Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

हरियाणा : सफाई कर्मचारियों की मांगें अनसुनी, क्या चुनाव में दिखेगा असर?

सफाई कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष बलबीर ने कहा कि इस सरकार ने कर्मचारियों का जितना शोषण और नुकसान किया है, शायद ही इससे पहले की किसी सरकार ने किया हो।
haryana safai karamchaari

हरियाणा के फरीदाबाद में एक सफाई कर्मचारी नरेश जिसकी उम्र 34 वर्ष है, खुश था कि उसे सैकड़ों अन्य सफ़ाईकर्मियों के साथ शहर के नगर निगम के अधिकारियों द्वारा 2 अक्टूबर के दिन बुलाया गया था ,जो महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छ भारत मिशन का भी लक्ष्य वर्ष है।

इस तरह बहुत सारे कारण थे ठीक चुनाव से पहले, कि सफाई कर्मचारियों के काम की तारीफ की जाये, हालाँकि, यह कितना बेतुका है कि सफाई कर्मचारियों को ट्रैक सूट दिया जा रहा था, जबकि शहर के सीवेज में कर्मचारी बिना कोई सुरक्षा उपकरण के उतरते हैं। इस बात की कई रिपोर्ट भी पुष्टि करती हैं। हालांकि सर्दी की वर्दी मिले, यह कर्मचारी यूनियनों की काफी समय से मांग थी लेकिन उनकी मांग तो सुरक्षा उपकरणों की भी है।

नरेश ने न्यूज़क्लिक को बताया "हम स्थाई कर्मचारी हैं, हमें मास्क और दस्ताने और झाड़ू दिया गया है क्योंकि कचरा इकट्ठा करने और उनका निपटारा करना हमारा काम है।"

IMG-5409_0.JPG

उन्होंने कहा कि सर्दियां आ रही हैं इसलिए ट्रैक सूट अब हमें प्रदान किए गए हैं।

यह सब बहुत ही मनमोहक लगता है कि हरियाणा राज्य में सफाई कर्मचारियों की आवाज़ सुनी जाती है। लेकिन सच्चाई कुछ और ही है, 'गैस चैम्बर्स' में मौत हो रही है और मैन्युअल स्क्वेंजर की मौत के आंकड़े को मिटाना भी इतना आसान नहीं है। हरियाणा में इस वर्ष के पहले छह महीनो में ही ग्यारह सफाई कर्मचारियों की मौत सीवर में हुई है ।

लेकिन सरकार कैसे मौत के आंकड़े पर अपनी नज़र फेर कर उस बदलने में लगी हुई है, क्या वे खुद ही सफाई कर्मचारी की मौत का जिम्मेदार नहीं हैं? क्या गैस चैम्बर्स में प्रवेश करने वालों को सुरक्षा उपकरण प्रदान करने की तुलना में गिफ्ट के रूप में ट्रैक सूट अधिक महत्वपूर्ण है?

सोमपाल झिनझोटिया जो फरीदाबाद के नगर के सफाई कर्मचारी संघ के महासचिव हैं उन्होंने इन मौतों पर कहा 'वे ठेका श्रमिकों हैं, पक्के कर्मचारी तो सीवर में उतरने से मना कर देते हैं ,लेकिन वो ठेका वाले से नाली साफ करने मना करेंगे तो उन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।'

इस शब्द का बहुत गहरा अर्थ है, इस देश की सबसे अधिक जोखिम वाली नौकरी के लिए एक समझ प्रदान करता है,जिस काम ने असंख्य लोगों को मार डाला है। इन मौतों के पीछे कारण केवल जाति की पहचान नहीं थी, बल्कि ठेकेदारों की शर्तें भी हैं।

फरीदाबाद नगर निगम द्वारा वर्तमान में 2,500 से अधिक सफाई कर्मचारी काम करते हैं। जिनमें से लगभग 1400 ठेका के आधार पर कर रहे हैं, जबकि 297 आउटसोर्स कर रहे हैं। हमें यह आंकड़ा सफाई कर्मचारी संघ ने दिया है।

400 लोगों की आबादी पर एक सफाई कर्मचारी है जो बहुत ही कम है यानी 400लोगों की गंदगी को साफ करने के लिए एक आदमी कितना सही है? ये खुद समझा जा सकता है और ये हालत राज्य के सबसे अच्छे निकाय की है।

शहर में जो मैन्युअल स्कैवन्जर (मैला ढोने वाले) काम करते है, उनमें अधिकांश ठेका मजदूर हैं। इन श्रमिकों की खराब सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि और उनके काम का ठेकेदार ही जिम्मेदार है, जो उन्हें सीवर में प्रवेश करने से मना करने की अनुमति नहीं देता है, तब भी जब उनके पास कोई सुरक्षा उपकरण नहीं होते हैं। इसके अलावा, ठेकाकरण के वजह से उनकी श्रम व्यवस्था इस तरह की है, उन्हें मजदूरों के हक़ लिए बने कानून के तहत भी कोई सुरक्षा नहीं मिलती है।

photo 2nd.jpg

ग्रामीण सफ़ाईकर्मियों की स्थिति इससे भी बदतर है। हरियाणा राज्य में, लगभग11,000 ग्रामीण सफाई कर्मचारी हैं, जो ग्राम पंचायतों द्वारा नियोजित हैं। अनुमानों के अनुसार, हर 2000 लोगों के लिए केवल एक सफाई कर्मचारी है। जो बहुत ही कम है। सफाई कर्मचारियों का यह सेट पैर्टन है जो हमें जातिगत उत्पीड़न के सबसे क्रूर रूपों को दिखता है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी मौतें के बाद भी मुआवज़े के राशि उनके आश्रितों को नहीं मिलती है,

जो कि द प्रोहिबिशन ऑफ़ एम्प्लॉयमेंट फॉर मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड रिहैबिलिटेशन एक्ट, 2013 (Prohibition of Employment as Manual Scavengers and Their Rehabilitation Act, 2013) के अनुसार उनका हक़ है ।

मैन्युअल स्कैवन्जर की बात करें तो आइए एक नजर डालते हैं आधिकारिक डेटा पर। अक्टूबर 2017 तक, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने ग्यारह राज्यों में 13,384 मैन्युअल स्कैवन्जर की पहचान की थी। इस संख्या में अगले साल चार गुना बढ़ गया, जब 12 राज्यों में 53,226मैन्युअल स्कैवन्जर की संख्या हो गई। हरियाणा राज्य में 1,040 हाथ से मैला ढोने वालों को पहचान की गई है।

हालांकि, दिलचस्प बात यह है कि राज्य सरकार ने ऐसी प्रथाओं के अस्तित्व को ही नकार दिया है ।

इसके अलावा, राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (NCSK) ने दर्ज किया था हरियाणा में 1993 से जुलाई 2018 तक 70 मौतें हो चुकी हैं। हालांकि, देश में एकमात्र एजेंसी है जो मैनुअल स्कैवेंजिंग से होने वाली मौतों के रिकॉर्ड रखती है, उसने खुद माना है की वो संख्या को कम करके आंक रही है। इन मौतों सबसे महत्वपूर्ण कारण निजी ठेकेदारों को सीवर और नालियों की सफाई के काम का ठेका देने का प्रचलन है।

अपनी इन्ही समस्याओं को लेकर , इस साल अगस्त के महीने में तीन दिन की हड़ताल हरियाणा राज्य में सफ़ाई कर्मचारियों के सभी वर्गों द्वारा देखी गई। जबकि गर्मीं में सफाई कर्मचारियों की ये हड़ताल एक महीने से अधिक चली थी। सभी मांगों में से, एक श्रम के अनुबंध को समाप्त करना था जिसने स्वच्छता कार्यकर्ता को मैनुअल स्कैवेंजिंग करने के लिए मजबूर किया है।

45 वर्षीय संघ के एक अन्य सदस्य सुरेश कुमार जिन्होंने हड़ताल में भाग लिया उन्होंने न्यूज़क्लिक को बतया कि"हमारी मांगें तब स्वीकार कर ली गईं" लेकिन पूरी नहीं हुई है "हालांकि, हरियाणा के ग्रामीण हिस्सों में सफ़ाई कर्मचारियों के लिए किसी भी सुविधा का मिलना अभी भी एक दूर का सपना लग रहा है।"

इस हड़ताल में स्वच्छता कर्मचारी भी शामिल थे, जो एक निजी कचरा प्रबंधन कंपनी इको ग्रीन एनर्जी द्वारा नियोजित हैं। यह चीन की एक कंपनी है, इस हड़ताल में भाग लेने के कारण करीब 400 कर्मचारियों को काम पर से हटा दिया गया। उसके बाद से कार्यकर्ता फरीदाबाद के नगर निगम कार्यालय के सामने धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। इको ग्रीन एनर्जी कंपनी साल 2017 में नगर निगम द्वारा एक अनुबंध के द्वार लाई गई थी।

न्यूज़क्लिक ने 52 वर्षीय प्रेम पाल से मुलाकात की, जो एक इको ग्रीन एनर्जी के कर्मचारी थे, जिन्हें नई दिल्ली में आयोजित मज़दूरों के अधिवेशन में मुलाकत हुई थी। उन्हें भी काम से बाहर कर दिया गया है, उन्होंने अधिवेशन में भाग लिया, उम्मीद है कि उनकी पीड़ा प्रशासन सुनेगा। इसी उम्मीद में ये और इनके जैसे सैकड़ो कर्मचारी लगातर धरने पर बैठे हैं।

प्रेम पाल ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "हरियाणा में सभी सफाई कर्मचारी एक समान नहीं हैं," उनके शब्द, उस काम के बारे में बता रहे थे जो वर्षों से जातिगत उत्पीड़न का परिचायक है। उनके शब्द कुछ सच्चाई कहते हैं कि कुछ कर्मचारियों को ट्रैक सूट के सहारे लुभाया जा रहा है, जबकि दूसरों को सुनने को भी तैयार नहीं है , उन्हें यह सब केवल वोट पाने जुगत से ज्यादा कुछ नहीं लगता है।

इस तरह हम कई कर्मचारियों से मिले जो कह रहे थे कि उन्होंने हमेशा बीजेपी को वोट दिया लेकिन उनका इसबार बीजेपी से मोह भंग होता दिखा। एक ने बातचीत के दौरान चीख कर कहा "मोदी से बैर नहीं, लेकिन खट्टर की ख़ैर नहीं "आपको याद हो इस तरह के नारे राजस्थान चुनाव में भी सुनाई दिए थे कि "मोदी से बैर नहीं, वसुंधरा की ख़ैर नहीं", और वहां सत्ता परिवर्तन हो गया।

सफाई कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष बलबीर ने कहा कि इस सरकार ने कर्मचारियों का जितना शोषण और नुकसान किया है, शायद ही इससे पहले की किसी सरकार ने किया हो। कर्मचारियों को किये गए एक भी वादे को पूरा नहीं किया, चुनाव से पहले कहा था सबको पक्का करेंगे लेकिन किस को किया? कहा दो लाख नौकरी हर साल मिलेगी लेकिन अब खुद छाती पीटकर बेशर्म की तरह कह रहे हैं कि हमने 18हज़ार नौकरी दी।

उन्होंने कहा की पूरा प्रदेश सरकार से नाराज़ है लेकिन कर्मचारी वर्ग सबसे अधिक नाराज़ है, सरकार लगातर निजीकरण और ठेकाकरण जैसे कदम उठा रही है। इसका जबाब देने के लिए हम भी तैयार है!

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest