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“G-20 हमारे लिए आपदा है”, देशभर में हो रही बेदख़ली के ख़िलाफ़ दिल्ली में हुई ‘जनसुनवाई’

“मेरे पति ई-रिक्शा चलाते हैं। घर टूटने के बाद अब बिजली नहीं है। अब ई-रिक्शा को कैसे चार्ज करेंगे? मैं 10 दिन से भूख हड़ताल पर बैठी हूं। क्या मुझे सिर्फ़ इसलिए नहीं सुना जा रहा है क्योंकि मैं ग़रीब हूं?”
Jansunwayi at Surjeet Bhavan

देशभर के अलग-अलग हिस्सों में हुई बेदख़ली के मुद्दे पर 22 मई को दिल्ली के सुरजीत भवन में एक जनसुनवाई हुई जिसे Concerned Citizen द्वारा आयोजित गया था। इस जनसुनवाई में देशभर में हो रही बेदख़ली को अन्यायपूर्ण बताते हुए इस पर विस्तार से चर्चा की गई। इसमें बेदख़ली से पीड़ित लोगों और उनके अधिकारों के लिए काम करने वाले लोगों ने अपनी बात रखी। इस जनसुनवाई में जूरी के तौर पर वरिष्ठ पत्रकार पामेला फिलिपोस, नेशनल कैंपेन फॉर दलित ह्युमन राइट्स की बीना पल्लीकल, दलित मानवाधिकारों के लिए राष्ट्रीय अभियान (शिमला) के पूर्व डिप्टी मेयर टिकेंद्र पंवार, मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदार और गुजरात उच्च न्यायालय के वकील आनंद याग्निक, शमिल हुए।

जूरी सदस्य आनंद याग्निक ने जनसुनवाई के बाद अपनी बात रखते हुए कहा, “सुबह से अत्याचार और बेदख़ली के बारे में सुनने के बाद, ऐसा प्रतीत होता है कि G-20 इवेंट एक अतिरिक्त संवैधानिक घटना बन गई है जो कानून के शासन का पालन नहीं कर रही है। उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को पलटा जा रहा है। G-20 के कारण संविधान का इस तरह से अस्थायी निलंबन अकल्पनीय है। हम इसे अमृतकाल कहें या कुछ और?”

जनसुनवाई के दौरान देशभर में हो रही बेदख़ली को अन्यायपूर्ण बताते हुए इस पर प्रकाश डाला गया। इसमें वक्ताओं ने कहा कि विशेष रूप से किसानों, स्ट्रीट वेंडर्स, कूड़ा बीनने वालों और बस्तियों के निवासियों को निशाना बनाया जा रहा है।

आरोप है कि G-20 शिखर सम्मेलन की तैयारी और शहरों के सौंदर्यीकरण के नाम पर लाखों लोगों को जबरन बेदख़ली का सामना करना पड़ रहा है। इस सार्वजनिक सुनवाई मे उन सवालों पर प्रकाश डाला गया जिसे सरकार द्वारा अनदेखी करने का आरोप है। जनसुनवाई में बुलडोज़र कार्रवाई की कहानी भी सुनाई गई, जिसके तहत कई घरों को मिट्टी में मिला दिया गया। जनसुनवाई के दौरान वक्ताओं ने आरोप लगाते हुए कहा, “G-20 को 'राष्ट्रीय गौरव' के रूप में पेश किया जा रहा है, ऐसा लगता है कि सरकार अपने ही लोगों, विशेषकर गरीबों को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रस्त है।”

नागपुर के जम्मू आनंद ने कहा, “हाल ही में एक न्यायाधीश ने कहा कि G-20 प्रक्रिया के एक हिस्से के रूप में C-20 (सिविलियन-20) नाम से एक बड़ा आयोजन होगा और इसलिए नागपुर के लोगों को अनुशासन में रहना चाहिए। पुलिस कमिश्नर ने एक सार्वजनिक आदेश जारी किया कि चौराहे पर कोई भिखारी नहीं दिखाई देना चाहिए। 'गरीबी हटाओ' के बजाय अब वे 'गरीबी छुपाओ' कर रहे हैं। नागपुर में C-20 उद्घाटन के संदर्भ में हमने देखा कि बस्तियों को प्लास्टिक की घास के साथ लोहे की चादरों से छुपाया जा रहा था ताकि वे 'हरी' दिखें।”

पीड़ितों ने बताया कि अधिकारियों की ओर से बेदख़ली को लेकर क्रूर कार्रवाई की गई। दिल्ली के बेला एस्टेट से आई पूजा ने कहा, “हमें अपना सामान पैक करने के लिए 3 घंटे का समय दिया गया था। इतने कम समय में सामान पैक करना लगभग असंभव था। बहुत से स्टूडेंट्स थे जिनकी बोर्ड की परीक्षा थी लेकिन 29 अप्रैल को बेदख़ली अभियान के कारण उनकी बोर्ड परीक्षा छूट गई। एक महीने में
हमारे घरों पर तीन बार बुलडोज़र चला। उन्होंने पहले हैंडपंप तोड़े ताकि हमें तुरंत वहां से निकलना पड़े क्योंकि पानी के बिना कोई नहीं रह सकता। बच्चों को अपना घर बचाने के लिए अपनी परीक्षा छोड़नी पड़ी। अब हम फ्लाईओवर के नीचे रहते हैं।”

'बस्ती सुरक्षा मंच' के अब्दुल शकील ने कहा, “तुगलकाबाद बेदख़ली इतनी क्रूर थी कि पुलिस ने बस्ती को घेर लिया, जैमर लगा दिए ताकि कोई वीडियो शेयर न कर सके, हमारे कार्यकर्ताओं के फोन छीन लिए गए, आस-पास के होटल और दुकानें बंद कर दी गईं और पूरी बस्ती को अस्त-व्यस्त कर दिया गया।”

वहीं इंदुप्रकाश ने कहा, “31 जनवरी को बागवानी विभाग द्वारा सराय काले खां क्षेत्र के पास G-20 संबंधित सौंदर्यीकरण के 'आड़े' आ रहे आश्रयगृह को तोड़ दिया गया। थोड़े समय के भीतर एक आदेश जारी किया गया और आश्रय गृह को समतल कर दिया गया।”

जूरी सदस्य पामेला फिलिपोस ने कहा, “बुलडोज़र का इस तरह से उपयोग राज्य की क्रूरता का स्पष्ट प्रतीक है। यह सुनकर दुख होता है कि कैसे फेरीवालों को 'अतिक्रमणकारियों' के रूप में देखा जाता है। बस्ती में रहने वालों को 'अवैध' और बेघरों को 'नशा करने वालों' के रूप में देखा जाता है। विभिन्न प्रमाणों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे G-20 उन आजीविकाओं पर अभिशाप के रूप में सामने आया है जो सबसे अधिक असुरक्षित और अनिश्चित हैं।”

इंदौर के आनंद लखन ने कहा, “G-20 उनके लिए एक इवेंट हो सकता है, हमारे लिए आपदा है। राहुल वर्मा का इंदौर में नक्षत्र गार्डन के पास गैराज था। G-20 प्रतिनिधिमंडल के आने के कारण उनका गैराज हटा दिया गया। उन्हें एक ऐसे क्षेत्र में बसाया गया था जहां उनके गैराज के लिए कोई व्यावसायिक संभावना ही नहीं थी। वह अवसाद में डूब गए और अंत में आत्महत्या कर ली। आज 'पुनर्वास' की यही हकीकत है।”

भुज के मोहम्मद ने कहा, “हमें बताया गया था कि G-20 के कारण रोज़गार के नए अवसर खुलेंगे और पर्यटन में सुधार होगा। स्थानीय अखबारों में ऐसी ही खबरें थीं। लेकिन जिस तरह G-20 के नाम पर बेदख़ली और नाकाबंदी की गई, इसने गरीबों के लिए तबाही ही मचाई। प्रतिनिधिमंडल की यात्रा के लिए भुज में हॉकर्स ने दस दिनों के लिए दुकान बंद करने पर भी सहमति व्यक्त की। लेकिन कईयों को एक महीने के भीतर हटा दिया गया।”

बेला एस्टेट की रेखा ने कहा, “महामारी के दौरान, हमने ही खाना दिया, हमने दूध, सब्जियां दी और अब वे हमारी ज़मीन और आजीविका छीन रहे हैं। जब शहर में कोई परिवर्तन होता है तो शहरी ग़रीब सबसे अधिक पीड़ित होते हैं।”

तुगलकाबाद की रीना ने कहा, “मेरे पति ई-रिक्शा चलाते हैं। घर तोड़ने के बाद अब बिजली नहीं है। वह अपने वाहन को कैसे चार्ज करेंगे? मैं 10 दिन से भूख हड़ताल पर बैठी हूं। क्या मुझे सिर्फ़ इसलिए नहीं सुना जा रहा है क्योंकि मैं ग़रीब हूं?”

नेशनल हॉकर्स फेडरेशन ने रोज़ी-रोटी खो रहे फेरीवालों की दुर्दशा के बारे में बताया, “कुछ लोग कहते हैं कि जब मेहमान आते हैं तो हम हमेशा अपने घरों की सफाई करते हैं। लेकिन क्या इस सफाई में कभी बुजुर्गों और सबसे कमज़ोर लोगों को घर से बाहर फेंकना पड़ता है?”

फेडरेशन ने आगे कहा, “G-20 से पहले रेहड़ी-पटरी वालों पर बुलडोज़र का इस्तेमाल कभी नहीं हुआ लेकिन आज रेहड़ी-पटरी वालों पर बुलडोज़र चल रहा है।”

जूरी सदस्य बीना पल्लीकल ने कहा, “साल 2010 में कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान भी उन्होंने एससी/एसटी बजट से 700 करोड़ रुपए खर्च कर बड़े-बड़े स्टेडियम बनाए। तब भी बेदख़ली और विध्वंस हुए थे। आज सरकार बदल गई है, लेकिन स्थिति जस की तस है।”

जूरी सदस्यों ने कहा कि “पीड़ितों की ज़ुबानी उनकी दास्तां सुनने और इसका विश्लेषण करने के बाद वे ट्रिब्यूनल के आधार पर एक सप्ताह के अंदर एक रिपोर्ट तैयार करेंगे।”

जूरी ने G-20 से संबंधित बेदख़ली को तत्काल रोकने की मांग की है। 

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