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कोरोना संकट के दौर में ख़रीफ़ फ़सलों की एमएसपी में हुई बढ़ोतरी से किसानों को कितना फ़ायदा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेतृत्व में केंद्रीय कैबिनेट ने सोमवार को आने वाले ख़रीफ़ सीजन के लिए फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में मामूली बढ़ोतरी की है। कोरोना संकट के चलते पहले से ही बेहाल किसानों के लिए यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।
ख़रीफ़
Image courtesy: KrishiJagran

दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार ने फ़सल वर्ष 2020-21 के लिये धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सोमवार को 53 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 1,868 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया। इसके साथ ही तिलहन, दलहन और अनाज की एमएसपी दरें भी बढ़ायी गयी हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल द्वारा लिया गया यह फैसला किसानों को यह तय करने में मदद करेगा कि दक्षिण पश्चिम मानसून के आगमन के साथ वे किन ख़रीफ़ फ़सलों की बुआई करें। धान मुख्य ख़रीफ़ फ़सल है और इसकी बुआई पहले ही शुरू हो चुकी है। अभी तक 35 लाख हेक्टेयर के रकबे में धान की बुआई की जा चुकी है।

मौसम विभाग ने जून-सितंबर की अवधि के दौरान सामान्य मानसून का अनुमान लगाया है। नकदी फ़सलों में चालू फ़सल वर्ष (जुलाई से जून) के लिये कपास (मध्यम रेशे) का समर्थन मूल्य 260 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर 2020-21 के लिये 5,515 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया। यह पिछले साल 5,255 रुपये प्रति क्विंटल था। कपास (लंबे रेशे) का समर्थन मूल्य 5,550 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5,825 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया।

क्या कह रही है सरकार?

सरकार ने कृषि व संबंधित गतिविधियों के तीन लाख रुपये तक के अल्पावधि के कर्ज के भुगतान की तिथि भी अगस्त तक बढ़ा दी। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद संवाददाताओं को बताया, "कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिश के आधार पर, मंत्रिमंडल ने 14 ख़रीफ़ फ़सलों के एमएसपी बढ़ाने को मंजूरी दी है। धान (सामान्य) का एमएसपी को इस वर्ष के लिये बढ़ाकर 1,868 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है।’’

उन्होंने कहा कि धान के समर्थन मूल्य में वृद्धि से किसानों को लागत पर 50 प्रतिशत लाभ सुनिश्चित होगा।

तोमर ने कहा कि 2018-19 में एमएसपी निर्धारित करने का नया सिद्धांत घोषित किया था। इसके तहत एमएसपी को लागत के कम से कम डेढ़ गुने के स्तर पर रखा जाता है। फ़सल वर्ष 2020-21 के लिये एमएसपी की घोषणा इसी सिद्धांत के आधार पर की गयी। ग्रेड ए (बारीक किस्मत के) धान का एमएसपी 1,835 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1,888 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है।

मंत्री ने कहा कि धान की सामान्य किस्त के उत्पादन की लागत 1,245 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि बारीक किस्त के धान की लागत 1,746 रुपये प्रति क्विंटल है। इन दोनों का एमएसपी लागत से 50 प्रतिशत अधिक है। अनाज में बाजरे का प्रति क्विंटल एमएसपी 150 रुपये बढ़ाकर 2,150 रुपये, रागी 145 रुपये बढ़ाकर 3,295 रुपये प्रति क्विंटल तथा मक्के का एमएसपी 90 रुपये बढ़ाकर 1,850 रुपये किया गया है।

ज्वार संकर और ज्वार मालदंडी का एमएसपी 70-70 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाकर क्रमश: 2,620 रुपये और 2,640 रुपये तथा मक्के का 1,850 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया। दलहनों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये उड़द का एमएसपी 300 रुपये बढ़ाकर छह हजार रुपये, तुअर (अरहर) का 200 रुपये बढ़ाकर छह हजार रुपये और मूंग का 146 रुपये बढ़ाकर 7,196 रुपये प्रति क्विंटल किया गया।

सरकार ने खाद्य तेलों के आयात को कम करने के लिये तिलहनों के एमएसपी में इस बार तेज वृद्धि की। सोयाबीन (पीला) का एमएसपी 170 रुपये बढ़कर 3,880 रुपये प्रति क्विंटल, सूरजमुखी बीज का 235 रुपये बढ़कर 5,885 रुपये प्रति क्विंटल और मूंगफली का 185 रुपये बढ़कर 5,275 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है। इनके अलावा, रामतिल (निगरसीड) का एमएसपी 755 रुपये बढ़ाकर 6,695 रुपये और तिल के बीज का 370 रुपये बढ़ाकर 6,855 रुपये प्रति क्विंटल किया गया।

सरकार के अनुसार, एमएसपी में की गयी इस वृद्धि के बाद किसानों को लागत की तुलना में बाजरा की खेती में 83 प्रतिशत, उड़द की खेती में 64 प्रतिशत, अरहर की खेती में 58 प्रतिशत और मक्के की खेती में लागत से 53 प्रतिशत अधिक आय प्राप्त होने के अनुमान हैं। इनके अलावा अन्य फ़सलों पर किसानों को लागत से कम से कम 50 प्रतिशत अधिक आय के अनुमान हैं।

क्या कह रहे किसान संगठन?

अखिल भारतीय किसान सभा ने मोदी सरकार पर किसानों के साथ कोरोना संकट में भी धोखाधड़ी करने का आरोप लगाते हुए कहा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के मामले में इस वर्ष भी इसने अपना किसान विरोधी चेहरा दिखा दिया है।

उनका कहना है कि लागत तो दूर, महंगाई की भी भरपाई यह समर्थन मूल्य नहीं करता है।

अखिल भारतीय किसान सभा के छत्तीसगढ़ इकाई के अध्यक्ष संजय पराते ने कहा है कि देश के विभिन्न राज्यों ने धान उत्पादन का जो अनुमानित सी-2 लागत बताया है, उसका औसत 2310 रुपये प्रति क्विंटल बैठता है और स्वामीनाथन आयोग के अनुसार धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3465 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए, जबकि केंद्र सरकार ने समर्थन मूल्य 1868 रुपये ही घोषित किया है, जो कि स्वामीनाथन आयोग की तुलना में मात्र 54% ही है। वास्तव में धान उत्पादक किसानों को सी-2 लागत मूल्य से 442 रुपये प्रति क्विंटल और 20% कम दिया जा रहा है। मोदी सरकार का यह रवैया सरासर धोखाधड़ीपूर्ण और किसानों को बर्बाद करने वाला है।

किसान सभा नेताओं ने कहा कि धान के इस वर्ष घोषित समर्थन मूल्य में पिछले वर्ष की तुलना में औसतन 2.36% की ही वृद्धि की गई है, जबकि पिछले वर्ष यह वृद्धि 3.2% से ज्यादा थी। महंगाई वृद्धि की खुदरा औसत दर 7% को गणना में लें, तो वास्तव में तो किसानों को पिछले वर्ष घोषित समर्थन मूल्य तक देने से इंकार किया जा रहा है, जो महंगाई के मद्देनजर 1953 रुपये बैठता है। इस प्रकार किसानों को धान के वास्तविक सी-2 समर्थन मूल्य से 1597 रूपये और 46% कम दिए जा रहे हैं। यही कारण है कि खेती घाटे का सौदा हो गई है और किसान क़र्ज़ में फंसकर आत्महत्या करने के लिए बाध्य हो रहे हैं।

किसान सभा के नेताओं ने अपने बयान में रेखांकित किया है कि कोरोना संकट के समय जब गर्मी के मौसम की खेती-किसानी बर्बाद हो चुकी है और प्राकृतिक आपदा की मार और आजीविका को हुए नुकसान की भरपाई करने से यह सरकार इंकार कर रही है, समर्थन मूल्य के मामले में मोदी सरकार का ऐसा कृषि और किसान विरोधी रवैया भारतीय खेती की कमर तोड़ कर रख देगा। केंद्र सरकार की किसानविरोधी नीतियों के कारण किसानों की आय में मात्र 0.44% की दर से वृद्धि हो रही है और इस दर से किसानों की आय दुगुनी करने में कम-से-कम 150 साल लग जायेंगे!

वहीं, भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने हाल में घोषित सीजन 2020-21 के लिए निर्धारित ख़रीफ़ फ़सलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को किसानों के साथ धोखा बताते हुए कहा कि एक बार फिर सरकार ने महामारी के समय आजीविका के संकट से जूझ रहे किसानों के साथ भद्दा मजाक किया है।

उन्होंने कहा, 'यह देश के भंडार भरने वाले और खाद्य सुरक्षा की मजबूत दीवार खडी करने वाले किसानों के साथ धोखा है। यह वृद्धि पिछले पांच वर्षों में सबसे कम वृद्धि है। सरकार ने कृषि विश्वविद्यालयों की लागत के बराबर ही समर्थन मूल्य घोषित नहीं किया है। किसानों को कुल लागत सी2 पर 50 प्रतिशत जोड़कर बनने वाले मूल्य के अलावा कोई मूल्य मंजूर नहीं है। सरकार महंगाई दर नियंत्रण करने के लिए देश के किसानों की बलि चढ़ा रही है। जबकि इसी किसान के दम पर सरकार कोरोना जैसी महामारी से लड़ पायी है। इस महामारी में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति का नहीं मांग का संकट बना हुआ है।'

वो आगे कहते हैं कि सरकार द्वारा धान का समर्थन मूल्य वर्ष 2016-17 में 4.3 प्रतिशत, 2017-18 में 5.4 प्रतिशत, 2018-19 में 12.9 प्रतिशत, 2019-20 में 3.71 प्रतिशत वृद्धि की गयी थी। वर्तमान सीजन 2020-21 में यह पिछले पांच वर्षों की सबसे कम 2.92 प्रतिशत वृद्धि है। सरकार द्वारा घोषित धान के समर्थन मूल्य में प्रत्येक कुन्तल पर 715 रुपये का नुकसान है।

ऐसे ही एक क्विंटल फ़सल बेचने में ज्वार में 631 रुपये, बाजरा में 934 रुपये, मक्का में 580 रुपये, तुहर/अरहर दाल में 3603 रुपये, मूंग में 3247 रुपये, उड़द में 3237 रुपये, चना में 3178 रुपये, सोयाबीन में 2433 रुपये, सूरजमुखी में 1985 रुपये, कपास में 1680 रुपये, तिल में 5365 रुपये का नुकसान है।

साथ ही उन्होंने कहा कि भाकियू मांग करती है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को भी कानून बनाया जाए। न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर खरीद करने वाले व्यक्ति पर अपराधिक धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाए।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ) 

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