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आईपीसीसी: 2030 तक दुनिया को उत्सर्जन को कम करना होगा

संयुक्त राष्ट्र की नवीनतम जलवायु रिपोर्ट कहती है कि यदि​ ​हम​​ विनाशकारी ग्लोबल वार्मिंग को टालना चाहते हैं, तो हमें स्थायी रूप से कम कार्बन का उत्सर्जन करने वाले ऊर्जा-विकल्पों की तरफ तेजी से बढ़ना होगा।
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जब तक कि उष्मारोधी (हीट-ट्रैपिंग) उत्सर्जन में बहुत जल्दी कटौती नहीं की जाती है तो जंगल की आग की दाहकता आगे और भी मारक होने वाली है। 

ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति पर इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के छठे आकलन के अंतिम भाग में-जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के शमन (कम करने) पर आधारित-संदेश बहुत ही स्पष्ट है: वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने, और जलवायु के विनाशकारी दुष्प्रभावों, जिनमें जब तब लगने की जंगल की भयानक आग और हाहाकारी बाढ़ भी शामिल हैं, को हद में रखने की संभावना बहुत कम हो गई है।  

जलवायु परिवर्तन के विज्ञान, और उसे दुष्प्रभावों एवं अनुकूलन पर संयुक्त राष्ट्र की पूर्व की रिपोर्टों के बाद सामने आई इसकी ताजा रिपोर्ट समस्या का हल करने के साधनों का ब्योरा देती है। इस नई रिपोर्ट में कहा गया है कि 1850 के बाद से कार्बन उत्सर्जन के जरिए पृथ्वी के दो-तिहाई हिस्से को अतिशय गर्म करने के जिम्मेदार जीवाश्म ईंधन का उपयोग चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए पैरामाउंट एक अधिक महत्त्वाकांक्षी चरण है; और बड़े पैमाने पर पवन और सौर ऊर्जा से संचालित वैश्विक ऊर्जा प्रणाली का समवर्ती विद्युतीकरण-के चलते 2010 के बाद से नवीनीकरण ऊर्जा की लागत में 85 फीसदी तक गिरावट आई है।  

निकी रीच, जो  वाशिंगटन, डीसी स्थित जलवायु एवं ऊर्जा कार्यक्रम के निदेशक हैं, कहते हैं, "यह कोई मैजिक बुलेट नहीं है, लेकिन एक धुआं पीती बंदूक है, और यह जीवाश्म ईंधन है।” यह अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण वकीलों के केंद्र का मुख्यालय है। 

आईपीसीसी सभी क्षेत्रों में "तत्काल और सघन उत्सर्जन में कटौती" का लक्ष्य हासिल करने के लिए कार्बन शमन का एक राह दिखाता है। इसका मतलब है कि इस दशक के अंत तक ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) के उत्सर्जन (2019 के स्तर के सापेक्ष) में 50 फीसदी की कटौती लाना। 

बेहतर जलवायु के पक्ष में काम कर रहे अभियानकर्ताओं को उम्मीद थी कि रिपोर्ट में कार्बन बजट को झटके में पलट देने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड हटाने (सीडीआर) वाली प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने से इनकार कर देगी। हालांकि, कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (सीसीएस), यद्पि पैमाने पर अप्रमाणित है, वह पीछे हटने का एक विकल्प बना हुआ है।°

वनों और जैव विविधता की रक्षा-जो हमें महत्त्वपूर्ण CO2 सिंक प्रदान करते हैं-और बेहतर निर्माण दक्षता तथा परिवहन विद्युतीकरण 3000 विषम पृष्ठों की रिपोर्ट में रेखांकित वे बिंदु हैं, जो विषम जलवायु के शमन के उपायों के आवश्यक भाग हैं।

सार्वजनिक क्षेत्र के जलवायु वित्त में वृद्धि और कम प्रति व्यक्ति उत्सर्जन वाले गरीब देशों के लिए एक न्यायसंगत और न्यायसंगत संक्रमण भी वैश्विक जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों में कमी लाने के लक्ष्यों को पूरा करने के लिहाज से महत्त्वपूर्ण होगा। 

सरकारों को जीवाश्म ईंधन को समाप्त करना चाहिए 

कोई भी देश इस समय 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे और आदर्श रूप से 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे वार्मिंग रखने के पेरिस लक्ष्यों को पूरा करने के रास्ते पर अग्रसर नहीं है।

वर्तमान राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं (एनडीसी) में लक्ष्य इस सदी के वार्मिंग के लगभग 3.2C के बराबर हैं। आर्कटिक में पहले से ही अति विषम मौसम को और बर्फ के पिघलने को पूर्व-औद्योगिक समय के बाद से लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस ताप के साथ महसूस किया जा रहा है।  

रिपोर्ट में कहा गया है कि जब तक उत्सर्जन 2025 तक अपने चरम पर नहीं पहुंच जाता, वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित नहीं हो सकती है। वैश्विक शुद्ध शून्य CO2 उत्सर्जन को भी 2050 के दशक की शुरुआत तक पहुंचने की आवश्यकता है। 

आईपीसीसी की ताजा रिपोर्ट का उद्देश्य सरकारों को आवश्यक उत्सर्जन में कमी लाने का लक्ष्य तय करने के लिए तर्क से लैस करना है। जलवायु निकाय के अनुसार आईपीसीसी की पहली जलवायु रिपोर्ट के 32 साल बाद, उत्सर्जन में 54 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। 

राहेल क्लेटस, जो वाशिंगटन, डीसी स्थित जलवायु और ऊर्जा कार्यक्रम के नीति-निदेशक और प्रमुख अर्थशास्त्री हैं, कहती हैं, "आईपीसीसी की यह रिपोर्ट दुनिया के नीति-निर्माताओं को सावधान करती है कि मौजूदा वैश्विक उष्मारोधी उत्सर्जन का वर्तमान वैश्विक परिपथ खतरनाक रूप से पटरी से उतरा हुआ है।” वे वाशिंगटन स्थित यूनियन ऑफ कन्सर्न्ड साइंटिस्ट्स से संबद्ध हैं और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के शमन की आधिकारिक पर्यवेक्षक हैं। 

राहेल आगे कहती हैं कि, "उनकी (नीति-निर्माताओं की) निरंतर निष्क्रियता पहले से ही जलवायु संकट के लिए सीधे जिम्मेदार है, और इसने पेरिस समझौते के लक्ष्यों को गंभीर जोखिम पर रख दिया है।" 

बर्लिन में हेनरिक बोल फाउंडेशन में अंतर्राष्ट्रीय जलवायु नीति के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी लिंडा श्नाइडर, कहती हैं, "वास्तव में जीवाश्म ईंधन के उपयोग को तेजी से बाहर करने की जरूरत है।" 

पवन चक्की बादलों के आवरण के ऊपर से बाहर निकलते हैं। 

नवीनीकरण ऊर्जा की तकनीक मौजूद है, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर बढ़ाने की आवश्यकता है।

संयुक्त रूप से 100 फीसदी  पवन और सौर ऊर्जा को जैव विविधता बहाली और "मांग-पक्ष" के उपायों-जैसे कम कार्बन वाले शाकाहारी आहार और वैश्विक उत्तर में कम खपत-के साथ इसे सरकारी शमन नीति का हिस्सा बनाने की आवश्यकता है, श्नाइडर ने कहा। 

नकारात्मक उत्सर्जन और इसमें एक 'ओवरशूट' की आशंका

कुछ शमन मार्ग "नकारात्मक उत्सर्जन" वाली प्रौद्योगिकियों जैसे बायोएनर्जी समेत कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (बीईसीसीएस) में रिपोर्ट में एक कारक के रूप में शामिल हैं, जिसके द्वारा पेड़ बिजली संयंत्रों को ईंधन देते हैं, जिनके उत्सर्जन को भविष्य में तकनीक उपलब्ध होने पर संयमित किया जाएगा।

इस अभ्यास को आईपीसीसी और यूरोपीय संघ द्वारा नकारात्मक कार्बन माना जाता है, क्योंकि बायोएनर्जी संयंत्रों को ईंधन देने वाले पेड़ टिकाऊ समझे जाते हैं-भले ही आवश्यक वृक्षारोपण के समर्थन करने में बड़ी मात्रा में वन और कृषि की भूमि का नुकसान होगा।

श्नाइडर बताती  हैं, “इसके अलावा, कार्बन कैप्चर तकनीक अभी पायलट चरण में ही है और यह वास्तविक दुनिया की समस्या का समाधान नहीं है।” 

(रिपोर्ट की) केंद्रीय जलवायु शमन रणनीति-जिसमें सभी जीवाश्म ईंधनों के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से तुरंत हटाना शुरू करने की बात है-उसे अक्सर तकनीकी ईंधन के संदर्भ में नरम कर दिया जाता है, जिसका मतलब जीवाश्म ईंधन उद्योग को जीवित रखना होता है। 

अप्रमाणित सीडीआर प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता भी 1.5C वार्मिंग सीमा को अस्थायी रूप से "ओवरशूट" करने का खतरा पैदा कर देती है। 

वर्षा-वन का एक बड़ा क्षेत्र सोया बागानों के लिए जगह बनाने के लिए खाली किया जाना था। 

वनों की कटाई रोकना जलवायु परिवर्तन शमन के दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण है 

श्नाइडर समझाती हैं कि, “इसका मतलब यह है कि सीडीआर प्रौद्योगिकियों के एक साथ आने के बाद तापमान फिर से कम हो जाएगा। लेकिन अगर अपरिवर्तनीय "टिपिंग पॉइंट्स" को ट्रिगर किया गया तो यह पहले से भी काफी देर हो सकती है।” इसमें बड़े पैमाने पर कार्बन सिंक वाले परमफ्रॉस्ट क्षेत्रों के विगलन समेत अतिरिक्त उत्सर्जन का कारण बनेगा, जो जलवायु संकट को बहुत बढ़ा देगा। 

एक चिंता यह भी है कि उत्सर्जन में तत्काल कटौती को रोकने के लिए सीडीआर एक साधन हो जाएगा। 

टेलर डिम्सडेल, जो वैश्विक जलवायु थिंक टैंक, E3G में जोखिम और प्रतिरोध-क्षमता के निदेशक हैं, बताते हैं कि, “सबसे खराब स्थिति और उसके असहनीय दुष्प्रभावों से बचने के लिए, भविष्य में कुछ बिंदु पर नकारात्मक उत्सर्जन की संभावना दक्षतापूर्ण कार्रवाई में देरी और अब नवीनीकरण ऊर्जा पर अमल न करने के बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।”  

श्नाइडर ने वार्मिंग के स्तर में वृद्धि के संकेत वाले परिदृश्य पर गौर किया कि "1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य तक पहुंचने से पहले फीडबैक और टिपिंग पॉइंट भी हो सकते हैं।" लिहाजा, उनका मानना था कि "यह निश्चित नहीं है कि हम 1.5 सेल्सियस पर लौट भी सकते हैं।" 

शमन के 'सह-लाभ' 

एलेक्जेंडर कोबेर्ले, जो आईपीसीसी की ताजा प्रकाशित रिपोर्ट के एक प्रमुख लेखक हैं और ग्रांथम इंस्टीट्यूट, इंपीरियल कॉलेज, लंदन में रिसर्च फेलो हैं, उनके हिसाब से रिपोर्ट में जलवायु शमन की लागत में उन जल वायु परिवर्तन के प्रभावों की लागत भी शामिल की जानी चाहिए जिनसे हम समुचित तरीके से निपट सकेंगे।

रिपोर्ट में उत्सर्जन में कटौती की लागत को फिर से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के संदर्भ में मापा जाता है-एक ऐसा पैमाना जिसे आईपीसीसी कार्य समूह III के सह-अध्यक्ष प्रियदर्शी शुक्ला मानते हैं कि "अनुकूलन की लागत में कमी या जलवायु दुष्प्रभावों से बचने के आर्थिक लाभ" को ध्यान में नहीं रखा गया है।

शुक्ला के अनुसार, "2050 में जीडीपी केवल कुछ फीसदी कम होगी यदि हम वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करते हैं।" 

फिर भी कोबेर्ली (Köberle)  का कहना है कि जीडीपी एक "भयानक मीट्रिक" है, जो एक पूर्ण ऊर्जा संक्रमण के लाभों को जनता को समझाने के इच्छुक राजनेताओं के लिए आवश्यक स्पष्टता नहीं देगा। 

कार्बन उत्सर्जन की कटौती की नीतियों से होने वाले "सह-लाभ" जैसे कम वायु प्रदूषण और बेहतर श्वसन स्वास्थ्य को नहीं गिना जाता है, न ही ऊर्जा संप्रभुता और बाहरी ऊर्जा आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम होती है-खासकर उस समय जब यूरोप रूसी गैस और तेल पर अपनी निर्भरता को कम करने की कोशिश कर रहा है। 

आईपीसीसी 2014 के बाद, अपने व्यापक छठे आकलन को सितम्बर में COP27 की पूर्व संध्या पर रिलीज करने के लिए उसे अंतिम रूप देगा, जब सरकारों से अपने एनडीसी को अपडेट करने और अधिक महत्त्वाकांक्षी जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से व्यवहार से बाहर करने की उम्मीद की जाती है। 

संपादन: टमसिन वॉकर 

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें

IPCC: World Must Halve Emissions by 2030 

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