Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

EXCLUSIVE: सर्व सेवा संघ की बेशक़ीमती संपत्ति क़ब्ज़ाने के लिए विनोबा और जेपी पर फ़र्ज़ीवाड़े का सनसनीख़ेज़ आरोप

''बनारस में महात्मा गांधी बहुत से लोगों की गले की हड्डी रहे हैं। अब उनके नाम, विरासत और विचारों की हत्या का सुनियोजित प्रयास चल रहा है। वह जीवित थे तब भी और मरने के बाद तो और भी ज़्यादा हैं। वो अपने देश में गांधीजी का विरोध और गोडसे का गुणगान करते हैं और विदेश जाकर बोलते हैं कि मैं गांधी के देश से आया हूं।''
JP

भारतरत्न आचार्य विनोबा भावे की पहल पर सर्व सेवा संघ ने 63 बरस पहले बनारस के राजघाट में जिस जमीन का बैनामा कराया था, उसे रेल महकमे के अफसरों ने कूटरचित दस्तावेज करार दिया है। सनसनीखेज आरोपों के छींटे सिर्फ विनोबा पर ही नहीं, तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री लाल बहादुर शास्त्री, रेल मंत्री जगजीवन राम और सर्व सेवा संघ के ट्रस्टी राधाकृष्ण बजाज पर डाले जा रहे हैं। लखनऊ स्थित उत्तर रेलवे के सहायक मंडल अभियंता ने बनारस के उप जिलाधिकारी (सदर) के यहां एक प्रतिवाद दायर किया है, जिसमें फर्जीवाड़े के जरिये 12.89 एकड़ जमीन हड़पने का आरोप लगाया गया है। गांधीवादी विचारों को दुनिया भर में प्रचारित करने के लिए स्थापित सर्व सेवा संघ महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण, जेसी कुमारप्पा, दादा धर्माधिकारी सरीखे मनीषियों की पुस्तकें भी प्रकाशित करता है। नौकरशाही की शर्मनाक हरकत से रेलवे ही नहीं, बनारस जिला प्रशासन और योगी सरकार की जमकर छीछालेदर हो रही है।

बनारस के राजघाट स्थित सर्व सेवा संघ का परिसर ओल्ड जीटी रोड और वरुणा नदी के बीच स्थित है। इसी परिसर के एक हिस्से में गांधी विद्या संस्थान है, जो विवाद की वजह से बंद है। विवाद के निपटारे के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में जिला प्रशासन को अभिलेखों की जांच-पड़ताल कर उसे सर्व सेवा संघ को सौंपने का निर्देश दिया है। संघ की जमीन का मुद्दा तब से गरम है जब 15 मई 2023 को पुलिस और प्रशासनिक अफसरों ने यहां आकर गांधी विद्या संस्थान (गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ स्टडीज) के कमरों का ताला तोड़वा दिया और उसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के हवाले कर दिया। वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के मुखिया हैं, जो फिलहाल राष्ट्रीय सेवक संघ से जुड़े हैं।

सालों से बुना जा रहा विवाद का ताना-बाना

सर्व सेवा संघ परिसर को कब्जाने का ताना-बाना कई सालों से बुना जा रहा था, लेकिन इसकी पटकथा 16 जनवरी 2023 को लिखी गई। एक छद्म नाम मोइनुद्दीन की ओर से बनारस सदर के उप जिलाधिकारी की कोर्ट में एक अर्जी डाली गई जिसमें दावा किया गया कि सर्व सेवा संघ की संपूर्ण संपत्ति उत्तर रेलवे की है। शिकायतकर्ता मोइनुद्दीन की इस अर्जी पर न कोई पता दर्ज है, न ही फोन नंबर। इस फर्जी शिकायत को तहसील प्रशासन ने इतनी गंभीरता से लिया कि तहसीलदार, एसडीएम से लेकर डीएम तक जांच करने दौड़ने लगे। आरोप है कि बनारस के प्रशासनिक अफसर सर्व सेवा संघ की उस संपत्ति को कब्जाने की जुगत में हैं जिसे संस्था ने पूरी कीमत देकर खरीदी थी। नौकरशाही की मंशा पूरी नहीं हुई तो सीधे तौर पर रेलवे के अधिकारी इस विवाद में कूद पड़े और दावा किया कि जिस जमीन पर सर्व सेवा संघ खड़ा है वो बेशकीमती संपत्ति उनकी है। 63 बरस पहले कूटरचित दस्तावेजों के जरिये समूची संपत्ति हड़पी गई है।

