Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

गुजरात ने ऊर्जा टैरिफ़ पर बढ़ोतरी वापस ली : अडानी, एस्सार को मिलेगा फ़ायदा?

ऐसा दावा किया जा रहा है कि गुजरात सरकार द्वारा 2018 के एक ‘सरकारी प्रस्ताव (GR)’, जिससे अडानी, एस्सार और टाटा को फ़ायदा हो टैरिफ़ में इज़ाफ़ा करने की सहूलियत मिल रही थी,  उसे वापस लेने से उपभोक्ताओं के हितों की “रक्षा” होगी। लेकिन होगा इसके उलट। इस फ़ैसले से उपभोक्ताओं की कीमत पर निजी कंपनियों को फ़ायदा मिलेगा। 
Gujarat Revokes Power Tariff Hike
प्रतीकात्मक तस्वीर

12 जुलाई को गुजरात कैबिनेट ने एक घोषणा में कहा कि सरकार ने दिसंबर, 2018 के एक पुराने “सरकारी प्रस्ताव (GR)” को वापस लेने का फ़ैसला लिया, जिससे बिजली पर लगने वाले टैरिफ़ कम हो जाएंगे। कई खबरो में इस कदम को तीन बड़े निजी ऊर्जा उत्पादकों के लिए ‘झटका’ बताया। इन तीन बड़े उत्पादकों के ऊर्जा संयंत्र गुजरात की समुद्री सीमा के आस-पास लगे हैं। यह संयंत्र अडानी, टाटा और एस्सार समूह के हैं। इनमें से दो भारत के सबसे बड़े ऊर्जा संयंत्र हैं। राज्य की कुल खपत का करीब़ 45 फ़ीसदी हिस्सा इन्हीं तीन संयंत्रों से उत्पादित होता है।

लेकिन गुजरात सरकार का दावा सच्चाई से बहुत दूर है। बल्कि राज्य सरकार के फ़ैसले से उपभोक्ताओं के बजाए ऊर्जा उत्पादकों को ज़्यादा मदद मिलने की संभावना है। यह कैसे हो सकता है, इसी बात को लेख में समझाया गया है।

अहमदाबाद में कई लोगों द्वारा बढ़े हुए बिजली के बिलों पर गुस्सा ज़ाहिर करने के कुछ दिन बाद गुजरात सरकार ने “पुराने प्रस्ताव (GR- गवर्नमेंट रेज़ोल्यूशन)” को वापस ले लिया। इससे सरकार का वह फ़ैसला पलट गया, जिसके ज़रिए तीनों ऊर्जा उत्पादकों को इंडोनेशिया से आने वाले कोयले की ऊंची कीमत की स्थिति में टैरिफ़ बढ़ाने की अनुमति दी गई थी। GR को वापस लेने के लिए सरकार ने इंडोनेशिया में कोयले की कीमतों में आई गिरावट को आधार बनाया है। गुजरात सरकार ने दावा किया कि ‘GR अब अपने उद्देश्य और जरूरतों की पूर्ति नहीं कर रहा है’ और ‘उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए’ इसे हटाया जा रहा है।

और कम हो सकते थे टैरिफ़़

“निजी ऊर्जा उत्पादनकर्ताओं” और राज्य सरकार के स्वामित्व वाली “ऊर्जा वितरण कंपनी” के बीच हुए समझौते पर करीब़ से नज़र डालने पर पता चलता है कि तीन में दो ऊर्जा संयंत्रों में बिजली के टैरिफ़़ और भी नीचे आ जाते, अगर गुजरात सरकार ने अपना पुराना प्रस्ताव वापस ना लिया होता। इस तरह एक ऐसा फ़ैसला जो उपभोक्ताओं के हित के नाम पर लिया गया है, दरअसल उससे उपभोक्ताओं के वो फायदे कम हो सकते हैं, जो उन्हें मिलने चाहिए थे। 

2018 के सरकारी प्रस्ताव को “सप्लीमेंट्री पॉवर पर्चेज़ एग्रीमेंट (SPPAs)” में बदलना था, जिसे ऊर्जा उत्पादनकर्ताओं और वितरण कंपनियों के बीच होना था। इसके तहत एक फॉर्मूले पर भी सहमति बनी, जिससे टैरिफ़़, आयात होने वाले इंडोनेशियाई कोयले की कीमत से संबद्ध हो गया।

इन समझौतों से “राज्य के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों’’ को ऊर्जा बेचने के लिए होने वाली प्रतिस्पर्धी नीलामी के दौरान ऊर्जा उत्पादकों को पुरानी तय सीमा से ज़्यादा टैरिफ़ लगाने की छूट मिल गई। यह इस तथ्य पर आधारित था कि इंडोनेशियाई कोयले की कीमत वहां की सरकार के फ़ैसलों के चलते 2010 में एकदम से काफी बढ़ गई थी। 

उस वक्त इंडोनेशियाई कोयले की कीमत 100 डॉलर प्रति मीट्रिक टन थी। जून 2020 में इंडोनेशियाई कोयले की कीमत अपने चार साल के सबसे निचले आंकड़े 52.80 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गई। SPPAs के पॉवर टैरिफ़ फॉर्मूले के मुताबिक़, इससे वितरण कंपनियों पर ऊर्जा उत्पादक कंपनियों द्वारा लगाए जाने वाले टैरिफ़ में बहुत कमी आती। जिससे अंतिम तौर पर ऊर्जा उपभोक्ताओं को फ़ायदा होता।

गुजरात सरकार द्वारा 2018 के सरकारी प्रस्ताव को वापस लेने का मतलब है कि उपभोक्ताओं को जो फ़ायदा मिलना चाहिए था, अब वह नहीं मिलेगा। क्योंकि अब समझौते को एक पुराने टैरिफ़ रेट पर वापस लौटा दिया गया है, जिसमें इंडोनेशियाई कोयले की कीमत मौजूदा वास्तविक कीमत से कहीं ज़्यादा तय की गई थी। 

बहुत ज़्यादा बदलावों वाली पृष्ठभूमि

गुजरात सरकार का फ़ैसला उन घटनाओं की श्रंखला का हिस्सा है, जिनमें तीनों निजी ऊर्जा उत्पादकों और राज्य स्वामित्व वाली वितरण कंपनी के बीच कई सारी कानूनी लड़ाईयां चल रही हैं।

गुजरात तट के पास मुंद्रा में टाटा पॉवर अपनी सहायक कंपनी कोस्टल गुजरात पॉवर लिमिटेड (CGPL) के ज़रिए 4,150 मेगावॉट की क्षमता वाला अल्ट्रा मेगापॉवर प्रोजेक्ट (UMPP) चलाती है।

वहीं अडानी पॉवर अपनी सहायक कंपनी, अडानी पॉवर मुंद्रा लिमिटेड (APML) द्वारा 4,620 मेगावॉट की ज़्यादा क्षमता वाला संयंत्र चलाती है, जो विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) में स्थित है।

वहीं रुईया परिवार के नियंत्रण वाला एस्सार समूह, एस्सार पॉवर गुजरात लिमिटेड (EPGL) 1200 मेगावॉट की क्षमता वाला संयंत्र सलाया में चलाता है, जो मुंद्रा से करीब़ 60 किलोमीटर दूर दक्षिण में कच्छ की खाड़ी की तरफ है।

गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (GUVNL) के साथ हुए ऊर्जा कंपनियों के पॉवर पर्चेज़ एग्रीमेंट (PPAs) से ही आपूर्ति और वितरण का प्रबंधन होता था।  इन PPAs पर अलग-अलग समय में 2000 के दशक के मध्य और आखिर में हस्ताक्षर हुए थे। यह PPA, GUVNL को कम टैरिफ़ रेट पर बिजली देने के लिए हुईं प्रतिस्पर्धी नीलामी का नतीजा थे।

जिस दर पर नीलामी हासिल हुईं, वह इंडोनेशिया के कोयला आपूर्तिकर्ताओं से हुए समझौतों पर आधारित थी। बिजली बनाने में कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल होने वाले कोयले की कीमत बाज़ार पर निर्भर करती है।

सितंबर 2010 में इंडोनेशिया की सरकार ने एक कानून पास किया, जिसमे अंतरराष्ट्रीय खरीददारों के लिए देश के कोयले की एक कीमत तय कर दी गई। तबसे हर महीने इंडोनेशिया के अधिकारी कोयले की अंतरराष्ट्रीय कीमतों की घोषणा करते हैं। इससे कोयले की कीमत में काफ़ी इज़ाफा हुआ और जिस दर पर भारतीय उत्पादनकर्ता पहले कोयला हासिल करते थे, यह दर उससे ज़्यादा हो गई।

तब कंपनियों ने सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन (CERC) का दरवाजा खटखटाया और टैरिफ़ बढ़ाने की मांग की, ताकि इंडोनेशिया में बढ़ी हुई कोयले की कीमतों से पार पाया जा सके। कंपनियों ने ‘फोर्स मेजेउर’ उपबंध का इस्तेमाल किया।

यह उपबंध अकसर ही समझौतों में शामिल किया जाता है, ताकि समझौतों करने वाले पक्ष किसी ऐसी घटना, जिस पर उनका बस नहीं है, उससे उपजने वाली जवाबदेहियों से बच सकें। इन तरह की घटनाओं में महामारियां, दंगे, हड़ताल, युद्ध शामिल हैं। इनमें उस तरह की घटनाओं को भी शामिल किया जाता है, जिन्हें कानूनी भाषा में ‘एक्ट ऑफ गॉड’ कहा जाता है।

अडानी, टाटा और एस्सार समूह के नियामक प्रधाकिरण के साथ होने वाले कानूनी मुकदमे काफ़ी पुराने हैं और कई सारे हैं। अंतिम तौर पर यह सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे। आखिर में निजी कंपनियों को अपने दावों पर हार मिली।

2017 के एक अहम फ़ैसले में  सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि ऊर्जा उत्पादनकर्ताओं ने PPAs पर हस्ताक्षर करते वक्त ईंधन की ऊंची-गिरती कीमतों के खतरे से जूझने की एक हद तक सहमति दी थी। इसलिए PPAs और इलेक्ट्रिसिटी एक्ट, 2003 में बताई गई प्रतिस्पर्धी नीलामी की शर्तों के मुताबिक़, कीमतों का भार उन्हीं के कंधों पर पड़ेगा।

वित्तीय तनाव में कंपनियां

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद तीनों ऊर्जा संयंत्रों पर वित्तीय भार बढ़ता गया। EGPL के ऊर्जा संयंत्र को उधार देने वाले बैंकों ने एनपीए (नॉर परफॉर्मिंग एसेट) घोषित कर दिया। वहीं APML औऱ CGPL संयंत्रों को ‘तनावयुक्त संपत्तियां’ घोषित कर दिया गया।

रिज़र्व बैंक का बैंकों पर उन कंपनियों के खिलाफ़ कार्रवाई करने के लिए दबाव बना, जिन्हें NPA घोषित किया गया हो। तब कंपनियों ने ऊर्जा संयंत्रों को एक रूपये प्रति संयंत्र की प्रतीकात्मक कीमत के हिसाब से गुजरात सरकार को देने का प्रस्ताव रखा। बदले में सरकार को कंपनियों की देनदारियों को चुकाना था।

ठीक इसी मौके पर गुजरात सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया, जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के रिटॉयर्ड जज आर के अग्रवाल कर रहे थे। इस समिति का काम आगे के स्थिति को समझते हुए आगे का रास्ता सुझाना था। तीन सदस्यों वाली इस समिति में रिज़र्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर एस एस मुंद्र  और CERC के पूर्व अध्यक्ष प्रमोद देव शामिल थे। इस समिति ने अक्तूबर, 2018 में अपनी रिपोर्ट जमा की। इसकी एक ड्रॉफ्ट कॉपी इस लेख के लेखकों ने सितंबर 2018 को न्यूज़क्लिक में छपी रिपोर्ट में सार्वजनिक की थी।

इस रिपोर्ट में कुछ ऐसे कदमों का एक पैकेज बताया गया, जहां सारा भार दांव लगाने वाली ऊर्जा उत्पादन कंपनियों, उन्हें कर्ज देने वाले बैंकों और ऊर्जा उपभोक्ताओं पर पड़ना था। वह नुकसान जो 2018, अक्तूबर तक हो चुका था, उसका वहन उत्पादनकर्ताओं को करना था, फिर एक फॉर्मूले के ज़रिए ऊर्जा टैरिफ़ को इंडोनेशियाई कोयले की टैरिफ़ कीमत से जोड़ा गया। इसलिए जितना अतिरिक्त टैरिफ़ बढ़ा उसे गुजरात ऊर्जा उपभोक्ता और कर्ज देने वाले बैंकों को वहन करना पड़ा। 

एक दिसंबर, 2018 को पारित हुए सरकारी प्रस्ताव में गुजरात सरकार ने उच्च स्तरीय समितियों की सलाह को मान लिया था।  इसके बाद सरकार, दो निजी उत्पादनकर्ताओं (APML, EPGL) के साथ सप्लीमेंट्री PPAs पर हस्ताक्षर किए। इन्हें बाद में CERC ने भी मान्यता दे दी। पर CGPL का तीसरा SPPA नहीं हो पाया।

यह SPPAs तबसे ही कई कानूनी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। एक मामले में तो GUVNL ने अपनी शर्तों के उल्लंघन का दावा किया। इन समझौतों को कई ऐसे लोग भी चुनौती दे रहे हैं, जिनका कुछ दांव पर लगा हुआ है, जैसा इस लेख के लेखकों ने बताया, यह लोग इन्हें सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2017 में दिए गए फ़ैसले का उल्लंघन मानते हैं।

12 जुलाई को गुजरात सरकार के फ़ैसले से एक दिसंबर 2018 का सरकारी प्रस्ताव खारिज हो गया। जबकि इसी के आधार पर यह SPPAs हुए थे।

गुजरात सरकार का नया आदेश

गुजरात सरकार के नए आदेश की एक कॉपी इस लेख के साथ लगी हुई है। उसमें बताया गया है कि 2018 दिसंबर का सराकारी प्रस्ताव, ‘आयात पर आधारित तीन ऊर्जा प्रोजेक्ट को सहारा देने के लिए जारी किया गया था।’ आदेश में कहा गया:

CGPL के साथ किए गए अतिरिक्त PPA में ‘अभी तक कुछ भी ठोस नहीं हो पाया है।’

EPGL के साथ किए गए अतिरिक्त PPA को गुजरात इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन द्वारा अप्रैल 2020 में मान्यता दी गई थी।   

APML के साथ हुए दो PPAs में से एक पर सुप्रीम कोर्ट में GUVNL ने याचिका लगाई है। GUVNL ने CERC के सामने एक और याचिका लगाई है, जिसमें APML द्वारा कथित उल्लंघन के चलते अतिरिक्त PPA पर दी गई सहमति को वापस लेने की गुहार लगाई गई है। 

राज्य सरकार के आदेश में आगे कहा गया है ‘इंडोनेशिया में जारी बाज़ार प्रचलन और पैमाने में दिखाए गए मूल्यों के हिसाब से कोयले का लेन-देन HBA सूचकांक से नीचे हो रहा है।’ HBA सूचकांक या हर्गा बाटुबारा एक्यूआन सूचकांक, इंडोनेशिया के ऊर्जा और खनिज मंत्रालय द्वारा तय की गई कोयले की कीमत है, जो हर महीने तय की जाती है। इसके ज़रिए इंडोनेशिया के ‘कोयले’ की कीमत को अंतरराष्ट्रीय कोयले की कीमतों के पैमाने पर ढाला जाता है। 

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अब पुराना सरकारी प्रस्ताव ‘अपने उद्देश्यों को हासिल नहीं कर पा रहा है। इसलिए जरूरी है कि अब स्थिति को ध्यान में रखते हुए जनता के हितों की सुरक्षा की जाए।’

गुजरात के आदेश का प्रभाव

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, पुणे स्थित सरकार से मान्यता प्राप्त एक ‘गैर सरकारी संगठन’ “प्रयास’’ के समन्वयक शांतनु दीक्षित कहते हैं कि गुजरात सरकार द्वारा सरकारी प्रस्ताव (GR) को वापस लेने का मतलब है कि इसके आधार पर जो SPPAs हुए थे, अब वो भी रद्द हो जाएंगे। ‘प्रयास’ को  ऊर्जा उपभोक्ता अधिकार समूह के तौर पर सरकारी मान्यता प्राप्त है।

CERS के पूर्व अध्यक्ष और उच्च स्तरीय समिति के सदस्य रहे प्रमोद देव ने न्यूज़क्लिक को बताया, “ऊर्जा टैरिफ़़ तय करने वाली प्रक्रिया सिर्फ़ विक्रेता और खरीददार के बीच समझौता भर नहीं होती, इसमें कई लोगों के हित दांव पर लगे होते हैं, जिनमें उपभोक्ता से लेकर राज्य सरकारें तक शामिल हैं। इसके चलते राजनीतिक मोलभाव इस प्रक्रिया का एक अहम हिस्सा बन जाता है।” 

इस फ़ैसले में किन राजनीतिक पहलुओं पर ध्यान दिया गया है, इसका तो सिर्फ़ अंदाजा ही लगाया जा सकता है। लेकिन जिस तरह का फ़ैसला लिया गया है, उसके नतीज़े तो कुछ और ही कहानी बयां करते नज़र आ रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि फ़ैसले से उपभोक्ताओं का हित होगा, लेकिन असल में इसका बिलकुल उल्टा हो रहा है। यहां उपभोक्ताओं की कीमत पर ऊर्जा उत्पादन करने वाली कंपनियों के हितों की रक्षा की जा रही है।

इसका तर्क ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स (AIPEF) के मुख्य संरक्षक पद्मजीत सिंह बताते हैं। AIPEF ऊर्जा क्षेत्र में काम करने वाले इंजीनियर्स की प्रतिनिधि संस्था है। इसने CERC के SPPAs को सहमति देने वाले फ़ैसले को चुनौती दी है। 

वह बताते हैं, ‘SPPAs में जो ऊर्जा टैरिफ़़ लगाया गया है, दरअसल वह स्थायी ‘कीमत’ और ‘अस्थिर कीमत’ का योग है। इंडोनेशियाई कोयले की कीमत बढ़ने की बात कहकर बढ़ाया गया टैरिफ़ SPPAs में शामिल एक फॉर्मूले पर आधारित है, जो अस्थायी कीमत के लिए बनाया गया है।

इस अस्थिर कीमत को ‘एनर्जी चार्ज रेट (ECR)’ कहा गया है। यह कोयले की कीमत से सीधे संबंद्ध है। सिंह बताते हैं, ‘व्यवहारिक तौर पर, अगर ईंधन की कीमत बढ़ती है, तो इससे ECR सीधा बढ़ जाता है। वहीं कोयले की कीमत घटने पर ECR भी कम हो जाता है।’

अडानी समूह की कंपनी APML और GUVNL के बीच SSPA के मामले पर बातचीत करते हुए वह आगे कहते हैं: “SPPA तय करता है कि अगल ईंधन की कीमत बढ़ती है, तो उसका मुआवज़ा अडानी को मिल जाए। इसमें यह भी है अगर कोयले की कीमत कम हो, तो ECR में भी उसी अनुपात में कमी आए।

SPPAs को 2018 में तय किया गया था, उस दौरान बड़े स्तर पर ईंधन की कीमत बढ़ रही है। इनका उद्देश्य था कि ऊर्जा उत्पादक ज़्यादा ECR के ज़रिए ईंधन का मुआवज़ा मिल जाए। अब हवा उलटी दिशा में बह निकली है और इंडोनेशिया के कोयले की कीमत आधी से भी कम हो गई है। अब यह 52 डॉलर प्रति टन की दर पर आ गया है, यह वही दर है, जिस पर एक दशक पहले इंडोनेशिया कोयला बेचता था।  इन स्थितियों में बिजली उपभोक्ताओं को कम पैसा चुकाना चाहिए था, क्योंकि ECR में कमी आ गई है। इसलिए अगर SPPA फॉर्मूला जारी रहता, तो उसमें ग्राहकों का ही हित होता। इसे जारी रखना चाहिए था, ताकि कोयले की कम कीमतों का फ़ायदा उपभोक्ताओं को मिल पाता।

लेकिन गुजरात सरकार ने बिलकुल उल्टा किया। SPPAs में शामिल फॉर्मूले से लाभ लेने के बजाए, उसने अपने पुराने प्रस्ताव को वापस ले लिया।

SPPAs की शर्तों के हिसाब से अगले कदम में GUVNL, ऊर्जा उत्पादक कंपनियों को SPPAs का ‘टर्मिनेशन नोटिस’ जारी करेगा। यह सरकारी फ़ैसले के हिसाब से होगा।

ऊर्जा उत्पादकों की प्रतिक्रिया

13 जुलाई को तीनों ऊर्जा उत्पादकों के प्रतिनिधियों के पास प्रश्नावलियां भेज दी गई थीं। अडानी, टाटा और एस्सार समूह से सरकारी फ़ैसले पर प्रतिक्रिया मांगी गई थी।  हमने उनसे पूछा कि क्या उन्हें SPPAs के तहत GUVNL से टर्मिनेशन नोटिस मिला या नहीं।

