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भारत
राजनीति
गुजरात: फ़ैक्ट-फ़ाइंडिग रिपोर्ट कहती है कि अब दंगे ग्रामीण इलाकों की तरफ़ बढ़ गए हैं
‘गुजरात के छोटे शहरों और गांवों में सांप्रदायिक हिंसा की लगभग हर घटना के बाद, उल्लेखनीय तौर पर "हिंदू राष्ट्र में आपका स्वागत है" के लिखे बोर्ड उभरते नज़र आने लगते हैं।’
दमयन्ती धर
23 Jan 2021
Translated by महेश कुमार
गुजरात: फ़ैक्ट-फ़ाइंडिग रिपोर्ट कहती है कि अब दंगे ग्रामीण इलाकों की तरफ़ बढ़ गए हैं

पाटन जिले की चनासमा तहसील के एक छोटे से गाँव वाडवली में, 26 मार्च, 2017 को हुए सांप्रदायिक दंगे के बाद गाँव धू-धू कर जल उठा, हिंसा में दो लोग मारे गए, 25 घायल हुए, और कई घरों को आग के हवाले कर जमकर लूटपाट हुई। हुसैनभाई रहीमवाला शेख का परिवार उन मुसलमानों में से है जो अपना घर छोड़कर भाग गए थे जिसे जलाकर राख़ कर दिया गया था।  यह वह परिवार है जो 2002 के दंगों में बच गया था, और वडावली जो कि शांत इलाका था, न कभी किसी किस्म के सांप्रदायिक तनाव की कोई घटना कभी किसी ने सुनी थी, वहाँ  यह बस गए थे। 

वाडावली गुजरात का कोई एकमात्र ऐसा गाँव नहीं है जहां पिछले कुछ वर्षों में सांप्रदायिक दंगों या झड़पों को देखा गया है। अकेले 2019 में ही गुजरात के विभिन्न ग्रामीण इलाकों या छोटे शहरों में सांप्रदायिक झड़पों या दंगों की छह घटनाएं हुई हैं, जो 2002 के दंगों के समय शांत थे। 

गुजरात स्थित अल्पसंख्यक अधिकार संगठन, बुनियाद के एक अध्ययन के अनुसार, राज्य में सांप्रदायिक दंगों की जगह अब ग्रामीण इलाके बन गई है। इससे पहले, गुजरात के बड़े शहरों जिसमें अहमदाबाद, सूरत और वडोदरा जैसे प्रमुख शहर हैं ने 1946, 1969,1981-82, 1985, 1990, 1992, 2002 और 2006 के बड़े सांप्रदायिक दंगे देखे थे। हालांकि, 2002 के बाद, गांधीनगर जिले के छत्राल, पाटन के वाडावली, आनंद में खंभात, साबरकांठा में इदर और मोरबी में हलवद जैसे इलाकों में सांप्रदायिक हिंसा का तांडव देखा गया हैं।

"2019 में, गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा की छह घटनाएं हुईं हैं जिनमें से पांच घटनाएं छोटे शहरों, ब्लॉकों और गांवों के स्तर पर हुईं जैसे कि आनंद में खंबात, साबरकांठा में कोटा गादी, कादी तालुका में नांदोलिया, खेड़ा जिले में धूंधरा," होजेफा उज्जैनी, जो कि गुजरात के एक अल्पसंख्यक अधिकार संगठन के कार्यकर्ता, उक्त तथ्य खोजने वाली टीम का हिस्सा थे, और उन्होनें इन सब घटनाओं के बारे में न्यूज़क्लिक को बताया। 

उज्जैनी कहते हैं, “इन सांप्रदायिक हिंसाओं का एक और पैटर्न है। वे अब उन स्थानों पर हो रही हैं जो 2002 के दंगों से पूरी तरह से अप्रभावित थे।” 

मध्य गुजरात में आनंद जिले का एक तटीय शहर, खंभात 2002 के बाद से विशेष तौर पर सांप्रदायिक तनाव के एक नए गर्भ के रूप में उभरा है। बुनियाद के अनुसार, फरवरी 2012 में, खंभात में वक्फ बोर्ड की ज़मीन पर दुकानों के निर्माण को लेकर विवाद बड़े पैमाने पर दंगों में बदल गया था। भीड़ ने एसिड बल्ब, पेट्रोल बम, पत्थर से हमला किया और छह घरों को आग लगा दी थी।

