Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

किसान आंदोलन : 'आम जनता का संघर्ष है जिसे किसान लड़ रहे हैं'

आंदोलनकारी किसानों का कहना है कि ये क़ानून किसान के लिए तो मौत का फ़रमान है ही लेकिन ये देश की बड़ी आबादी के लिए भी ख़तरनाक है।
किसान आंदोलन

पिछले दो दशकों के सबसे बड़े किसान आंदोलन को हम देख रहे हैं। इस मोदी सरकार के कार्यकाल में ये उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है। किसान साफतौर पर कह रहा है कि उसके लिए कृषि कानूनों की वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं, जबकि सरकार चाहती है कि कुछ संशोधन करके काम चला लिया जाए। किसान नेताओं ने इसे सरकार की लीपापोती से अधिक कुछ नहीं कहा। इसके साथ ही जब हम आंदोलनकारी किसानों से बात करते हैं तो वे कहते हैं कि ये कानून किसान के लिए तो मौत का फ़रमान है ही लेकिन ये देश की बड़ी आबादी के लिए भी ख़तरनाक है।

सरकार-किसानों के बीच बातचीत में गतिरोध बरकरार

कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के नेतृत्व में तीन केंद्रीय मंत्रियों के साथ आंदोलनकारी किसानों के प्रतिनिधिमंडल की बृहस्पतिवार को हुई बैठक भी बेनतीजा रही। लगभग आठ घंटे चली इस बैठक में किसान नेता नए कृषि कानूनों को रद्द करने की अपनी मांग पर कायम रहे।

किसान नेताओं ने बातचीत के दौरान सरकार की तरफ से की गयी दोपहर के भोजन, चाय और पानी की पेशकश को भी ठुकरा दिया।

सरकार ने बातचीत के लिये पहुंचे विभिन्न किसान संगठनों के 40 किसान नेताओं के समूह को आश्वासन दिया कि उनकी सभी वैध चिंताओं पर गौर किया जाएगा और उनपर खुले दिमाग से विचार किया जायेगा। लेकिन दूसरे पक्ष ने कानूनों में कई खामियों और विसंगतियों को गिनाते हुये कहा कि इन कानूनों को सितंबर में जल्दबाजी में पारित किया गया। बैठक शनिवार को फिर से शुरू होगी क्योंकि समय की कमी के कारण कोई अंतिम नतीजा नहीं निकल सका।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने कहा कि यूनियनों की मुख्य मांग उक्त तीन कानूनों को निरस्त करने की है और सरकार ने किसान नेताओं द्वारा बताई गई 8-10 विशिष्ट कमियों को भी सुना है।

उन्होंने कहा, ‘‘हम कोई संशोधन नहीं चाहते हैं। हम चाहते हैं कि इन कानूनों को निरस्त किया जाए।’’ मोल्लाह ने कहा कि सरकार के साथ अगले दौर की बातचीत के लिए सभी किसान संगठन शुक्रवार को सुबह 11 बजे बैठक करेंगे।

बैठक में कृषि मंत्री तोमर के अलावा, सरकार की ओर से रेलवे, खाद्य एवं उपभोक्ता मामले तथा वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश जो कि पंजाब से सांसद हैं, भी बैठक में शामिल थे।

ये क़ानून किसान के साथ ही आम जनता के लिए ख़तरनाक है !

हरियाणा के हिसार से आये अखिल भारतीय किसान सभा के नेता मियां सिंह जिन्हें 25 नवंबर को हरियाणा पुलिस ने आंदोलन रोकने के लिए गिरफ़्तार कर लिया था, हालांकि उन्हें 27 को कोर्ट ने ज़मानत दी और वो रिहा हुए, उसके बाद वो सीधे दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों के आंदोलन में शामिल हुए, उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा "ये आंदोलन सिर्फ़ किसान का ही नहीं बल्कि पूरे मेहनतकश वर्ग का है। हालांकि आम जनता की इस लड़ाई को लड़ किसान रहे हैं।"

