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किसानों का मिशन यूपी व छात्र-युवाओं का रोज़गार-आंदोलन योगी सरकार के लिए साबित होगा वाटरलू 

किसान आंदोलन तथा छात्र-युवा रोजगार आंदोलन को लेकर योगी सरकार और भाजपा बेहद बौखलाई हुई है।
किसानों का मिशन यूपी व छात्र-युवाओं का रोज़गार-आंदोलन योगी सरकार के लिए साबित होगा वाटरलू 
फाइल फोटो

योगी सरकार किसान और रोजगार आंदोलन के भंवर में घिरती नज़र आ रही है। किसानों ने जहां मिशन यूपी का ऐलान कर दिया है, वहीं प्रतियोगी छात्र-युवा 9 अगस्त से राजधानी लखनऊ में अनिश्चित कालीन धरना प्रदर्शन शुरू करने जा रहे हैं।

इन्हें लेकर सरकार की ओर से जो प्रतिक्रिया आयी है, वह बेहद असामान्य है और यह समझने के लिए पर्याप्त है कि योगी सरकार इन दोनों आंदोलनों, उनके मुद्दों और इनके सम्भावित राजनीतिक इम्पैक्ट को लेकर असहज है और डरी हुई है। बावजूद इसके वे निर्भीक चेहरा बना कर रहे हैं और आक्रामक दिखने की कोशिश कर रहे हैं, पर अंदर उनकी दहशत और घबड़ाहट छिपी हुई है।

वे जानते हैं कि किसानों और "मोदी -मोदी" का कोरस करते युवाओं ही उनकी सरकार बनवायी थी। इसलिए उनके बदलते तेवर का राजनीतिक निहितार्थ वे अच्छी तरह समझते हैं। पर, उनकी मुश्किल यह है कि किसानों और युवाओं के सवालों का कोई समाधान नहीं है उनके पास। तब वे उन्हें डराने और धमकाने पर उतर आए हैं।जाहिर है इसकी तीखी प्रतिक्रिया होना तय है और भाजपा को लेने के देने पड़ जाएंगे।

पूरे प्रदेश में किसानों की जगह जगह हलचल बढ़ती जा रही है, पश्चिम के मुजफ्फरनगर में 5 सितंबर को राष्ट्रीय किसान महापंचायत की तैयारी चल रही है, जगह जगह योगी सरकार के मंत्रियों का घेराव शुरू हो गया है और मोर्चे की घोषणा के अनुसार टोल प्लाजा free कराने के लिए प्रोटेस्ट शुरू हो गये हैं, तो 9 अगस्त, भारत छोड़ो दिवस के दिन, सुदूर पूर्वांचल के घोसी (मऊ जनपद) में किसान रैली होने जा रही है, रैली के बाद किसान पैदल बनारस कूच करेंगे जहां मोदी जी के संसदीय क्षेत्र में बने मिनी पीएमओ को वे किसानों की ओर से ज्ञापन सौंपेंगे।

दरअसल, योगी शायद इस मुगालते में थे कि किसान आंदोलन दिल्ली बॉर्डर तक सीमित रहेगा और अधिक से अधिक पश्चिम के कुछ जाट बहुल जिलों, विशेषकर टिकैत के गृह क्षेत्र मुजफ्फरनगर-शामली-मेरठ-बागपत पट्टी तक प्रभावी रहेगा। पर जब शीर्ष किसान नेताओं राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव ने 26 जुलाई को लखनऊ प्रेस क्लब में पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए मिशन यूपी लांच करने और प्रदेश के सभी 18 मण्डलों में किसान-पंचायत करते हुए गाँव गाँव तक पहुंचने का एलान किया, तब से सरकार के होश उड़े हुए हैं क्योंकि अब भाजपा और योगी सरकार उनके सीधे निशाने पर होगी।

सीएए-एनआरसी दौर के अनुभव से सरकार जानती है कि दिल्ली के शाहीनबाग़ से लखनऊ के घण्टाघर पहुंचते आंदोलन को देर नहीं लगती और दमन की सारी कोशिश के बावजूद वे लखनऊ घण्टाघर के मोर्चे को उखाड़ने में नाकाम रहे थे।

इससे सरकार इतनी बौखला गयी कि यूपी भाजपा के ट्वीटर हैंडल से उस बेहद आपत्तिजनक कार्टून को ट्वीट किया गया जिसमें किसान को एक बाहुबली बाल पकड़कर घसीट रहा है और मजाक उड़ाते हुए तथा धमकाते हुए कह रहा है, "ओ भाई जरा संभल कर जइयो लखनऊ में।।।किमे पंगा न लिए भाई।।।। योगी बैठ्या है बक्कल तार दिया करे और पोस्टर भी लगवा दिया करे।"

यह भाषा, वह भी उस अन्नदाता के लिए जो अपनी आजीविका और जमीन बचाने के लिए लड़ रहा है, क्या किसी लोकतान्त्रिक पार्टी और उसके नेता की भाषा-शैली हो सकती है ? यह शोहदों की भाषा है! यह भाषा है एक फासिस्ट पार्टी की।

यह योगी की बाहुबली और "ठोंक दो" वाली छवि को उभारने और किसानों के साथ-साथ अन्य लोकतान्त्रिक ताकतों को डराने की ओर लक्षित है। इस पूरे प्रकरण पर मुख्यमंत्री की चुप्पी साफ दिखाती है कि यह या तो उनकी शह पर हुआ है या इसे उनका मौन समर्थन प्राप्त है।

वे 19 दिसम्बर 2019 के सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन के नेताओं, कार्यकर्ताओं के बर्बर दमन, जेल और यातनाओं की imagery को उभारना चाहते हैं, जब योगी सरकार ने उनके पोस्टर चौराहों पर लगवा दिए थे और उनकी कुर्की जब्ती के आदेश दिए थे। इस पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी और पोस्टर हटाने के आदेश दिए थे।

संयुक्त किसान मोर्चा ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, "भारतीय जनता पार्टी का किसान-विरोधी चरित्र सोशल मीडिया कार्टून पोस्ट के रूप में एक बार फिर उजागर हो गया है। सत्तारूढ़ दल द्वारा शांतिपूर्वक विरोध कर रहे किसानों को बाल से घसीटे जाने और "बक्कल तार" देने की धमकी, वह भी मुख्यमंत्री के नाम पर, चौंकाने वाली और अत्यधिक आपत्तिजनक है। एसकेएम इसकी कड़ी निंदा करता है, और मुख्यमंत्री के इस प्रकरण पर चुप्पी को संज्ञान में लेता है। इस तरह की अनैतिक और हिंसक धमकियां एक मजबूत जन-आंदोलन के सामने भाजपा की शक्तिहीनता का परिचायक है। जाहिर है कि पार्टी का लोकतंत्र में बिल्कुल भी विश्वास नहीं है।"

दरअसल, राकेश टिकैत की जिस बात पर भाजपा ने इतनी उद्दंड प्रतिक्रिया की है, वह मात्र इतनी थी कि यहां भी सरकार किसानों के हित में ठीक से काम नहीं करती तो हम लखनऊ को दिल्ली बनायेगें अर्थात यहां भी डेरा डालेंगे। अव्वलन तो यह किसी कार्यक्रम की घोषणा नहीं थी, जैसा टिकैत ने समझाया कि बस सरकार को ठीक काम करने के लिए आगाह किया गया था।

उससे महत्वपूर्ण यह कि लखनऊ में आंदोलन की बात क्या कोई अपराध है? क्या किसान दिल्ली में कोई गैर-कानूनी काम कर रहे हैं ? क्या अपनी आजीविका के लिए लड़ना अपराध है। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर स्पष्ट कह दिया था कि विरोध का अधिकार किसानों का संवैधानिक अधिकार है, इसमें वे कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकते।

यह प्रकारांतर से दिल्ली में चल रहे किसानों के राष्ट्रव्यापी आंदोलन को फिर से बदनाम करने की साजिश का भी हिस्सा है। 

जो सरकार खुद विदेशी एजेंसी से हमारे देश की सारी संवेदनशील संस्थाओं और व्यक्तियों की जासूसी करवा कर, हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गम्भीर खतरा पैदा कर रही है, उसने देश के अन्नदाता को देशद्रोही बताकर कुचलने में पहले भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

अब फिर उत्तर प्रदेश में उसी खेल का वातावरण बनाने की कोशिश है। किसानों के आंदोलन को अराजकता और अपराध बता कर हिंसा-प्रतिहिंसा के जाल में फँसाने की साजिश हो रही है।

ठीक यही बर्ताव छात्र-युवाओं के साथ हो रहा है। किसानों के खिलाफ भाजपा द्वारा बेहद आपत्तिजनक, उद्दंड बयानबाजी के कुछ ही दिनों के अंदर योगी जी ने ट्वीट करके प्रदेश के छात्र-युवाओं को धमकाया है।

योगी ने कहा कि प्रदेश के युवाओं से मेरी अपील है कि किसी के बहकावे में न आएं। पहले युवाओं का जमकर शोषण उत्पीड़न किया जाता था। हमारी सरकार में अब ऐसा नहीं होता है। जिसे अपनी प्रापर्टी जब्त कराना हो वो ऐसा काम करेगा।

दरअसल, योगी सरकार के कार्यकाल के दौरान, विशेषकर पिछले एक वर्ष से प्रतियोगी छात्र-युवा प्रदेश सरकार के लाखों खाली पड़े पदों को भरने के लिए लगातार आवाज उठाते रहे हैं, कोरोना-काल की विभीषिका के बावजूद न सिर्फ सोशल मीडिया के माध्यम से बल्कि सड़क पर उतर कर, योगी सरकार का क्रूर दमन झेलते हुए भी। हाल के महीनों में वे और मुखर हुए हैं।

इलाहाबाद से लेकर लखनऊ तक वे लगातार आंदोलनरत हैं। विभिन्न विभागों में खाली पदों को भरने तथा आरक्षण के संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी कर शिक्षक भर्ती में घोटाले को लेकर युवाओं ने लखनऊ में मुख्यमंत्री तथा सम्बंधित मन्त्रियों के आवास से लेकर सरकारी कार्यालयों तक पर डेरा डाला, लेकिन योगी सरकार ने किसी सकारात्मक समाधान की बजाय उनके खिलाफ बल प्रयोग का रास्ता अख्तियार किया।

दरअसल, योगी सरकार ने तो दावा कर दिया है कि उनकी सरकार 4 लाख सरकारी नौकरियों समेत कुल 3 करोड़ से ऊपर लोगों को रोजगार दे चुकी है। जहां तक बेरोजगारी की बात है, योगी जी का कहना है कि प्रदेश में नौकरियों की कोई कमी नहीं है, जो युवा बेरोजगार हैं, दरअसल उनके अंदर योग्यता नहीं हैं।

योगी जी ने शायद यह सोचा था कि भोंपू मीडिया के बल पर नौकरियों और रोजगार के मनगढ़ंत आंकड़ों को प्रचारित करवाकर नैया पार हो जाएगी। विज्ञापन से अघाये गोदी मीडिया में योगी सरकार के रेकॉर्ड रोजगार सृजन को प्रचारित करने की होड़ लग गई है। कुछ तो हास्यास्पद हदों तक चले गए। बानगी देखिए, एक चैनल ने योगी जी के interview के साथ ब्रेकिंग न्यूज चलाया, "यूपी में प्रतिदिन 30 लाख लोगों को रोजगार", "मनरेगा में 300 करोड़ लोगों को रोजगार”!

सरकार अपने रोजगार सृजन के रिकॉर्ड को प्रभावशाली दिखाने के लिए कितनी बेकरार है, इसे समझने के लिए एक ही उदाहरण काफी है, सरकार ने अमेजन, फ्लिपकार्ट, एकेटीयू, बीएसई जैसी कम्पनियों के उत्पादों की मार्केटिंग में 65 हज़ार व्यक्तियों के रोजगार का श्रेय भी स्वयं को दे दिया!

सरकार ने बिना किसी ठोस, विश्वसनीय और पारदर्शी डेटाबेस के दावा कर दिया कि, "स्टार्ट अप इकाईयों से 5 लाख और औद्योगिक इकाइयों से 3 लाख से अधिक युवाओं को रोज़गार दिया गया है। यही नहीं ओ।डी।ओ।पी के माध्यम से 25 लाख लोगों को रोज़गार दिया गया है। नई उद्योग नीति से 5 लाख से ज़्यादा लोगों को रोजगार दिया गया। योगी सरकार ने एमएसएमई की 50 लाख से अधिक एमएसएमई इकाइयों के माध्यम से 1 करोड़ 80 लाख लोगों को रोजगार दिलाया। 40 लाख से अधिक कामगारों/ श्रमिकों की स्किल मैपिंग के बाद उनको रोजगार दिया गया है। डेढ़ करोड़ लोगों को मनरेगा में रोजगार दिया गया है।"

पर छात्र-युवाओं और उनके प्रतिबद्ध संगठनों ने अपने आक्रामक भंडाफोड़ अभियान और आंदोलन से इस झूठ की हवा निकाल दी है।

जाहिर है, योगी जी की जब यह समझ है कि इस समय प्रदेश में जो लाखों युवा बेरोजगार हैं, वे अपनी अयोग्यता के कारण बेरोजगार हैं, तब उनका नौकरियों की मांग करना और उसके लिए धरना प्रदर्शन करना अनौचित्य पूर्ण और अनैतिक तो है ही।

क्या यही तर्क है प्रदेश में खाली पड़ी लाखों नौकरियों के पदों को न भरने का? 

यह साफ है कि यह कुतर्क है।यह कॉमन सेंस की बात है कि योग्यता एक सापेक्ष चीज है, उसके लिए ही परीक्षाएं होती हैं, इसका कोई निरपेक्ष पैमाना नहीं है। यहां तो सवाल यह है कि प्रदेश में कोई रोजगार सृजन हो ही नहीं रहा है और जहाँ पद खाली हैं वहां भर्ती नहीं हो रही है। इसलिए नौजवान बेचैन हैं और आंदोलन की राह पर बढ़ने को मजबूर हैं।

सरकार इस सीधे सवाल को सहानुभूति पूर्वक एड्रेस करने की बजाय उन्हें धमका रही है।

बहरहाल, देश बेरोजगार युवाओं के आक्रोश के ज्वालामुखी पर बैठा हुआ है। कब विस्फोट हो जाय कोई नहीं जानता।

CMIE के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार जुलाई के महीने में 32 लाख लोगों का रोजगार छिन गया, जिसमें 26 लाख तुलनात्मक रूप से बेहतर शहरी क्षेत्र का रोज़गार था। स्वयं मोदी सरकार को लोक सभा में स्वीकार करना पड़ा कि 1 मार्च 2020 तक केंद्रीय विभागों में रिक्त पदों की संख्या 8।72 लाख थी जो 3 साल पूर्व की तुलना में 2 लाख अधिक है।

बिहार चुनाव में सरकारी नौकरियों के सवाल ने करीब करीब बाजी पलट ही दिया था। सरकार इसे लेकर ही भयभीत है और एक ओर फ़र्ज़ी आंकड़ों से माहौल बनाने, दूसरी ओर धौंस-धमकी से डराने में लगी है। पर, छात्र-युवा जमीनी हकीकत के भुक्तभोगी हैं और अब गुमराह होने को तैयार नहीं हैं। 

वे अवसाद ग्रस्त होते और खुदकशी करते अपने दोस्तों को भी देख रहे हैं और विभिन्न विभागों में खाली पड़े पदों को भी जानते हैं। इसीलिए चुनाव वर्ष में वे अपनी नौकरियों के लिये सरकार पर अधिकतम दबाव बनाने के मूड में हैं और किसी भी धमकी के आगे झुककर पीछे हटने को तैयार नहीं हैं।

रोजगार-आंदोलन का नेतृत्व कर रहे युवा-मंच के बयान में कहा गया है,  "अब न तो युवा भाजपा वालों के झांसे में आने वाला है और न ही संपत्ति जब्त करने व फर्जी मुकदमों में जेल भेजने की धमकी से डरने वाला है। रोजगार के अधिकार के लिए अगस्त क्रांति के ऐतिहासिक मौके पर ईको गार्डन लखनऊ में प्रदेश भर के युवाओं का जमावड़ा हो रहा है और एक बड़े आंदोलन का आगाज किया जायेगा। आप किसी भी भर्ती से संबंधित हो, आप के रोजगार संबंधित सभी मुद्दों को मजबूती से उठाया जायेगा और हल कराने के बाद ही आंदोलन रूकेगा।" उनकी मांग है कि 5 लाख रिक्त पदों पर विज्ञापन जारी किया जाए।

सरकार आने वाले दिनों में किसान और नौजवान आंदोलन के साझा मोर्चे बंदी की आशंका से भी डरी हुई है क्योंकि दोनों का मुद्दा भी एक है रोजी-रोटी और लक्ष्य भी एक है लोकतंत्र की हिफाजत।

पहले कुछ लोगों को लगता था कि योगी जी की "ठोंक दो" नीति किसी खास समुदाय या जाति के लिए है। पर अब किसानों से लेकर नौजवानों तक को समझ में आता जा रहा है कि इस फासिस्ट पालिसी की जद में तो वे स्वयं हैं, उनके जीने का अधिकार और आजीविका है।

किसानों का मिशन यूपी और छात्र-युवाओं का रोजगार-आंदोलन योगी के लिए वाटरलू बनेगा। 

लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।

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