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ज्ञानवापी सर्वे का वीडियो लीक होने से पेचीदा हुआ मामला, अदालत ने हिन्दू पक्ष को सौंपी गई सीडी वापस लेने से किया इनकार

अदालत ने 30 मई की शाम सभी महिला वादकारियों को सर्वे की रिपोर्ट के साथ वीडियो की सीडी सील लिफाफे में सौंप दी थी। महिलाओं ने अदालत में यह अंडरटेकिंग दी थी कि वो सर्वे से संबंधित फोटो-वीडियो कहीं सार्वजनिक नहीं करेंगी।
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उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद की सर्वे के वक्त की वीडियो के लीक होने के बाद यह मामला और भी ज्यादा पेचीदा हो गया है। जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने 30 मई को शपथ-पत्र के साथ हिन्दू पक्ष की वादी महिलाओं को सील बंद लिफाफे में सर्वे रिपोर्ट और वीडियो की सीडी सौंपी थी। ये महिलाएं जब मंगलवार को सर्वे रिपोर्ट और वीडियो का लिफाफा लौटाने के लिए कोर्ट लेकर पहुंची तो अदालत ने उनकी अपील खारिज कर दी। अब दोनों मामलों में अगली सुनवाई चार जुलाई को होगी। दूसरी ओर, अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के अधिवक्ता अभयनाथ यादव ने कहा है कि वीडियो-फोटो किसे मिला है यह सभी जानते हैं। जिस किसी की वजह से भी ज्ञानवापी परिसर के फोटो-वीडियो लीक हुए हैं, जांच के बाद उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो।

ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का वीडियो लीक होने के बाद ज्ञानवापी का विवाद और भी ज्यादा गहरा गया है। ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के पास श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा की मांग को लेकर याचिका दायर करने वाली सीता साहू, मंजू व्यास, रेखा पाठक और लक्ष्मी देवी ने जिला जज की अदालत में अर्जी देकर सर्वे रिपोर्ट और वीडियो की डिमांड की थी। अदालत ने 30 मई की शाम सभी महिला वादकारियों को सर्वे की रिपोर्ट के साथ वीडियो की सीडी सील लिफाफे में सौंप दी थी। महिलाओं ने जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में यह अंडरटेकिंग दी थी कि वो सर्वे से संबंधित फोटो-वीडियो कहीं सार्वजनिक नहीं करेंगी। सिर्फ मुकदमे के लिए ही फोटो-वीडियो का इस्तेमाल किया जाएगा। चारों महिलाओं को लिफाफे मिलने के कुछ देर बाद ही ज्ञानवापी के सर्वे के समय का वीडियो लीक हो गया। टीआरपी बढ़ाने की होड़ में खबरिया चैनलों पर वीडियो छा गया।

ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण की रिपोर्ट और वीडियो लीक होने के मामले को लेकर वादी पक्ष की महिलाओं ने मंगलवार को कोर्ट में याचिका दायर करते हुए उन्हें मिले लिफाफों को वापस लेने की मांग की। कोर्ट ने वीडियो लीक मामले की जांच की मांग तो स्वीकार कर ली, लेकिन लिफाफे सीडी लेने इनकार कर दिया। इन महिलाओं ने वीडियो लीक मामले की जांच सीबीआई जांच कराने की मांग की है। जांच कौन एजेंसी करेंगी, इस पर कोर्ट ने अभी कोई निर्णय नहीं किया है। आगामी चार जुलाई को ज्ञानवापी मामले की सुनवाई होगी, तभी वीडियो लीक का मामला भी सुना जाएगा।

अंजुमन इंतजामिया कमेटी मसाजिद कमेटी ने जिला जज की अदालत से न तो सर्वे रिपोर्ट ली थी और न ही कोई वीडियो व फोटोग्राफ। इस बाबत कमेटी के अधिवक्ता ने कोर्ट में कोई अर्जी भी नहीं दी थी। तय शुल्क जमा करने के बाद वादी पक्ष की महिलाओं ने सर्वे रिपोर्ट और वीडियो हासिल किया था। ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के समय बनाए गए कथित वीडियो के वायरल होने के बाद विवाद ज्यादा गहरा गया है। सर्वे का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिससे कोर्ट की गोपनीयता प्रभावित हो रही है। खबरिया चैनल नई-नई कहानियों के साथ इस वीडियो को दिखा रहे हैं।

अंजुमन इंतजामिया कमेटी मसाजिद के अधिवक्ता अभयनाथ यादव ने ‘न्यूज़क्लिक’ से कहा, "ज्ञानवापी मामले में वादी पक्ष को अदालत में हमारी ओर से पेश की जा रही दलीलों का वादी पक्ष को कोई जवाब नहीं सूझ रहा है। जनता को भ्रमित करने के लिए वीडियो को वायरल किया जा रहा है। इसके पीछे एक बड़ी साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता है। सर्वे का वीडियो लीक करना अदालत के आदेश की घोर अवहेलना है। इस मामले की चार जुलाई को सुनवाई होगी तो अदालत में हम अपनी आपत्ति रखेंगे और दोषियों पर कार्रवाई की मांग करेंगे।"

हिंदू पक्ष का दावा

वीडियो लीक होने के बाद 30 मई की शाम हिंदू पक्ष ने एक प्रेस कांफ्रेंस की और कहा, "हमने अभी तक लिफाफा नहीं खोला है। हमसे कहा गया था कि वीडियो सार्वजनिक नहीं किया जाना है। अदालत से मिले वीडियो के क्लिप का लिफाफा भी हमने अभी तक नहीं खोला है। ये कोर्ट के आदेश को चोट पहुंचाने की कोशिश है। मामले को पेचीदा बनाने के लिए ऐसी कोशिश की गई है। इससे हिन्दुओं की भावनाएं जुड़ी हुई हैं।"

हिन्दू पक्ष की ओर से महिला वादकारी मंजू जैन ने कहा, "यह संयोग है कि लिफाफा हम लोग को मिला और उसके बाद हम भोजन करने चले गए। इसी बीच सर्वे के वीडियो को किसी ने वायरल कर दिया तो हम अवाक रह गए। हमें तो समझ में ही नहीं आया कि आखिर कैसे वीडियो लीक हुआ? हमने तो कोर्ट के आदेश का पालन किया है।"

कोर्ट से मिले चारो लिफाफों को मीडिया को दिखाते हुए महिला वादकारियों ने दावा किया, "हम लोगों ने वीडियो-फोटो लीक नहीं किया है। हम सभी वीडियो लीक मामले की जांच सीबीआई से कराना चाहते हैं। जिन चैनलों ने इसे चलाया उनकी भी जांच होनी चाहिए।" 

सवालों के घेरे में कौन?

ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली अंजुमन इंतजामिया कमेटी के वरिष्ठ अधिवक्ता अभयनाथ यादव का कहना है, "हमने पहले ही जैसी आशंका जताई थी वैसा ही हुआ। वीडियो वायरल करने वाले लोग चाहते हैं कि जनमानस को उभार करके देश में अशांति फैलाई जा सके। वीडियो लीक करना और सार्वजनिक करना अदालत के आदेश की भी अवहेलना है। इस बारे में अदालत में आवेदन किया जाएगा, और इस पर लीगल एक्शन लेने की भी कोर्ट से गुहार लगाई जाएगी। हिन्दू पक्ष के लोग भले ही वीडियो लीक मामले में अपना पल्ला झाड़ लें, लेकिन वे आरोपों से बच नहीं सकते। वादी पक्ष की अर्जी पर उनकी पसंद के अधिवक्ता कमिश्नर की नियुक्ति की गई थी। जब पहली बार विवादित स्थल की तस्वीरें लीक हुई तब उन्हें जांच से बाहर कर दिया गया था। अब इस मामले में भी झूठ बोला जा रहा है। यह समाज में जहर उड़ेलने जैसी कार्रवाई है। कोई उच्चस्तरीय जांच एजेंसी ही वीडियो लीक करने वालों को पकड़ सकती है।

क्या है वीडियो में ?  

खबरिया चैनलों के अलावा सोशल मीडिया पर जो वीडियो वायरल हो रहा है उसकी पुष्टि ‘न्यूज़क्लिक’ नहीं करता है। जिस वीडियो को सर्वे का हिस्सा बताया जा रहा है उसमें एक गोल आकृति और दीवारों पर कुछ चिह्न दिख रहे हैं। इसी तरह का जिक्र कोर्ट कमिश्नर की पहली लीक रिपोर्ट में भी किया गया था।

कथित सर्वे रिपोर्ट का वीडियो 30 मई की शाम लीक हुआ जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद का वजूखाना, उसके चारों ओर वादी और प्रतिवादी पक्ष के अधिवक्ताओं के साथ कोर्ट कमिश्नर की टीम नजर आ रही है।

मुस्लिम पक्ष की दलील

ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख के लिए साल 1922 में गठित अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के मौजूदा सचिव मोहम्मद यासीन कहते हैं, "ज्ञानवापी में जो आकृति मिली है वो फव्वारा थी, फव्वारा है और फव्वारा रहेगी। आजादी से पहले 1937 में कोर्ट ने यह मान लिया था कि ज्ञानवापी वक्फ बोर्ड की प्रॉपर्टी है, तो इस पर वितंडा क्यों खड़ा किया जा रहा है? दिल्ली का लालकिला हो अथवा ताजमहल, दोनों मस्जिदों में वजू के लिए हौज मौजूद हैं। गर्मी के दिनों में जब हौज का पानी उबलने लगता था, तो उसे ठंडा करने के लिए फव्वारे की तकनीक विकसित की गई थी। ज्ञानवापी परिसर में जो फव्वारा है,  उसे इसी मकसद से बनाया गया था। ज्ञानवापी में सर्वे के दौरान जब एडवोकेट कमिश्नर की टीम ने उस फव्वारे के छेद में सलाई डाली तो वह 64 सेंटीमीटर अंदर तक चली गई। आप ही बताइए कि क्या शिवलिंग में छेद हो सकता है?"

मस्जिद में सर्वे में मिली हिन्दू धर्म से जुड़ी आकृतियों पर अपना पक्ष रखते हुए यासीन कहते हैं, "हम जो मकान बनाते हैं तो ईंटों पर कहीं स्वस्तिक बना होता है तो कहीं राम-कृष्ण लिखा होता है। किसी इमारत में ऐसा मैटीरियल निकलने का मतलब यह नहीं है कि वह मंदिर हो जाएगा। कोर्ट की सर्वे रिपोर्ट अभी जगजाहिर नहीं हुई है। फिर भी मस्जिद में शिवलिंग और मूर्तियां होने के दुष्प्रचार किए जा रहे हैं। दुनिया भर के लोगों को बेवजह भ्रम में डाला जा रहा है। मेरी सभी से गुजारिश है कि किसी मामले को बेवजह तूल न दिया जाए। मैं चाहता हूं कि काशी के लोग प्यार-मुहब्बत से रहें और गंगा-जमुनी संस्कृति को बरकरार रखें।"

वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, "जिला जज की अदालत ने ज्ञानवापी मामले में दोनों ही पक्षों को सावधानी बरतने और फोटो और वीडियो को गोपनीय रखने की हिदायत दी थी। साथ ही यह भी कहा था कि दोनों ही पक्ष 2100 रुपये की रकम भरकर सर्वे के डाटा की कॉपी ले सकते हैं। इस आदेश के बाद सिर्फ हिंदू पक्ष ने ही यह डाटा कलेक्ट किया था। ऐसे में शक की सुई तो उनकी तरफ ही जाएगी। इस मामले में कोर्ट कमिश्नर और फोटोग्राफर भी शक के दायरे में आ सकते हैं। सभी को पता है कि पहली मर्तबा फोटोग्राफ कैसे लीक हुए। उस समय फोटो लीक मामले की जांच नहीं कराई गई थी। यह मामला बेहद संवेदनशील है। ऐसे में कोर्ट निष्पक्षता कायम रखते हुए जांच करानी चाहिए क्योंकि यह न्यायिक प्रक्रिया के अलावा जनहित से जुड़ा मामला है। वीडियो के फैलने से समाज में कुछ भी हो सकता है। देखने की बात यह होगी कि कोर्ट क्या निर्णय लेता है? समय की मांग है कि इसकी सूक्ष्म और निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। न्यायिक प्रक्रिया में अभी वक्त लगेगा और इस तरह की घटनाओं का रिपीट होना चिंता पैदा करती हैं।" 

पक्षकार बनने की होड़

ज्ञानवापी केस में सुनवाई के बीच हिन्दू पक्ष की ओर से अदालतों में याचिकाएं दायर करने की होड़ सी मच गई है। इस मामले में कई संगठन पक्षकार बनने में जुट गए हैं। 30 मई 2022 को पांच संगठनों ने अलग-अलग याचिकाएं दायर की, जिनमें निर्मोही अखाड़ा, श्री काशी सत्संग मंडल, केंद्रीय ब्राह्मण महासभा के अलावा विश्व हिंदू सेना की ओर से अरुण पाठक और लार्ड विशेश्वर की ओर से अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी ने इस मामले में कोर्ट में प्रार्थना पत्र देकर पक्षकार बनाने की मांग की है। इस मामले में अब तक 11 याचिकाएं कोर्ट में डाली जा चुकी हैं। खास बात यह है कि ये सभी याचिकाएं जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश और सिविल कोर्ट (सीनियर डिवीजन) रवि कुमार दिवाकर की अदालतों में पेश की गई हैं। निर्मोही अखाड़े के महामंत्री राजेंद्र दास ने श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन पूजन का अधिकार हिंदुओं को देने की मांग खुद को पक्षकार बनाने की मांग की है। इनका दावा है कि सनातन धर्म की रक्षा सिर्फ अखाड़ा परिषद ही करती है।

स्पेशल सीजेएम की कोर्ट में विश्व वैदिक सनातन संघ के प्रमुख जितेंद्र सिंह विसेन के प्रार्थना-पत्र पर 30 मई को सुनवाई हुई, जिसमें आरोप लगाया गया था कि ज्ञानवापी परिसर स्थित काशी विश्वेश्वर के मंदिर के ढांचे को अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी और उनके फॉलोअर्स नुकसान पहुंचा रहे हैं। ऐसे में मसाजिद कमेटी के जॉइंट सेक्रेटरी एसएम यासीन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर विवेचना का आदेश दिया जाए। स्पेशल सीजेएम की कोर्ट ने जितेंद्र सिंह विसेन की याचिका को खारिज कर दिया है। ज्ञानवापी को मामले कौन सुनने योग्य है अथवा नहीं, इस मामले पर 30 मई को मुस्लिम पक्ष ने दो घंटे तक अपनी दलीलें पेश की। बाद में जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने मुकदमे की सुनवाई के लिए अगली तिथि 4 जुलाई निर्धारित कर दी।

दूसरी ओर, ज्ञानवापी परिसर में मिले कथित शिवलिंग की पूजा और वहां मुस्लिमों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने संबंधी मुकदमे की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट महेंद्र कुमार पांडेय की अदालत ने आठ जुलाई की तिथि नियत की है। गर्मी की छुटि्टयों (1 से 30 जून तक) में सिविल मुकदमों की सुनवाई नहीं होती है। इसके चलते ज्ञानवापी मामले से जुड़े दोनों मामलों में सुनवाई के लिए जुलाई के पहले पखवारे में तारीख तय की गई हैं।

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