उत्तर रेलवे की जिस शिकायत के आधार पर बनारस सदर के एसडीएम की अदालत में मुकदमा दर्ज किया गया है उस पर वादी उत्तर रेलवे के वरिष्ठ मंडल अभियंता (तृतीय) का दस्तखत तो हैं, लेकिन नाम और फोन नंबर अंकित नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि शिकायतकर्ता की ओर से दायर की गई अपील के बिंदु-तीन (क) में कहा गया है कि सर्व सेवा संघ की जमीनों का विलेख-पत्र इसलिए कूटरचित प्रतीत होता है क्योंकि उस पर कथित डिविजन इंजीनियर का नाम अंकित है। रेलवे के जिस अफसर ने एसडीएम कोर्ट में अर्जी डाली है, उसका नाम आदि ब्योरा क्यों नहीं है, इस पर कोई बोलने के लिए तैयार नहीं है। वरिष्ठ मंडल अभियंता (तृतीय) की कथित अर्जी के आधार पर एसडीएम कोर्ट ने सर्व सेवा संघ को नोटिस की और दोनों को तलब किया। 23 मई 2023 को एसडीएम कोर्ट में सर्व सेवा संघ के प्रतिनिधि तो पहुंच गए, लेकिन शिकायत दर्ज कराने वाले रेल अफसर नदारद रहे।

उत्तर रेलवे की याचिका में कहा गया है कि कोई ऐसा नियम नहीं है कि रेलवे किसी प्राधिकारी को सीधे जमीन बेचने के लिए अधिकृत करे। रेलवे की जमीनों का लेखा-जोखा दिल्ली के बड़ौदा हाउस में रखा जाता है। 15 फरवरी 2023 को न्यायिक तहसीलदार कोर्ट से सर्व सेवा संघ का नामांतरण वाद निरस्त किया जा चुका है। उत्तर रेलवे के दफ्तर में कोई किसी संस्था को रेलवे की जमीन बेचने का दस्तावेज मौजूद नहीं है। यह कृत्य अपराध की श्रेणी में आता है। इस मामले में बनारस में सिविल मामलों के जाने-माने अधिवक्ता आनंद पाठक कहते हैं, ''किसी रेवेन्यू कोर्ट को किसी भी विलेख-पत्र (रजिस्ट्री) को खारिज करने का अधिकार नहीं है। अगर किसी को कोई बैनामा अवैध तरीके से किया गया है तो उसे सिर्फ तीन साल के अंदर सिविल कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, 63 बरस बाद नहीं। अगर आचार्य विनोबा भावे और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के समय सर्व सेवा संघ के पदाधिकारियों ने कूटरचित दस्तावेजों के जरिये रेलवे की संपत्ति हड़पी है तो सबूतों की रोशनी में सिविल कोर्ट में ही चुनौती दी जा सकती है। सचमुच रेल अफसरों का दावा सही है तो सबसे पहले उन्हें थाना पुलिस को सूचना देनी चाहिए और आरोपितों के खिलाफ जालसाजी का मामला कराना चाहिए। रेवेन्यू कोर्ट प्रशासनिक होती है, जो कलेक्टर के अधीन काम करती है। हमें लगता है कि सुनियोजित तरीके से जानबूझकर इस मामले को पेंचीदा बनाया जा रहा है और नौकरशाही अपने अधिकारों का हद पार कर रही है। कोई प्रशासनिक अफसर कानून के खिलाफ कोई निर्णय लेता है तो देर-सबेर उनके खिलाफ सख्त एक्शन जरूर होगा।''