नवंबर 2016 में, पिथ बाज़ार इलाके में रावर समुदाय के एक व्यक्ति की मोटरसाइकिल से  मुस्लिम ऑटोरिक्शा चालक के टकरा जाने की एक मामूली घटना सांप्रदायिक दंगे में बदल गई। दंगा जो कि दोनों समुदायों के सदस्यों द्वारा एक-दूसरे पर पथराव से शुरू हुआ था उसकी आग  खंबात में राणा चकला, मडई और वासवद के पड़ोसी इलाकों में फैल गई थी। इस हिंसा में मुसलमानों के पांच घर, एक मंदिर, एक मस्जिद, एक दरगाह और छह दुकानों जिसमें पांच मुसलमानों और एक हिंदू की थी को आग के हवाले कर दिया गया था। झड़प में चार लोग गंभीर रूप से घायल हो हुए जिसमें तीन पुलिस कर्मी शामिल थे। 2017 और 2018 में भी खंभात में सांप्रदायिक तनाव की छिटपुट घटनाएं हुई हैं। इसके बाद, राज्य सरकार ने इस शहर में अशांत क्षेत्र अधिनियम को लागू कर दिया जिसके तहत जिला अधिकारियों की पूर्व अनुमति के बिना दो धार्मिक समुदायों आपस में संपत्ति की बिक्री नहीं कर सकते हैं।

हालाँकि, खंभात में किया गया यह प्रावधान भी सांप्रदायिक झड़पों को रोक नहीं पाया। फरवरी 2019 में, अकबरपुरा क्षेत्र में पतंग उड़ाने को लेकर दो बच्चों के बीच हुआ एक झगड़ा भी सांप्रदायिक दंगे में बदल गया। हालत को काबू में लाने के लिए पुलिस ने हवा में सात राउंड फायर किए और आंसू-गैस के गोले दागे। हिंसा में एक पुलिस कर्मी भी घायल हो गया था। उसी महीने, खंभात के एक अन्य इलाके में पुलवामा हमले के बारे में सोशल मीडिया पर डाली गई एक पोस्ट को लेकर सांप्रदायिक घटना हुई। फरवरी 2020 में, भवसारवाड़ जो कि एक हिंदू बहुल इलाका है, में लूटपाट की गई और उसके बाद आनंद जिले में आधारित हिंदू जागरण मंच नामक दक्षिणपंथी संगठन ने एक रैली निकाली और उत्तेजक नारे लगाए, जिसमें हिंदुओं से मुसलमानों को शहर से बाहर निकालने का आह्वान किया गया था। संजय पटेल, खंभात से भाजपा के नेता और पूर्व विधायक और भाजपा की शहर इकाई के प्रमुख पिनाकिन ब्रह्मभट्ट उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने उत्तेजक धार्मिक नारे लगाए थे।

उस रैली के कुछ दिनों बाद, खंभात में दंगे भड़क उठे, जिसमें लगभग तेरह लोग घायल हो गए, जबकि 30 से अधिक दुकानों, दस घरों, और कई वाहनों को जलाकर राख कर दिया गया था।  भीड़ को क़ाबू करने के लिए स्थानीय पुलिस और आरएएफ को लगभग दो घंटे का वक़्त लगा।  दंगों के बाद सात एफआईआर दर्ज की गई जिनमें पटेल और ब्रह्मभट्ट तथा हिंदू जागरण मंच के कई नेताओं और कुछ स्थानीय पार्षदों के नाम दंगा भड़काने के लिए दर्ज़ किए गए थे।

“खंभात में इस दंगे में धुर-दक्षिणपंथी संगठनों की गहरी जड़ें देखी जा सकती हैं। राज्य भर के छोटे शहरों में स्थानीय हिंदू वर्चस्ववादी संगठनों की संख्या में वृद्धि हुई है। 2002 के बाद हुई सांप्रदायिक तनाव की लगभग हर घटना में एक नवगठित स्थानीय दक्षिणपंथी संगठन की भूमिका पाई गई है। उदाहरण के लिए, श्री राम सेना नाम का एक संगठन है जो लगभग तीन या चार साल पुराना है और खंभात से है, वह लगातार सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा और इतिहास का विकृत संस्करण फैलाने में लगा हुआ है। उन्होंने पुलवामा हमले पर एक सोशल मीडिया पोस्ट को सांप्रदायिक रूप देने में भूमिका निभाई थी जिसके परिणामस्वरूप 2019 में दंगे हुए, ”उज्जैनी ने कहा। ये नए दक्षिणपंथी संगठन लव जिहाद के बारे में घृणा का प्रचार भी करते रहे हैं।

2019 में गुजरात के छह दंगों में से दो दंगे 'लव जिहाद' के घृणित प्रचार की वजह से हुए।

मेहसाणा में, एक स्थानीय कॉलेज में एक मुस्लिम लड़के और एक हिंदू छात्रा का सामना स्थानीय वीएचपी सदस्य धवल बारोट से हुआ, उन्होनें मुस्लिम लड़के पर 'लव जिहाद' का आरोप लगाया। जब बारोट ने दोनों को धमकी दी तो कॉलेज के कुछ लड़कों ने उसकी जमकर पिटाई कर दी। बाद में, बारोट ने स्थानीय मीडिया को बताया और सोशल मीडिया पर लिखा कि वह एक पीड़ित हिन्दू लड़की थी जिसे वह ‘लव जिहाद’ से बचा रहा था। 

