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दिल्ली: न्यूनतम वेतन लागू करने और ठेका प्रथा को समाप्त करने की माँग के साथ मज़दूर संगठनों ने केजरीवाल सरकार को सौंपा हड़ताल का नोटिस

25 नवंबर को एक दिवसीय हड़ताल का नोटिस देने के लिए गुरुवार को दिल्ली सचिवालय पर केंद्रीय मज़दूर संगठनों के नेतृत्व में सैंकड़ों श्रमिकों ने दिल्ली की एक रैली में हिस्सा लिया। हालाँकि उन्हें दिल्ली पुलिस ने सचिवालय से पहले ही रोक लिया।
दिल्ली: न्यूनतम

अर्चना के लिए त्योहारी सीजन की शुरुआत खुशी का कोई कारण नहीं है। इसके विपरीत, ये समय सामान्य समय की तुलना में अधिक परेशान करने वाला है।   क्योंकि  वो जिस मानसिक रूप से विकलांग लोगों के लिए आशा किरण आश्रय गृह में हाउस आंटी' के रूप में कार्यरत है।  उन्होंने उन्हें पिछले चार महीनों से अपने कर्मचारियों को मासिक वेतन भुगतान तक  नहीं किया है।  

राष्ट्रीय राजधानी में रोहिणी के सेक्टर 1 में स्थित, आश्रय गृह - या 'मंधबुद्धि विकास गृह' जो  दिल्ली सरकार के समाज कल्याण विभाग द्वारा प्रशासित है। इसकी स्थापना 1989 हुई है।   यह उत्तरी दिल्ली क्षेत्र में मानसिक रूप से विकलांग लोगों के लिए सरकार द्वारा संचालित एकमात्र आवासीय सुविधा है।

वेतन में देरी के विरोध में, अर्चना 25 नवंबर को आश्रय गृह में 200 से अधिक 'हाउस आंटी' के साथ हड़ताल में शामिल होंगी, जिसे केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (सीटीयू) की दिल्ली-इकाई ने संयुक्त रूप से बुलाया है । गुरुवार को इन महिलाओं के एक वर्ग ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को हड़ताल का नोटिस देने के लिए रैली में हिस्सा लिया।  

अर्चना जिन्हे  2010 में दिल्ली सरकार द्वारा अनुबंध पर नियुक्त किया गया था। उन्होंने अफ़सोस जताते हुए कहा  “आश्रय गृहों में काम करने की स्थिति कई वर्षों से भयानक है। हम, महिलाएं, मानसिक रूप से विकलांग लोगों की देखभाल करती हैं और फिर भी हमें समय पर वेतन का भुगतान नहीं किया जाता है और न ही हमें पीएफ या ईएसआई योजना के तहत कवर किया जाता है।"  

उनके अनुसार, केजरीवाल सरकार सत्ता में आने से पहले सभी ठेका नौकरियों को पक्का करने का वाद किया था परन्तु जैसे ही हमने 'हाउस आंटी' पद को नियमित करने की मांग की ,उनको पक्का करने के बजाय आम आदमी पार्टी (आप) के नेतृत्व वाली  सरकार नौकरी धीरे-धीरे एक निजी संपर्ककर्ताओं को आउटसोर्स कर दिया ।


गुरुवार की रैली का नेतृत्व सीटीयू नेताओं ने किया, यह विरोध प्रदर्शन आईटीओ मेट्रो स्टेशन के पास शहीद भगत सिंह पार्क से शुरू हुआ और इसे दिल्ली सचिवालय पर  समाप्त होना था। हालांकि,रैली करने वाले सैकड़ों श्रमिकों  को दिल्ली पुलिस ने निर्धारित गंतव्य से पहले ही रोक दिया।

सीटीयू ने गुरुवार को अपने हड़ताल नोटिस में तर्क दिया कि आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतों ने राष्ट्रीय राजधानी में कामकाजी आबादी को संकट में डाल दिया है। ट्रेड यूनियनों के नोटिस के अनुसार, सबसे गंभीर संकट है कि दिल्ली के औद्योगिक प्रतिष्ठानों में श्रम नियमों को "प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जाता है।"


यह तब  है जब श्रमिक को महामारी के दौरान 10 से 12 घंटे तक काम करने के लिए "मजबूर" किया जा रहा हैं।  ट्रेड यूनियनों के अनुसार,  अक्सर दिल्ली में  सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी दरों से कम मासिक भुगतान होता हैं। न्यूनतम मजदूरी राष्ट्रीय राजधानी में एक अकुशल मजदूर के लिए वर्तमान में 15, 908 रुपये पर है और एक कुशल मजदूर के लिए 19, 921 रूपए है।  

मजदूर यूनियन न्यूनतम वेतन के रूप में 26,000 रुपये की मांग कर रहे हैं। जबकि असंगठित कार्यबल को 7,500 रुपये की मासिक नकद सहायता  की भी मांग उठा रहे है । उनकी अन्य प्रमुख मांगों में चार श्रम संहिताओं को वापस लेना और राष्ट्रीय राजधानी में ठेकाकरण की व्यवस्था को तत्काल समाप्त करना भी शामिल है।

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू ) के महासचिव अनुराग सक्सेना ने न्यूज़क्लिक को बताया, "ट्रेड यूनियन नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने मनीष सिसोदिया (दिल्ली के श्रम मंत्री) के पीए (निजी सहायक) से मुलाकात की और उन्हें हड़ताल का नोटिस सौंपा ।" उन्होंने कहा कि विभिन्न वर्गों के कार्यकर्ता अपना गुस्सा दर्ज कराने के लिए 25 नवंबर को  हड़ताल पर रहेंगे।

यह सुनिश्चित करने के लिए, गुरुवार को, स्ट्रीट वेंडर्स, कूड़ा उठाने वाले, औद्योगिक श्रमिकों, होटल श्रमिकों सहित अन्य सभी – सभी सीटीयू की रैली में शामिल हुए। स्ट्रीट वेंडर 35 वर्षीय रीना ने कहा: “मजदूर चाहते हैं कि सरकारें उनकी बात सुनें क्योंकि महामारी के बाद स्थिति और खराब हो गई है।”

स्व-रोजगार महिला संघ (सेवा) की रीना ने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए अपना उदाहरण दिया। “पहले, मैं 2000-3000रुपये तक बचत कर लेती थी। लेकिन अब बचत करना भूल जाओ, मुझे परिवार के खर्चों को पूरा करने के लिए समय-समय पर पैसे उधार लेने पड़ते हैं। ” रीना जामा मस्जिद में कपड़ा विक्रेता है । यह पूछे जाने पर कि वह क्या मांग कर रही है , इसपर रीना ने कहा कि सरकार को रेहड़ी-पटरी वालों के लिए एक सामाजिक सुरक्षा योजना लानी चाहिए।

साथ ही रैली में 53 वर्षीय मोहम्मद निहाल भी थे, जिन्होंने  "मजदूर विरोधी नीतियों" के लिए दिल्ली की आप सरकार और केंद्र सरकार दोनों की आलोचना की। शकूर बस्ती रेलवे स्टेशन पर लोडिंग-अनलोडिंग मज़दूर निहाला  ने कहा, “आज हम दोनों सरकार के विरोध में रैली कर रहे हैं।  यह जानने के बावजूद कि महामारी ने हमें बहुत प्रभावित किया है,उन्होंने श्रमिकों के लिए कुछ नहीं किया है, ।”

उन्होंने यह भी दावा किया कि यदि ठेका व्यवस्था समाप्त कर दी जाती है तो श्रमिकों की अधिकांश समस्याओं का समाधान हो जाएगा।

उन्होंने कहा “मैं पिछले 35 वर्षों से एक ठेका कर्मचारी हूं। इन सभी वर्षों से, मुझे मेरे ठेकेदार द्वारा कम भुगतान दिया गया  और परेशान भी  किया गया है। सरकार को इस तरह की व्यवस्था को जल्द ही समाप्त करना चाहिए और श्रमिकों को अच्छी नौकरी प्रदान करनी चाहिए।”

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