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श्रमिक संगठनों के साथ आए किसान संगठन, कोयला श्रमिकों की हड़ताल का भी समर्थन

250 किसान संगठनों की अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने केंद्रीय श्रमिक संगठनों से एकजुटता जताते हुए किसान सम्बन्धी तीनों अध्यादेशो को ‘‘किसानों की लूट कारपोरेट को छूट’’ प्रदान करने वाला बताया।
श्रमिक संगठनों के साथ आए किसान संगठन

भोपाल : अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने आज, 3 जुलाई को केंद्रीय श्रमिक संगठनों द्वारा किये जा रहे राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन में साथ दिया और कोयला श्रमिकों की तीन दिन (2-3-4 जुलाई) की हड़ताल का समर्थन किया। इसी के साथ एआईकेएससीसी ने किसानों सम्बन्धी तीनों अध्यादेशो को ‘‘किसानों की लूट-कारपोरेट को छूट’’ प्रदान करने वाला बताया।

250 किसान संगठनों की एआईकेएससीसी की वर्किंग कमेटी सदस्य एवं जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की राष्ट्रीय संयोजक  ऋचा सिंह और नर्मदा बचाओ आंदोलन, जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की नेता मेधा पाटकर ने एक संयुक्त बयान जारी कर कहा कि वर्किंग कमेटी की 29 जून को हुई  बैठक  में किसानों के खिलाफ लाए गए तीनों अध्यादेशों को किसान विरोधी कहते हुए पुरज़ोर विरोध किया गया और इसे कॉरपोरेट परस्त बताया गया।

कहा गया कि कृषि उपज, व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सुविधा अध्यादेश 2020), मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण समझौता अध्यादेश 2020), आवश्यक वस्तु (संशोधन अध्यादेश 2020) तथा साथ में बिजली कानून (संशोधन) विधेयक 2020) आदि अध्यादेशों को लाकर राज्यों के कृषि संबंधी अधिकार छीन लिए है तथा कृषि मार्केट कानून में भी बदलाव किए हैं। इनसे जमाखोरी व कालाबाजारी बढ़ेगी, फसल के दाम घटेंगे, सरकारी एमएसपी समाप्त हो जाएगा, बाजार में खाने के दाम बढ़ेंगे, किसानों की कर्जदारी तथा जमीन से बेदखली व आत्महत्याएं बढ़ेंगी।

एआईकेएससीसी ने डीजल पेट्रोल के दामों में तेज वृद्धि की निंदा करते हुए कहा कि यह सरकारी टैक्स बढ़ाने के कारण हुआ है। सरकार से मांग की कि टैक्स समाप्त कर ईधन के दाम तुरन्त घटाए जाएं।

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समिति ने श्रम कानूनों में किये जा रहे बदलावों, श्रमिकों के अधिकारों को निरस्त करने की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाने की केंद्रीय श्रमिक संगठनों की मांग के समर्थन में राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया है।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष् समन्वय समिति यह मानती है कि केंद्र सरकार द्वारा लॉकडाउन का दुरुपयोग किसानों और मजदूरों के खिलाफ कानून बनाने और कारपोरेट पक्षधर नीतियां तेजी से लागू करने के लिए किया जा रहा है। इस लॉकडाउन में प्रवासी श्रमिकों की खोज खबर तक नहीं ली गयी है और केवल समाज को धर्म के आधार पर बाँटने और देश के संसाधन व बाजार बड़े विदेशी व घरेलू कारपोरेट को सौंपने का काम किया जा रहा है।

घोषणाएं करने के बावजूद केंद्र सरकार ने श्रमिकों को तालाबंदी के दौरान मजदूरी का भुगतान नही कराया, उनकी छंटनी नहीं रोकी, सभी मजूदरों को 10 हजार रुपए नगद प्रतिमाह हस्तांतरित नहीं किया, 48 लाख केंद्रीय कर्मचारियों व 68 लाख पेंशनरों का महंगाई भत्ता फ्रीज कर दिया, कई राज्यों में काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 कर दिए। वह सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का थोक में विनिवेश और निजीकरण कर रही है, भारतीय रेलवे, रक्षा, बंदरगाह, डाक, कोयला, एयर इंडिया, बैंक और बीमा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में एफडीआई को अनुमति देकर देश के प्राकृतिक संसाधनों की लूट को सुगम बनाने हेतु कोविड -19 लॉकडाउन का इस्तेमाल कर रही है। 

प्रवासी श्रमिकों को न तो मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराया, न ही गांव में मनरेगा में 500 रु. प्रतिदिन की दर पर कम से कम 200 दिन काम दिया। 

समन्वय समिति ने देश के सभी किसान संगठनों से स्थानीय स्तर पर आज तीन जुलाई की राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध के कार्यक्रमों में शामिल होने की अपील की। साथ ही कोल उद्योगों के निजीकरण पर रोक लगाने व ठेका मजदूरों के हाई पावर कमेटी की सिफारिशों के आधार पर वेतन देने, राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता अनुसार आश्रितों को रोजगार देने को लेकर 2-3-4 जुलाई की कोयला श्रमिकों की हड़ताल का भी समर्थन किया।

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