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गांधी और अंबेडकर: टकराव और मिलन के बिंदु

लोकतंत्र को बचाने और नफ़रत मिटाने के लिए गांधी और अंबेडकर की सकारात्मक सोच ज़रूरी।
Gandhi Ambedkar program

आज जिस तरह गांधी के हत्यारे को पूजने वाली और अंबेडकर की विचारधारा से लोगों को भटकाकर उन्हें  पूजनीय बनाने की फासीवादी व्यवस्था लोगों पर हावी होने की कोशिश कर रही है। ऐसे में गांधी और अंबेडकर के टकराव के साथ-साथ उनके मिलन बिंदु पर गौर करना और उनका कार्यान्वन करना बहुत जरूरी हो गया है। इनका संयुक्त प्रयास ही हमारे संविधान और लोकतंत्र को बचाने में कारगर भूमिका निभाएगा।

ये बातें सफाई कर्मचारी आंदोलन द्वारा आयोजित गांधी और अंबेडकर  परिचर्चा के दौरान की गईं।

3 नवम्बर 2022  को सफाई कर्मचारी आंदोलन के नेशनल कन्वेनर बेजवाडा विल्सन जी  ने वैचारिक सीरीज की शुरुआत करते हुए आज के सन्दर्भ में गांधी और अंबेडकर की वैचारिकी पर चर्चा रखी। इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी हर्ष मंदर तथा पत्रकार कवि और लेखक अजय सिंह ने प्रमुख वक्ताओं के रूप में अपने विचार रखे।

बराबरी और बंधुत्व दोनों ज़रूरी

हर्ष मंदर ने कहा कि हमारे लोकतंत्र के लिए संविधान में चार शब्द विशेष महत्व रखते हैं  वे हैं न्याय, स्वतंत्रता, बराबरी और बंधुता। इनमे बंधुता व्यापक अर्थ लिए हुए है। हमारे देश में विविधता है और विविधता में एकता के लिए आपस में बंधुता होना बहुत जरूरी है। गांधी जी ने इस पर विशेष बल दिया और वे हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए आजीवन  प्रयासरत रहे। गांधी जी देश के बंटवारे से खुश नहीं थे। जब देश में  बटवारे के दौरान हिन्दू मुस्लिम हिंसा अपने चरम पर थी इस से गांधीजी  बहुत आहत हुए थे। वे साम्प्रदायिक सौहार्द को विशेष महत्व देते थे। वे वर्णव्यवस्था के समर्थक थे और अछूतों से पूरी सहानुभूति रखते हुए उन्हें हिन्दू मानते थे।

उन्होंने कहा कि दूसरी ओर बाबा साहेब अंबेडकर बराबरी पर विशेष जोर देते थे। वे जाति-धर्म के नाम पर असमानता के विरोधी थे। बंधुता को वे महत्व देते थे और सभी नागरिकों के मिलजुलकर रहने में विश्वास करते थे। उनका मानना था कि जब तक हिन्दू धर्म में छूआछूत और जाति के नाम पर असमानता रहेगी तब तक सभी नागरिकों में बराबरी की भावना नहीं आएगी। न वे स्वतंत्रता का आनंद ले सकेंगे और न उन्हें न्याय मिलेगा। इसको लेकर गांधी और अंबेडकर में बहसें हुआ करती थीं।

हालांकि गांधी जी की वर्णव्यवस्था से सहमत नहीं हुआ जा सकता पर उन्होंने देश में सामाजिक सौहार्द और आपसी भाईचारे पर जोर दिया। हिंसा का विरोध और शान्ति का सन्देश दिया। वे वसुधेव कुटुम्बकम  की भावना में विश्वास रखते थे। आज जब हेट स्पीच का दौर है। हिन्दू मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाई जा रही है। दंगे करवाए जा रहे हैं। ऐसे में गांधी जी के सत्य, अहिंसा, शांति और प्रेम का सन्देश बहुत महत्वपूर्ण हो गया है।

धर्मनिरपेक्षता का मतलब समझना ज़रूरी

हमारा देश धर्मनिरपेक्ष है। सभी को अपना धर्म मानने, अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने का अधिकार है, अपनी मर्जी से दूसरे धर्म को अपनाने का भी अधिकार है। पर किसी दूसरे धर्म के प्रति नफरत फैलाने का अधिकार नहीं है। लोगों की प्रवृति है कि वे अपने धर्म को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं और दूसरे धर्म में कमियां ढूढ़ते हैं। इससे धार्मिक वैमनस्य बढ़ता है। नफ़रत की भावना बढ़ती है। इससे लोग बंधुता की जगह  एक दूसरे को अपना दुश्मन समझने लगते हैं। इसकी परिणति धार्मिक दंगों और हिंसा में होती है। यह हमारे लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक है। ऐसे में गांधी के विचार बहुत प्रासंगिक हैं। आज हमें एक दूसरे के धर्म का सम्मान करते हुए, अहिंसा, प्रेम और शांति का सन्देश देते हुए बंधुता को अपनाने की जरूरत है।

गांधी अंबेडकर के टकराव और मिलन बिंदु दोनों पर गौर करने की ज़रूरत

मार्क्सवादी विचारधारा के पत्रकार, कवि और लेखक अजय सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हमें गांधी और अंबेडकर के बीच वैचारिक मतभेदों पर ध्यान देना जरूरी है। अक्सर इस पर पर्दा डालने की कोशिश की जाती है। फिर उनके मिलन बिंदु पर गौर करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आज जिस तरह गांधी के हत्यारे को पूजने वाली और अंबेडकर की विचारधारा से लोगों को भटकाने और उन्हें पूजनीय बनाने की फासीवादी व्यवस्था लोगों पर हावी होने की कोशिश कर रही है। ऐसे में गांधी और अंबेडकर के टकराव के साथ-साथ उनके मिलन बिंदु पर गौर करना और उनका कार्यान्वन करना बहुत जरूरी हो गया है। इनका संयुक्त प्रयास ही हमारे संविधान और लोकतंत्र को बचाने में कारगर भूमिका निभाएगा।

मानवीय गरिमा सर्वोपरि

उन्होंने कहा कि हमें नहीं भूलना चाहिए कि गांधी जी जाति व्यवस्था के समर्थक थे और अंबेडकरविरोधी। गांधीजी जाति को बनाए रखना चाहते थे और अंबेडकर जाति का खात्मा चाहते थे। उन्होंने हिन्दू धर्म की पहेलियाँ जो पुस्तक लिखी है उसे पढ़ने की जरूरत है। अंबेडकर ने जब अछूतों-दलितों  लिए अलग मतदान या दोहरे मतदान की बात रखी तो गांधी जी ने इसके विरुद्ध आमरण अनशन शुरू कर दिया। गांधी जी को बचाने के लिए अंबेडकरको उनसे समझौता करना पड़ा जिसे पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है।

अंबेडकर चाहते थे कि देश के सभी नागरिक चाहे वे किसी भी जाति, धर्म, लिंग, क्षेत्र, भाषा के हों अपनी पूरी मानवीय गरिमा के साथ जीवन जीएं। वे मानवीय गरिमा को सर्वोपरि मानते थे और कहते भी थे कि मेरी लड़ाई धन-संपत्ति के लिए नहीं बल्कि मानवीय गरिमा के लिए है।

उन्होंने कहा कि आंबेडकरी विचारधारा को दबाने या छुपाने का प्रयास किया गया। अंबेडकर को  पाठ्यक्रम में स्थान नहीं दिया गया। उन्हें खुद अंबेडकर के बारे में जानकारी बहुत देर से हुई। उन्होंने अपना निजी अनुभव साझा किया और बताया कि एम.ए. (राजनीति शास्त्र) से करने के बावजूद उन्हें अंबेडकर के बारे में जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म क्योंकि भेदभाव पर आधारित है इसीलिए आंबेडकर ने कहा कि मैं हिन्दू धर्म में पैदा हुआ ये मेरे वश में नहीं था लेकिन मैं हिन्दू धर्म में मरूंगा नहीं। यही कारण है कि 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने 5 लाख लोगों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।  

अंबेडकर चाहते थे जाति का खात्मा

अंबेडकर जाति व्यवस्था को एक ऐसी चार मंजली इमारत मानते थे जिसमें सीढियां नहीं हैं। जो जिस मंजिल पर है आजीवन उसी में रहेगा। उन्होंने कहा था कि अछूत जीवन में प्रगति नहीं कर पाते क्योंकि जाति का राक्षस हर मार्ग पर उनका रास्ता रोक कर खड़ा हो जाता है।  ऐसे में जाति का खात्मा किए बिना बराबरी प्राप्त नहीं की जा सकती। जब तक जाति रहेगी तब तक ब्राहमणवादी व्यवस्था उन्हें अपना गुलाम बना कर रखेगी और वे स्वतंत्रता का आनंद नहीं ले पायेंगे। ऐसे में उन्हें न्याय भी नहीं मिलेगा। आज दलितों के साथ जो अन्याय और अत्याचार हो रहे हैं दलित महिलाओं-बच्चियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं वे इस बात का प्रमाण हैं।

गांधी और अंबेडकर संयुक्त मोर्चे की हो पहल

आज की फासीवादी सत्ता-व्यवस्था गांधी और अंबेडकर दोनों को  ख़त्म कर देना चाहती है। एक तरफ गांधी  के हत्यारों को राजनीतिक तौर पर पूजने का चलन है। और दूसरी तरफ अंबेडकर को पूज्यनीय बनाने का प्रयास चल रहा है ताकि लोग उनके भक्त तो बने पर उनके अनुयायी न बने उनकी विचारधारा पर न चलें।

