Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

पूर्व जजों की मोदी सरकार पर कड़ी टिप्पणी- 'लोकतंत्र और संविधान' को कमज़ोर कर रही है सरकार

संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ कन्वेन्शन में बोलते हुए जस्टिस गौड़ा ने कहा लोकतांत्रिक राज्य को हिंदू फासीवादी राज्य में बदलने का प्रयास किया जा रहा है।
justice gonda

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और वरिष्ठ वकीलों ने देश में संविधान और लोकतंत्र पर बढ़ते ख़तरों को लेकर शनिवार 7 जनवरी को एक राष्ट्रीय कन्वेन्शन किया जिसमें कई गंभीर टिप्पणियां की गईं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज वी गोपाल गौड़ा ने तो यहां तक कह दिया कि वर्तमान सत्ता देश को हिंदू राष्ट्र बनाने में लगी है....वे यही नहीं रुके उन्होंने कहा कि वर्तमान सत्ता उन्हें पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के शुरुआती माहौल की याद दिलाती है। इसके साथ ही अन्य पूर्व जज, वकीलों और पत्रकारों के साथ प्रोफ़ेसर्स ने भाग लिया।

ये कन्वेन्शन ऑल इंडिया लॉयर्स यूनियन (AILU), दिल्ली यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स (DUJ) और डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट (DTF) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था और इसका मुख्य विषय था-"संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ।" ये अपने आप में एक बड़ी पहल थी जब पत्रकारों, क़ानूनविदों और शिक्षकों ने एक मंच साझा करते हुए देश में संविधान और लोकतंत्र पर बढ़ते ख़तरों पर चर्चा की।

इस कन्वेन्शन को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस वी गोपाल गौड़ा, उच्च न्यायालय की पूर्व जज रेखा शर्मा, उच्च न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस यूबी शाह, वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन, वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह, डीयूजे के अध्यक्ष और वरिष्ठ पत्रकार एस के पांडे, डीयूजे की महासचिव सुजाता मधुक, डीटीएफ़ नेता नंदिता नारायण, राज्यसभा सांसद और एआईएलयू के अध्यक्ष बिकास भट्टाचार्य और एआईएलयू के महासचिव व वरिष्ठ वकील पीवी सुरेंद्रनाथ ने संबोधित किया।

वर्तमान भारतीय राजनीति पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान की दिलाती है याद : जस्टिस गौड़ा

गोपाल गौड़ा ने बड़े ही कड़े शब्दों में वर्तमान सत्ता पर हमला बोला और कहा कि पिछले आठ वर्षों के दौरान समाज में दक्षिणपंथी ताक़तों के बढ़ने के कारण स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के ख़तरे सामने आ रहे हैं और लोकतांत्रिक राज्य को हिंदू फासीवादी राज्य में बदलने का प्रयास किया जा रहा है। "सीएजी और चुनाव आयोग जैसे कार्यपालिका के स्वतंत्र पर्यवक्षकों (निगरानी करने वाली संस्था) को केंद्र सरकार के विस्तारित अंग में बदल दिया गया है।

पूर्व जस्टिस ने कहा कि आज देश में अल्पसंख्यक डरे हुए हैं। ये कहते हुए कि देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव अब नहीं होते हैं, उन्होंने कहा, "सत्ता में आने वाली दक्षिण प्रतिक्रियावादी (राइट विंग रिएक्शनरी) ताक़तों को वैध बनाने के लिए चुनाव एक इवेंट बन गया है। इस लोकतांत्रिक पतन के परिणामस्वरूप दलितों के लिए भारी सामाजिक और आर्थिक संकट पैदा हो गया है।... ऐतिहासिक रूप से वंचित समूह जैसे आदिवासी मुसलमान अपने अस्तित्व के लिए भय में हैं।"

इसके साथ ही नोटबंदी के फ़ैसले के बारे में उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने आरबीआई का प्रस्ताव पारित करने का निर्देश दिया था।

गौड़ा ने जस्टिस बीवी नागरत्ना को नोटबंदी पर सुनवाई के बाद आए फ़ैसले में उनकी ' 'असहमति' के लिए उनकी सराहना करते हुए कहा, "इस देश में संवैधानिक लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए वे अकेली जस्टिस थीं जिन्होंने साहस और दृढ़ विश्वास दिखाया।"

