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ग्राउंड रिपोर्ट: स्वास्थ्य व्यवस्था के प्रचार में मस्त यूपी सरकार, वेंटिलेटर पर लेटे सरकारी अस्पताल

एक तरफ़ योगी सरकार स्वास्थ्य व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाने का प्रचार कर रही है। वहीं दूसरी तरफ़ की तस्वीरें कुछ और ही कह रही हैं। आइए उत्तर प्रदेश की राजधानी में स्थित बड़े सरकारी अस्पतालों की ग्राउंड रिपोर्ट लेते हैं..
govt hospital

एक तरफ मुख्यमंत्री योगी, उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभाओं में 100 बेड वाले संसाधनों से युक्त अस्पताल बनाने और प्रत्येक विकास खंड में 25 से 30 बिस्तर वाले CHC, PHC उपलब्ध कराने की बात कह रहे हैं, जिसका प्रचार बड़े जोर शोर से सरकार कर रही है लेकिन दूसरी तरफ जनता कह रही है कि पहले से जो मौजूद सरकारी अस्पताल हैं पहले उनकी तो अंदरूनी व्यवस्था सुधार दीजिए, कहीं पूरी दवायें ही उपलब्ध नहीं हैं तो कहीं मरीजों की फर्जी बीमारी की रिपोर्ट बना कर अंदरूनी सांठ गाँठ से प्राइवेट  अस्पताल रेफर कर दिया जा रहा है। तो कहीं पर्चा बनवाने और स्ट्रेचर खोजने में इतनी देर लग जा रही है कि मरीज एम्बुलेंस में दम तोड़ दे रहा है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी में स्थित बड़े सरकारी अस्पतालों की तस्वीर क्या है? आइए इस हक़ीक़त से सामना करते हैं:-

पहली तस्वीर..... अस्पताल परिसर में ही मौजूद एंबुलेंस में मरीज की मौत....

कुछ दिन पहले, राजधानी लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी(केजीएमयू) से एक विचलित करने वाली खबर आती है कि मरीज के परिवार वालों द्वारा पर्चा बनवाने और स्ट्रेचर तलाशने में ही दो घंटे लग जाने के कारण एम्बुलेंस में ही तड़प तड़प कर एक मरीज ने दम तोड़ दी।

48 वर्षीय सुल्तानपुर निवासी अजय कुमार किडनी संक्रमण और खून की कमी से ग्रसित थे, उनके परिवार वाले उनकी जान बचाने के लिए 30 अप्रैल को के जीएमयू के ट्रामा सेंटर पहुँचे लेकिन सरकारी अस्पताल की अव्यवस्था ने अजय की जान ले ली। अजय को यदि समय पर इलाज मिल गया होता, तो शायद वह आज अपने परिवार के बीच होते। मृतक के परिवार के मुताबिक वह अपने मरीज की जान बचाने के लिए अस्पताल में उन्हे भर्ती कराने के लिए एक जगह से दूसरी जगह दौड़ लगाते रहे, स्ट्रेचर खोजते रहे, मरीज देखने की विनती करते रहे, लेकिन किसी ने मरीज को नहीं देखा और अन्ततः अजय ने दम तोड़ दिया।

बहरहाल इस घटना के तूल पकड़ने पर उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने दोषियों को न बख्शने की बात कहते हुए ट्रामा सीएमएस से जवाब तलब तो किया है और लापरवाही में शामिल डॉक्टर, नर्सों के खिलाफ़ सख्त कार्रवाई की बात तो कही है लेकिन सवाल फिर घूम कर वहीं आ जाता है कि इन सरकारी अस्पतालों में यह बद इंतजामी आखिर कैसे खत्म होगी? जबकि अपने दूसरे कार्यकाल में प्रवेश करने वाली भाजपा सरकार पिछले पाँच वर्षों से हर मौक़े पर यह कहने से नहीं चूकती कि उसके कार्यकाल में स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ है। साथ ही सरकारी अस्पतालों की स्थिति पहले से बेहतर हुई है जबकि हालात यह है कि पर्चा बनवाने से लेकर स्ट्रेचर तक के लिए तीमारदारों को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। जिसके चलते न केवल गंभीर मरीजों को समय पर इलाज मिलना मुश्किल हो रहा है, बल्कि मरीज अपनी जान देकर खामियाज़ा चुका रहे हैं। केजीएमयू में हुई यह कोई पहली दर्दनाक घटना नहीं, इससे पहले भी इस तरह की घटनायें घटित हो चुकी हैं। जहाँ हमने देखा कि मरीज ने एंबुलेंस में ही तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया, जबकि बेबस तीमारदारों की कागजी कार्यवाही पूरी नहीं हो पाती है। 

पिछले साल भी केजीएमयू से एक खबर आती है कि एम्बुलेंस में ही तड़प कर एक व्यक्ति ने दम तोड़ दिया। मृतक के परिवार वालों के मुताबिक कोरोना जाँच के नाम पर तीन घंटे उन्हें रोका गया और इसी बीच उनके मरीज ने दम तोड़ दिया। KGMU के ट्रॉमा सेंटर में 400 बेड और 150 के करीब स्ट्रेचर हैं। प्रदेश भर के तमाम जिलों से यहां मरीज लाएं जाते हैं। मरीजों का दबाव अधिक होने से यहां स्ट्रेचर पर ही मरीजों को भर्ती कर इलाज करा जाता है।

बस्ती जिले से आई गुड़िया देवी से जब मुलाक़ात हुई तो उन्होंने बताया कि उनकी माँ यहाँ भर्ती है, सिर में असहनीय दर्द के बाद उन्हें  यहाँ भर्ती कराया गया है। वे बताती हैं मरीज का कोई भी टेस्ट, एक्स-रे आदि होना हो तो उन्हें खुद स्ट्रेचर का इंतज़ाम कर अपने मरीज को टेस्ट रूम तक ले जाना पड़ता है। वे कहती हैं पहले ऐसा सिस्टम नहीं था लेकिन अब शायद स्टाफ की कमी के चलते ऐसा कर दिया हो, गीता के मुताबिक अक्सर स्ट्रेचर मिलने में देरी हो जाती है, क्योंकि उसमें पहले से कोई न कोई मरीज रहता है।

हालांकि ऐसी अव्यवस्था राजधानी लखनऊ के सभी सरकारी अस्पतालों में देखने को मिल रही है। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल अस्पताल में तीन साल बीत जाने के बाद भी आधुनिक उपकरणों से लैस माड्यूलर ओटी नहीं बन पाई है, जबकि अस्पताल प्रबंधक का कहना था कि मार्च में किसी भी हाल में मरीजों के बेहतर इलाज के लिए माड्यूलर ओटी शुरू कर दी जाएगी।  माड्यूलर ओटी न होने की वजह से कई ऐसे आपरेशन हैं जो अस्पताल में नहीं हो पा रहे हैं, जो मरीज और उनके तीमारदारों के लिए खासा परेशानी का सबब बना हुआ है।

तस्वीर दूसरी......अस्पतालों में सक्रिय दलाल गैंग

‌यूँ तो सरकारी अस्पतालों में दलालों के सक्रिय होने की घटनाएँ कोई नई नहीं, जो मरीजों के परिवार वालों को बेहतर और सस्ता इलाज का लालच देकर निजी अस्पताल पहुंचाने का काम करते हैं। अपने मरीज की जान बचाने के लिए परिवार भी इनके चंगुल में फँस जाता है, लेकिन जरा सोचिये क्या ये दलाल अपने बूते अस्पतालों में पैर जमाये हुए हैं? 

हाल ही में  डा. राम मनोहर लोहिया संस्थान के एक डॉक्टर और दलाल का एक ऐसा चैट वायरल हुआ जिसने इस दलाली के धंधे की पोल खोल कर रख दी। इस चैट में संस्थान की इमरजेंसी में तैनात एक डाक्टर की दलाल के साथ वेंटिलेटर के मरीज को शिफ्ट करने की बात सामने आई है। इस घटना के बाद संस्थान भले ही हरकत में आया हो, लेकिन लोहिया संस्थान की इमरजेंसी डॉक्टर की ये पहली चैट वायरल नहीं हो रही है। इससे पहले बीते दो महीने पहले भी इमरजेंसी में ड्यूटी करने वाले एक डॉक्टर की फोटो वायरल हुई थी। जिसमें डॉक्टर के बगल में कुर्सी पर निजी अस्पताल का दलाल बैठा था। दलाल इमरजेंसी में आकर रेजिडेंट डॉक्टर के साथ बैठकर मरीजों को निजी अस्पताल भेजता था। अब सवाल यह है कि वायरल हुई इस चैट के बाद मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री (स्वास्थ्य मंत्री) का ठोस एकशन क्या होगा, यह देखना लाज़िमी है और ऐसे वक्त में जब उप मुख्यमंत्री लखनऊ से लेकर विभिन्न जिलों के सरकारी अस्पतालों का औचक निरीक्षण कर वहाँ पर्ची बनाने से लेकर, साफ सफाई रखने, एंबुलेंस सेवा दुरुस्त करने, मरीजों को बेहतर ईलाज मुहैया कराने, अस्पताल में ही दवायें उपलब्ध कराने जैसी चरमराई व्यवस्था दुरुस्त करने का आदेश दे रहे हैं और मुख्यमंत्री भी सरकारी कार्यालयों से दलालों को दूर रखने की बात सख्त लहजे में कह रहे हैं।

इस घटना के बाद लोहिया संस्थान जाने पर हमारी मुलाक़ात विभिन्न जिलों से आये ऐसे लोगों से हुई जो या तो खुद मरीज थे या मरीज के तीमारदार। अस्पताल में दलाल किस तरीके से काम करते हैं, इस सवाल के जवाब में अपना नाम सार्वजनिक न करने की शर्त पर गोंडा जिले से अपनी माँ का चेकअप कराने आये युवक सनी (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि दो साल पहले उनकी माँ की एंजियोप्लास्टी हुई थी, तो उन्हें हर छः महीने में चेकअप के लिए आना पड़ता है। 

सनी कहते हैं- “आप खुद देखिये अस्पताल के अंदर बाहर मरीजों की कितनी भीड़ है।” वे कहते हैं- लोहिया संस्थान के इमरजेंसी में मरीजों का तांता लगा रहता है। हर रोज कई मरीजों को जगह की कमी का हवाला देकर अन्य सरकारी अस्पतालों में रेफर भी किया जाता है और जब रेफर की बात आती है तो यहीं निजी एंबुलेंस चालकों और दलालों की भूमिका बढ़ जाती है। निजी एंबुलेंस चालक और दलाल अस्पताल परिसर के आस पास से लेकर इमरजेन्सी के बाहर घूमते रहते हैं जो मरीजों को निजी अस्पताल ले जाने का लालच देते हैं। 

केजीएमयू का हाल भी इससे कुछ अलग नहीं । बीती पाँच मई की देर रात एक एंबुलेंस चालक ट्रामा सेंटर से मरीज को बेहतर इलाज दिलाने के नाम पर निजी अस्पताल ले जा रहा था। जहां कर्मचारियों ने उसे दबोच लिया। मौके पर पहुंची पुलिस से दलाल ने मरीज को निजी अस्पताल ले जाने की बात कुबूली जिसका एक वीडियो भी तेजी से वायरल हुआ है। फैजाबाद से रेफर होकर एक मरीज को ट्रामा सेंटर लाया गया था। देर रात करीब दो बजे मरीज की भर्ती की प्रक्रिया चल रही थी। इस दौरान एक एंबुलेंस चालक ने मरीज के परिवार से बातचीत कर आइटी चौराहा स्थित निजी अस्पताल में इलाज कराने की बात कही तो परेशान परिवार वाले इस पर राजी हो गए जैसे ही चालक मरीज को ले जाने लगा कर्मचारियों ने उसे शक के आधार पर पकड़ लिया। दलाल से पूछताछ कर कर्मचारियों ने पुलिस को सूचना दी।

तीसरी तस्वीर.... बीमारी कुछ नहीं और रिपोर्ट बना दी गई पीलिया की

लखनऊ के बीकेटी स्थित बरगदी गाँव की रहने वाली लक्ष्मी की कुछ दिनों से तबीयत खराब चल रही थी। वह बताती हैं-शरीर में थोड़ी सूजन हो गई थी और भूख भी नहीं लगती थी। इस परेशानी के चलते उसने अपने क्षेत्र के राम सागर मिश्र, सौ शैय्या सरकारी अस्पताल में दिखाने का फैसला किया। लेकिन वह तब भारी चिन्ता में आ गई जब अस्पताल की रिपोर्ट में उसे पीलिया से ग्रसित दिखा दिया गया। लक्ष्मी कहती हैं- अस्पताल आये कुछ मरीजों के परिवार से उसे यह पता चला कि उनके मरीज की बीमारी की गलत रिपोर्ट बना दी गई है तो उसे भी अपनी रिपोर्ट को लेकर कुछ शक हुआ तो  उसने एक बार बाहर पैथालॉजी में टेस्ट कराने का फैसला लिया, क्योंकि वह भी अपनी रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं थी। लक्ष्मी के मुताबिक उसने जब दूसरी जगह टेस्ट करवाया तो पीलिया नहीं निकला यानी अस्पताल की रिपोर्ट गलत थी।

अपनी सही और गलत रिपोर्ट दिखाती लक्ष्मी

बीकेटी क्षेत्र की रहने वाली सामजिक कार्यकर्ता कमला गौतम कहती हैं अस्पताल द्वारा गलत रिपोर्ट बना देने की यह कोई पहली घटना  नहीं, उन्हें जानकारी मिली है कि ऐसे कई और मरीज है जिन्हें गलत रिपोर्ट दे दी जा रही है।

इन्दौराबाग की रहने वाली गौरी के साथ हुई घटना का जिक्र करते हुए वे बताती हैं कि अपने बेहतर इलाज के लिए जब गौरी इस सौ शैय्या अस्पताल आई, लेकिन यहाँ कि जाँच रिपोर्टों ने उसके और उसके परिवार के लोगों के होश उड़ा दिये। रिपोर्ट में हीमोग्लोबिन की मात्रा 22 प्रतिशत, टीएलसी काउंट 3400, प्लेटलेट्स मात्र 37000 दिखाईं, जो काफी चिन्ता की बात थी। 

इस रिपोर्ट के आधार पर उन्हें बड़े अस्पताल में रेफर कर दिया गया। कमला जी के मुताबिक गौरी ने भी जब हक़ीक़त जानने के लिए एक प्रतिष्ठित लैब में दोबारा अपनी जाँच करवाई तो सब कुछ सामान्य निकला। कमला कहती हैं- इस तरह की गैर जिम्मेदाराना रिपोर्ट आये दिन इस अस्पताल में देखने को मिल रही हैं, जिसका स्वास्थ्य मंत्री को त्वरित संज्ञान लेना चाहिए, जबकि इन दिनों वे सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था और कार्य प्रणाली का जायजा लेने के लिए अस्पतालों का औचक निरीक्षण कर रहे हैं जबकि अस्पताल प्रशासन  पैथालॉजिस्ट की लापरवाही कहकर पल्ला झाड़ रहा है। वह आगे कहती हैं- यह केवल लापरवाही का मामला नहीं, चीजें कहीं ओर इशारा कर रही हैं। उनके मुताबिक ऐसे ही तो मरीज दलाल के चंगुल में फँस जाते हैं जो उन्हें बेहतर इलाज का लालच देकर निजी अस्पताल ले जाते हैं। कमला जी के मुताबिक जल्दी ही उनका एक प्रतिनिधि मण्डल प्रदेश के उपमुख्यमंत्री उर्फ स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक जी से मिलेगा। 

सरकारी अस्पतालों का यह सूरत-ए-हाल साफ बता रहा है कि जब लखनऊ के बड़े बड़े नामी अस्पतालों का यह हाल है, तो छोटे कस्बों, गाँव में स्थित स्वास्थ्य केन्द्रों और जिला अस्पतालों का क्या हाल होगा? इन दिनों प्रदेश के उप मुख्यमंत्री का अस्पतालों में औचक निरीक्षण खूब चल रहा है और वे भी मान रहे हैं कि और व्यवस्था सुधार की जरूरत है। इसमें दो राय नहीं कि औचक निरीक्षण एक बेहतर कदम जरूर है लेकिन कहीं जाकर वहाँ व्यवस्था दुरुस्त करने का आदेश भर दे देना काफी नहीं उस आदेश का पालन हो भी रहा है या नहीं, या हुआ भी तो किस स्तर तक, इसकी एक ईमानदार जाँच भी जरूरी है।

(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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