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खेलों में सेक्सिज्म के ख़िलाफ़ अपनी पंसद और सुविधा के हिसाब से कपड़े पहनने की आज़ादी मांगतीं महिला खिलाड़ी!

एक ही खेल के लिए महिलाओं और पुरुषों के ड्रेस कोड में अंतर स्पोरट्स में 'सेक्शुअलाइज़ेशन' की कोशिश है। हाल ही में सुर्खियां बटोर चुकीं जर्मनी और नार्वे की महिला टीमों ने महिला खिलाड़ियों को सेक्शुअल नज़र से देखे जाने के मसले को एक बार फिर चर्चा का विषय बना दिया है।
Norway and German teams
image credit- Social media

स्पोर्ट्स में ड्रेस कोड के नाम पर होने वाले सेक्सिजम के खिलाफ महिला खिलाड़ियों का हल्लाबोल लगातार जारी है। हाल ही में नॉर्वे की फीमेल बीच हैंडबॉल टीम ने बिकिनी बॉटम वाले ड्रेस कोड की बजाय पुरुषों की तरह शॉर्ट्स वाले ड्रेस में मैच खेला था तो वहीं अब टोक्यो ओलंपिक्स में जर्मनी की महिला जिम्नास्टिक टीम ने फ़ुल बॉडी सूट यानी पूरे शरीर को ढंकने वाली ड्रेस पहनकर स्पर्धा में हिस्सा लिया। सोशल मीडिया पर खेल जगत से लेकर सेलेब्रिटिस तक इन खिलाड़ियों को अपना समर्थन दे रहे हैं तो वहीं आम लोग भी इनके साख एकजुटता दिखा रहे हैं।

दरअसल, खेलों में महिलाओं के साथ भेदभाव और उन्हें ऑब्जेक्टिफाई करने के उदाहरण भरे पड़े हैं। एक ही खेल के लिए महिलाओं और पुरुषों के ड्रेस कोड में अंतर सालों से चला आ रहा है तो वहीं महिलाओं को लगभग हर खेल में शामिल तो कर लिया, लेकिन इनाम की राशि कम देकर पूरी दुनिया में उनको कमतर दिखाने की कोशिश भी जारी है। यानी खेल एक सा, मेहनत एक सी लेकिन कपड़े और पैसा अलग-अलग।

क्या है पूरा मामला?

टोक्यो ओलंपिक्स में रविवार, 25 जुलाई को जब जर्मन महिला जिम्नास्ट खिलाड़ी अपनी प्रतिभा दिखाने मैदान में उतरीं तो सभी की नज़रें उनके कपड़ों पर टिकी रह गईं। वजह ये थी कि खिलाड़ियों ने परंपरागत ड्रेस लीयटाड जोकि बिकिनी स्टाइल होती है उसकी जगह फ़ुल बॉडी सूट पहन रखा था, जिसका टॉप उनकी बाहों और पेट को ढँके था और लेगिंग उनकी उनकी एड़ियों तक थी।

टीम की खिलाड़ियों का कहना था कि उन्होंने ऐसा जिम्नास्टिक में महिलाओं के 'सेक्शुअलाइज़ेशन' के विरोध में और इस पर रोक लगाने के इरादे से किया। जर्मन टीम ने कहा कि वो महिला खिलाड़ियों में अपनी पंसद और सुविधा के हिसाब से कपड़े पहनने की आज़ादी को बढ़ावा देना चाहती है। जर्मन टीम के इस कदम की काफ़ी तारीफ़ हो रही है। ओलंपिक जैसे स्पोर्ट्स इवेंट में उनके इस फ़ैसले ने स्पोर्ट्स की दुनिया में महिला खिलाड़ियों को सेक्शुअल नज़र से देखे जाने के मसले को एक बार फिर चर्चा का विषय बना दिया। हालांंकि इससे पहले भी कई बार ये मुद्दा सुर्खियों में आया और चला गया।

हाल ही में नॉर्वे की महिला बीच हैंडबॉल टीम पर सिर्फ इसलिए जुर्माना लगा दिया गया था क्योंकि उन्होंने एक टूर्नामेंट यूरोपियन बीच हैंडबॉल चैंपियनशिप के दौरान बिकिनी बॉटम पहनने से इनकार कर उसकी जगह शॉर्ट्स पहना। नतीजतन उन पर 1,295 पाउंड का जुर्माना लगाया गया। अब बड़ी संख्या में लोग नॉर्वे की टीम के समर्थन में उतर आए हैं और खेल में महिलाओं के शरीर के प्रदर्शन के लिए उन पर दबाव बनाए जाने का विरोध कर रहे हैं।

सेक्सिस्ट सोच के लिए लगना चाहिए जुर्माना

ग्रैमी अवॉर्ड विजेता और मशहूर गायिका पिंक ने नॉर्वे की महिला टीम के समर्थन में एक ट्वीट कर कहा कि फाइन नॉर्वे की टीम पर नहीं बल्कि यूरोपियन हैंडबॉल फेडरेशन पर उसकी सेक्सिस्ट सोच के लिए लगना चाहिए। उन्होंने टीम पर लगे जुर्माने की राशि 1,295 पाउंड को भरने का प्रस्ताव भी दिया है।

उन्होंने ट्वीट किया, "मुझे नॉर्वे की महिला बीच हैंडबॉल टीम पर बहुत गर्व है कि उन्होंने अपने 'यूनिफ़ॉर्म' से जुड़े बेहद सेक्सिस्ट (महिला विरोधी) नियम का विरोध किया। असल में तो यूरोपियन हैंडबॉल फेडरेशन पर सेक्सिज्म के लिए जुर्माना लगाया जाना चाहिए। आपके लिए अच्छी बात है, लेडीज़। मुझे ख़ुशी होगी अगर मैं आप पर लगा जुर्माना भर सकूँ। इसे जारी रखिए।"

फ्रीडम ऑफ चॉइस यानी अपनी पसंद के कपड़े पहनने की आजादी

मालूम हो कि सोशल मीडिया पर नॉर्वे की टीम पर लगे इस जुर्माने का भारी विरोध हो रहा है। वहीं, टीम का कहना है कि वो खेल में सेक्सिस्ट नियमों का विरोध जारी रखेगी और अगले मैच में भी बिकिनी बॉटम की बजाय शॉर्ट्स ही पहनेगी।

ये सिर्फ एक या दो खेलों की बात नहीं है, विश्व स्तर पर ऐसे कई खेल हैं जिनमें पुरुषों और महिलाओं के लिए ड्रेस कोड अलग-अलग है। इस भेदभाव के खिलाफ बीते कुछ समय से 'फ्रीडम ऑफ चॉइस' यानी अपनी पसंद के कपड़े पहनने की आजादी की बात भी खिलाड़ियों ने सामने रखी है।

आपको बता दें कि बीच हैंडबॉल में महिलाओं के लिए ड्रेस कोड स्पोर्ट्स ब्रा और बिकिनी बॉटम है। बिकिनी बॉट्म भी कोई अपनी मर्जी का नहीं बल्कि यूरोपियन हैंडबॉल फेडरेशन के सेट किए हुऐ नाप वाला पहनना होता है जो काफी रिवीलिंग होता है। दूसरी ओर पुरुष इस खेल को शॉर्टेस और टीशर्ट में खेलते हैं। सेम स्पोर्ट्स के लिए दो तरह का ड्रेस कोड और उसमें भी फीमेल की ड्रेस ऐसी जिसे पहनने में वो कंफर्टेबल हों या ना हो। इस बात पर कई बार पहले भी महिला खिलाड़ी अपना विरोध दर्ज करवा चुकी हैं।

ड्रेस कोड के नाम पर महिला खिलाड़ियों को ऑब्जेक्टिफाई करने की कोशिश

अगर बात जिमनास्टिक की करें तो यहां भी मेल और फीमेल के लिये अलग ड्रेस कोड है। जहां मेल जिमनास्टिक यूनीटाड (फुल बॉडीसूट) पहनते हैं तो वहीं महिला जिमनास्टिक लीयटाड (बिकिनी स्टाइल ड्रेस) पहनती हैं।

ऐसे ही टेनिस में भी महिला और पुरुष टेनिस प्लेयर्स के अलग ड्रेस कोड होने पर सवाल उठते रहे हैं। इस खेल में मेल खिलाड़ी शॉर्ट्स और टीशर्ट में खेलते हैं तो वहीं फीमेल प्लेयर स्कर्ट और स्लीवलेस टीशर्ट में रैकेट घुमाती हैं। हालांकि भारतीय टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्ज़ा ने जब शुरू में खेलना शुरू किया था तो शॉर्ट स्कर्ट पहनने की वजह से एक तबके ने उनके ख़िलाफ़ फतवा तक जारी किया था।

रेस ट्रैक पर भी आप यदि नज़र दौड़ाएंगे तो मेल और फीमेल एथलीट के कपड़ों में आपको साफ अंतर दिख जाएगा। मेल रेसर आपको टैंक टॉप और स्पैन्डेक्स में दौड़ते नजर आएंगे तो वहीं महिलाएं स्पोर्ट्स ब्रा और बहुत छोटे शॉर्ट के नियमों से बंधी हैं।

गौरतलब है कि साल 2011 में बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन ने खेल में 'ग्लैमर' लाने के लिए महिला खिलाड़ियों को शॉर्ट्स के बजाय स्कर्ट पहनने का निर्देश दिया था, लेकिन विरोध के कारण उसे यह फ़ैसला वापस लेना पड़। स्पोर्ट्स में ग्लैमर का तड़का अक्सर लगाने की कोशिश की जाती है, लेकिन इन सब के बीच महिलाओं के साथ भेदभाव की बदरंग तस्वीर भी सामने आ जाती है, जो निश्चित तौर पर खेल की भावना को ठेस पहुंचाती है। जब तक खेल आयोजनों में महिलाओं के साथ ये भेदभाव होता रहेगा, उन्हें खेलों में ऑब्जेक्टिफाई करने की कोशिश जारी रहेगी तब तक उनके जोश, जुनून और जज्बे को सेक्सिज्म की सोच रौंदती रहेगी।

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