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नारदा स्टिंग मामले में सीबीआई ‘बीजेपी की मदद और ममता के लिए मुसीबत’ कैसे बन रही है?

चुनाव परिणाम के बाद गिरफ़्तारियों को लेकर जहां तृणमूल कांग्रेस बीजेपी पर निशाना साध रही है, तो वहीं इसी मामले में अभियुक्त बीजेपी नेता मुकुल रॉय और शुभेंदु अधिकारी पर कोई कार्रवाई न करने को लेकर सीबीआई की चुप्पी भी सवालों के घेरे में है।
नारदा स्टिंग मामले में सीबीआई ‘बीजेपी की मदद और ममता के लिए मुसीबत’ कैसे बन रही है?
Image courtesy : India Today

नारदा स्टिंग मामले को लेकर पश्चिम बंगाल का बवाल सुर्खियों में है। सोमवार, 17 मई को सीबीआई द्वारा ममता बनर्जी सरकार के दो मंत्रियों समेत टीएमसी के तीन बड़े नेताओं की गिरफ्तारी ने बंगाल की राजनीति में एक अलग ही भूचाल ला दिया है। एक ओर तृणमूल कांग्रेस विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के 15 दिन के भीतर हुई इन गिरफ़्तारियों को राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता रही है तो वहीं इसी मामले में अभियुक्त बीजेपी नेता मुकुल रॉय और शुभेंदु अधिकारी पर कोई कार्रावाई न करने को लेकर सीबीआई की भूमिका भी सवालों के घेरे में है।

आपको बता दें कि 2014 में हुए इस स्टिंग ऑपरेशन के दौरान मुकुल रॉय और शुभेंदु अधिकारी तृणमूल कांग्रेस के सदस्य थे लेकिन बाद में वो बीजेपी में शामिल हो गए। नंदीग्राम से ममता बनर्जी को मात देने वाले शुभेन्दु अधिकारी नई विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं तो वहीं मुकुल रॉय विधायक चुने गए हैं, फिलहाल वे बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद पर भी काबिज़ हैं।

क्या है नारदा स्टिंग ऑपरेशन का पूरा मामला?

अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ इस साल पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से ठीक पहले यानी जनवरी में सीबीआई ने इन गिरफ्तार नेताओं के खिलाफ राज्यपाल से मुकदमा चलाने के लिए अनुरोध किया था। चुनाव परिणामों के बाद ठीक पांच दिन के भीतर ही एजेंसी को इसकी मंजूरी भी मिल गई, जिसके बाद सीबीआई ने मंत्री फिरहद हकीमसुब्रत मुखर्जीविधायक मदन मित्रा और कोलकाता के पूर्व मेयर शोभन चटर्जी को गिरफ्तार कर लिया है। हालांकि ये मामला पिछले 2016 विधानसभा चुनावों से पहले का है। तब चुनावों में बीजेपी ने इसे सबसे बड़ा मुद्दा बनाया थालेकिन इसका कोई खास असर चुनावों में दिखा नहीं। शायद यही कारण था कि इस बार चुनावों में ये मुद्दा करीब-करीब गायब रहा। लेकिन ममता बनर्जी की नई सरकार बनते ही सीबीआई ने नारदा घोटाले को एक बार फिर चर्चा में ला दिया।

2016 विधानसभा चुनाव में नारदा स्टिंग बना था सबसे बड़ा मुद्दा!

2016 पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मार्च के महीने में नारदा न्यूज़ के सीईओ मैथ्यू सैमुएल ने एक स्टिंग वीडियो जारी किया था। इस स्टिंग में टीएमसी नेताओं को कथित तौर पर एक काल्पनिक कंपनी का पक्ष लेने के लिए नकद रुपये लेते हुए कैमरे पर देखा गया था। वीडियो में स्टिंग ऑपरेटर एक कंपनी के प्रतिनिधि के तौर पर तृणमूल कांग्रेस के सात सांसदोंतीन मंत्रियों और कोलकाता नगर निगम के मेयर शोभन चटर्जी को काम कराने के एवज़ में मोटी रकम देते नज़र आ रहा था। स्टिंग के सामने आने के बाद बंगाल की राजनीति में हलचल मच गई।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने सीबीआई को नारदा न्यूज डॉट कॉम पोर्टल पर प्रसारित टेपों की प्रारंभिक जांच करने का आदेश दिया था। इस आदेश को पश्चिम बंगाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 2017 में चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को राहत देने से इनकार कर दिया था और जरूरत पड़ने पर सीबीआई को प्राथमिकी दर्ज करने के लिए एक महीने का समय भी दिया था।

बीजेपी नेता मुकुल रॉय और शुभेंदु अधिकारी गिरफ़्तार क्यों नहीं?

मामला आगे बढ़ा अप्रैल2017 में सीबीआई ने कथित आपराधिक साजिश और भ्रष्टाचार के लिए ने इस केस में कुल 12 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। स्टिंग के वक़्त मुकुल रॉय तृणमूल से राज्यसभा सदस्य थे। रॉय 2017 में तृणमूल छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे। मीडिया खबरों के मुताबिक रॉय के ख़िलाफ़ तो कार्रवाई के लिए सीबीआई को अब तक स्वीकृति नहीं मिली है।

वहीं शुभेंदु अधिकारी के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं होने की वजह लोकसभा अध्यक्ष की मंज़ूरी है, जो अब तक मिल नहीं पाई है। उनके खिलाफ सीबीआई ने मुक़दमा चलाने के लिए स्वीकृति का अनुरोध 6 अप्रैल2019 को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को भेजा था। क्योंकि स्टिंग ऑपरेशन के वक्त शुभेंदु अधिकारी लोकसभा सांसद थे। इसलिए शुभेंदु पर केस चलाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष की अनुमति अनिवार्य थी।

मालूम हो कि दिसंबर, 2020 में बीजेपी ने अपने चैनल से शुभेंदु अधिकारी के स्टिंग वाला वीडियो डिलीट कर दिया था। जिसके बाद बीजेपी की भारी आलोचना हुई थी।

द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के दिशा-निर्देशों में ऐसा कहा गया है कि अनुरोध करने के चार महीने के भीतर मंजूरी दी जानी चाहिए या खारिज कर दी जानी चाहिए। सीवीसी के नवंबर 2020 तक के रिकॉर्ड के मुताबिकपिछले साल दिसंबर में बीजेपी में शामिल हुए अधिकारी और टीएमसी के तीन सांसदों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सीबीआई का अनुरोध ही ऐसा एकमात्र अनुरोध है जो स्पीकर के कार्यालय में लंबित है।

कहीं के नहीं रहे शोभन चटर्जी!

बहरहाल, सोमवार को हुई गिरफ्तारियों में एक नाम टीएमसी के पूर्व नेता शोभन चटर्जी का भी है, जो तब कलकत्ता नगर निगम के मेयर हुआ करते थे। चटर्जी 2019 में बीजेपी में शामिल हुए थे पर विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी का टिकट नहीं दिए जाने के बाद उन्होंने मार्च में पार्टी छोड़ दी।

एफ़आईआर के मुताबिक़उन्हें कथित तौर पर स्टिंग ऑपरेटर से 4 लाख रुपये नकद लेते हुए दिखाया गया था और अगले दिन उन्हें और 1 लाख रुपये का भुगतान करने का वादा किया था। स्टिंग में ये भी दिखाया गया था कि उन्होंने स्टिंग ऑपरेटर को आश्वासन दिया था कि वह चुनाव के बाद कम से कम एक बार ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बंदोपाध्याय के साथ उनके लिए एक मीटिंग की व्यवस्था करेंगे।

क्या ममता सरकार कोरोना को लेकर गंभीर है?

गौरतलब है कि सोमवार को अपने नेताओं को सीबीआई दफ़्तर ले जाए जाने के बाद बड़ी संख्या में तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और समर्थकों ने सीबीआई दफ़्तर के सामने घंटों प्रदर्शन किया। खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी सीबीआई के दफ़्तर गईं और वहाँ कई घंटे रहीं। सीबीआई दफ़्तर से निकलते वक़्त उन्होंने पत्रकारों से कहा "अदालत फ़ैसला करेगी"। पार्टी सांसद पार्थ चटर्जी ने कहा है कि तृणमूल अपने नेताओं की गिरफ़्तारी को अदालत में चुनौती देगी।

महामारी के बीच बंगाल के चुनाव तो खत्म हो गए लेकिन हिंसा की खबरों ने दिल दहला दिया। भारतीय जनता पार्टी के एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाने के बावजूद ममता बनर्जी ज़बरदस्त बहुमत के साथ लगातार तीसरी बार सत्ता में लौटी। लेकिन राज्य में शांति अभी भी नहीं लौटी है। कोरोना का कहर जारी है लेकिन पहले चुनावी रैलियां और अब घूसखोरी के मामले में जैसी प्रदर्शन की तस्वीरें सामने आईं वो कोविड-19 को बढ़ावा देने वाली हैं। भारी संख्या में बिना मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के खड़े लोग राजनीति से इतर इस भयानक बीमारी के दौर अपनी और अपने परिवार वालों की मौत को बुलावा दे रहे हैं, जिसे लेकर ममता सरकार कतई गंभीर नहीं दिखाई दे रही।

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