अजय सिंह ने कहा कि लोकतंत्र के लिए खतरा इसलिए भी बढ़ गया है कि अब संविधान को बदले बिना भी फासीवादी ताकतें अपनी विचारधारा के अनुरूप कार्य कर रही हैं। निजीकरण करने से आरक्षण वैसे ही ख़त्म हो रहा है।      

उन्होंने कहा कि साइमन कमीशन क्यों आया था यह नहीं बताया गया पर उसका विरोध किया गया। साइमन कमीशन  सात ब्रिटिश सांसदो का समूह था, जिसका गठन 8 नवम्बर 1927 में भारत में संविधान सुधारों के अध्ययन के लिये किया गया था और इसका मुख्य कार्य मानटेंगयु चेम्स्फ़ोद  के सुधार की जांच  करना था। 1928 में साइमन कमीशन भारत आया। ये अछूतों के हित में था पर भारतीय आंदोलनकारियों  ने “साइमन कमीशन वापस जाओ” के नारे लगाए और जमकर विरोध किया।

अजय सिंह ने कहा कि फासीवादी ताकतों के खिलाफ लड़ाई के लिए  गांधी और अंबेडकर के संयुक्त मोर्चे को  सड़क पर आने की जरूरत है।

इस अवसर पर बोलते हुए सफाई कर्मचारी आंदोलन के बेजवाडा विल्सन ने कहा कि साइमन कमीशन पर विस्तार से चर्चा करने की आवश्यकता है। इस पर अलग से कभी गोष्ठी रखी जा सकती है। हमें गांधी का एक ही पक्ष नहीं देखना चाहिए। दूसरे पक्ष पर ध्यान देते हुए उनके सकारात्मक कार्यों पर भी नजर डालनी चाहिए।  उन्होंने कहा कि हम महीने में एक बार महत्वपूर्ण विषयों पर इस तरह के विचार-विमर्श किया करेंगे। यह इस सीरीज का पहला विमर्श है।

आर्थिक पक्ष पर भी ध्यान देना ज़रूरी

जेएनयू में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर अतुल सूद ने कहा कि आज का समय फासीवादी व्यवस्था और कार्पोरेट लूट का समय है। आज हाशिये के समुदाय की जर्जर आर्थिक स्थिति के लिए भी ये व्यवस्था जिम्मेदार है। इसे अंबेडकरगांधी और मार्क्स के नजरिये से देखने की जरूरत है।

अंबेडकर यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर बिदान दास ने कहा कि जाति से मुक्ति के लिए धर्म की ही शरण में क्यों जाना पड़ता है। इस पर विचार किया जाना चाहिए। हिन्दू धर्म और जाति एक दूसरे से जुड़े हैं।

अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता नव शरण ने कहा कि आज जन विरोधी ताकतों से लड़ने के लिए गांधी और अंबेडकर को एक साथ आने की जरूरत है।

स्त्री स्वाभिमान और स्वतंत्रता के हिमायती अंबेडकर

अंबेडकर कॉलेज की प्रोफेसर डॉ. पूनम तुषामड़ ने कहा कि बाबा साहेब अंबेडकर ने महिलाओं की मुक्ति और शिक्षा की बात कही। उन्होंने हिन्दू कोड बिल तैयार किया और इसके लिए उनको इस्तीफा भी देना पड़ा था। बाबा साहेब स्त्री स्वतंत्रता और उनकी शिक्षा के हिमायती थे। वे किसी समाज की उन्नति का पैमाना स्त्री जागरूकता को मानते थे। उनका मानना था कि एक स्त्री के शिक्षित होने से पूरा परिवार शिक्षित होता है।

कालिंदी कॉलेज की प्रोफ़ेसर डॉ. सीमा माथुर ने कहा कि सही अर्थों में गांधी जी के बजाय बाबा साहेब अंबेडकर दलितों और स्त्रियों के अधिक पक्षधर थे। वे ब्राहमणवाद और पितृसत्ता से स्त्रियों की मुक्ति चाहते थे।

इस अवसर पर कवियित्री और लेखिका शोभा सिंह, पत्रकार भाषा सिंह, इंदिरा खुराना, निर्मला कुमार, डॉ. रेनू छाछर, संतराम आर्य, महेश डेनवाल, आशा पंवार, संजीवनी पंवार, विश्वजीत यादव, धम्म दर्शन, मयंक, आईस, सिद्धार्थ सिंह, सना सुलतान, उषा सागर, सचिता, शेफाली, मालविका, रेखा, समीना, नजराना, नीतीश आदि उपस्थित रहे।

(लेखक सफाई कर्मचारीआंदोलन से जुड़े हैं।)

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