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किसान आंदोलन अगले चरण की ओर: इतवार, 31 जुलाई को चक्का जाम

31 जुलाई को संयुक्त किसान मोर्चा ने देशभर में चक्का जाम का ऐलान किया है। यह जाम सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे तक होगा। किसान नेताओं ने कहा है कि इस आयोजन से आम जनता को परेशानी ना हो इसका पूरा ध्यान रखा जाएगा।
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किसान संसद, बिरला ऑडिटोरियम जयपुर। स्क्रीन शॉट

चक्का जाम आंदोलन की तैयारी में 18 जुलाई, संसद के मानसून सत्र के पहले दिन से संयुक्त किसान मोर्चा तमाम राज्यों में अभियान चला रहा है। MSP की कानूनी गारंटी की केंद्रीय मांग तथा किसानों की दूसरी प्रमुख मांगों के साथ अग्निपथ योजना को लेकर चल रहे अभियान के तहत पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड समेत देश के विभिन्न अंचलों में जगह-जगह किसानों के जमावड़े, पंचायतें, सम्मेलन, बैठकें हो रही हैं। तमाम किसान नेता पूरे देश मे दौरे करके माहौल गरमाने में लगे हैं। चंडीगढ़ में किसानों का विराट सम्मेलन हुआ। पंजाब तथा हरियाणा के तमाम शहरों में किसानों की बड़ी गोलबंदी हुई और 31 जुलाई के  कार्यक्रम को सफल बनाने का संकल्प लिया गया। 

जयपुर के बिड़ला ऑडिटोरियम में किसान संसद हुई जिसमें विधानसभा चुनाव के विवाद के बाद पहली बार ऐतिहासिक किसान आंदोलन के तमाम नेता एक साथ एक मंच पर दिखे। वहां डॉ. दर्शन पाल और राकेश टिकैत थे, तो बलबीर सिंह राजेवाल और गुरुनाम सिंह चढूनी भी थे।  

राकेश टिकैत ने तमाम  सभाओं में किसानों का आह्वान किया, " सरकार देश में जिस तरह के हालात पैदा कर रही है, उसे देखते हुए देश में एक और बड़े आंदोलन की जरूरत है।...इस बार केवल दिल्ली में आंदोलन नहीं होगा, देश में कई दिल्ली बनाई जाएगी ताकि  सरकार को पीछे हटने और किसानों की मांगे मानने के लिए मजबूर किया जा सके।"

दरअसल, दिसम्बर में आंदोलन वापसी के बाद 15 जनवरी को सिंघू बॉर्डर पर और 14 मार्च को दिल्ली में हुई संयुक्त किसान मोर्चा की बैठकें विधानसभा चुनाव के सन्दर्भ में उभरे जबरदस्त विवादों से घिरी रहीं। उनसे उबरते हुए 3 जुलाई को गाजियाबाद में संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़े सभी किसान संगठनों के चुनिंदा प्रतिनिधियों की राष्ट्रीय बैठक बेहद सफल रही। इसमें आंदोलन के अगले चरण का ऐलान किया गया और यह फैसला लिया गया था कि किसानों से मोदी सरकार की वायदाखिलाफी के विरुद्ध 31 जुलाई को सरदार उधम सिंह के शहादत दिवस पर  देशभर में मुख्य मार्गों पर चक्का जाम किया जाएगा। 

3 जुलाई की बैठक में यह फैसला भी लिया गया था कि आंदोलन के इस नए चरण में  अग्निपथ योजना के विरुद्ध  बेरोजगार युवाओं और पूर्व सैनिकों को भी लामबंद किया जाएगा क्योंकि यह योजना राष्ट्र-विरोधी और युवा-विरोधी होने के साथ-साथ किसान-विरोधी भी है।

इसी बीच 18 जुलाई को सरकार ने अपने like-minded लोगों को भरकर MSP पर जिस कमेटी का ऐलान किया है, उसने आग में घी का काम किया है। 29 सदस्यीय कमेटी में उस संयुक्त किसान मोर्चा के लिये मात्र 3 जगह खाली छोड़ी गई है, जिसके ऐतिहासिक आंदोलन के साथ समझौते के दबाव में इसका गठन हुआ है। बाकी 26 में से 21 सदस्य विभिन्न सरकारी संस्थाओं के  पदाधिकारी हैं जो कृषि कानूनों को बनाने की प्रक्रिया में शामिल थे और 5 सदस्य वे किसान नेता/बुद्धिजीवी हैं जो किसान-विरोधी कृषि बिलों के समर्थक थे।