खरीदने से पहले दिया था पैसा

सर्व सेवा संघ के कार्यक्रम समन्वयक रामधीरज मामले को तूल देने के लिए सीधे तौर पर कमिश्नर कौशल राज शर्मा को जिम्मेदार ठहराते हैं। वह कहते हैं, ''साक्ष्य के तौर पर हमारे पास रजिस्ट्री के तीन दस्तावेज मौजूद हैं। विनोबा भावे और जेपी की पहल पर सर्व सेवा संघ की स्थापना की गई थी और तत्कालीन राष्ट्रपति डा.राजेंद्र प्रसाद की संस्तुति के बाद रेलवे ने पूरी कीमत लेकर 12.89 एकड़ जमीन बेची थी। सर्व सेवा संघ के पक्ष में बैनामा बाद में हुआ और जमीनों की कीमत पहले चुकाई गई। सबसे पहले 05 मई 1959 को चालान संख्या 171 के जरिये भारतीय स्टेट बैंक में 27 हजार 730 रुपये जमा किए गए थे। इसके अलावा 750 रुपये स्टांप शुल्क भी अदा किया गया था।

इसके बाद 27 अप्रैल 1961 में 3240 रुपये और 18 जनवरी 1968 को 4485 रुपये चालान संख्या क्रमशः03 और 31 के जरिये स्टेट बैंक में जमा किया गया। उस समय यह रकम बहुत बड़ी थी। औपचारिक रूप से 14 अप्रैल, 1952 को उत्तर रेलवे का गठन हो चुका था और उसका दफ्तर दिल्ली में था। सर्व सेवा संघ की स्थापना के समय से ही तत्कालीन उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री लाल बहादुर शास्त्री संस्था से जुड़े थे। राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद की संस्तुति के बाद तत्कालीन रेल मंत्री जगजीवन राम ने जनहित के आधार पर रेलवे की जमीन सर्व सेवा संघ को बेचने की संस्तुति दी थी। सरकारी जमीनों का विलेख-पत्र पहले किसी व्यक्ति विशेष के नाम से नहीं, उसके पदनाम से ही तैयार कराया जाता था।''

सर्व विद्या संस्थान के गेट पर कमिश्नर के खिलाफ लगा बैन

''सर्व सेवा संघ को बदनाम करने और उलझाने के लिए कमिश्नर कौशल राज शर्मा विवाद खड़ा करा रहे हैं और छद्म नाम से प्रतिवाद करा रहे हैं। ऐसे लोगों से फर्जी शिकायतें कराई जा रही हैं जिनका कोई वजूद ही नहीं है। खुद एक्शन लेने के बजाय वह अपने मातहत अफसरों को बलि का बकरा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उत्तर रेलवे के सहायक मंडल रेल अभियंता ने विनोबा और जेपी पर फर्जीवाड़े का जो आरोप लगाया है वह तथ्यहीन और बलहीन है। इनके सनसनीखेज आरोपों से हर प्रबुद्ध नागरिक अचंभित है और बनारस की सरकार की नीयत पर सवालिया निशान लगा रहा है। सर्व सेवा संघ की जमीन खरीदने में जिन लोगों पर फर्जीवाड़े का आरोप लगाया जा रहा है उनमें आचार्य विनोबा भावे हैं तो तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ़ राजेंद्र प्रसाद भी। तत्कालीन रेल मंत्री जगजीवन राम, उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री लाल बहादुर शास्त्री से लेकर सर्व सेवा संघ के राधाकृष्ण बजाज पर भी उंगलियां उठाई जा रही हैं। गौर करने की बात यह है कि प्रशासन के शर्मनाक और निंदनीय रवैये पर भला कौन भरोसा करेगा?''

गांधीवादी नेता रामधीरज के नेतृत्व में पिछले कई दिनों से सर्व विद्या संघ परिसर में स्थित लोकनायक जयप्रकाश नारायण की प्रतिमा के समक्ष आंदोलन-प्रदर्शन किया जा रहा है। आंदोलनकारियों की मांग है कि कमिश्नर के निर्देश पर गांधी विद्या संस्थान के जिन भवनों का ताला तोड़कर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को सौंपा गया है उस आदेश को तत्काल रद्द किया जाए। संघ परिसर में इंदिरा गांधी कला केंद्र की गतिविधियां रोकी जाएं। बनारस मंडल के कमिश्नर, डीएम के अलावा उत्तर रेलवे के उस सहायक अभियंता के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाए जिसने आरएसएस के इशारे पर देश के महापुरुषों की नीति और नीयत पर अशोभनीय आरोप चस्पा किया है।''

नहीं मान रहे कोर्ट के आदेश

सर्वोदय आंदोलन से जुड़े सौरभ सिंह ‘न्यूजक्लिक’ से कहते हैं, ''दिसंबर 2020 में प्रशासन ने सर्व सेवा संघ परिसर के एक हिस्से पर जबरन अपना कब्जा कर काशी विश्वनाथ कोरिडोर के वर्कशॉप के लिए ठेकेदार को आवंटित कर दिया। यह कब्जा अभी भी बना हुआ है। पिछले कई महीनों से प्रशासन के विभिन्न महकमे के लोग इस परिसर के इर्द-गिर्द सर्वे करते नजर आ रहे हैं। वे किसी न किसी नुक्स का सहारा लेकर इस कैंपस में घुसना चाहते हैं। जब उन्हें कोई अवसर नहीं मिला तो बनारस के कमिश्नर कौशलराज शर्मा ने खुद ही राष्ट्रीय इंदिरा गांधी कला केंद्र के क्षेत्रीय कार्यालय के लिए गांधी विद्या संस्थान के भवन पर जबरिया कब्जा करा दिया। कमिश्नर इस संस्थान की संचालन समिति के अध्यक्ष रहे हैं। कोर्ट ने सर्व सेवा संघ के अभिलेखों की जांच कर उसे संस्था को सौंपने का निर्देश दिया है, लेकिन प्रशासनिक अफसर अदालती आदेशों का सम्मान नहीं कर रहे हैं।''

''इससे पहले 28 फरवरी 2023 को कमिश्नर कौशल राज शर्मा ने गांधी विद्या संस्थान की संचालन समिति की बैठक बुलाई तो संस्था को चलाने की योजना बनाने के बजाय उसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, दिल्ली के हवाले करने का फरमान सुना दिया। बैठक में मौजूद सर्व सेवा संघ के प्रतिनिधि रामधीरज ने प्रतिवाद दर्ज कराया और उन्हें बता दिया कि गांधी विद्या संस्थान के लीज की अवधि नवंबर 2023 में खत्म हो रही है। इसके बाद समूची संपत्ति सर्व सेवा संघ की हो जाएगी। इसके बावजूद कमिश्नर ने मनमाना निर्णय लेते हुए 15 मई 2023 को अपराह्न 3.45 बजे मजिस्ट्रेट और भारी पुलिस बल को मौके पर भेजा। इनकी मौजूदगी में गांधी विद्या संस्थान के ताले जबरिया तोड़ दिए गए।''

सौरभ यह भी कहते हैं, ''मामला हाईकोर्ट में लंबित होने के बावजूद उसे किसी दूसरी संस्था को सौंपना विधि विरुद्ध है। गांधी विद्या संस्थान की लाइब्रेरी में हजारों पुस्तकें हैं, जिसे साल 1962 में जेपी के मार्गदर्शन में स्थापित किया गया था। इस संस्थान का उद्देश्य गांधी विचार के आधार पर चल रहे कार्यक्रमों का अध्ययन करना और समाज विज्ञान से जोड़ना था। विश्व विख्यात पुस्तक स्मॉल इज ब्यूटीफुल की रचना शुमाखर ने यहीं पर की थी। कमिश्नर की अध्यक्षता में गठित कमेटी को गांधी विद्या संस्थान के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिसे किसी गैर संस्था को सौंपने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है। मोदी सरकार के कार्यकाल में गांधीवादी संस्थाओं में आरएसएस के स्वयंसेवकों को बैठाने, गांधीवादियों को बाहर निकालने के लिए पुलिस बल का इस्तेमाल किया जा रहा है। शर्मनाक बात यह है कि नौकरशाही अब भू-माफिया का किरदार निभा रही है।''

कब शुरू हुआ विवाद?

सर्व सेवा संघ तभी से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निशाने पर है जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सत्ता में आई। उस समय मानव संसाधन विकास मंत्री रहे प्रो. मुरली मनोहर जोशी ने संघ पृष्ठभूमि की कुसुम लता केडिया को यहां प्रोफेसर बनाकर भेजा। गांधी विद्या भवन के तत्कालीन निदेशक प्रो. रामजी सिंह (प्रसिद्ध गांधीवादी एवं पूर्व कुलपति) ने इस नियुक्ति का विरोध किया। साल 2003 में प्रो. रामजी सिंह और कुसुम लता केडिया के बीच तीखा विवाद हुआ। गांधी विद्या संस्थान सर्व सेवा संघ की जमीन पर था, और हर 30 साल बाद उसका नवीनीकरण होना था, लेकिन केडिया ने संस्थान का रजिस्ट्रेशन ही रद्द करा दिया। विवाद बढ़ता गया और 2007 से संस्थान पर ताला लग गया। कमिश्नर ने गांधी स्टडी सेंटर की जिस चल-अचल संपत्ति को इंदिरा गांधी कला केंद्र के हवाले किया है उस समूची कार्रवाई को अवैध माना जा रहा है।

सर्वोदय मंडल से जुड़े सौरभ सिंह हैं, इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आलोक माथुर की एकल पीठ ने 16 मई 2023 के अपने आदेश में कहा है, "अगर यह पाया जाता है कि याचिकाकर्ता (संघ) उक्त संपत्ति (संस्थान) के असली मालिक हैं, तो उक्त संपत्ति का कब्जा याचिकाकर्ता को वापस कर देनी चाहिए।"

सर्व सेवा संघ से जुड़ी जागृति राही कहती हैं, ''गांधी विद्या संस्थान पर कब्जे की लड़ाई 1998 से चल रही है। आरएसएस के लोगों को गांधी के हर केंद्र और उनके विचारों पर कब्जा चाहिए। इन्हें हमने चार बार राजघाट परिसर से भगाया है। प्रो. कुसुमलता केडिया और रामेश्वर मिश्र पंकज ने यहां बहुत बवाल खड़ा किया था। कैंपस से संस्कार भारती के लोगों को भी खदेड़ा जा चुका है। अबकी आरएसएस के साथ कदमताल करने वाले पत्रकार राम बहादुर राय ने गांधी विद्या संस्थान पर हमला बोला है। कमिश्नर कौशल राज शर्मा अपने निहित स्वार्थों के लिए गैरकानूनी तरीके से उनकी मदद कर रहे हैं।''

सर्व सेवा संघ के विवाद के बीच यूपी सर्वोदय मंडल के अध्यक्ष और लोकतंत्र सेनानी रामधीरज ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय को पत्र लिखकर गांधी विद्या संस्थान की जमीन से कब्जा छोड़ने की मांग की है। 15 मई 2023 की घटना का हवाले देते हुए उन्होंने कहा है, ''राष्ट्रीय कला केंद्र के लोग जब पूरी फोर्स के साथ कब्जा लेने के लिए आए तो हमें आश्चर्य हुआ और दुख भी। हमने आपसे बात करने की कोशिश की, पर फोन नहीं उठा। मैंने मैसेज किया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया। आपके एक संदेश वाहक जरूर आए जिन्होंने कहा कि आप इनका विरोध न करें। आप जैसा कहेंगे, वैसा ही होगा और आपके सम्मान का पूरा ख्याल रखा जाएगा। आप राष्ट्रीय ख्याति के पत्रकार हैं। आपका पूरे देश में मान-सम्मान है। सर्व सेवा संघ को लिखित प्रस्ताव भेजने की बजाय कमिश्नर वाराणसी और संदेशवाहक के माध्यम से कार्य कर रहे हैं, जो उचित रास्ता नहीं है।''

''आपके पास सत्ता है, सरकार है तो अकूत धन भी है। बनारस में कहीं भी सौ-दो सौ एकड़ जमीन लेकर राष्ट्रीय कला केंद्र का एक विश्वस्तरीय संस्थान खड़ा कर सकते हैं। आखिर इस ढाई एकड़ जमीन में क्या रखा है? गांधी विद्या संस्थान जेपी की निशानी है, स्मारक है, विरासत है। मुझे पूरा विश्वास है कि आप राष्ट्रीय कला केंद्र के लिए विशाल कैंपस वाराणसी में कहीं अन्यत्र बनाएंगे और इस जगह को जेपी आंदोलन की पाठशाला और संग्रहालय के लिए छोड़ देंगे।''

इन्हें अफसर कहें या भूमाफिया

महात्मा गांधी के बलिदान के बाद आचार्य विनोबा भावे के मार्गदर्शन में अप्रैल 1948 में सर्व सेवा संघ का गठन किया गया था। वाराणसी में गंगा नदी के तट पर सर्व सेवा संघ राजघाट पर स्थित है, जो 12.09 एकड़ में फैला है। जमीन का मालिक सर्व सेवा संघ है। 15 मई, 1960 को यह जमीन उत्तर रेलवे से खरीदी गई थी। जमीन की बिक्री का दस्तावेज संस्था के पास मौजूद है।

सर्व सेवा संघ परिसर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ स्टडीज की स्थापना कराई थी। जिसका उद्देश्य ऐसे समाज की स्थापना करना है, जिसका आधार सत्य और अहिंसा हो, जहां कोई किसी का शोषण न करे और जो शासन की अपेक्षा न रखता हो। यह शांति, प्रेम, मैत्री और करुणा की भावनाओं को जागृत करते हुए साम्ययोगी अहिंसक क्रांति के लिए स्वतंत्र जनशक्ति का निर्माण व आध्यात्मिक, वैज्ञानिक साधनों का उपयोग करना चाहता है। इस ऐतिहासिक विरासत को बचाने के लिए गांधी और जेपी के अनुयायी कई दिनों से धरना और आंदोलन-प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि आरएसएस के इशारे पर बनारस के कमिश्नर कौशल राज शर्मा अब विनोबा और जेपी की समूची विरासत हड़पने में जुट गए हैं।

सर्व सेवा संघ प्रकाशन के संयोजक अविंद अंजुम कहते हैं, ''विनोबा भावे महात्मा गांधी के राजनीतिक और आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने बगैर कोई सवाल उठाए गांधीजी के नेतृत्व को स्वीकार किया। 8 अप्रैल, 1921 को विनोबा वर्धा गए थे। गांधीजी ने उनको वहां जाकर गांधी आश्रम संभालने का निर्देश दिया था। इस दौरान उन्होंने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया। आजादी के बाद साल 1950 से उन्होंने भूदान आंदोलन शुरू किया। विनोबा भावे ने जमीनदारों से आगे बढ़कर अपनी जमीन दान करने और हरिजनों को बचाने की अपील की। यह आंदोलन 13 सालों तक चलता रहा और इस बीच वह 44 लाख एकड़ भूमि दान के रूप में हासिल करने में सफल रहे। करीब 13 लाख एकड़ जमीन उन्होंने भूमिहीन किसानों के बीच बांटी। उनकी पहल पर ही रेलवे ने बनारस में सर्व सेवा संघ को अपनी जमीन बेची थी। कितनी अचरज की बात है कि प्रशासन खुद फ्रॉड करने में जुट गया है और वह भूमाफिया की तर्ज पर काम कर रहा है। जबरिया कब्जा कराने वालों को हम क्या कहें अफसर या फिर भूमाफिया।''

सर्व सेवा संघ को कब्जाने की कोशिशों के बीच गांधीवादी और समाजवादी विचारकों की चार-पांच जून 2023 को बैठक आयोजित की गई है। विषम परिस्थितियों पर मंथन करने के लिए प्रो.आनंद कुमार, रमेश ओझा, सवाई सिंह, संजय सिंह, रघुराय समेत तमाम नामचीन हस्तियां जुटेंगी। इस बीच देश के जाने-माने विचारक योगेंद्र यादव बनारस पहुंचकर एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा, ''बनारस में महात्मा गांधी बहुत से लोगों की गले की हड्डी रहे हैं। अब उनके नाम, विरासत और विचारों की हत्या का सुनियोजित प्रयास चल रहा है। वह जीवित थे तब भी और मरने के बाद तो और भी ज्यादा हैं। वो अपने देश में गांधीजी का विरोध और गोड़से का गुणगान करते हैं और विदेश जाकर बोलते हैं कि मैं गांधी के देश से आया हूं। गांधी विद्या संस्थान की सेल डीड कहती है कि जिस दिन गांधी विद्या संस्थान काम करना बंद कर देगी, उसकी जमीन सर्वसेवा संघ के पास आ जाएगी, लेकिन जो कमिश्नर कौशल राज शर्मा ने किया है वह गैरकानूनी है। यह केवल जमीन पर कब्जाने का प्रयास नहीं, बल्कि उनके नामो-निशान मिटाने का कुत्सित प्रयास है।''

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest