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'किसान आंदोलन को अस्थिर करने की कोशिश': गाज़ीपुर में बिजली काटी, बागपत में जबरन आंदोलन स्थल कराया खाली

गाजीपुर बॉर्डर पर रात में अचानक पुलिस तैनाती बढ़ा दी गई और धरना-प्रदर्शन वाली जगह की बिजली भी काट दी गई। जबकि 40 दिनों से शांतिपूर्ण ढंग से बागपत में आंदोलन कर रहे किसानों को बलप्रयोग कर हटा दिया गया।
'सरकार की किसान आंदोलन को अस्थिर करने की कोशिश': गाज़ीपुर में बिजली काटी, बागपत में जबरन आंदोलन स्थल कराया खाली
Image courtesy: Daily Post Punjabi

नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों ने सरकार पर आंदोलन को अस्थिर करने और डराने का आरोप लगाया। कल यानि बुधवार देर रात गाजीपुर पर किसानों के धरनास्थल यूपी गेट पर अचानक बिजली काट दी गई। वहां अचनाक पुलिस की संख्या बढ़ा दी गई जिससे लगा जैसे पुलिस कोई कार्रवाई करने वाली है।

भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि पुलिस ने रात को इन के कैंप की बिजली काट दी। टिकैत ने कहा सरकार किसानों में डर का माहौल बना रही है। इसलिए लोग सारी रात जागते रहें। आगे उन्होंने कहा कि सरकार किसान आंदोलन को अस्थिर करने की कोशिश कर रही है।

टिकैत ने साफ़ किया कि लाल किले पर 26 जनवरी को जो हुआ उससे हमारा या आंदोलन का कोई लेना देना नहीं है और जिसने भी यह किया है उसके खिलाफ कार्रवाई तो होनी ही चाहिए।

यही नहीं, उत्तर प्रदेश के बागपत में पिछले 40 दिनों से शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे है किसानों को भी पुलिस प्रशासन ने बल प्रयोग कर के आंदोलन ख़त्म करा दिया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक किसानों का कहना है कि पुलिस कर्मियों ने दिल्ली-सहारनपुर हाईवे पर एक साइड पर बैठे सैकड़ों किसानों को मौके से खदेड़ते हुए टैंट तक उखाड़ फेंक दिए और लाठियां भी भांजी।

धरने में शामिल किसान थांबा चौधरी और ब्रजपाल सिंह ने बृहस्पतिवार को पत्रकारों को बताया कि कृषि कानूनों के विरोध में बड़ौत थाना क्षेत्र स्थित राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे पिछली 19 दिसंबर से किसानों का धरना चल रहा था। देर रात बड़ी संख्या में पुलिस कर्मी धरना स्थल पर बने तंबुओं में घुस गए और वहां सो रहे किसानों पर लाठियां चलाईं और उन्हें खदेड़ दिया।

किसानों ने इसे पुलिस की ज्यादती करार देते हुए आरोप लगाया कि पुलिस ने तंबू भी हटा दिए हैं।

पुलिस क्षेत्राधिकारी आलोक सिंह ने किसानों पर ज्यादती के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि किसानों से बातचीत के बाद ही धरने को समाप्त कराया गया है और कोई लाठीचार्ज नहीं किया गया ।

वहीं 26 जनवरी की घटना को कारण बता कर दो किसान नेताओं ने अपने धरने को वापस लेने का फैसला किया है। हालांकि इन दोनों नेताओं को संयुक्त मोर्चा से पहले ही अलग कर दिया गया था। पहले किसान नेता वीएम सिंह की बात करे तो उन्हें किसानों ने 27 नवंबर को ही सिंघु बॉर्डर से भगा दिया था। वो इस आंदोलन के नेतृत्वकारी संगठन संयुक्त किसान मोर्चे का हिस्सा शुरू से ही नहीं थे। सिंघु से हटाए जाने के बाद वो अपने कुछ समर्थकों के साथ सरकार के कहे अनुसार बुराड़ी के निरंकारी ग्राउंड में बैठ गए थे। हालांकि कुछ दिनों पहले वो वहां से निकलकर गाज़ीपुर के धरनास्थल पर शामिल हुए थे।

बुधवार शाम को उन्होंने प्रेस वार्ता कर खुद को इस आंदोलन से औपचरिक रूप से अलग कर दिया।

वहीं नए कृषि कानूनों को लेकर करीब दो माह से चिल्ला बॉर्डर पर धरना दे रहे भारतीय किसान यूनियन (भानू) ने बुधवार से अपना धरना वापस ले लिया। ये भी संयुक्त मोर्चे से बहार रहकर ही आंदोलन कर रहे थे। इन्होंने बीच में बीजेपी नेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की थी।

दिल्ली में मंगलवार को ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसक घटना से आहत होकर भानु गुट ने धरना वापस लिया है।   भानु प्रताप सिंह ने कहा कि भारत का झंडा तिरंगा है तथा वह तिरंगे का सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा कि कल के घटनाक्रम से वह काफी आहत हैं। उन्होंने कहा कि 58 दिनों से जारी चिल्ला बॉर्डर का धरना वह खत्म कर रहे हैं।

 कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या अब किसान आंदोलन कमजोर पड़ रहा है? इस पर बात करते हुए आंदोलनकारी किसान और नेता एक साथ कहते हैं जो आंदोलन छोड़कर गए वो तो इस आंदोलन का हिस्सा थे ही नहीं, वो खुद को किसान नेता की छवि बनाए रखने के लिए इस आंदोलन में मज़बूरी में शामिल हुए थे। जैसे ही उन्हें मौका मिला वो आंदोलन को बदनाम कर के चले गए। इससे हमारे आंदोलन को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह आंदोलन पूरी तरह से शांतिपूर्ण ढंग से चलता रहेगा।

हरियाणा के तीन जिलों में बृहस्पतिवार तक इंटरनेट सेवा निलंबित

हरियाणा सरकार ने बुधवार को प्रदेश के तीन जिलों-सोनीपत, झज्जर एवं पलवल में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं 28 जनवरी को शाम पांच बजे तक निलंबित कर दी हैं। एक सरकारी बयान में कहा गया है कि लोक व्यवस्था एवं शांति बनाये रखने के लिये यह निर्णय लिया गया है।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुई हिंसा के आलोक में प्रदेश के इन जिलों में इंटरनेट सेवाएं मंगलवार को बंद कर दी गयी थीं ।

किसान संयुक्त मोर्चा ने हिंसा की घटना और पुलसिया दमन की निंदा की

संयुक्त मोर्चा ने बयान जारी कर कहा कि पिछले 7 महीनों से चल रहे शांतिपूर्ण आंदोलन को बदनाम करने की साजिश अब जनता के सामने उजागर हो चुकी है। कुछ व्यक्तियों और संगठनों (मुख्य तौर पर दीप सिधु और सतनाम सिंह पन्नू की अगुवाई में किसान मजदूर संघर्ष कमेटी) के सहारे, सरकार ने इस आंदोलन को हिंसक बनाया। हम फिर से स्पष्ट करते हैं कि हम लाल किले और दिल्ली के अन्य हिस्सों में हुई हिंसक कार्रवाइयों से हमारा कोई संबंध नहीं है। हम उन गतिविधियों की कड़ी निंदा करते हैं।

आगे उन्होंने कहा कि जो कुछ जनता द्वारा देखा गया, वह पूरी तरह से सुनियोजित था। किसानों की परेड मुख्य रूप से शांतिपूर्ण और मार्ग पर सहमत होने पर हुई थी। हम राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान की कड़ी निंदा करते हैं, लेकिन किसानों के आंदोलन को 'हिंसक' के रूप में चित्रित नहीं किया जा सकता क्योंकि हिंसा कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा की गई थी, जो हमारे साथ जुड़े नहीं हैं। सभी सीमाओं पर किसान कल तक शांतिपूर्ण तरीके से अपनी-अपनी परेड पूरी कर के अपने मूल स्थान पर पहुंच गए थे।

किसान नेताओं ने पुलिस के रैवये को लेकर भी नाराज़गी जाहिर की और कहा हम प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की बर्बरता की कड़ी निंदा करते हैं। पुलिस और अन्य एजेंसियों का उपयोग करके इस आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार द्वारा किए गए प्रयास अब उजागर हो गए हैं। हम कल गिरफ्तार किए गए सभी शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को तुरंत रिहा करने की मांग करते हैं। हम पुलिस की परेड में ट्रैक्टर और अन्य वाहनों को नुकसान पहुंचाने के प्रयासों की भी निंदा करते हैं।

संयुक्त मोर्चा ने उन लोगों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई की मांग करते हैं जिन्होंने राष्ट्रीय प्रतीकों को नुकसान पहुंचाया है। किसान सबसे बड़े राष्ट्रवादी हैं और वे राष्ट्र की अच्छी छवि के रक्षक हैं।

मंगलवार कुछ अफसोसजनक घटनाओं के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए, SKM ने एक फरवरी के लिए निर्धारित संसद मार्च को स्थगित करने का फैसला लिया है। इसके अलावा, 30 जनवरी को गांधीजी के शहादत दिवस पर, शांति और अहिंसा पर जोर देने के लिए, पूरे देश में एक दिन का उपवास रखने का भी एलान किया है।

दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन में अब तक सौ से अधिक किसानों की मौत हो चुकी है। गौर करने वाली बात यह है कि दो महीने से चल रहा यह आंदोलन 26 जनवरी की छुटपुट हिंसा को छोड़ कर अभी तक शांतिपूर्ण रहा है।

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