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ज्ञानवापी केसः इलाहाबाद हाईकोर्ट में एएसआई सर्वेक्षण कराने की याचिका पर सुनवाई पूरी, फ़ैसला सुरक्षित

याचिका में मुस्लिम पक्ष ने प्लेसिस ऑफ वरशिप एक्ट 1991 और वक्फ़ एक्ट 1995 से मामले को बाधित बताया है। कहा कि सिविल कोर्ट वाराणसी का आदेश इन दोनों क़ानूनों के ख़िलाफ़ है।
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उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मामले को लेकर सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी हो गई। ज्ञानवापी परिसर का एएसआई से सर्वेक्षण कराए जाने के बाबत कोर्ट ने करीब एक घंटे तक दोनों पक्षों की बात सुनी और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। इस मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से दाखिल याचिकाओं पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि पक्षकार दो सप्ताह में अपनी लिखित दलीलें कोर्ट में पेश कर सकते हैं। इस बीच अन्य अभिलेख भी दाखिल कराया जा सकता है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि हाईकोर्ट एक पखवाड़े बाद ज्ञानवापी केस में फैसला सुना सकती है।

उल्लेखनीय है कि ज्ञानवापी परिसर को लेकर कई अदालतों में सुनवाई चल रही है। सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस प्रकाश पांडेय की सिंगल बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई।

कोर्ट तय करेगा एएसआई सर्वे

वाराणसी के कोर्ट में साल 1991 में दाखिल केस की पोषणीयता से जुड़ी तीन अर्जियों पर भी हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर रखा है। इस बीच एएसआई सर्वेक्षण के बाबत पिछली सुनवाई के दौरान दाखिल किए गए हलफनामे में कहा गया था कि यदि कोर्ट आदेश देगा तभी वह विवादित परिसर का सर्वेक्षण कर हकीकत जानने का प्रयास करेगा।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था इंतजामिया मसाजिद कमेटी और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने पांच याचिकाएं दाखिल कर रखी हैं। इनमें से तीन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी हो चुकी है। दो याचिकाओं में एक इंतजामिया कमेटी और दूसरी सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल की गई है। याचिका में मुस्लिम पक्ष ने प्लेसिस आफ वरशिप एक्ट 1991 और वक्फ एक्ट 1995 से मामले को बाधित बताया है। कहा कि सिविल कोर्ट वाराणसी का आदेश इन दोनों कानूनों के खिलाफ है।

ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा अर्चना की इजाजत दिए जाने के मामले में मस्जिद की इंतजामिया कमेटी की तरफ से यह याचिका दाखिल की गई है। ऑर्डर 7 रूल 11 के तहत मुस्लिम पक्ष ने वाराणसी जिला कोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। मस्जिद कमेटी ने वाराणसी के जिला जज की कोर्ट से 12 सितंबर को आए फैसले को चुनौती दी थी।

उल्लेखनीय है कि राखी सिंह समेत पांच महिलाओं ने ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा अर्चना की इजाजत मांगी है। इस बाबत उन्होंने वाराणसी की जिला अदालत में पिछले साल याचिका दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर वाराणसी के जिला जज इस मामले की सुनवाई कर रहे थे। मस्जिद कमेटी ने जिला जज की कोर्ट में अर्जी दाखिल कर इस मुकदमे को खारिज किए जाने की अपील की थी। कहा था कि साल 1991 के कानून के तहत इस मुकदमे की सुनवाई नहीं की जा सकती।

वाराणसी के जिला जज ने 12 सितंबर को अपना फैसला सुनाते हुए मुस्लिम पक्ष की आपत्ति को खारिज कर दिया था। जिला जज की अदालत ने राखी सिंह के केस को चलते रहने देने को स्वीकृति दी थी। मसाजिद इंतजामिया कमेटी ने जिला जज के इसी फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

पुराना है ज्ञानवापी विवाद

बनारस में ज्ञानवापी मस्जिद काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में है। मौजूदा समय में मस्जिद का विवाद काफी पुराना अदालती मामला बन गया है। हालांकि साल 1986 में बाबरी मस्जिद का ताला खुलने और उसके बाद राम मंदिर आंदोलन में आई तेज़ी के बीच, अक्सर मथुरा और काशी का नाम उछलता रहा है। बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के करीब तीन दशक पूरे हो चुके है। काशी के साथ मथुरा के मामले अब कई अदालतों में चल रहे हैं। फिलहाल ज्ञानवापी मस्जिद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से नमाज हो रही है।

ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर पहला विवाद साल 1809 में खड़ा हुआ था, जो सांप्रदायिक दंगे में तब्दील हो गया। इसके बाद साल 1936 में एक मामला कोर्ट में दायर किया गया, जिसका निर्णय अगले साल आया। फ़ैसले में पहले निचले कोर्ट और फिर उच्च न्यायालय ने मस्जिद को वक़्फ़ प्रॉपर्टी माना था।

साल 1996 में सोहन लाल आर्य नाम के एक शख्स ने सर्वे की मांग को लेकर बनारस के कोर्ट में अर्ज़ी दाख़िल की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। बाद में सर्वे की मांग उठाने वाली पांच महिला याचिकाकर्ताओं में से एक बनारस की लक्ष्मी देवी हैं जो सोहन लाल की पत्नी हैं। कांग्रेस की नरसिम्हा राव सरकार ने 18 सितंबर, 1991 को उपासना स्थल क़ानून पास किया, जो बाबरी मस्जिद छोड़कर सभी दूसरे धार्मिक स्थलों पर लागू होता है। यह कानून कहता है कि भविष्य में विवादित धार्मिक स्थलों का रूप नहीं बदला जा सकता।

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