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पंजाब में किसान आंदोलन को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने की कवायद शुरू

“किसान आंदोलन को सिलेबस का हिस्सा बनाने की मांग हमारे तक पहुँची है। हम आने वाले 5-7 दिनों में विशेषज्ञों की एक कमेटी बना रहे हैं, जो इस मामले पर काम करेगी।"
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फाइल फ़ोटो।

पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध साल भर चले किसान आंदोलन को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की योजना पर काम कर रहा है। पंजाब के अध्यापक संगठन लंबे समय से यह मांग करते आ रहे हैं कि किसान आंदोलन को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए। इसी मांग को लेकर ‘डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट’ का एक प्रतिनिधि मंडल गत 24 दिसंबर को पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन प्रो. योगराज को मिला था।

हमारे साथ बात करते हुए पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन प्रो. योगराज ने बताया, “किसान आंदोलन को सिलेबस का हिस्सा बनाने की मांग हमारे तक पहुँची है। हम आने वाले 5-7 दिनों में विशेषज्ञों की एक कमेटी बना रहे हैं, जो इस मामले पर काम करेगी। यह कमेटी निष्पक्ष नजरिये से देखेगी कि किसान आंदोलन को सिलेबस का हिस्सा बनाने से विद्यार्थियों को क्या फायदा होगा, यह कौन-सी कक्षा तक के विद्यार्थियों को पढ़ाया जाए और किसान आंदोलन से जुड़े किन-किन पहलुओं को शामिल किया जाए।”

डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट के अध्यक्ष विक्रमदेव सिंह बताते हैं, “किसान आंदोलन पंजाब के आधुनिक इतिहास का सबसे अहम अध्याय है। इस आंदोलन में पंजाब का हर रंग देखने को मिला। इस आंदोलन को पंजाब के सभी वर्गों का समर्थन व सहयोग मिला। इस जनआंदोलन ने सिर्फ देश को ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोगों को लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए शांतिपूर्वक ढंग से लड़ना सिखाया। विद्यार्थी इस आंदोलन के बारे पढ़ कर सीखेंगे के धर्म, जाति और क्षेत्र से ऊपर उठकर अपने जनतांत्रिक अधिकारों के लिए एकजुट होकर कैसे लड़ा जाता है।”

विक्रमदेव सिंह आगे कहते हैं, “हमने इतिहास की अहम हस्तियों जैसे शहीद भगत सिंह, करतार सिंह सराभा, उधम सिंह, डॉ. बी आर आंबेडकर, बाबा जीवन सिंह, सावित्रीबाई फूले, माई भागो, गुरु गोबिंद सिंह जी के चारों साहिबजादों के जीवन और विचारों को भी स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने की मांग उठाई है। इनमें से कईयों का जीवन परिचय तो पहले से सिलेबस में है पर उनके विचारों की बात नहीं है। हमारी मांग है कि बच्चों को इन महान हस्तियों के विचारों से भी अवगत करवाया जाना ज़रूरी है ताकि विद्यार्थियों के जीवन को सही दिशा मिल सके।”

जब अध्यापक नेता से यह पूछा गया कि उनको कितनी उम्मीद है कि पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड किसान आंदोलन को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाएगा, इसके जवाब में विक्रमदेव कहते हैं, “हमें बोर्ड के चेयरमैन से तो पूरी आस है कि वह पूरी ईमानदारी से इस पर काम करेंगे, साथ ही हम पंजाब सरकार से भी आस रखते हैं कि वह भी सकारात्मक रुख अपनाएगी। यदि सरकार का रवैया ठीक न रहा तो इस मांग को पूरा करवाने के लिए हम किसान संगठनों से भी समर्थन मांग कर संघर्ष करेंगे।”

याद रहे कि तीन कृषि कानूनों के विरुध साल भर चले किसान आंदोलन ने सबसे पहले पंजाब से अंगड़ाई ली थी। दिल्ली के बार्डरों तक पहुंचने से करीब छह महीने पहले ही पंजाब में यह आंदोलन शुरू हो गया था जिसे पंजाब के हर तबके ने भरपूर सहयोग दिया। पंजाब के बाद यह आंदोलन हरियाणा और देश के विभिन्न हिस्सों में फैला। दिल्ली के बार्डरों पर किसान तीनों कानूनों के विरुद्ध साल भर डटे रहे और आखिर में मोदी सरकार ने किसान आंदोलन के आगे झुकते हुए क़ानून वापस लिए थे।

किसान आंदोलन को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाये जाने की चल रही तैयारी पर पंजाब के सबसे बड़े किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (एकता-उगराहां) के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहां का कहना है, “इस ऐतिहासिक महत्व वाले किसान आंदोलन को स्कूली छात्रों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने पर विचार होना एक अच्छी और महत्वपूर्ण पहल कदमी है। हम इसका स्वागत करते हैं पर हम यह भी चाहते हैं कि इसकी पेशकारी का ढंग हकीकत मुखी होना चाहिए। छात्रों के सामने संघर्ष की सही तस्वीर उभरनी चाहिए। समाज के लिए इस संघर्ष के महत्वपूर्ण सबक का छात्रों तक संचार किया जाना चाहिए ताकि आंदोलन आने वाली नस्लों के लिए भी पथप्रदर्शक बन सके।”

क्रांतिकारी किसान यूनियन के अध्यक्ष और संयुक्त किसान मोर्चा के कोऑर्डिनेटर डॉ. दर्शन पाल इस पर अपने विचार देते हुए कहते हैं, “यह एक स्वागतयोग्य कदम होगा। हम यह चाहते हैं जब किसान आंदोलन सिलेबस का हिस्सा बने तो यह नुक्ते भी इसमें शामिल होने चाहिए कि पंजाब की किसानी इस समय गहरे संकट में है जिसकी जड़ें हमारे मौजूदा विकास के मॉडल में पड़ी हैं। हरित क्रांति के नाम पर जो खेती का मॉडल पिछले कई सालों से हमने अपनाया इसमें ही खेती संकट की जड़ें पड़ी हैं।”

किरती किसान यूनियन के उपाध्यक्ष राजिंदर सिंह दीप सिंह वाला अपने विचार कुछ इस तरह प्रकट करते हैं, “यदि पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड किसान आंदोलन को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाता है तो यह एक सराहनीय कदम होगा। हम चाहते हैं कि पाठ्यक्रम में आंदोलन का हर पक्ष निष्पक्षता से शामिल किया जाए। मोदी सरकार के गोदी मीडिया ने इस गलत धारणा का प्रचार किया था कि यह आंदोलन सिर्फ धनी किसानों का है। सच्चाई यह है कि यह आंदोलन हर उस व्यक्ति का था जो अन्न खाता है क्योंकि इन तीनों कृषि कानूनों में से आवश्यक वस्तू (संशोधन) कानून का सबंध तो सीधा गरीब लोगों से था। इस आंदोलन ने भूमिहीन किसान का मुद्दा भी उठाया है। यहाँ किसान-मजदूर एकता की बात भी हुई है। इस आंदोलन ने हमें सिखाया कि यदि हम मिलकर अपने लोकतांत्रिक अधिकारों की लड़ाई लड़ें तो ज़ालिम से ज़ालिम हुक्मरान को भी झुका सकते हैं। जिस दौर में हुकूमतें लोगों को धर्म के नाम पर लड़ा रही थी/हैं उसी समय किसान आंदोलन लोगों को आपस में जोड़ रहा था। ‘पंजाब-हरियाणा भाई-भाई’ का नारा इसी महान आंदोलन में बुलंद हुआ । यह सब बातें नईं नस्लों को बतानी जरूरी हैं।”

पंजाब के नामवर विद्वान् और इतिहास के प्रोफेसर हरजेश्वर पाल सिंह इस मामले पर अपने विचार कुछ इस तरह प्रकट करते हैं, “भारतीय लोकतंत्र में लोकतांत्रिक कद्रों-कीमतों का लंबा इतिहास है। इतिहास में हुए कई आंदोलनों के बारे में हम पढ़ते आए हैं। आजादी के बाद भी जो लोकतांत्रिक आंदोलन हुए हैं उनका भी इतिहास हम स्कूलों-कॉलेजों के सिलेबस में पढ़ रहे हैं। किसान आंदोलन आज़ादी के बाद उठे आंदोलनों में से एक बड़ा जन आंदोलन है। इसे जरूर स्कूली सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए। छात्रों को आसान भाषा में आंदोलन के विभिन्न पहलुओं से अवगत कराया जाए।”

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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