मियां सिंह ने कहा अगर ये क़ानून वापस नहीं हुए तो देश के करोड़ों खेत मज़दूर, गरीब मज़दूर , खुदरा व्यापारी से लेकर आम उपभोक्ता सब परेशान होंगे। क्योंकि इस क़ानून में मंडी को ख़त्म करने की साज़िश के साथ ही बड़े पूंजीपतियों को मन चाहा भंडारण करने की छूट है जिससे वो होर्डिंग कर अपनी मर्जी से बाज़ार की मांग और पूर्ति को प्रभावित करेंगे। जिससे वो अपने मुनाफे के लिए मंहगाई को बढ़ाएंगे।

उन्होंने उदाहरण देते कहा आप अभी आलू की कीमत को देखिए जबकि पिछले दो सालो में हमारे यहां इसका रिकॉर्ड 2019-20 में आलू का कुल उत्पादन 50.19 मिट्रिक टन था। इस साल 48.66 मिट्रिक टन हुआ है। फिर भी आलू की क़ीमत आसमान छू रही है जबकि किसान ने अपना आलू मात्र 2-2 रुपये किलो में बेचा था।

उनके साथ आए एक अन्य साथी ने कहा इन कानूनों से किसान तो मरेगा ही लेकिन बचेगा भी कोई नहीं, इससे फायदा केवल और केवल बड़े पूंजीपतियों को है। उन्होंने बताया रिटेल व्यापार में व्हाट्सअप, गूगल और रिलायंस जैसी कंपनियां निवेश कर रही है,जो हमारे देश के छोटे खुदरा व्यापारियों को खा जाएगी (ख़त्म कर देगी )

लगभग 70 वर्षीय वृद्ध जसवंत कौर जो पंजाब के संगरूर से किसान जत्थे के साथ दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर आई हैं और वहां बैठकर वो सरकार को ललकार रही है उन्होंने अपने काँपती हुयी बुलंद आवाज़ में न्यूज़क्लिक से कहा "ये हमारे बच्चों की जिंदगी का सवाल है, अगर यह क़ानून आ गया तो हमारे बच्चे दूसरे की गुलामी करेंगे हमारी ज़मीन सरकार बड़े सेठों को दे रही है। जो हम नहीं होने देंगे।"

आपको बता दें ऐसे ही दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे किसानों ने भी अपनी माँगों के साथ ही कई अन्य मांग उठाईं जो आम जनमानस से जुड़ी हुई है। जैसे वहां आंदोलनरत किसानों ने उत्तर प्रदेश के कई ग्रामीण इलाके को एनसीआर में शामिल करने का विरोध किया और कहा हमें एनसीआर में डाल दिया लेकिन सुविधा कोई नहीं दी जबकि क़ानून सभी एनसीआर वाले लगा दिए, जैसे डीजल बसों, ट्रक और ट्रैक्टर को दस साल में कूड़े में डालना पड़ता है।

किसानों का सरकार के साथ ही कॉरपोरेट के ख़िलाफ़ भी विरोध-प्रदर्शन

एआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप ने घोषणा की है कि 5 दिसम्बर 2020 को नरेन्द्र मोदी सरकार तथा विशालकाय कॉरपोरेट अडाणी व अम्बानी के बड़े पैमाने पर पुतले फूंके जाएंगे। संभावना है कि देश में 5000 स्थानों पर ये विरोध प्रदर्शन होंगे।

भविष्य के कार्यक्रम

1. आज 4 दिसम्बर को जनसंगठनों द्वारा दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन।

2. आज 4 व कल 5 दिसम्बर को विरोध सभाओं का आयोजन, चक्का जाम आदि।

एआईकेएससीसी ने केन्द्र सरकार के किसान विरोधी, जन विरोधी कानून व नीति के खिलाफ आयोजित किये जा रहे सभी कार्यक्रमों का स्वागत किया है और केन्द्र सरकार की इन नीतियों को पराजित करने के लिए इनके योगदान की सराहना की।

एआईकेएससीसी ने कहा कि वह नेताओं के खिलाफ किये जा रहे दमन की निन्दा करती है और मांग करती है कि हिरासत में लिये गये सभी नेताओं व कार्यकर्ताओं को तुरंत रिहा किया जाए। एआईकेएससीसी ने चेतावनी दी है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो जनता का और बड़ा प्रतिरोध सामने आएगा।

सभी फोटो मोहित सौदा द्वारा खींची गई है 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest