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गुजरात चुनाव : खेरालू ज़िले में पानी की कमी और अधूरे वादों की कहानी

उत्तरी गुजरात के खेरालू के किसान अभी भी चिमनाबाई झील को भरने के मोदी के 2002 के वादे का इंतज़ार कर रहे हैं, क्योंकि वे भूजल में आई कमी के कारण पशुओं और खेतों के अस्तित्व के संघर्ष में उलझे हुए हैं।
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इसे चिमनाबाई सरोवर कहा जाता है, लेकिन मेहसाणा में बांध होने के बावजूद धरोई बांध के पानी को अन्य जिलों में की जा रही आपूर्ति के कारण इसके भीतर एक सड़क बन गई है।

खेरालू, मेहसाणा: 50 वर्षीय पाथू ने कहा की, "2002 में, नरेंद्र मोदी खेरालू आए थे और भाषण दिया था। मुझे अभी भी उनके वे शब्द याद हैं। उन्होंने कहा," तुम रामिला बेन की झोली वोट से भर दो मैं तुम्हारे चिमनाबाई सरोवर को पानी से भर दूंगा।" सिर्फ पाथु ही नहीं बल्कि 2002 में मोदी को सुनने वाले हर ग्रामीण को हर चुनावी साल में वादे की याद दिलाई जाती है।

2002 के बाद, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने खेरालू सीट पर अच्छे अंतर से जीत हासिल की थी। हर चुनाव में चिमनाबाई सरोवर का भराव चुनावी मुद्दा बन जाता है, लेकिन ग्रामीणों को अब भी मुरझाई झील के भरने का इंतजार है।

खेरालू में भूजल की बड़ी समस्या है। कई इलाकों में गाँव वालो ने जमीन से 800 फीट नीचे तक खुदाई की लेकिन फिर भी पानी नहीं मिला। यहां के लगभग सभी ग्रामीणों की आय का स्रोत या तो पशुपालन है या खेती। झील में पानी नहीं होने के कारण यह क्षेत्र बंजर भूमि से भरा हुआ है, और बिना किसी फसल के बेकार पड़ा हुआ है।

झील की क्षमता 632 एमसीफीट है। यह सीधे धारोही बांध से जुड़ी हुई है, और पानी वहां से लिया जाना चाहिए। हालांकि, धारोही बांध के अधिकांश पानी से पाटन और साबरकांठा के लोगों को लाभ मिलता है, जिससे खेरालू असहाय रह जाता है।

वर्तमान में चिमनाबाई झील के केवल एक छोटे से में ही पानी मौजूद है। पानी का स्तर 20 फीट से कम है, और झील के अंदर पेड़ देखे जा सकते हैं। पाथु बताते हैं कि अगर यह पानी करीब 26 फीट तक पहुंच जाए तो समस्या का समाधान हो जाएगा।

चिमनाबाई झील का जलस्तर वर्तमान में 20 फीट से भी कम है

हालांकि धारोही बांध मेहसाणा जिले में स्थित है, लेकिन यह पड़ोसी गांवों को लाभ पहुंचाने में विफल रहा है।

50 वर्षीय किसान, लाल के पास 10 बीघा जमीन है, जहां वे मूंगफली, चावल और सब्जियां बोते थे। हालांकि, पिछले तीन वर्षों में, भूजल में कमी होने के कारण वे कोई भी फसल नहीं बो पाए हैं और अब केवल अपने पशुओं पर निर्भर हैं। उससे भी बहुत कम आमदनी होती है।

"मैंने पिछले साल आठ गायें बेचीं क्योंकि मेरे पास उन्हें खिलाने के लिए न तो चारा था और न ही खरीदने के लिए पैसे थे। मैं या तो उनके लिए या अपने परिवार के लिए पानी की व्यवस्था कर सकता था। कुल मिलाकर 15 गायों और भैंसों में से अब मेरे पास केवल छह भैंसें बची हैं। मैं इन्हे भी जल्द ही बेचने की योजना बना रहा हूं।" इस साल उन्होंने दो बार बोरिंग के जरिए भूजल हासिल करने की कोशिश की, हर बार असफल रहे और छह लाख रुपये भी खर्च हुए। लाल के खेत अब भी सूखे पड़े हैं।

केवल एक नल में पानी है जिसका इस्तेमाल घरेलू जरूरतों, पीने के पानी और भैंसों को खिलाने के लिए किया जाता है। दावोल में इस साल करीब 200 बोरवेल लगाए गए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। प्रत्येक बोरवेल के लिए एक किसान को 3 लाख रुपये का खर्च वहन करना पड़ता है। इस साल, लाल ने मूंगफली में लगभग 50,000 रुपये का निवेश किया था, लेकिन क्षेत्र में कम वर्षा के कारण बर्बाद हो गया।

"अगर चिमनाबाई झील में पानी होता, तो हम इतने हताश नहीं होते। हमारी स्थिति बेहतर होती।"

क्या खेरालू का जल संकट हल करने योग्य नहीं है?

चूंकि धरोही बांध का पानी चिमनाबाई झील तक नहीं पहुंच पा रहा है, इसलिए यह खाली पड़ा है, जिससे ग्रामीणों के पास भूजल का कोई अन्य स्रोत नहीं है। जैसे ही न्यूज़क्लिक ने यहाँ की सड़कों की यात्रा की, पाथु ने एक जगह पहुँच कर वाहन रोक कर कहा कि, "आप जिस सड़क पर खड़े हैं, यह चिमनाबाई झील का इलाका है। इसमें पानी होना चाहिए था, अगर यह भर जाता, तो हमारी सारी समस्याएं गायब हो जातीं।"

पाथू, खेरालू के एक 50 वर्षीय किसान हैं, जो अपने तालुका के पानी के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं

मेहसाणा जिले की सबसे बड़ी दुविधा यह है कि धरोही बांध उसी जिले में होने के बावजूद खेरालू के लोगों को सिंचाई के लिए पानी नहीं मिलता है। भूगोल की दृष्टि से खेरालू दो बांधों, मुक्तेश्वर और धरोही के बीच स्थित है, फिर भी यह बिना पानी के है।

धरोही का पानी, पाटन और साबरकांठा जैसे विभिन्न जिलों में जाता है। इसे मेहसाणा के कुछ हिस्सों में भी भेजा जाता है। हालांकि, खेरालू का निकटतम ग्रामीण क्षेत्र सूची से बाहर रखा गया है। तकनीकी दृष्टि से चिमनाबाई को भरने के लिए आवश्यक जल स्तर 620 फीट है। ग्रामीणों ने कहा कि इसमें पानी भरने से खेरालू और आसपास के इलाकों के जल संकट से निपटा जा सकता है।

इस 25 साल के अनसुलझे संकट के बारे में पूछताछ करने पर न्यूज़क्लिक ने मेहसाणा के विशनगर के एक पूर्व इंजीनियर से संपर्क किया।

विशनगर के 61 वर्षीय विष्णु देव मेवाड़ा ने गुजरात सरकार में इंजीनियर के रूप में लगभग 20 साल काम किया है।

उन्होंने आरोप लगाया कि, ''मुझे कोई कारण नजर नहीं आता कि खेरालू तक पानी क्यों नहीं पहुंच सकता है। इसके पीछे पूरी तरह राजनीतिक मंशा के अलावा कुछ नहीं है।''

खेरालू में ज्यादातर अनुसूचित जाति (एससी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और कुछ क्षत्रिय समुदाय के लोग रहते हैं।

साबरकांठा और पाटन जैसे जिन इलाकों में नहर का पानी पहुंचता है, वहां पाटीदारों का भारी जनाधार है।

मेवाड़ा का मानना है कि खेरालू को संकट में छोड़कर अन्य जिलों के लिए प्रावधान करने का यह कदम उच्च जाति के मतदाताओं को लुभाने के लिए है.

"सौराष्ट्र में, पूरे क्षेत्र को पानी देने के लिए नर्मदा बांध से 120 मीटर पानी उठाया जाता है। कुछ क्षेत्रों में पानी की अधिकता है। खेरालू में, उन्हें केवल 15 मीटर पानी उठाने की जरूरत है, लेकिन सिंचाई मंत्रालय को यह भी असंभव लगता है।"

पाटन और साबरकांठा जिलों का मामला भी अलग नहीं है। ये क्षेत्र भी भूजल से वंचित हैं। उन्हें बांधों और नहरों से मिलने वाले पानी पर निर्भर रहना पड़ता है। हालांकि धारोही बांध से होकर इन जिलों में बहने वाला पानी सरप्लस यानि अतिरिक्त है।

इन दोनों जिलों में पहले से ही नर्मदा बांध से पानी का स्रोत है। कई इलाकों में बोरिंग के पानी की स्थिति भी बेहतर है। इसलिए, यदि धरोही में आपूर्ति बंद कर दी जाती है और खेरालू की ओर उसे मोड़ दिया जाता है, तो इससे अन्य दो जिलों को कोई नुकसान नहीं होगा।"

2001 में, केशुभाई पटेल की सरकार ने नहरें बनाने और नर्मदा बांध से अतिरिक्त पानी को 17 तालुकों में लाने की पहल शुरू की थी। यहां भी खेरालू को बाहर रखा गया था। 2017 में, गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में, नरेंद्र मोदी ने नर्मदा से कच्छ तक पानी पहुंचाने की पहल की, लेकिन खुद के तालुका को नजरअंदाज कर दिया था।

उसी जल संकट के पीड़ितों में मोदी के कुछ रिश्तेदार भी शामिल हैं, जिनमें उनकी मासी (माँ की छोटी बहन) और उनका परिवार शामिल है। निरंजना मोदी और उनकी पोती खेरालू के एक फार्महाउस में रहते हैं। वे कहती हैं कि आखिरी बार जब वे नरेंद्र मोदी से मिली थीं, तब वे  वह आखिरी बार मुख्यमंत्री बने थे, और वह इस साल रक्षाबंधन पर अपनी बहन से मिली थीं।

"यहाँ एक बड़ा जल संकट है, और इसे तुरंत हल किया जाना चाहिए।"

उनकी पोती, जो एक कंप्यूटर इंजीनियर हैं, ने कहा: "हमें भी पानी की कमी का सामना करना पड़ता है। चूंकि हम सक्षम हैं, हम पानी का प्रबंध कर सकते हैं, लेकिन हम कल्पना नहीं कर सकते कि हमारे गांव के किसानों को क्या झेलना पड़ता है।"

न केवल नरेंद्र मोदी इस परिवार के साथ, बल्कि गांवों के साथ भी उनकी भावनाएं बरकरार हैं, भले ही अस्तित्व के लिए बुनियादी जरूरत यानि पानी का संघर्ष जारी है।

पशु रखना पड़ रहा महँगा 

अगर खेरालू में पानी होता तो पशुओं का रखरखाव और फसल उगाना आसान होता। लेकिन चूंकि ऐसा नहीं है, इसलिए ज्यादातर किसानों को रोजाना पशुओं का चारा खरीदना पड़ता है, जिससे उनकी कमाई पर असर पड़ता है। परिवार को खिलाने के लिए थोड़ी सी खेती और उनके सिर पर भारी कर्ज होने के कारण, उन्हें पशुओं को रखने के लिए गंभीर संकट का समाना करना पड़ रहा है। कई लोगों ने खेती करना बंद कर दिया है या अपनी गाय-भैंस बेच रहे हैं।

पाथु और उनकी पत्नी के पास 30 गाय और भैंस हैं। यही उनकी कमाई का जरिया है। चूंकि उनके पास भूजल नहीं है, इसलिए उन्हें पशुधन और जैविक खेती पर निर्भर रहना पड़ता है। लेकिन भैंसों को खिलाने में होने वाला खर्च इससे कहीं अधिक होता है।

सविता ने सवाल उठाया कि, "प्रत्येक भैंस या गाय को प्रतिदिन कम से कम 20-25 किलोग्राम चारा खिलाने की जरूरत होती है, और लागत 10 रुपए किलो है। इसलिए यदि हम उनमें से 30 को खिलाते हैं, तो लागत लगभग 6,000 रुपये की लागत आएगी। हम इस खर्च को कैसे वहन करेंगे?" 

लेखक दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, और विधानसभा चुनावों पर रिपोर्ट करने के लिए गुजरात की यात्रा कर रहे हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Gujarat Elections: A Saga of Water Scarcity and Unkept Promises in Kheralu District

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