Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

दिल्ली से लेकर राजस्थान तक, क्या बड़े बदलावों के लिए तैयार है कांग्रेस?

लंबे वक्त के बाद आखिरकार कांग्रेस पार्टी की कमान ग़ैर गांधी परिवार के हाथों में होगी, साथ में कांग्रेस शासित सबसे बड़े राज्य राजस्थान में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।
congress party
फ़ोटो साभार: पीटीआई

कथित तौर पर लगातार विलुप्त होती जा रही कांग्रेस पार्टी पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में है...इसका कारण भी है...एक तरफ राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा तो दूसरी तरफ कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव... इन दोनों के साथ-साथ एक मुद्दा और उछलकर सामने आ गया, वो था राजस्थान मुख्यमंत्री पद को लेकर,  लेकिन फिलहाल सबकी निगाहें डेढ़ सौ साल पुरानी पार्टी के अध्यक्ष पद पर ठहर गई है...

फिलहाल कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए 30 सितंबर यानी शुक्रवार के दिन 3 नामांकन हुए... पहला नामांकन शशि थरूर,  दूसरा नामांकन केएन त्रिपाठी और तीसरा नॉमिनेशन मल्लिकार्जुन खड़गे ने किया। 

नामांकन के बाद जो तीन नाम सामने आए हैं उससे ये तो तय है कि इस बार कांग्रेस का अध्यक्ष गैर गांधी परिवार से होगा... नामांकन की तस्वीरों पर ध्यान दें तो थरूर और त्रिपाठी के साथ भीड़ नजर नहीं आई, लेकिन खड़गे के साथ कांग्रेस की भीड़ खड़ी नजर आई... इससे इतना तो तय है कि भविष्य का रिजल्ट हमें अभी ही समझ लेना चाहिए... दोनों के नामांकन में जो गवाह बने उससे भी बहुत कुछ स्पष्ट हो जाता है।

मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रस्तावक

दिग्विजय सिंह, तारिक अनवर, सलमान खुर्शीद, एके एंटनी, अशोक गहलोत, अंबिका सोनी, मुकुल वासनिक, आनंद शर्मा, अभिषेक मनु सिंघवी,अजय माकन, भूपिंदर हुड्डा, अखिलेश प्रसाद सिंह, दीपेंदर हुड्डा, नारायण सामी, वी वथिलिंगम, प्रमोद तिवारी, पीएल पुनिया, अविनाश पांडे, राजीव शुक्ला, नासिर हुसैन, मनीष तिवारी, रघुवीर सिंह मीणा, धीरज प्रसाद साहू, ताराचंद, पृथ्वीराज चौहान, कमलेश्वर पटेल, मूलचंद मीणा, डॉ. गुंजन, संजय कपूर और विनीत पुनिया।

शशि थरूर के प्रस्तवाक

कार्ति चिंदबरम, सलमान सोज, प्रवीण डाबर, संदीप दीक्षित, प्रद्युत बरदलोई, मोहम्मद जावेद, सैफुद्दीन सोज, जीके झिमोमी, और लोवितो झिमोमी।

यहां ये कहना ग़लत नहीं होगा कि झारखंड से आने वाले केएन त्रिपाठी को महज़ इसलिए नामांकन करवाया गया है ताकि कांग्रेस के भीतर कुछ भी पक्षपाती न लगे, और चुनावों की शक्ल स्वतंत्र दिखाई पड़े।

दूसरी ओर खड़के और थरूर के साथ आए प्रस्तावकों की संख्या ये बताने के लिए काफी है कि पलड़ा किसका और कितना भारी है। कहने का मतलब ये है कि चुनाव से पहले है मल्लिकार्जुन खड़के जीतते हुए नज़र आ रहे हैं। 

इस बात का पुख्ता होना इसलिए भी लाज़मी है कि कुछ ऐसे नेता भी मल्लिकार्जुन खड़के के प्रस्ताक बने जो जी-23 के तो सदस्य थे ही, साथ में ख़ुद भी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ना चाहते थे। जैसे मनीष तिवारी।

ख़ैर अब मनीष तिवारी और बहुत से ऐसे नेता जो गांधी परिवार के विरोध में सुर तेज़ कर रह थे, अब वो भी मल्लिकार्जुन खड़के का समर्थन कर रहे हैं। जबकि ग़ैर-आधिकारिक ही सही लेकिन हर किसी को ये बात पता है कि मल्लिकार्जुन खड़गे को गांधी परिवार की पसंद से ही नामांकन करवाया गया है।

हालांकि इससे पहले दिग्विजय सिंह ने पर्चा भरने का ऐलान कर सबको चौंका दिया था, लेकिन शायद मौका रहते पार्टी हाईकमान समझ गया कि दिग्विजय सिंह के बयान कभी-कभी बैकफायर कर जाते हैं, और वो जिस तरह से गांधी परिवार के प्रति वफादारी की बातें खुलकर करते हैं, ऐसे में अगर वो अध्यक्ष बन जाते तो उन्हें और कांग्रेस पार्टी को खुलकर आलोचनाओं का सामना करना पड़ता।

ख़ैर.. अब मल्लिकार्जुन खड़गे को नामांकन करवाकर पार्टी ने इतना तो साफ कर दिया है, कि साल 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का ज्यादा ज़ोर दक्षिण की ओर ही रहेगा। 

हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि राहुल गांधी भी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के ज़रिए दक्षिण पट्टी को साधने में लगे हुए हैं, अब दक्षिण भारत से आने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जा रहा है। तो कहीं न कहीं पार्टी दक्षिण भारत से ही देश जीतने का प्लान तैयार कर रही है।

कांग्रेस को खड़गे ही क्यों भाए!

गहलोत के बाद खड़गे ही वो नेता हैं जो कांग्रेस को साथ लेकर चल सकते हैं...खड़गे ने सड़क से संसद तक का सफर तय किया है...कॉलेज के दिनों में छात्र संघ के महासचिव रह चुके खड़गे 1969 में कांग्रेस में शामिल हुए थे...उस समय वो संयुक्त मजदूर संघ के नेता थे... उसी समय उन्हें गुलबर्ग कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बना दिया गया...1972 में खड़गे ने अपना पहला चुनाव लड़ा और तब से लेकर 2019 तक खड़गे ने जो भी चुनाव लड़ा, उसमें उनकी जीत हुई...

हालांकि, नामांकन को लेकर खूब ड्रामेबाजी हुई... पहले दिग्विजय सिंह मैदान में उतरे, लेकिन कुछ देर बाद खड़गे की एंट्री के बाद वो मैदान से बाहर ही रहे... इसके बाद दिग्विजय सिंह का बयान सामने आया...उन्होंने कहा कि मैं कल खड़गेजी के घर गया और पूछा कि आप अगर नॉमिनेशन कर रहे हो तो मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा... जानकारी मिली कि वे कैंडिडेट हैं... मैं आज फिर उनके घर गया और कहा कि आप वरिष्ठ नेता हैं, मैं आपके खिलाफ चुनाव लड़ने की बात सोच भी नहीं सकता.... अब उनका इरादा चुनाव लड़ने का है तो मैं उनका प्रस्तावक बनना स्वीकार करता हूं...

कांग्रेस अध्यक्ष के लिए राहुल गांधी ने भी कुछ संदेश दिया है...राहुल गांधी ने कहा अगला कांग्रेस अध्यक्ष कोई भी बने, बस उसे ये याद रखना चाहिए कि आप विचारों के समूह, विश्वास प्रणाली और भारत के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं...

