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गुजरात चुनाव: देवगढ़बरिया में मुखर आदिवासी महिलाओं ने उम्मीदवारों को जन-मुद्दों पर घेरा

एक दिन की हुई चर्चा में राज्य के पूर्वी हिस्से में महिलाओं के लिए विधानसभा चुनाव में मूल्य वृद्धि और बेरोज़गारी प्रमुख मुद्दे थे।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : The Indian Express

गुजरात चुनावों में महिलाएं हाशिए पर हैं। मुख्य तीन राजनीतिक दलों द्वारा 38 महिला उम्मीदवारों को ही मैदान में उतारा गया है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 17, कांग्रेस ने 14 और आम आदमी पार्टी (आप) ने सात महिला उम्मीदवारों को ही चुनावी मैदान में उतारा है।

बेशक, ये सभी दल कुल 4.90 करोड़ मतदाताओं में से 2.14 करोड़ महिला मतदाताओं को मुफ़्त की रेवड़ी देने का वादा कर रहे हैं। आप ने प्रत्येक महिला को प्रति माह 1,000 रुपये देने, 300 यूनिट मुफ़्त बिजली और पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने का वादा किया है। कांग्रेस ने एक क़दम और आगे बढ़कर 10 लाख रुपये तक का मुफ़्त इलाज, गर्भवती महिलाओं को 25,000 रुपये, 300 यूनिट तक मुफ़्त बिजली, ग़रीब महिलाओं को एलपीजी सिलेंडर और छात्राओं को मुफ़्त साइकिल और स्कूटर देने की पेशकश की है।

भाजपा ख़ुद को एक अजीबोग़रीब स्थिति में पाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनाव से पहले के वादों को "रेवाड़ी संस्कृति" के रूप में ख़ारिज कर दिया था, लेकिन अब उनकी भारतीय जनता पार्टी ने उज्जवला योजना के तहत पक्के घर, लड़कियों के लिए मुफ़्त शिक्षा और दो सिलेंडर देने की बात कही है।

लेकिन तीन लाख से अधिक की आबादी वाले देवगढ़बरिया विधानसभा क्षेत्र की आदिवासी महिलाएं अब महज़ आश्वासनों पर भरोसा करने को तैयार नहीं हैं। देवगढ़ महिला संगठन (डीएमएस) के बैनर तले इन महिलाओं को क़ानूनी अधिकारों और स्थानीय स्वशासन पर जानकारी दी गई है। इस संगठन के सदस्य पूर्वी गुजरात की तलहटी में सुंदर दाहोद ज़िले के 45 गांवों में हैं।

इस तरह वे आगामी विधानसभा चुनाव में मुख्य राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों और निर्दलीय उम्मीदवार को उनको किए गए चुनावी वादों के बारे में बता सकते हैं।

एक सशक्त दबाव समूह के रूप में उभरने के बाद इन महिलाओं ने ज़ोर देकर कहा कि उम्मीदवार 24 नवंबर को एक दिन की चर्चा में भाग लें। इन 45 गांवों से चुनी गई तीन से चार महिलाओं ने प्रत्येक उम्मीदवार से सवाल किया कि अगर वे जीत जाती हैं तो उनकी योजना क्या होगी।

मौजूदा विधायक, भाजपा के बच्चूभाई खबाद से पिछले पांच वर्षों में उनके और उनकी पार्टी के प्रदर्शन के बारे में कुछ कठिन सवाल पूछे गए थे। महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा को हल करने में पुलिस की निष्क्रियता, स्वास्थ्य सेवाओं में कमी और मुफ़्त राशन को लेकर उन्हें कई सवालों का सामना करना पड़ा।

इस निर्वाचन क्षेत्र से फिर से चुनाव लड़ रहे बच्चूभाई खबाद ने 2017 के चुनाव में शानदार जीत हासिल की। वह इतनी गहन पूछताछ के लिए शायद ही तैयार थे।

डीएमएस की अध्यक्ष गुलिबेन नायक ने उनके ख़िलाफ़ पहला हमला तब किया जब उन्होंने यह जानने की कोशिश की कि गांवों में खाप पंचायत जैसी संरचनाएं किस तरह से काम कर रही हैं। लोग अपनी पसंद से शादी करने का फ़ैसला करने वाले युवा लड़के और लड़कियों (अक्सर एक ही समुदाय से) पर 3 लाख रुपये तक का भारी जुर्माना लगा रहे हैं। प्रेम विवाह के ख़िलाफ़ रोक आदिवासी संस्कृति का एक बढ़ता हुआ हिस्सा बन गया है, जहां रूढ़िवादी विचार पारंपरिक चलन नहीं थे। इसका नतीजा यह है कि कई समुदाय के बुज़ुर्ग युवा जोड़ों को उनके इस व्यवहार के लिए भारी जुर्माना भरने के लिए मजबूर कर रहे हैं।

आनंदी की संस्थापक सदस्य और निदेशक नीता हार्डिकर दो दशकों से अधिक समय से इस क्षेत्र में काम कर रही हैं। उन्होंने कहा, “युवाओं को शिक्षा छोड़ने और भारी जुर्माने का भुगतान करने के लिए मजदूरी करने को मजबूर किया जा रहा है जो ग़ैरक़ानूनी है। इनमें से कई लड़कियों को नीलाम कर दिया जाता है क्योंकि उनके परिवारों को धमकी दी जाती है कि अगर उन्होंने बोलने की हिम्मत की तो उन्हें इसका ख़ामियाजा भुगतना पड़ेगा।”

मई 2019 में ऐसी ही एक नीलामी को रोक दिया गया था, जब आदिवासी महिलाओं की एक टुकड़ी पुलिस अधिकारियों की मदद से नीलामी स्थल पर पहुंची थी। लड़की और उसका प्रेमी भाग गए थे। उन्हें पकड़ा गया, पीटा गया और समुदाय के बुजुर्गों ने लड़की को दंडित करने और अवैध वसूली के लिए बोली लगाना शुरू किया।

खबाद ने डीएमएस के नेताओं के साथ अपनी सहमति व्यक्त की और कहा कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए सभी क़दम उठाएंगे कि ग्रामीण भागे हुए जोड़ों के साथ बुरा व्यवहार न करें।

नायक ने कहा कि पुलिस महिलाओं, ख़ासकर युवा महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा को रोकने में विफल रही है। "इसका कारण" उन्होंने चर्चा के लिए इकट्ठा हुए 150 से अधिक महिलाओं की सभा को बताया कि पुलिस को "भारी रक़म दी गयी थी, जिसके बाद उन्होंने दोषियों के ख़िलाफ़ आरोप तय नहीं किये।"

आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार भरत वाखला का जवाब कथित तौर पर इन महिलाओं को अधिक आश्वस्त करने वाले लग रहे थे क्योंकि उन्होंने पड़ताल नहीं की है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि आप के सक्रिय प्रचार ने इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। इसने वास्तव में खबाद को रक्षात्मक रुख अपनाने के लिए मजबूर किया।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के उम्मीदवार गोपसिंह लवार ने नामांकन दाख़िल करने के अंतिम दिन वापस ले लिया और अलग-थलग हो गए। लवार भाजपा के कार्यकर्ता थे जिन्होंने पाला बदल लिया है।

एक अन्य महिला नेता इनासबेन केवडिया जानना चाहती थी कि ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना मनरेगा को कम धन क्यों दिया गया और श्रमिकों को अपनी मज़दूरी लेने से पहले कई सप्ताह इंतज़ार करना पड़ा। खबाद ने मनरेगा का पुरजोर बचाव किया और ज़ोर देकर कहा कि इसके कार्यान्वयन में कुछ भी ग़लत नहीं है। न ही वह इस योजना के तहत मज़दूरी के वितरण में भ्रष्टाचार को स्वीकार करने को तैयार थे।

जब महिलाओं ने ज़ोर देकर कहा कि उन्हें 180 दिनों तक काम देने का आश्वासन दिया गया लेकिन काम नहीं मिल रहा है तो खबाद ने इसके विपरीत जवाब दिया। इसे स्वीकार करने के लिए आप के वाखला पर छोड़ दिया गया कि मनरेगा में भ्रष्टाचार व्याप्त था। फिर उन्होंने वादा किया कि निर्वाचित होने पर, वे उन विशिष्ट मामलों को उठाएंगे जो महिलाएं उनके सामने लाती हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उन्हें उनका बकाया प्राप्त हो।

वाखला की प्रतिक्रिया पर तालियों की गड़गड़ाहट को देखकर खबाद ने यह कहकर अपना चेहरा बचाने की कोशिश की कि मनरेगा केंद्रीय योजना है, जिसकी फंडिंग में लगातार गिरावट आई है। वह इस मामले को "उच्चतम स्तर" पर ले जाने और सीट बरक़रार रखने पर भुगतान में और देरी नहीं सुनिश्चित करने पर सहमत हुए।

लेकिन ज़मीनी नेता रामीलाल राठवा सहित कई महिलाओं द्वारा सबसे बड़ी शिकायत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्वास्थ्य सेवा बेहतर न होने को लेकर थी।

उन्होंने कहा कि, “महामारी के दौरान ब्लॉक स्तर पर कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं थे। नतीजा यह हुआ कि उस दौरान इलाज के अभाव में कई ग्रामीणों की मौत हो गई।”

नीता हार्डिकर ने कहा कि आनंदी और अन्य ग़ैर-सरकारी संगठनों ने दो साल पहले स्वयंसेवकों को टीकाकरण अभियान और COVID-19 और अन्य संक्रामक रोगों के ख़िलाफ़ निवारक उपायों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए प्रशिक्षित किया। उन्हें ऐसा इसलिए करना पड़ा क्योंकि प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर कोई सरकारी कर्मचारी नहीं था।

खबाद से बेतुके जवाब की ही उम्मीद थी। उन्होंने दावा किया कि स्थिति में सुधार हुआ है क्योंकि सरकार ने महामारी के दौरान और बाद में कई और डॉक्टरों और नर्सों की भर्ती की। उनके मुताबिक़, इनमें से कई लोग ज़िला स्तर पर काम करते हैं। लेकिन अधिकांश महिलाएं इससे सहमत नहीं थीं और उन्होंने सर्वसम्मति से ज़ोर देकर कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं को गंभीरता से बेहतर किया जाना चाहिए।

राठवा ने राशन की दुकानों में आपूर्ति की कमी के संबंध में भी मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, "प्रत्येक राशन दुकान को एक निश्चित कोटा प्राप्त होता है, लेकिन क्योंकि वे हमें बेची गई वस्तुओं के बिल नहीं देते हैं, हम कोटा के पूरे तरीक़े से इस्तेमाल को लेकर निश्चित नहीं हैं।"

खुद को ठगा हुआ महसूस करते हुए खबाद ने महिला नेताओं की उपस्थिति में दुकानदारों के साथ इस चुनाव के बाद बैठकें करने पर सहमति व्यक्त की।

महिलाओं के लिए, मूल्य वृद्धि और बेरोज़गारी अहम मुद्दे हैं और इस तरह की चर्चा से उन्हें राजनीतिक वर्ग के ध्यान में लाने में मदद मिलती है। उनका मानना है कि यह जनप्रतिनिधियों को बैकफुट पर रखता है और इस प्रकार जीतने वाले उम्मीदवारों को उनकी दिन-प्रतिदिन की समस्याओं को दूर करने में मदद कर सकता है। इस ज़िले के राजनेता अपने शीर्ष नेतृत्व के विपरीत जो ज़्यादातर सार्वजनिक और मीडिया बातचीत से इनकार करते हैं, उन्हें इस चर्चा में लाने का काम किया है।

इस आदिवासी क्षेत्र में दिनभर की चर्चा महिलाओं के धैर्य और दृढ़ संकल्प को दर्शाती है। स्थानीय निकायों और पंचायतों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण ने उन्हें अपनी दिन-प्रतिदिन की समस्याओं से प्रभावी ढंग से निपटने का भरोसा दिलाया है। दुर्भाग्य से, विधानसभा चुनाव में महिला उम्मीदवारों का अनुपात चार से सात प्रतिशत के बीच रहता है।

गुजरात 103 साल पहले महिलाओं को राजनीति में लाने वाले पहले राज्यों में से एक है। सरदार पटेल ने 1919 में अहमदाबाद में महिलाओं को चुनाव लड़ने की अनुमति देने का प्रस्ताव पारित किया था। फिर भी गुजरात के राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका बहुत ही कम है। ये आदिवासी महिलाएं आने वाली पीढ़ियों को इस प्रवृत्ति को कम करने में मदद कर सकती हैं।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Gujarat Elections: Assertive Tribal Women Grill Candidates in Devgadhbaria

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