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परीक्षा का मसला: छात्रों का सोशल मीडिया से लेकर सड़क तक विरोध प्रदर्शन जारी

कॉलेज छात्रों ने अपने आंदोलन को तेज़ करने के लिए, देशभर के तमाम विश्वविद्यालयों के छात्र संघ और छात्र संगठनों ने ‘ऑल इण्डिया फोरम टू सेव पब्लिक एजुकेशन’ नाम से एक संयुक्त मंच मनाया है।
परीक्षा का मसला

देशभर में कॉलेज के छात्रों ने शनिवार से चार दिन का विरोध प्रदर्शन शुर कर दिया हैं। ये प्रदर्शन शनिवार 11 जुलाई से लेकर मंगलवार 14 जुलाई तक है। इस दौरान छात्रो ने सड़को से लेकर सोशल मीडिया पर संयुक्त रूप से प्रदर्शन किया। जिसमें मांग की गई कि कोरोना महामारी के मद्देनजर अंतिम वर्ष या सेमेस्टर परीक्षा को बिना किसी और देरी के समाप्त कर दिया जाए।

हालांकि अलग अलग राज्यों में छात्र इस मांग को लकेर प्रदर्शन करते रहे है परन्तु अपने आंदोलन को और तेज़ करने के लिए, देशभर के तमाम विश्वविद्यालयों के छात्र संघ और छात्र संगठनों ने एक संयुक्त मंच मनाया हैं। जिसका नाम है ऑल इण्डिया फोरम टू सेव पब्लिक एजुकेशन है।

अब तक क्या हुआ

- 11 जुलाई को पूरे देश में संयुक्त रूप से विरोध प्रदर्शन किये गए। जिसके तहत दिल्ली स्थित विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) मुख्यालय सहित देश के अन्य हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए। इसके साथ ही मानव संसाधन मंत्रालय को बड़े पैमाने पर ईमेल किये गए।

- 12 जुलाई को छात्रों ने नए दिशा निर्देशों को लेकर हो रही समस्याओं को वीडियो के माध्यम से जाहिर किया।

-13 जुलाई यानी आज, सोमवार को छात्र सोशल मीडिया पर ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। जिसमें हैशटैग के साथ वो अपनी बातों को रख रहे हैं।

- मंगलवार, 14 जुलाई को गृह मंत्रालय से लेकर एमएचआरडी से यूजीसी तक सभी सम्न्बंधित विभागों के नोटिस को जलाया जाएगा। जिन्होंने फाइनल ईयर के छात्रों के परीक्षा आयोजन की बात कही हैं। इसके साथ ही इस माहमारी में छात्रों पर परीक्षा थोपने के लिए गृहमंत्री अमित शाह और मानव संसाधन एवं विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का पुतला जलाया जाएगा।

-14 जुलाई को ही ऑनलइन हस्ताक्षर अभियान भी चलाया जाएगा और उसे एमएचआरडी को भेजा जाएगा। इसके साथ ही शरीरिक दूरी का पालन करते हुए शिक्षण संस्थानों के सभी एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिस का घेराव भी किया जाएगा।

हालांकि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) इस संयुक्त मंच का हिस्सा नहीं है। शुरुआत में वो भी ऑनलइन शिक्षा और परीक्षाओं का विरोध कर रहा था परन्तु 6 जुलाई को यूजीसी के नए दिशा निर्देशों के बाद उसने इसका खुलकर समर्थन किया। जबकि बाकी छात्र संघ और संगठन इसका लगातार विरोध कर रहे हैं।

6 जुलाई को, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने विश्वविद्यालयों के लिए परीक्षाओं और अकादमिक कैलेंडर पर अपने दिशानिर्देशों में बदलाव करते हुए संशोधित दिशा निर्देश जारी किये। जिसमें अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को अनिवार्य बना दिया और सितंबर के अंत तक परीक्षा की अवधि बढ़ा दी। इस एक निर्णय ने छात्र और शिक्षक दोनों का ध्यान अपनी ओऱ खींचा और दोनों ने ही इस निर्णय की आलोचना की। इसके बाद से ही छात्रों का आंदोलन और तेज़ हो गया।

छात्रों के संयुक्त मंच ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा “यह परेशान करने वाला दस्तावेज़ एक स्पष्ट संकेत है कि केंद्र सरकार महामारी के समाधान की ओर ध्यान देने के बजाय इसे एक संकट में बदलने की कोशिश कर रही है, जो कि दिखाता है की सरकार स्वास्थ्य आपातकाल को संभलने में विफल रही है। इसके साथ ही सरकार इस संकट को उच्च शिक्षा में, छात्र-विरोधी और शैक्षणिक-विरोधी एजेंडा लागू करने के अवसर के रूप में देख रही है।”

परीक्षा में देरी के साथ छात्रों का भविष्य भी अनिश्चितता में है। इससे छात्रों की मानसिक हालत पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है, क्योंकि महामारी के इतने महीनों के बाद भी, कॉलेज के छात्रों को परेशानी को हल करने के लिए कोई भी अंतिम फैसला नहीं लिया गया है।

एसएफआई के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सुमित कटारिया ने कहा ,"विश्वविद्यालय के हितधारकों की आवाज बिल्कुल नहीं सुनी जा रही है। यूजीसी ने दिशानिर्देश जारी करते हुए देश में मौजूदा स्थितियों पर बिल्कुल विचार नहीं किया हैं। विभिन्न राज्यों के छात्रों को यह सुनिश्चित नहीं है कि परीक्षा की तैयारी करें या अपने कॉलेज के बाद की योजनाओं पर ध्यान दें।"

आगे उन्होंने बताया कि "परीक्षा को लेकर असमंजस की स्थिति उनके वित्तीय संकटों और उनके घर के भीतर की परेशानियों को बढ़ा रही है। क्योंकि बहुत से छात्र गरीब तबके से आते है और लोन लेकर पढ़ाई करते है। "

यूजीसी या मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) के अंतिम निर्णय के इंतजार में, कम से कम सात राज्यों - महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और केरल ने पहले अंतिम परीक्षाओं को रद्द करने का फैसला किया था।

इसके बावजूद, यूजीसी ने कथित तौर पर यह स्पष्ट किया कि यह सभी राज्यों को 6 जुलाई को जारी किए गए संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुरूप अपने निर्णयों पर पुनर्विचार करने के लिए कहेगा। परन्तु इसको लेकर भी गंभीर सवाल है क्योंकि राज्यों में कोरोना के मामलों में लगतार बढ़ोतरी हो रही है।

शुक्रवार को, महाराष्ट्र, COVID-19 के प्रकोप से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में से एक है, ने जोर देकर कहा कि यह विश्वविद्यालय की परीक्षाएं आयोजित नहीं करेगा और लाखों अंतिम वर्ष के विश्वविद्यालय के छात्रों को प्रमोट कर देगा, जिनमें बैकलॉग वाले छात्र भी शामिल है।

शनिवार को, दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने घोषणा की कि राज्य के विश्वविद्यालयों को अपने पिछले शैक्षणिक रिकॉर्ड के अनुसार छात्रों का मूल्यांकन करने के लिए कहा गया है, और सभी परीक्षाओं को रद्द कर दिया है। इसके बाद दिल्ली में स्थित केंद्र सरकार के शिक्षण संस्थानों में भी परीक्षा को टालने को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा।

पंजाब सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है, जिसमें यूजीसी के निर्देश की समीक्षा की मांग की गई है; राजस्थान सरकार अपने उच्च शिक्षा मंत्री भंवर सिंह भाटी के साथ कानूनी विशेषज्ञों से सलाह ले रही है कि परीक्षा आयोजित करना संभव नहीं है।

मध्य प्रदेश और हरियाणा, दो राज्य जहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता में है। उन्होंने अपने निर्णय से यू-टर्न ले लिया है और अब यूजीसी के नए दिशानिर्देश अनुसार अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने की तैयारी कर रहे हैं।

इसके साथ ही मुख्य विपक्षी कांग्रेस, वामपंथी दल सीपीआई, सीपीएम सहित कई दलों ने भी सरकारों को पत्र लिखकर छात्रों और माहमारी की हालत को देखते हुए अंतिम वर्षो के छात्रों की परीक्षा न कराने को कहा है।

छात्रों का कहना है कि ये बहुत शर्म की बात है कि हमारे देश में अधिकतर घरों में इंटरनेट के कनेक्टविटी ख़राब है। इसके बाद भी कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों सहित कई संस्थान, ऑनलाइन परीक्षा आयोजित करना चाहते हैं।

छात्रों ने कहा कि इंटरनेट होने को अब पूरे देश में प्रचलन में है पर इन विद्यार्थियों के पास क्या ऑनलाइन क्लास कर पाने लायक स्पीड, डाटा, बैंडविथ इत्यादि सुगमता से उपलब्ध हैं? NSSO अर्थात भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 4G इंटरनेट देश के शहरी और संभ्रांत तबकों तक सिमटा हुआ है। अतः ऑनलाइन परीक्षा छात्रों के साथ अन्याय है।

यूजीसी के निर्देश के दो दिन बाद, दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपनी ऑनलाइन ओपन बुक परीक्षा को स्थगित कर दिया, जबकि शिक्षकों और छात्रों द्वारा इसे पूरी तरह से रद्द करने के लिए मांग की गई है।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति एम. जगदीश कुमार ने 7 जुलाई को एक बयान जारी किया, जिसमें दोहराया गया कि विश्वविद्यालय के कई स्कूलों ने ऑनलाइन अंतिम-सेमेस्टर परीक्षाएं आयोजित की हैं और जो लोग उन्हें लिखने में असमर्थ हैं, उनके लिए परीक्षाएं बाद में आयोजित की जाएंगी।

ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईएसए) के अध्यक्ष और पूर्व जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष एन साई बालाजी ने कहा, "शिक्षा के सभी स्तरों पर अकादमिक कैलेंडर को बढ़ाया जाना चाहिए। जिससे अगर संस्थान देरी से परीक्षा लेते भी है तो यह सुनिश्चित किया जा सके की छात्र का समय बर्बाद न हों।"

10 जुलाई को, फेडरेशन ऑफ सेंट्रल यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशंस (FEDCUTA) ने भी केंद्र सरकार द्वारा अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने को लेकर निराशा व्यक्त की थी।

उसी दिन यूजीसी के अध्यक्ष को लिखे पत्र में, शिक्षकों के निकाय ने विश्वविद्यालय के प्रहरी (यूजीसी) पर सरकार के दबाव में आने और उनके व्यावसायिक हितों के लिए के लिए काम करने का आरोप लगाया।

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