इसके साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार की कई आर्थिक नीतियों पर भी चोट करते हुए कहा कि इस सरकार ने लॉकडाउन जैसे फ़ैसले को थोपा जिसमें उन्होंने देश की राज्य सरकारों और आम लोगों तक को तैयारी का समय नहीं दिया। इसके बाद छोटे उद्योग बंद हो गए और देश आजतक उस आर्थिक संकट से नहीं उबर पाया है। हालांकि कोरोना के दौरान अरबपतियों की संख्या ज़रूर बढ़ी लेकिन उसी दौरान लाखों लोग ग़रीबी रेखा के नीचे भी चले गए हैं।

इसके साथ ही उन्होंने ईडब्ल्यूएस(EWS) आरक्षण को भी संविधान की मूल अवधारणा के ख़िलाफ़ बताया।

अपने भाषण में गौड़ा ने सीएए और एनआरसी की भी आलोचना की और इन्हें भारत में धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के आधार को बदलने के हथकंडे बताए। साथ ही उन्होंने चुनी हुई सरकारों की शक्तियों को कमज़ोर करने के लिए राज्यपाल के कार्यालय के दुरूपयोगों के बारे में भी चिंता ज़ाहिर की।

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद-370 और चुनावी बॉन्ड से संबंधित महत्वपूर्ण मामलों पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर भी गंभीर सवाल उठाए और दो उदाहरण दिए- पहला, चुनाव आयोग ने गुजरात चुनाव की घोषणा में देरी की क्योंकि प्रधानमंत्री को कुछ घोषणा करनी थी और दूसरा दिल्ली में आप के विधायकों की सदस्यता ख़त्म करने की जल्दबाज़ी को लेकर भी वे बोले। हालांकि बाद मे आयोग के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया।

भाषण समापन से पहले उन्होंने कहा, "वर्तमान भारतीय राजनीति जिस रास्ते पर है वो उन्हें पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के पहले दशक की याद दिलाता है। इसलिए संविधान और लोकतंत्र को बचाने का अभियान बहुत महत्वपूर्ण है।

राज्य और धर्म का लगातार घालमेल लोकतंत्र के लिए है ख़तरनाक : राम चंद्रन

"संविधान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ" कन्वेन्शन में बोलते हुए वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने शनिवार को कहा कि राज्य (सरकार) और धर्म का लगातार घालमेल भारत के लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक है। संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों द्वारा खुले तौर पर मंदिर को अपनाना आपको यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि राज्य क्या है और धर्म क्या? वो कहते हैं कि आज भारत के संवैधानिक मूल्य ख़तरे में है।

रामचंद्रन ने आगे कहा, "यदि न्यायाधीश इस अवसर पर नहीं खड़े होते हैं तो वकीलों के रूप में यह हमारा कर्तव्य है कि अदालतों में हम जो लड़ाई लड़ते हैं अब अदालतों के बाहर अपनी बैठकों और बयानों के माध्यम से भी लड़ें। यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपना काम करें।"

रामचंद्रन ने तमिलनाडु और केरल का उदाहरण देते हुए कहा कि जिन राज्यों में विपक्षी पार्टियों का शासन है, उन सरकारों को काम करने से रोकने के लिए राज्यपालों को चुना जा रहा है ताकि उनके काम में बाधा डाली जा सके जो कि लोकतंत्र के लिए बेहद ख़तरनाक है।"

सरकार जानबूझकर कर रही है संविधान की अनदेखी : जयसिंह

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने शनिवार को अपने भाषण की शुरुआत में कहा कि उन्हें इस मुद्दे पर कुछ थकान महसूस हो रही है इसके बारे में आगे उन्होंने कहा, "हम 2014 से संविधान बचाने और लोकतंत्र बचाने की बात कर रहे हैं लेकिन हम आज भी डिफेंसिव मोड में हैं। मुझे नहीं पता कि हम आक्रामक मोड में कब आएंगे !"

जयसिंह ने कहा कि सत्तारूढ़ दल संविधान की जानबूझकर अनदेखी कर रहा है। उन्होंने अपने भाषण में कहा कि संविधान में बदलाव या किए जा रहे छेड़छाड़ से हम लड़ सकते है लेकिन ये बेहद सरलता से भारत के संविधान की अनदेखी कर रहे हैं।

आगे वो कहती हैं, "यह हमारे सामने एक बड़ी चुनौती है कि आप एक सत्तारूढ़ व्यवस्था से कैसे निपटते हैं जो भारत के संविधान की अनदेखी कर रही है।"

वो आगे स्पष्ट करती है कि 'संविधान की अनदेखी' से उनका क्या मतलब है। उन्होंने कहा, "हम सब जानते हैं कि संविधान, स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष का परिणाम था। इसे 'क़ानून के शासन' के रूप में जाना गया था। आज 'क़ानून के शासन' की अनदेखी की जा रही है। और हमें इस सवाल का सामना करना होगा कि क्या वाकई हम 'क़ानून के शासन' वाले देश हैं? मेरे विचार से हम नहीं हैं!"

