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गुरुग्राम : 'घर में ही रहें' की नसीहत के बीच सरकारी क्रूरता, 600 परिवार किये बेघर

हरियाणा के गुरुग्राम में इस सप्ताह की शुरूआत में 600 परिवारों को नगरपालिका ने बेघर कर दिया। ये सभी परिवार लगभग 25-30 वर्षों से गुरुग्राम के सिकंदरपुर इलाक़े के आरावली क्षेत्र में रहते थे।
600 परिवार किये बेघर

"कहाँ तो तय था चराग़ाँ हरेक घर के लिये,

कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिये"

दुष्यंत कुमार का यह शेर आज की स्थिति पर बिल्कुल सटीक बैठता है। सरकार का लोकसभा चुनाव में बहुत बड़ा वादा था कि जहाँ झुग्गी वहीं मकान, लेकिन इसके विपरीत वर्तमान महामारी के समय में दिल्ली-एनसीआर सहित कई राज्यों में अवैध अतिक्रमण के नाम पर लोगों को बेघर किया जा रहा है। बेघर करके उन्हें सड़कों पर खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर किया जा रहा है।

नया मामला हरियाणा के गुरुग्राम का है जहाँ कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच, इस सप्ताह की शुरूआत में 600 परिवारों को नगरपालिका ने बेघर कर दिया। ये सभी परिवार लगभग 25-30 वर्षों से गुरुग्राम के सिकंदरपुर इलाक़े के आरावली क्षेत्र में रहते थे।

लेकिन अब वहां सिर्फ़ मलबे का ढेर है, घर गिराए जाने के कई दिन बाद भी वहाँ के निवासी उसी मलबे के ढेर पर भारी बारिश में भी जमे हुए हैं। अपने टूटे आशियाने में अपने ज़रूरी सामने को ढूंढ रहे हैं और वो लगातर रोते हुए एक ही बात पूछ रहे हैं, 'अब हम कहाँ जाए' क्योंकि उनके पास पुनर्वास का कोई विकल्प नहीं है। जबकि क़ानूनी रूप से आप सामान्य स्थिति में किसी का भी घर पुनर्वास की व्यवस्था किये बिना नहीं तोड़ सकते हैं, लेकिन गुरुग्राम के अधिकारियों ने तो इस माहमारी के बीच ऐसा किया है। इस कृत्य को सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने सरकारी क्रूरता बताया।

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नगर निगम अधिकारियों द्वारा इस तबाही को 27 जुलाई सोमवार को अंजाम दिया गया था। स्थानीय निवासी 22 वर्षीय राकेश ने न्यूज़क्लिक को बतया इस विध्वंस की सूचना उन लोगों को पहले नहीं दी गई थी। मात्र एक दिन पूर्व एक चेतावनी नोटिस दिया गया जब श्याम झा बस्ती के 20 घरों को तोड़ दिया गया था।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ हरियाणा के गुड़गांव में स्थित सिकंदरपुर आरावली क्षेत्र में कुल 2000 झुग्गियां हैं, जिन्हें धीरे धीरे हटाया जा रहा है।

लोग स्थानीय विधायक से भी मदद मांगने के लिए उनके पास गए लेकिन वहां से भी निराशा ही हाथ लगी। उन्होंने कहा कि ये मामला ऊपर से है और वो इसमें कुछ नहीं कर सकते हैं।

इसके साथ ही स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया की निगम के अधिकारी उनके घरों का सामान भी गाड़ियों में भरकर ले गए।

उन्होंने कहा, “हमें अपना सामान इकट्ठा करने से पहले केवल कुछ घंटे दिए गए थे। कई लोगों ने इस तबाही में अपने जीवन भर की मेहनत कमाई से की बचत, वोटर आईडी और आधार कार्ड जोकि इसी बस्ती के पते पर थे सबकुछ खो दिया है।"

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ऐसी ही एक निवासी प्रीति देवी थीं जिन्होंने बड़ी मुश्किल से इस मलबे के ढेर में से अपना लेबर कार्ड तो ढूंढ लिया। लेकिन शायद वो लंबे समय तक अपना आशियाना न ढूंढ पाएं।

बेघर हो चुके निवासियों में से ज़्यादातर मज़दूर थे, जो घरेलू कामगार और निर्माण मज़दूरी का काम करते थे और जो महामारी के कारण सबसे बुरी तरह प्रभावित थे। इसमें से अधिकतर लोग अपने आगे के जीवन के लिए नई नौकरी की तलाश में थे। क्योंकि बहुत लोगों का रोज़गार छिन चुका है। यहाँ अधिकतर लोग अपनी बचत के सहारे या किसी मदद से अपना जीवनयापन कर रहे थे। इन सभी विषम परिस्थतियों में उनके पास अपने सर पर एक छत थी, जो उन्हें इस महामारी में एक सुरक्षा की भावना प्रदना करती थी। परन्तु अब वो भी नहीं रही और अब वो खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं। इस बीच आसमानी आफ़त भी लगातर बारिश के रूप में उनपर बरस रही है।

राकेश जो एक निजी कंपनी में सुपरवाइजर के तौर पे काम करते थे परन्तु कोरोना के कारण उनका ऑफिस बंद है, उन्होंने कहा, “जब बारिश होती है, तभी हम नहाते हैं। और जब किसी भी ग़ैर सरकारी संगठन या सामाजिक समूह से हमें कुछ मदद होती है तभी हम खाते हैं।”

राकेश सहित अन्य लोगों के घरों को भी ध्वस्त कर दिया गया है। उनपर सरकार की ज़मीन के अतिक्रमण का आरोप था। नगर निगम के सह आयुक्त हरि ओम अत्री, जो ड्राइव का नेतृत्व कर रहे थे, उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "हमने निगम के फ़रवरी के आदेश पर काम किया है जो कि वनभूमि पर ग़ैर-वनकारी गतिविधि (prohibited non-forest activity on forest lands) को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा जारी किया गया था। ”

उन्होंने कहा, "हमें अदालत से ही इस क्षेत्र में अवैध रूप से बने आवास को ख़ाली करने के लिए निर्देशित किया गया है और इसलिए हमने किया।"

एनजीटी के आदेश की एक प्रति मांगने पर, अत्री ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि "नगरपालिका कार्यालय आज (शनिवार) बंद है।" हालांकि, उन्होंने क़बूल किया कि आदेश में निगमों को इसको ख़ाली करने के लिए निश्चित समय के दिशा-निर्देश नहीं थे। अत्री ने कहा, "लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है, कि इसका अनुपालन जल्द से जल्द नहीं किया जाना चाहिए।"

लेकिन, मानवाधिकार कार्यकर्ता और ट्रेड यूनियनों ने निगम की इस सफ़ाई का विरोध किया और अचानक हुए इस तरह के क्रूर विध्वंस पर सवाल खड़े किये।

सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के एसएल प्रजापति ने न्यूज़क्लिक को बताया, "जब हमने अन्य लोगों के साथ निगम अधिकारियों से संपर्क किया तो हमें बताया गया कि यह ज़मीन एक जैव विविधता पार्क विकसित करने के लिए है ख़ाली कराई गई है। इस पार्क का उद्घाटन खुद हरियाणा के मुख्यमंत्री 15 अगस्त को करने वाले हैं।”

इसी तरह का आरोप राकेश ने भी लगाया था, जिनके अनुसार, विध्वंस के दौरान "नगर निगम के अधिकारियों ने हमारे नष्ट किए गए घरों के बचे मलबे को भी ख़ाली करने पर ज़ोर दे रहे थे क्योंकि 12 अगस्त तक किसी नवीनतम पार्क का उद्घाटन होने वाला है।"

अत्री ने उस ज़मीन को जैव विविधता में बदलने की योजना की बात करते हुए, किसी भी आधिकारिक आदेश की विशेषता बताने से इनकार किया। उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता, अगर कोई ऐसी योजना काग़ज़ पर है या नहीं। हो सकता है राज्य सरकार ने ऐसी कोई योजना बनाई हो। हमने [नगर निगम] केवल अदालत के आदेशों का पालन किया है।”

यहाँ के निवासी अपनी गुहार राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (NHRC) के पास ले गए हैं। अपनी शिकायत में, परिवारों ने आरोप लगाया कि इस क्षेत्र में लगभग 2500-3000 लोग रहते हैं, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं, जोकि सभी अब खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं; जबकि स्थानीय प्रशासन किसी प्रकार की मदद नहीं कर रहा है न पुनर्वास का और न ही कोई अन्य विकल्प उपलब्ध कराया गया है।

गुरुवार 30 जुलाई को इस शिकायत को मंज़ूर करते हुए मानवाधिकार आयोग ने अपनी वाचडॉग टीम से इस पर चार सप्ताह में की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट मांगी है। डीआईजी (जांच) को निर्देश दिया गया है कि वो स्पॉट पर जाकर प्रारंभिक जाँच के लिए एक टीम को नियुक्त करें।

रवि कुमार, मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराई है, उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि किसी भी अदालत का आदेश कोरोना माहमारी के विस्तार को रोकने के लिए सरकारी गाइडलाइन को नहीं तोड़ सकती है।

उन्होंने कहा, "मौजूदा स्थितियों को देखते हुए, जबकि सरकार लोगों को घर के अंदर रहने, हाथ धोने और सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए कह रही है, इन परिवारों को अदालत के आदेशों के पालन के लिए सड़कों पर पंहुचा दिया गया है।"

इसके अलावा, इस विध्वंस को अंजाम देने के लिए नियमानुसार प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। रवि ने कहा कि इन परिवारों को कोई जानकारी नहीं दी गई थी, जबकि हरियाणा नगर निगम अधिनियम, 1994 के तहत 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है।

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निवासियों ने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने निष्कासन प्रक्रिया शुरू करने के बाद ही "एक नोटिस" चिपकाया। जिसे न्यूज़क्लिक ने प्राप्त किया है। वह नोटिस, जिसमें न तारीख़ है और वो हस्ताक्षरित था, जिसकी पुष्टि निगम अधिकारी ने की थी, केवल एक यही आधिकारिक संचार था। जिसे नगर निगम द्वारा वहां के निवासियों को सूचित किया गया था।

रवि ने आरोप लगाया, "अधिकारी शहरी इलाक़ों से ग़रीबों को बाहर निकालने के लिए महामारी की स्थिति का फ़ायदा उठा रहे हैं। इसका विरोध करते हुए, निवासियों के एक वर्ग ने बेदख़ली अभियान पर रोक लगाने की मांग करते हुए अदालत का रुख किया है, जिसकी सुनवाई 5 अगस्त को होनी है।"  

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