टाटा पॉवर की ओर न्यूज़क्लिक को यह प्रतिक्रिया आई:

“गुजरात सरकार द्वारा एक दिसंबर,2018 के अपने आदेश, जिसमें CGPL, मुद्रा के लिए अतिरिक्त PPA पर हस्ताक्षर किए गए थे, उसे रद्द कर दिया गया है, इस संबंध में हमारी समझ, जो संबंधित प्रशासन से विमर्श पर आधारित है, उसके मुताबिक़, 1/12/2018 को लिया गया सरकारी फ़ैसला एक उच्च स्तरीय समिति के सुझावों पर आधारित था, उसे रद्द करने का सरकारी फ़ैसला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोयले की कम कीमतों के चलते लिया गया है।

लेकिन CGPL के साथ जारी PPA में संशोधन HPC शर्तों के साथ जारी रहेंगे, हालांकि एस्सार पॉवर के मामले में GERC के हालिया आदेश की पृष्ठभूमि में कुछ अतिरिक्त शर्तें भी जुड़ जाएंगी। इसलिए हमारे नज़रिए के मुताबिक़, पुराने सरकारी प्रस्ताव (GR) को रद्द करने से CGPL के साथ अतिरिक्त PPA पर जारी बातचीत के विकास पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

आयातित कोयले की हालिया कम कीमतों और इसके दीर्घकालीन ट्रेंड को देखते हुए कंपनी, HPC शर्तों के सभी पहलुओं का परीक्षण कर रही है।

इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि कानूनी सलाह पर आधारित नज़रिए के तहत गुजरात सरकार को भी लगता है कि आम PPA के बजाए, CGPL के साथ अतिरिक्त PPA पर अंतिम मुहर लगाई जा सकती है। ऐसा ही सभी पांच राज्यों के साथ किया गया है।”

अडानी समूह की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

गुजरात सरकार ने नहीं दी कोई प्रतिक्रिया

13 जुलाई को गुजरात के ऊर्जा मंत्री सौरभभाई पटेल को एक प्रश्नावली भेजी गई थी, जिसकी एक कॉपी अतिरिक्त मुख्य सचिव (ऊर्जा) सुनयना तोमर को भी भेजी गई थी। तोमर, GUVNL की चेयरपर्सन भी हैं। प्रश्नावली में इन दोनों के सामने निम्न प्रश्न रखे गए थे।

जब SPPA फॉर्मूले के हिसाब से निकाली गई कीमतें, मूल PPA की कीमतों से कम थीं, तो गुजरात सरकार ने 1 दिसंबर, 2018 को जारी हुए सरकारी प्रस्ताव (GR) को वापस क्यों ले लिया?

अगर ऊर्जा उत्पादक को ईंधन की ज़्यादा कीमतों के वक़्त मुआवज़े का फ़ायदा दिया जाता है, तो ऊर्जा उपभोक्ता को स्वचलित टैरिफ़ कटौती का फ़ायदा क्यों नहीं मिलना चाहिए? 

गुजरात सरकार के एक दिसंबर, 2018 को दिए आदेश को वापस लिए जाने के गुजरात कैबिनेट के ताजा फ़ैसले से, ऊर्जा उपभोक्ताओं की कीमत पर निजी ऊर्जा उत्पादकों को फ़ायदा पहुंच रहा है, जिनमें APML भी शामिल है। आपकी इस विषय पर क्या टिप्पणी और परीक्षण हैं?

क्या राज्य सरकार के स्वामित्व वाली, राज्य ऊर्जा विकास निगम ने तीनों निजी ऊर्जा उत्पादक कंपनियों- अडानी मुंद्रा पॉवर लिमिटेड (AMPL), कोस्टल गुजरात पॉवर लिमिटेड (टाटा समूह की कंपनी) और एस्सार पॉवर गुजरात लिमिटेड को इन तीनों कंपनियों के साथ अतिरिक्त PPAs को रद्द करने की अपनी मंशा बता दी थी? 

लेख के प्रकाशित होने तक पटेल या फिर तोमर की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है। उनकी ओर से किसी तरह की प्रतिक्रिया आने पर इस लेख को अपडेट कर दिया जाएगा। 

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Gujarat Revokes Power Tariff Hike: Adani, Essar to Gain?

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest