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हरियाणा : मिड डे मील वर्कर्स का प्रदर्शन, 28 से हड़ताल पर जाने की चेतावनी

सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू) के नेतृत्व में हुए इस प्रदर्शन में वर्कर्स ने सरकार पर अनदेखी का आरोप लगाते हुए खट्टर सरकार के ख़िलाफ़ जमकर नारेबाज़ी भी की।
Mid-Day Meal

हरियाणा में मिड डे मील वर्कर्स एक बार फिर आंदोलन और हड़ताल को मज़बूर हैं। बीते लंबे समय से मानदेय न मिलने के चलते इन वर्कर्स को कई आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जिसके चलते ये बार-बार सड़क पर उतरने को मज़बूर हैं। इसी कड़ी में बीते मंगलवार, 18 अप्रैल को प्रदेशभर में इन वर्कर्स ने करीब 6 महीने के बकाया वेतन मानदेय व अन्य मांगाें काे लेकर जिला सचिवालयों के बाहर प्रदर्शन कर शिक्षा अधिकारियों को ज्ञापन सौंपे। साथ ही राज्य सरकार को ये चुनौती भी दी कि अगर 10 दिनों के अंदर उनकी मांगे नहीं मानी जाती तो वे 28 अप्रैल से हड़ताल पर जाने को मजबूर होंगे।

बता दें कि हरियाणा के अलग-अलग जिलों में मिड डे मील वर्कर्स बीते काफी समय से अपने बकाया मानदेय को जारी करने साथ ही मानदेय बढ़ाने को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। इनकी अन्य मांगों में न्यूनतम मानदेय 26 हजार रुपये लागू करने से लेकर मिड डे मील वर्कर्स को पक्का करने, और पीएफ, ईएसआई बोनस लागू करने आदि की मांगे शामिल हैं।

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के नेतृत्व में राज्य के विभिन्न जिलों में हुए इस प्रदर्शन में वर्कर्स ने सरकार पर अनदेखी का आरोप लगाते हुए खट्टर सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाज़ी भी की। इस प्रदर्शन को सर्व कर्मचारी संघ, वन मजदूर यूनियन के साथ ही विद्यालय अध्यापक संघ का भी समर्थन मिला।

क्या है पूरा मामला?

हरियाणा में बीते लंबे समय से मिड डे मील वर्कर्स का प्रोटेस्ट जोर पकड़ रहा है। इन प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि प्रशासन इनसे निर्धारित काम की बजाय माली, चपरासी और सफाई कर्मचारी का अतिरिक्त काम भी ले रहा है, लेकिन जब मानदेय भुगतान की बात आती है, तो सरकार इनके लिए फंड ही नहीं जारी करती। बीते छह महीने से इन्हें कोई पैसा नहीं मिला है, जिसके चलते इन्हें घर गुजर-बसर में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
प्रदर्शन में शामिल कई मीड डे मील वर्करों का कहना है कि वो समाज के सबसे गरीब हिस्सों से काम करने आते हैं। फिर भी कमरतोड़ महंगाई होने के बावजूद केवल 7000 रुपये में जैसे-तैसे गुजारा करने को मजबूर हैं। लेकिन अब सरकार उन्हें ये सात हजार रूपए भी नहीं दे रही। ऐसे में उनके पास हड़ताल पर जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।

सीटू के हरियाणा महासचिव जय भगवान ने न्यूज़क्लिक को बताया कि हरियाणा में मीड डे मील वर्कर्स काफी समय से अपनी सबसे बड़ी और जरूरी मांग मानदेय को लेकर प्रदर्शन कर रहे है। बीते सितंबर-अक्तूबर से इन कर्मियों को मानदेह नहीं मिला है, ऐसे में इनके पास सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के अलावा और कोई चारा नहीं है।

कई ज्ञापनों के बाद भी सरकार की चुप्पी

जय भगवान बताते हैं कि सीटू ने इन मिड डे मील वर्कर्स की ओर से सभी संबंधित विभागों में ज्ञापन भी दिए, कई अधिकारियों को पत्र भी लिखे गए बावजूद इसके सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। कभी किसी विभाग से कोई स्पष्ट जवाब या आश्वासन अभी तक इन कर्मियों को नहीं मिला है, जिसके चलते इन आर्थिक और मानसिक परेशानियां बढ़ती जा रही हैं।

झज्जर में मीडिया से बातचीत करते हुए इन मिड डे मील वर्करों के प्रदर्शन का नेतृत्व कर रही प्रधान सरोज दुजाना ने आरोप लगाया कि पिछले कई महीनों से मिड डे मील वर्करों को वेतन नहीं मिल रहा है। यदि सरकार के अधिकारियों को समय पर वेतन न मिले तो उनका एक दिन भी जीवन जीना मुहाल हो जाएगा। लेकिन मिड डे मील वर्करों को कोई पूछने वाला नहीं है। ये इनके साथ भेदभाव है, जो सरकार और उसके अधिकारी खुलेआम कर रहे हैं।
वहीं जींद के जिला प्रधान कैलाशो ने कहा कि वर्कर्स को पिछले छह माह से वेतन नहीं मिला है। इसके अलावा इनकी की छंटनी भी की जा रही है। वर्करों को निशुल्क मेडिकल की कोई सुविधा नहीं है। ऐसे में इनके आर्थिक स्थिति खराब हो रही है, जो इनके साथ घोर नाइंसाफी है।

उन्होंने सरकार से मांग की कि सभी मिड डे मील वर्कर्स का बकाया मानदेय तुरंत जारी करवाया जाए। इसके साथ ही वर्कर्स का बढ़ाया गया मानदेय प्रत्येक महीने की सात तारीख तक मिल जाए। बच्चों के खाना खाने के बाद किसी भी मिड डे मील वर्कर्स को स्कूल में रहने का कोई दबाव न बनाया जाए। सरकार स्कूलों को मर्ज करना और उन्हें बंद करने का कदम वापस ले।

अधिकारों की अनदेखी और सरकारी तंत्र द्वारा शोषण

प्रदर्शन के दौरान वर्कर्स ने भी सरकार के खिलाफ नाराज़गी जाहिर करते हुए अपने अधिकारों की अनदेखी और सरकारी तंत्र द्वारा शोषण का आरोप लगाया। उनका कहना है कि सरकार एक तो उन्हें मानदेय कम देती है, ऊपर से कई-कई महीने और कर देती है, जिसके चलते उनका गुजर-बसर मुश्किल हो जाता है। कई कर्मियों का कहना है कि उनके परिवार की जिम्मेदारी भी उनपर है, जो इस मानदेय के न मिलने से निर्वाह करने में असमर्थ हो जाती हैं। यही नहीं यहां कई ऐसी महिला कर्मी भी हैं, जो सालों साल से इसी पेशे में हैं और उन्हें रह-रह कर छटनी का डर भी सताता रहता है, क्योंकि ये कोई पक्का काम नहीं है।

गौरतलब है कि मिड डे मील केंद्र सरकार की योजना है, जिसका खर्च केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर 60और 40 फीसदी के अनुपात में क्रमश: करती है। इस योजना का उद्देश्य स्कूल में पढ़ने वाले छोटे बच्चों को खाने के लिए पौष्टिक भोजन प्रदान करना है। इस योजना की शुरुआत 15 अगस्त 1995 को गई थी और सबसे पहले इसे 2000 से अधिक ब्लॉक के स्कूलों में लागू किया गया था। इसकी सफलता के बाद साल 2004 में यह योजना पूरे देश के सरकारी स्कूलों में लागू की गई थी। फिलहाल ये योजना देश के सभी सरकारी स्कूलों में चल रही है, जो कई बार विवादों में भी रही है। हालांकि फिर भी समय-समय पर तमाम राज्यों के मिड डे मील वर्कर्स सड़कों पर अपने मानदेय की शिकायत को लेकर प्रदर्शन करते रहे हैं।

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