बड़ौदा की एक अन्य घटना में महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय (MSU) में एक रैगिंग विरोधी घटना ने सांप्रदायिक मोड़ ले लिया। प्रदर्शनकारी मुख्य रूप से मुस्लिम छात्रों के एक समूह के खिलाफ विरोध कर रहे थे, जिन पर उन्होंने 'कॉलेज की हिंदू लड़कियों से संबंध बनाने के लिए बहकाने', और 'लव जिहाद' का आरोप लगाया था। कॉलेज में दो समूहों के बीच झड़पें हुईं जिसके बाद आठ छात्रों, जो कि सभी मुसलमान थे, के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।

साबरकांठा के कोटड़ा गांव के एक मुस्लिम लड़के और एक आदिवासी लड़की के बीच बने संबंध के कारण दंगा हो गया। जिसके परिणामस्वरूप 12 मुस्लिम परिवारों को वहाँ से भागना पड़ा। लड़की और लड़का जो लंबे समय से आपसी संबंध में थे, उन को गाँव छोड़ना पड़ा। हालांकि, समुदायों के भीतर समझौता होने के बाद लड़की घर लौट आई थी। एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिसमें लड़के के परिवार ने सहमति व्यक्त की कि वह गांव वापस नहीं आएगा और लड़की के परिवार को मुआवजे के रूप में 35,000 रुपये देगा। हालाँकि, 'समझौता' होने के कुछ दिनों बाद, परिवार गाँव छोड़कर भाग गया और इसके जवाब में आदिवासी समुदाय ने मुस्लिम इलाके पर हमला कर दिया।

गुजरात के छोटे शहरों और गांवों में सांप्रदायिक हिंसा या झड़प की लगभग हर घटना के बाद, "हिंदू राष्ट्र में आपका स्वागत है" के लिखे बोर्ड उभरने लगते हैं। बजरंग दल या वीएचपी द्वारा हस्ताक्षरित इन बोर्डों पर कई बार सदस्यों के फ़ोन नंबर भी होते हैं।

मार्च 2017 में, 35 सिंधी मुस्लिम परिवारों को उत्तर गुजरात के अरावली जिले के धनसुरा ब्लॉक में अपने गाँव वडगाम से भागना पड़ा। यह गाँव एक विजातीय गाँव है जहाँ ब्राह्मण, पाटीदार, दरबार (क्षत्रिय), दलित और सिंधी मुस्लिम (एक खानाबदोश आदिवासी) जैसे समुदाय गाँव में रहते हैं। यहाँ तब तक सब शांत रहता है जब तक कि एक लड़की अकबर के घर के सामने से गुजरती है और आरोप लगाती है कि उसने उसे छेड़ा है। लड़की के परिवार सहित लगभग 25 लोग अकबर की तलाश में आते हैं और मौखिक रूप से अकबर के पिता अल्लुभाई के साथ गाली-गलौज करते हैं और बाद में अकबर की पिटाई भी कर देते हैं। उसके बाद फिर से एक अन्य समूह उनके घर आता है और अकबर को उनके हवाले करने की मांग करता है। वे उसे ढूँढने के बाद वापस चले जाते हें और डंडों, तलवार और पाइप की छड़ों और लगभग 500 लोगों की बड़ी भीड़ के साथ उनके घर वापस आते हैं। इस घटना में 12 लोग घायल हो जाते हैं। 

इस घटना के तुरंत बाद, धनसुरा और वडगाम के बीच कई लिखे हुए बोर्ड सामने आए- वह भी केवल लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर- जिन पर लिखा था कि: "हिंदू राष्ट्र के वडगाम, धनसुरा, हरसूल और तड़ो में आपका स्वागत है"।)

“वडगाम में हुए दंगों के बाद, संगठन के कार्यकर्ता भयभीत मुस्लिम परिवारों की काउंसलिंग करने की कोशिश कर रहे हैं, खासकर जब से ये बोर्ड उभर कर आए हैं। मैंने उन बोर्डों के बारे में जिला कलेक्टर को बतया और कहा कि ये बोर्ड मुस्लिम परिवारों के जेहन में डर पैदा कर रहे हैं। गुजरात के अल्पसंख्यक अधिकार कार्यकर्ता ने बताया कि इस पर कार्यवाही करने के बजाय कलेक्टर साहब कहने लगे कि तुम इस मुद्दे को कुछ ज्यादा ही हवा दे रहे हो और फिर से सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश कर रहे हो।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Gujarat: Fact-Finding Report Says Riots Have Shifted to Rural Areas

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