सरकार की ओर से दावा किया जा रहा है कि कमेटी में कृषि और सहकारिता क्षेत्र के विशेषज्ञ शामिल हैं। सच्चाई यह है कि कमेटी के सदस्यों में भाजपा के सदस्य, RSS से जुड़े लोग, संघ के अनुषांगिक किसान संगठन के पदाधिकारी, कृषि कानूनों के घोषित समर्थक बुद्धिजीवी, किसान नेता एवम सरकारी नौकरशाह शामिल हैं।

कमेटी के अध्यक्ष पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल बनाये गए हैं, जिनके समय 3 कृषि कानून बने। कमेटी में किसान विरोधी कानूनों की ड्राफ्टिंग करने वाले नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद भी हैं। 

इस कमेटी के एजेंडे में एम एस पी कानून का मुद्दा है ही नहीं, जिसके लिखित वायदे के आधार पर सरकार ने किसान आंदोलन वापस कराया था। किसानों की आंख में धूल झोंकने के लिए MSP को प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए सुझाव की बात गोलमटोल ढंग से जरूर शामिल कर दी गयी है। पर यह कमेटी का exclusive केंद्रित एजेंडा नहीं है। सबसे खतरनाक यह कि MSP पर कमेटी की आड़ में कृषि विपणन को फिर एजेंडा बना दिया गया है और किसी नए रूप में मंडियों के खात्मे का खतरा फिर मंडराने लगा है।

इस सरकारी 'कठपुतली' कमेटी के गठन ने किसान संगठनों की इस समझ को पुष्ट कर दिया है कि सरकार की दिशा पूरी तरह किसान विरोधी है। एक किसान नेता के शब्दों में सरकार की नीति और नीयत दोनों में खोट है। वह केवल और केवल आंदोलन और उससे होने वाले राजनीतिक नुकसान की भाषा समझती है, वरना उसके मन में अन्नदाता के लिए न कोई सहानुभूति है, न उनके हितों की कोई परवाह है। 

31 जुलाई चक्का जाम आंदोलन के तैयारी की सबसे महत्वपूर्ण खबर यह कि पंजाब में किसानों के बीच हलचल लगातार तेज होती जा रही है। विधानसभा चुनाव के समय के बिखराव, उहापोह और निष्क्रियता से उबरते हुए उनकी तमाम जत्थेबंदियों की एकजुटता भी बढ़ रही हैं और उनके actions भी बढ़ रहे हैं। यह शुभ है कि पंजाब जो ऐतिहासिक किसान आंदोलन की पहली लहर की रीढ़ था, वह एक बार फिर उठ खड़ा होने को तैयार है। 

दरअसल इसे लेकर बहुत सारी आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं। अनेक विश्लेषकों का यह मानना था कि 3 कृषि कानून भले पंजाब के किसानों के लिये बड़ा सवाल बन गये थे क्योंकि उन्हें डर था कि इससे मंडी व्यवस्था खत्म हो जाएगी लेकिन MSP  गारंटी कानून पंजाब के किसानों के बीच कोई लोकप्रिय मुद्दा नहीं है क्योंकि उन्हें MSP तो मिलती ही है। अनेक विश्लेषकों का यह मानना था कि इसीलिए मोदी द्वारा कृषि कानून वापस लेने के ऐलान के साथ ही दिल्ली मोर्चे पर आंदोलनरत पंजाब के किसानों और किसान-संगठनों का interest, उनके आंदोलन में बने रहने का मूल तर्क ( raison d'être ) खत्म हो गया और अंततः संयुक्त किसान मोर्चा को आंदोलन वापस लेना पड़ा। पंजाब के किसान नेताओं के एक हिस्से की चुनावी महत्वाकांक्षा का दबाव और कैप्टन अमरिंदर सिंह के माध्यम से सरकार द्वारा तोड़फोड़ की कोशिशों भी अंततः इसी परिस्थिति के कारण फलीभूत हो सकीं। 

बहरहाल, MSP पर आंदोलन के अगले चरण की तैयारी ने पंजाब में जो हलचल पैदा की है, वह उक्त आशंका को निर्मूल साबित करती है।

दरअसल, पंजाब में किसानी का संकट बेहद गहरा होता जा रहा है। 27 जुलाई को केंद्रीय कृषिमंत्री तोमर ने लोकसभा में स्वीकार किया कि 2000 से 2018 के बीच पंजाब में NCRB के आंकड़ों  के हिसाब से 1805 किसानों ने आत्महत्या की है। हालांकि पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ( PAU ) के अध्ययन के अनुसार इस अवधि में पंजाब के मात्र 6 जिलों ( संगरूर, भटिंडा, लुधियाना, मानसा, मोगा, बरनाला ) में 9291 किसानों ने आत्महत्या की है, जिनमें 77% पांच एकड़ से कम जोत वाले छोटे और सीमांत किसान हैं। BKU नेता सुखदेव सिंह ने कहा कि सरकार सच की भयावहता को downplay कर रही है। पंजाब में सत्तारूढ़ AAP पार्टी के प्रवक्ता को भी मानना पड़ा कि प्रो. सुखपाल सिंह कमेटी की रिपोर्ट convincing प्रतीत होती है।

जाहिर है हालात बेहद भयावह हैं। इसीलिए स्वामीनाथन आयोग की संस्तुति के अनुरूप MSP की गारंटी के लिये कानून बनाने का सवाल पंजाब के किसानों के बीच भी बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है।

पंजाब के किसानों में इस बात को लेकर भी गहरी नाराजगी है कि सरकार ने जो कमेटी बनाई है उसके 26 सदस्यों में एक भी पंजाब से नहीं रखा है। कमेटी में कर्नाटक, उड़ीसा, सिक्किम, आंध्र प्रदेश के नौकरशाह, MP के जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जम्मू की शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी से लोग रखे गए हैं, लेकिन पंजाब जो देश में हरित क्रांति की जन्मस्थली और भारत का food bowl है, उसका प्रतिनिधित्व, वहां की कृषि शोध-अध्ययन की चर्चित संस्था पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ( PAU ) का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं है?

पंजाब के लोग तो यह मान रहे हैं कि जानबूझ कर उन्हें अपमानित किया गया है और किसान आंदोलन में बढ़चढ़ कर भाग लेने की सजा दी गयी है। यह सचमुच विचारणीय विषय है कि भारतीय कृषि की अग्रिम चौकी, हरित क्रांति की सफलता और उसके संकट-दोनों के सबसे बड़े केंद्र पंजाब से अगर ' किसानों की आय बढ़ाने के लिए बनी कमेटी ' में प्रतिनिधित्व नहीं है तो उस कमेटी के विचार कितने समृद्ध और गम्भीर होंगे ?

क्या सरकार को यह डर था कि उसके like-minded लोगों की कठपुतली कमेटी में किसान आंदोलन के गढ़ पंजाब के प्रतिनिधि सरकार की मनमानी में बाधा बन सकते हैं ?

इस बीच किसान आंदोलन के लिए बेहद संवेदनशील लखीमपुर खीरी हत्याकांड मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने भी गृहराज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष मिश्रा उर्फ मोनू की जमानत की याचिका खारिज कर दी है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने उसकी जमानत रद्द करते हुए हाई कोर्ट में याचिका दायर करने की छूट दी थी। लेकिन अब हाइकोर्ट ने भी उसे नकार दिया है।

जाहिर है किसान आंदोलन के सतत दबाव से ही लखीमपुर के शहीद किसानों व उनके परिजनों को न्याय तथा जनसंहार के दोषी सत्ता-संरक्षित अपराधियों को सजा मिल पायेगी।

संयुक्त किसान मोर्चा ने ऐलान किया है कि 18, 19, 20 अगस्त को लखीमपुरखीरी में 75 घण्टे के पक्के मोर्चे का आयोजन कर गृहराज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी की बर्खास्तगी की मांग बुलंद की जायेगी।

आज जब संसद समेत लोकतन्त्र के सभी स्तंभ हाइजैक हो गए हैं, तमाम संवैधानिक संस्थाओं को ही संविधान और लोकतन्त्र की हत्या का औजार बना दिया गया है, ऐसे दौर में अब सड़क की हलचल ही हमारे लोकतन्त्र को बचाएगी। किसान-आंदोलन की नई उभरती संभावनाएं हमारी सबसे बड़ी उम्मीद हैं।

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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