उन्होंने दावा किया, ‘‘फैसला सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। यह घोर अन्याय है।’’

उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी फैसले को चुनौती देते हुए अपील करेगी।

तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं सांसद सौगत रॉय ने न्यायालय के फैसले की सराहना करते हुए इसे ऐतिहासिक बताया। हालांकि, पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सुखेंदु शेखर रे ने इस पर टिप्पणी नहीं की।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ )

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