जयसिंह ने हॉल मे बैठे वकीलों को संबोधित करते हुए कहा कि वकीलों के रूप में, हमें संविधान की रक्षा में एक बहुत बड़ी भूमिका निभानी है। हमें एक साथ आने की ज़रूरत है।

उन्होंने कहा कि दो महत्वपूर्ण घटनाएं हैं जब भारत के संविधान पर हमला किया गया। एक आपातकाल के दौरान था और दूसरा 2014 से शुरू हो रहा है और मुझे लगता है कि हमारे लिए इन दोनों हमलों के बीच के अंतर को समझना महत्वपूर्ण है।

जयसिंह ने कहा, "1975 के आपातकाल ने हमें एक बड़ा झटका दिया। हमारे सभी विरोधों की वैधता और हमारे संघर्षों की विरासत का आपातकाल की घोषणा के वक़्त क्रूर अंत किया गया था। आपातकाल ने उदार लोकतंत्र (लिबरल डेमोक्रेसी) की हमारी समझ को परिवर्तित किया। हमने उदार लोकतंत्र का अंत देखा। अपने प्रयास के बावजूद, आपातकाल, संविधान को अवैध बनाने में सफल नहीं हुआ। इसके विपरीत, मेरा मानना है कि आपातकाल और इसके ख़िलाफ़ संघर्ष ने संविधान को और मज़बूत किया क्योंकि दोनों पक्षों ने दावा किया कि वे उदार लोकतंत्र की रक्षा कर रहे थे।

जयसिंह ने कहा, "2014 के बाद, सत्ताधारी वास्तव में अपने सभी बयानों में कहते हैं कि वे उदार लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते हैं। वे हमें यह समझाने की कोशिश करते हैं कि स्वतंत्रता संग्राम कभी नहीं हुआ बल्कि ये अब हो रहा है। और हमारे सभी अधिकार व लोकतांत्रिक प्रथाएं वेदों से उत्पन्न होती हैं और हम उस निरंतरता में हैं जो रुकी हुई थी। धर्मनिरपेक्षता शब्द को संविधान से हटा दिया जाना चाहिए और हमें संविधान के बजाय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद द्वारा शासित होना चाहिए।"

जयसिंह ने आगे कहा, "आपातकाल काग़ज़़ के एक टुकड़े पर था और हम इसे क़ानून की अदालत में लड़ सकते थे, लेकिन अभी नहीं।"

जयसिंह ने 2014 के बाद न्यायाधीशों की भूमिका की ओर इशारा करते हुए कहा, "मैंने देखा है कि हमारे कुछ न्यायाधीशों ने भी उन्हीं की भाषा में बोलना शुरू कर दिया है।" इसके साथ ही उन्होंने संवैधानिक संस्थाओं पर हमले को भी चिन्हित किया और कहा, "आज कल सुप्रीम कोर्ट के जज बोल रहे हैं कि आरबीआई और सरकार अलग नहीं रह सकती है जबकि संविधान ने ही इन्हें अलग रखा है। कल को वो कह सकते हैं कि केंद्र सरकार और चुनाव आयोग भी अलग नहीं रह सकता है।"

मोदी सरकार ने हमारी आज़ादी को ही ख़त्म कर दिया : पत्रकार

पत्रकार एसके पांडे ने कहा, "ये सच है कि अभी के हालात बदतर हैं। ये सरकार लगातार पत्रकारिता पर हमले कर रही है। यूपी की जेल में एक पत्रकार अपना काम करने की वजह से बंद है। इसके साथ ही ट्रेड यूनियन राइट्स को ख़त्म कर दिया गया है। यूनियन को प्रेस से बाहर कर दिया गया जिसने पत्रकारों की लड़ाई को कमज़ोर किया है।

जस्टिस गौड़ा ने भी पत्रकारों के लिए बोलते हुए कहा कि देश में मीडिया की आज़ादी कमी आई है, इसके लिए गौड़ा ने कुछ रिपोर्टों का हवाला दिया। उन्होंने पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या और पत्रकार सिद्दीकी कप्पन की गिरफ़्तारी का ज़िक्र किया। उन्होंने न्यायालय के रुख को लेकर भी सवाल किया। वो कहते है, "मुंबई के एक पत्रकार को गिरफ़्तार किया गया तो सुप्रीम कोर्ट ने उसे एक दिन में ज़मानत दे दी थी जब उसकी ज़मानत याचिका ट्रायल कोर्ट में लंबित थी। लेकिन वहीं जब कप्पन का मामला आया तो सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका यह कहते हुए ख़ारिज कर दी की उनकी सुनवाई निचली अदालत में चल रही है।

सुजाता ने कहा, "हम सब आज मीडिया को गाली देते हैं लेकिन हमें समझना होगा कि ऐसा हुआ क्यों? पूरी योजना के साथ नव-उदारवाद के बाद से ये सब किया गया है। पहले हमारी यूनियन को संस्थागत तौर पर ख़त्म किया गया। फिर ठेका प्रथा को लाया गया जिसने पूरी मीडिया का स्वरूप ही बदल दिया।

पांडे ने आगे कहा, "पहले कुछ राजदरबारी थे लेकिन आज अधिकतर सभी मीडिया संस्थान सरकारी प्रवक्ता हैं। आजकल कुछ ही वेबसाइट्स हैं जो पत्रकरिता के पैमाने पर सही हैं, सरकार उन्हें ही टारगेट कर रही है। इसलिए हमें आज संयुक्त बैठक और संघर्ष करने की ज़रूरत हैं।

आज अपनी बात रखने पर हो रही है जेल : नंदिता

कन्वेन्शन में शामिल हुई दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ की पूर्व अध्यक्ष नंदिता नारायण ने कहा, "आज ये सरकार विरोध की आवाज़ को दबाने के लिए हर प्रयास कर रही है। पहले बात रखने की जगह थी लेकिन आज बात रखने पर जेल हो रही है। इस सरकार ने आज विरोध को ही अपराध बना दिया है।

इसके साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में बढ़े हमले पर भी उन्होंने चर्चा की और कहा, "पहले हमारे देश में विदेशी शिक्षण संस्थानों को पैसा कमाने की छूट नही थी परंतु एक नोटिफिकेशन से सरकार ने विदेशी संस्थाओं को पैसा कमाने की छूट दे दी है। इसके साथ ही ये सरकार डिजिटल शिक्षा के नाम पर पूरी शिक्षा व्यवस्था को बर्बाद करने मे लगी है। जबकि पूरी दुनिया के अनुभव डिजिटल शिक्षा को लेकर ख़राब ही रहे हैं। इसके बाद भी सरकार शिक्षा की गुणवत्ता को गिराने के लिए ऐसा कर रही है जिससे लोग न पढ़ सकें न सोच समझ सकें।"

उन्होंने कहा, "ये सरकार हर चीज़ को मुनाफ़ा कमाने की नज़र से देख रही है जोकि कुछ नहीं बल्कि ईस्ट इंडिया कंपनी का दूसरा अवतार है।

जस्टिस यूबी शाह ने कहा, "आज सवाल है कि क्या हम आज़ाद हैं? आज़ादी के 75 साल बाद भी हमें ये सवाल पूछना पड़ रहा है जो काफ़ी दुर्भाग्यपूर्ण है। इसके साथ ही न्यायपालिका में बैठे लोगों से भी उन्होंने कहा कि हमें ये नहीं समझना चाहिए की हम भगवान हैं। हम भी आम आदमी हैं, जब तक आप ऐसा नहीं मानेंगे तब तक आप आम व्यक्ति के साथ न्याय नहीं कर सकते हैं।

वो आगे कहते हैं, "लोकतंत्र में विरोध का सम्मान होना चाहिए। लेकिन आज सदन में भी किसी को बोलने नहीं दिया जा रहा है। ये लोकतंत्र और संविधान पर हमला है और हमें इसे बचाना है।

बिकास भट्टाचार्य ने कहा, "विरोध की आवाज़ा लोकतंत्र की जान है। अगर हम उसे सम्मान नहीं देंगे तो लोकतंत्र नहीं बचेगा। 'फ्रीडम ऑफ थॉट और एक्सप्रेशन' ज़रूरी है।"

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest