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'एक देश, एक कृषि बाज़ार' जैसे कैबिनेट के फैसलों से किसानों का कितना भला?

कृषि क्षेत्र में बड़े सुधारों को मंजूरी देते हुए केंद्र सरकार ने गत बुधवार को तीन अध्यादेशों के मसौदों को कैबिनेट में मंजूरी दी है। इन्हें किसानों के हित में बताया गया है जबकि किसान और किसान संगठन इसे खेती-किसानी के ख़िलाफ़ बता रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार किसानों के नाम पर निजी प्लेयर्स को फ़ायदा पहुंचा रही है।
किसानों का कितना भला
Image courtesy: kamaikaro

दिल्ली: केंद्र सरकार ने किसानों के लिए बुधवार को कई बड़े फ़ैसले किए हैं। दरअसल कृषि क्षेत्र में बड़े सुधारों का नाम देते हुए केंद्र सरकार ने तीन अध्यादेशों के मसौदों को कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दी है। इसके तहत देश का किसान अपनी उपज को अब कहीं भी बेच सकेगा। कृषि उत्पादों को आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के दायरे से बाहर कर दिया गया है। साथ ही कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग यानी ठेका खेती को कानूनी दर्जा मिल गया है।

इन फैसलों के बाद प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने कहा कि किसानों की दशकों पुरानी मांग पूरी हुई है और एक देश, एक कृषि बाज़ार का सपना साकार होगा।

मोदी ने अपने ट्वीट में कहा, ‘केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में कई बड़े और महत्वपूर्ण निर्णय किए गए। फसलों की खरीद-बिक्री को लेकर सभी बंदिशों को हटा दिया गया है, जिससे किसानों की दशकों पुरानी मांग पूरी हुई है। अब अन्नदाता देश में कहीं भी अपनी उपज को बेचने के लिए स्वतंत्र होगा।’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरकार के फैसलों से किसानों को उत्पादन से पहले ही मूल्य आश्वासन की भी गारंटी उपलब्ध होगी। कृषि सेवाओं के अनुबंध से न केवल किसानों को अत्याधुनिक जानकारी मिलेगी, बल्कि उन्हें तकनीक और पूंजी की सहायता भी मिलेगी। इसके जरिए अन्नदाताओं का सशक्तिकरण और संरक्षण भी संभव होगा।

क्या फ़ैसले लिए गए?

प्रधानमंत्री कार्यालय के बयान में कहा गया है कि केन्‍द्रीय मंत्रिमंडल ने आवश्‍यक वस्‍तु अधिनियम में ऐतिहासिक संशोधन को मंजूरी दी। यह कृषि क्षेत्र में आमूलचूल बदलाव लाने और किसानों की आय बढ़ाने की दिशा में एक दूरदर्शी कदम है। बयान में कहा गया है कि सरकार ने नियामकीय व्‍यवस्‍था को उदार बनाने के साथ ही उपभोक्‍ताओं के हितों की रक्षा भी सुनिश्चित की है।

संशोधन के तहत यह व्‍यवस्‍था की गई है कि अकाल, युद्ध, कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि और प्राकृतिक आपदा जैसी परिस्थितियों में इन कृषि‍ उपजों की कीमतों को नियंत्रित किया जा सकता है। हालांकि, मूल्‍य श्रृंखला (वैल्‍यू चेन) के किसी भी प्रतिभागी की स्‍थापित क्षमता और किसी भी निर्यातक की निर्यात मांग इस तरह की स्‍टॉक सीमा लगाए जाने से मुक्‍त रहेगी।

इसमें कहा गया है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कृषि उपज वाणिज्य एवं व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020 को मंजूरी दी। इससे किसानों के लिए एक सुगम और मुक्त माहौल तैयार हो सकेगा जिसमें उन्हें अपनी सुविधा के हिसाब से कृषि उत्पाद खरीदने और बेचने की आज़ादी होगी।

इसके अलावा केंद्रीय मंत्रिमंडल ने "द फार्मर्स एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेस ऑर्डिनंस, 2020" पर भी मुहर लगा दी है। इस अध्यादेश की मदद से किसान और प्रोसेसिंग यूनिट और कारोबारियों के बीच करार आधारित खेती को बढ़ावा मिलेगा।

मंत्रिमंडल के फ़ैसले की घोषणा करते हुए, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, 'मौजूदा एपीएमसी मंडियां काम करना जारी रखेंगी। राज्य एपीएमसी कानून बना रहेगा लेकिन मंडियों के बाहर, अध्यादेश लागू होगा।'

उन्होंने कहा कि पैन कार्ड वाले किसी भी किसान से लेकर कंपनियां, प्रोसेसर और एफपीओ अधिसूचित मंडियों के परिसर के बाहर बेच सकते हैं। खरीदारों को तुरंत या तीन दिनों के भीतर किसानों को भुगतान करना होगा और माल की डिलीवरी के बाद एक रसीद प्रदान करनी होगी। उन्होंने कहा कि मंडियों के बाहर व्यापार करने के लिए कोई 'इंस्पेक्टर राज' नहीं होगा। मंत्री ने कहा कि मंडियों के बाहर बाधा रहित व्यापार करने में कोई कानूनी बाधा नहीं आएगी।

बताते चलें कि मौजूदा समय में, किसानों को पूरे देश में फैली 6,900 एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समितियों) मंडियों में अपनी कृषि उपज बेचने की अनुमति है। मंडियों के बाहर कृषि उपज बेचने में किसानों के लिए प्रतिबंध हैं।

क्या कहना है किसान संगठनों का?

अखिल भारतीय किसान सभा ने कोरोना संकट से अर्थव्यवस्था को उबारने के नाम पर कृषि क्षेत्र में मंडी कानून को खत्म करने, ठेका खेती को कानूनी दर्जा देने और खाद्यान्न को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से बाहर करने के मोदी सरकार के फ़ैसले को इस देश की खेती-किसानी और खाद्यान्न सुरक्षा और आत्म निर्भरता के ख़िलाफ़ बताया है।

छत्तीसगढ़ किसान सभा के अध्यक्ष संजय पराते ने कहा कि ठेका खेती का एकमात्र मकसद किसानों की कीमत पर कॉर्पोरेट पूंजी की लूट और मुनाफे को सुनिश्चित करना है। ऐसे में लघु और सीमांत किसान, जो इस देश के किसान समुदाय का 75% है और जिनके पास औसतन एक एकड़ जमीन ही है, पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा और उसके हाथ से यह जमीन भी निकल जायेगी। यह नीति देश की खाद्यान्न आत्म-निर्भरता और सुरक्षा को भी खत्म कर देगी।

उन्होंने कहा कि साम्राज्यवादी देश और बहुराष्ट्रीय कंपनियां छोटे और विकासशील देशों में खाद्यान्न पर-निर्भरता को राजनैतिक ब्लैकमेल का हथियार बनाये हुए हैं और वहां के संसाधनों पर कब्जा करने के लिए राजनैतिक अस्थिरता फैलाने का ही उनका इतिहास रहा है।

कृषि क्षेत्र में इस परिवर्तन से देश की संप्रभुता ही खतरे में पड़ने जा रही है। किसान सभा ने कहा है कि वास्तव में इन निर्णयों के जरिये मोदी सरकार ने देश के किसानों और आम जनता के खिलाफ जंग की घोषणा कर दी है, क्योंकि यह किसान समुदाय को खेती-किसानी के पुश्तैनी अधिकार से ही वंचित करता है और उन्हें भीमकाय कृषि कंपनियों का गुलाम बनाता है। ये कंपनियां किसानों को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार की शर्तों के साथ बांधेगी, जिससे फसल का लागत मूल्य मिलने की भी गारंटी नहीं होगी।

दरअसल मोदी सरकार किसानों की फसल की सरकारी खरीदी करने की व्यवस्था को ही खत्म करना चाहती है और किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सी-2 लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य देने की सिफारिश को लागू करने से बचना चाहती है।

किसान सभा ने कहा कि ठेका खेती का छत्तीसगढ़ और अन्य राज्यों में बुरा अनुभव रहा है। पिछले वर्ष ही माजीसा एग्रो प्रोडक्ट नामक कंपनी ने छत्तीसगढ़ के 5000 किसानों से काले धान के उत्पादन के नाम पर 22 करोड़ रुपयों की ठगी की है। और जिन किसानों से अनुबंध किया था या तो उनसे फसल नहीं खरीदी या फिर किसानों के चेक बाउंस हो गए थे। गुजरात में भी पेप्सिको ने उसके आलू बीजों की अवैध खेती के नाम पर नौ किसानों पर पांच करोड़ रुपयों का मुकदमा ठोंक दिया था। ये दोनों अनुभव बताते हैं कि ठेका खेती के नाम पर आने वाले दिनों में कृषि का व्यापार करने वाली कंपनियां किस तरह किसानों को लूटेगी।

कुछ ऐसा ही कहना भारतीय किसान यूनियन के नेता धर्मेंद्र मलिक का है। मलिक कहते हैं, ' कोरोना संकट के दौर में सरकार अपने हिडेन एजेंडे को पूरा कर रही है। इस समय किसानों को लेकर जो फ़ैसले लिए जा रहे हैं उसे देखकर यही लग रहा है कि यह निजी क्षेत्र के फायदे के लिए है। सरकार की चिंता किसानों को लेकर नहीं है। साथ ही सरकार को पता है कि किसान इस समय आंदोलन नहीं कर सकते हैं इसलिए वह इस तरह के फ़ैसले ले रही है।'

वो आगे कहते हैं कि इन तीन अध्यादेश में किसान को सिर्फ मंडी वाले नियम से थोड़ा बहुत फायदा है इसके किसानों को दूसरे जगहों पर अनाज लेकर जाने पर उत्पीड़न का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसके अलावा केंद्र सरकार के हालिया बदलावों में किसानों के लिए कुछ खास नहीं है। उल्टा निजी क्षेत्र की मंडियों को अनुमति और कांट्रैक्ट फार्मिंग के जरिए सरकार किसानों की परेशानी ही बढ़ेगी। निजी क्षेत्र स्थानीय इलाकों में मंडी लगाकर पहले सरकारी मंडियों को बंद करवाएंगे फिर फसलों की उपज का दाम खुद ही निर्धारित करने लग जाएंगे।

धर्मेंद्र मलिक आगे कहते हैं कि फिलहाल सरकार किसानों के नाम पर फ़ैसले लेकर निजी प्लेयर्स को फायदा पहुंचा रही है। इन अध्यादेशों में भी यह साफ जाहिर हो रहा है।

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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