इन सबके अलावा हमें उन बातों को भी याद कर लेना चाहिए जो कुछ दिनों पहले कांग्रेस के इर्द-गिर्द घूम रही थीं, जब कुछ दिनों पहले कुछ दिनों पहले कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद की कवायद तेज़ हुईं थी, तब ऐसी ख़बरें सामने आई थीं कि पार्टी के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर सोनिया गांधी ही रहेंगी, जबकि दक्षिण भारत और उत्तर भारत में दो-दो पार्टी के उपाध्यक्ष बनाए जाएंगे। जिसमें दक्षिण भारत के लिए कर्नाटक से आने वाले राज्य सभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और केरल से आने वाले गांधी परिवार के करीबी रमेश चेनिथला का नाम सुझाया गया था। जबकि उत्तर भारत के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और राजस्थान के ही युवा चेहरा सचिन पायलट का नाम आगे आया था। हालांकि इस फॉर्मूले पर बाद में ज्यादा चर्चा सुनाई नहीं दी।

यानी उस वक्त जो बातें चर्चा में थी, उन्हें भले ही बहुत बल नहीं मिला हो, लेकिन उनमें से एक नाम मल्लिकार्जुन खड़गे निकलकर अब मुख्य हो चला है, फिर जिस तरह से राजस्थान में बड़े बदलाव के बादल मंडरा रहे हैं, ऐसे में सचिन पायलट को भी बड़ी जिम्मेदारी मिल जाए... इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है। 

खैर, इस अध्यक्ष पद के नामांकन को लेकर भी खूब हंगामा हुआ...भारत जोड़ो यात्रा से ध्यान हटकर सीधा राजस्थान जा पहुंचा...केंद्र बिंदु में थे अशोक गहलोत...राजनीति के जादूगर...गहलोत इस बार जादू दिखा पाए या नहीं ये तो आने वाले एक से दो दिनों में पता चलेगा...राजस्थान के मुख्यमंत्री को लेकर सोनिया गांधी अगले एक-दो दिन में फैसला करेंगी....

पहले कयास लगाए जा रहे थे कि राजस्थान में अब जो कुछ भी होगा कि वो 18 अक्टूबर को चुनाव के बाद ही होगा, लेकिन पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल राव के बयान ने राजस्थान का राजनीतिक माहौल गर्म कर दिया। ये एक ओर जहां अशोक गहलोत के लिए परेशानी बढ़ाने वाली ख़बर है, तो सचिन पायलट सोनिया से मीटिंग के हल्के खुश नज़र आ रहे थे।

वहीं अब दूसरी ओर ये बात भी सामने आ गई है कि जब अशोक गहलोत सोनिया गांधी से मिलने गए थे तो उनके हाथों में जो चिट्ठी थी उसमें क्या लिखा था। दरअसल गहलोत की चिट्ठी कैमरे में कैद हो गई थी, जिसे डीकोड किया तो पता चला कि उस कागज में पायलट कैंप पर गुंडागर्दी करने,  भाजपा से मिलीभगत करने से लेकर पार्टी छोड़ने तक का जिक्र है। 

कागज में लिखा था- सचिन पायलट पार्टी छोड़ देगा-ऑब्जवर्स। पार्टी के लिए अच्छा होता। 102 वर्सेज 18। इसका मतलब यह है कि गहलोत के पास 102 विधायकों का समर्थन है जबकि पायलट के पास केवल 18 विधायक।

ख़ैर... जितना हिस्सा दिखाई दिया उतना हिस्सा डीकोड कर सामने आया है, बाकी का हिस्सा गहलोत के हाथों से ढक गया था। हालांकि जो नज़र आया वो ही काफी है गहलोत और पायलट के बीच रार को साफ करने करने लिए।

ग़ौरतलब है कि इस चिटठी को सोनिया गांधी ने भी ज़रूर देखा होगा, यही कारण है कि उन्होंने राजस्थान पर फैसला लेने की भी बात कही है। शायद ये ज़रूरी भी है क्योंकि अगले ही साल राजस्थान में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं, और कहते हैं राजस्थान में राजनीतिक ऊंठ हर साल पर करवट बदल लेता है।   
फिलहाल कांग्रेस में चल रही राजनीतिक घटनाओं से ये ज़रूर मालूम होता है कि आनने वाले वक्त में पार्टी कुछ बहुत बड़ा बदलाव करने वाली है।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest