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संसदीय प्रथाओं का उल्लंघन है बिजली संशोधन बिल 2022

अपडेट: बिजली संशोधन बिल 2022 संसद में पेश कर दिया गया है। इस पर विपक्ष ने कड़ा विरोध किया, जिसके बाद इस बिल को संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया है।
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मानसून सत्र से पहले खबर आ रही थी कि इस मानसून सत्र में सरकार संसद में बिजली संशोधन कानून 2022 पेश करने जा रही है। उसी समय से बिजली क्षेत्र से जुड़े हितधारक इस बिल का विरोध कर रहे थे। कह रहे थे कि सरकार इस बिल को आनन-फानन में ला रही है। सरकार को पहले सभी हितधारकों से बात करनी चाहिए तब बिल लाना चाहिए। इस लेकिन जब मानसून सत्र में प्रस्तावित होने वाले बिलों की लिस्ट आयी तो पता चला कि सरकार की तरफ से यह बिल प्रस्तावित नहीं किया जाएगा। उसके बाद भी बिजली क्षेत्र के हितधारकों का विरोध था, मगर उन्हें लगा था कि सरकार की तरफ से अबकी बार बिल पेश नहीं किया जाएगा।

अब जब मानसून सत्र ख़त्म होने को आ गया है भाजपा सरकार ने अपने रवैये के मुताबिक संसदीय प्रथाओं का उल्लंघन किया। और 5 अगस्त को केंद्रीय ऊर्जा मंत्री के जरिये हस्ताक्षरित बिजली बिल लोकसभा सदस्यों के पास विचार -विमर्श के लिए घूमने लगा। अब 8 अगस्त को यह बिल सदन में रखा जा रहा और इस पर बहस होगी।

इस पर ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन का कहना है कि वह सरकार के इस रवैये का विरोध करते हैं।  देश भर 27 लाख विद्युत कर्मचारी 8 अगस्त को काम पर नहीं जाएंगे और दिन भर इसका विरोध करेंगे। केंद्रीय विद्युत मंत्री श्री आर के सिंह को चिट्ठी भेजकर यह मांग की है कि इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2022 के मसौदे पर सभी स्टेकहोल्डर्स खासकर बिजली उपभोक्ताओं और बिजली कर्मियों से विस्तृत बात किए बिना इस बिल को जल्दबाजी में संसद के मानसून सत्र में पेश न किया जाये। पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को भी पत्र भेजकर यह अपील की है कि दूरगामी परिणाम वाले इस अमेंडमेंट बिल को रोकने के लिए वे प्रभावी हस्तक्षेप करें, जिससे बिल पर सभी स्टेकहोल्डर्स की राय लिए बिना इसे जल्दबाजी में संसद से न पारित कराया जाए।

सरकार ने किसानों से भी वादा किया था कि बिजली बिल में किसान पर असर डालने वाले प्रावधानों पर पहले सभी स्टेकहोल्डर्स/संयुक्त किसान मोर्चा से चर्चा होगी। मोर्चा से चर्चा होने के बाद ही बिल संसद में पेश किया जाएगा।”

बिजली कानून 2003 में अब तक कई बार संशोधन के बिल पेश कई जा चुके हैं। लेकिन अभी तक इस पर कोई ठोस बहस नहीं हुई है। साल 2014,2018, 2020 और 2021 में कई बार बिजली संशोधन कानून पेश किये जा चुके हैं। साल 2020 में बिजली संशोधन कानून पेश किया गया तो हितधारकों से बातचीत करने के लिए 21 दिन दिए गए। साल 2021 में संशोधन बिल पेश किया गया तो हितधारकों से बात करने के लिए 14 दिन दिया गया। अबकी बार जब संशोधन बिल पेश किया जा रहा है तो हितधारकों से बात करने के लिए एक भी दिन नहीं दिया है। आपको लग सकता है कि जब साल 2014 से संशोधन बिल पेश किया जा रहा है तो बातचीत करने के लिए बहुत समय मिल गया। लेकिन यहां समझने वाली बात है कि हर बार अलग-अलग बिल अलग-अलग प्रावधानों के साथ पेश किया। हर बार बिजली क्षेत्र के निजीकरण का विरोध हितधारकों की तरफ से हुआ और हर बार बिल में ऐसा कुछ भी बदलाव नहीं किया गया जिससे इसमें कुछ बदलाव आये।

इस पूरे मुद्दे को समझने के लिए न्यूज़क्लिक ने ऑल इंडिया पॉवर इंजनियर्स फेडेरशन के चैयरमेन शैलेन्द्र दुबे से बातचीत की। उन्हीं की बातचीत का सारांश यहाँ पेश किया जा रहा है। इस बिल के मसौदे पर विरोध के कई बिंदु है। सबसे पहल विरोध तो यही है कि इस बिल से जुड़ा स्टेटमेंट ऑफ़ ऑब्जेक्ट और रीज़न पेश नहीं किया है। मतलब इसकी जानकारी नहीं दी गयी है कि यह बिल किस मकसद से पेश किया जा रहा है? बिजली क्षेत्र में आखिरककर कमियां कहाँ है? जिसकी वजह से यह बिल पेश किया जा रहा है। इसमें पारदर्शिता की कमी है। ऐसा लगता है जैसे सरकार दबे पांव कुछ करना चाहती है।

बिजली वितरण कंपनियों के तौर पर अभी तक पूरे हिदुस्तान में सरकारी कंपनियों का दबदबा रहा है। दिल्ली, अहमदाबाद, मुंबई और कोलकाता को छोड़ दिय जाए तो पूरे हिंदुस्तान में डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों का तामझाम सरकारी कंपनियां संभालते आई हैं। सरकार कानून के जरिये यह बदलाव करने जा रही है कि बिजली वितरण कंपनियों के तौर पर पूरे भारत में प्राइवेट कंपनियों को इंट्री दे रही है। कह रही है कि ऐसा करने से उपभोक्ताओं को विकल्प मिलेगा। उन्हें सस्ते दर पर बिजली मिलेगी।

जहां तक उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति का चॉइस देने की बात है यह पूरी तरीके से छलावा है। हकीकत में यह बिल उपभोक्ताओं को नहीं बल्कि प्राइवेट एल्क्ट्रिसिटी सप्लाई करने वाली कंपनियों को चॉइस देगा। बिल में यह प्रवाधान है कि सभी श्रेणी के यानी किसी भी तरह के उपभोक्ताओं भले ही वह डोमेस्टिक, कॉमर्शियल, रूरल, अर्बन, फार्मर या किसी भी तरह के हों- उन्हें बिजली देने की बाध्यता केवल सरकारी कंपनी की होगी।

स्वाभाविक तौर पर प्राइवेट कंपनियां मुनाफे वाले इंडस्ट्रियल और कॉमर्शियल उपभोक्ताओं को ही बिजली देंगी। सरकारी वितरण कंपनियां किसानों और आम उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली देने के चलते और घाटे में चली जायेंगी। इस बिल के मुताबिक प्राइवेट कंपनियां, सरकारी डिस्कॉम का नेटवर्क प्रयोग करेंगी। जिसके ऑपरेशन, मेन्टेन्स और कैपसिटी बढ़ोतरी का बोझ भी सरकारी डिस्कॉम को ही उठाना पड़ेगा।

इस नेटवर्क को बनाने में सरकारी डिस्कॉम ने अरबों खरबों रुपये खर्च किये हैं। इसके मेंटिनेंस पर हजारों करोड़ रुपये सरकारी डिस्कॉम खर्च कर रहे हैं। मात्र व्हीलिंग चार्जेस लेकर इस नेटवर्क के इस्तेमाल की इजाजत प्राइवेट कंपनियों को देना सरासर नाइंसाफी है। यह पूरे इलेक्ट्रसिटी के निजीकरण का मसौदा है जिसका बिजली कर्मी पुरजोर विरोध कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि यह प्रयोग मुंबई में पहले से ही चल रहा है, जहां अडानी पावर और टाटा पावर एक ही क्षेत्र में बिजली आपूर्ति करते हैं। टाटा पावर अडानी पावर का नेटवर्क इस्तेमाल करती है। इसके चलते कई प्रकार के कानूनी झगड़े खड़े हो गए हैं और और उपभोक्ताओं को इस से कोई राहत नहीं मिली है। मुंबई में डोमेस्टिक कंजूमर की बिजली की दरें ₹12 से ₹14 प्रति यूनिट तक है जो देश में सर्वाधिक है। अब यही प्रयोग सारे देश पर थोपना आम उपभोक्ताओं के साथ धोखा है।

उन्होंने आगे कहा कि सरकारी डिस्कॉम के नेटवर्क का प्रयोग करके जब निजी कंपनियां बिजली आपूर्ति करेंगे तो इसके लिए बनने वाले सॉफ्टवेयर पर अरबों रुपए का खर्च आएगा। ब्रिटेन में यह प्रयोग किया गया था जहां ऐसे सॉफ्टवेयर पर 10 वर्ष पहले 850 बिलियन पाउंड का खर्च आया था और यह खर्च उपभोक्ताओं से उनके बिल में डाल कर वसूल किया गया था। केंद्र सरकार को यह बताना चाहिए कि भारत में यह प्रयोग होने पर अरबों रुपए का यह खर्च उपभोक्ताओं पर डाला जाएगा। निजी कंपनियां मुनाफा कमाएंगे तो इससे आम उपभोक्ताओं का क्या भला होगा। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है कि अब आयातित कोयले का बोझ डिस्कॉम्स पर डाल दिया गया है जो अन्ततः उपभोक्ताओं से ही वसूल किया जाएगा।

मौजूदा वक्त में पावर जेनरेशन स्टेशन से घरों तक बिजली पहुंचाने की लागत पूरे भारत में औसतन तकरीबन 7.5 रुपये प्रति यूनिट है। जबकि प्रति यूनिट वसूली 5.5 रुपये होती है। इस कमी को सब्सिडी और क्रॉस सब्सिडी के जरिये को पूरा किया जाता है। क्रॉस सब्सिडी यानी अमीरों से ज्यादा दरों पर बिजली बेचकर गरीबों को कम दरों पर बिजली बेचने के नुकसान की भरपाई करना। सरकार नए कानून के जरिये सब्सिडी के इस अवधारणा को खत्म करने जा रही है। उपभोक्ताओं को ही सारा भुगतान करना पड़ेगा। इसका मतलब है कि बिजली पहले से ज्यादा महंगी होने वाली है। जनता पर ज्यादा असर पड़ने वाला है।

कुल मिला जुलाकर कहा जाए तो बात यह है कि सरकार ने देश भर में बिजली पहुचाने का ढांचा बना दिया है। तार से लेकर ट्रांसफर्मर का तक का खर्चा सरकार उठाएगी। मगर बिजली का मीटर लगाकर पैसा कमाने का काम प्राइवेट कंपनियां करेंगी। वह भी वहां पर जहाँ से मुनाफा कमाना तय है। मतलब बिजली क्षेत्र का खर्चा सरकार का होगा और मुनाफा प्राइवेट कंपनियों का।

अपडेट: बिजली संशोधन बिल 2022 संसद में पेश कर दिया गया है। इस पर विपक्ष ने कड़ा विरोध किया, जिसके बाद इस बिल को संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया है। 

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