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5 साल के कामकाज में महंगाई और मज़दूरी के मोर्चे पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पूरी तरह से फेल!

उत्तर प्रदेश और पंजाब में 5 साल में रोजगार पहले से भी कम हुआ है। बेरोजगारी बढ़ी है। महंगाई बढ़ी है। कमाई कम हुई है।
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Image courtesy : NewsBytes

सरकारों ने अगर 5 साल में ढंग से काम किया होता तो सरकारों को मीडिया का गला दबाने की जरूरत नहीं पड़ती। अगर मीडिया का गला नहीं दबाया जाता तो मीडिया लोगों के सामने चुनावी दांव पेच से ज्यादा 5 साल का कामकाज पेश करती। लोगों को बताती कि जिस सरकार को उसने चुन कर भेजा था, उस सरकार ने 5 साल में लोगों की जिंदगी को आसान बनाया है या पहले से ज्यादा मुश्किल बनाया है। लेकिन यह सब नहीं होता है। क्योंकि नेताओं ने सरकार वोट के दम पर तो बनाई होती है, लेकिन चुनाव पैसे के दम पर लड़ा होता है। पैसे के दम पर चुनाव लड़ने का मतलब यह है कि मीडिया के जरिए वैसा माहौल बनाया जाता है जिससे लोग झूठ के भंवर में गोता लगाते रहें, सच से दूर रहें और नेताओं पर पैसा लगाने वाले कॉरपोरेट या धन्ना सेठ अपनी कमाई करते रहे।

अगर ऐसा ना होता तो ऑक्सफैम की रिपोर्ट यह ना बताती कि भारत के सबसे अमीर मात्र 10 लोगों की कुल संपत्ति इतनी है जिससे पूरे देश की प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा का कुल खर्चा 25 वर्षों तक पूरा किया जा सकता है। 84% आबादी की आय कम हुई है। सबसे अमीर 10% लोगों के पास देश की 45% दौलत है। वहीं, देश की 50% गरीब आबादी के पास महज 6% दौलत है। ऑक्सफैम की रिपोर्ट यह ना कहती कि भारत की भयंकर गैर बराबरी को आर्थिक हिंसा की तरह देखना चाहिए।

इसी आधार पर पैसे से संचालित होने वाली राजनीतिक दांवपेच को छोड़कर 5 साल के कामकाज पर बात कर लेते हैं। महंगाई और दैनिक मजदूरी के हिसाब से उन राज्यों के पिछले 5 साल के कामकाज की तरफ देखते हैं, जहां पर चुनाव होने जा रहे हैं।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़े जरूरी पहलुओं पर हर साल हैंडबुक ऑफ़ स्टैटिसटिक्स ऑफ इंडियन स्टेट  के नाम से एक रिपोर्ट प्रकाशित करती है. साल 2020 -21 की रिपोर्ट को आधार बनाकर  वरिष्ठ आर्थिक पत्रकार उदित मिश्रा ने महंगाई और दैनिक मजदूरी के आंकड़े पेश किए हैं।

उन आंकड़ों के आधार पर  उत्तर प्रदेश का हाल देखिए। उत्तर प्रदेश की साल 2017 से लेकर 2021 तक 5 सालों के 3 सालों में खुदरा महंगाई दर 4% से ऊपर रही है। इस समय तकरीबन 6.1 फ़ीसदी के आसपास है। महंगाई दर के आंकड़े देखने के बाद हम यह भूल जाते हैं कि महंगाई का असर सब पर एक तरीके से नहीं पड़ता है। जिसकी  आमदनी ज्यादा होती है, उसे महंगाई का कम बोझ महसूस होता है। जिसकी आमदनी कम होती है उसे महंगाई क्या ज्यादा बोझ महसूस होता है। मतलब अगर उत्तर प्रदेश में किसी की आमदनी ₹₹6 लाख रुपए प्रति महीने है तो उसके लिए पिछले साल के मुकाबले इस साल तेल की कीमत में 6% का इजाफा हो जाए तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा. मगर किसी की आमदनी 20 से 25 हजार है तो उसके लिए महंगाई बहुत घातक साबित होगी. उत्तर प्रदेश की हकीकत तो सबसे ज्यादा घातक इसलिए है क्योंकि यहां औसत वार्षिक आमदनी 40000 के आसपास है. यानी उत्तर प्रदेश का एक व्यक्ति औसतन महीने में ₹4 हज़ार के आस पास कमाता होग। उसके लिए आटा दाल चावल तेल की कीमत में ₹1 की बढ़ोतरी भी घातक है. ऐसी ढेर सारे लोगों से मिलकर उत्तर प्रदेश बनता है. तो उनके बारे में सोचिए कि ऐसे ढेर सारे लोगों पर महंगाई का क्या असर पड़ता होगा?

अब उत्तर प्रदेश के दैनिक मजदूरी के आंकड़े देख लेते हैं जिससे बात ठीक से पुख्ता हो पाए कि कैसे पिछले 5 साल में सरकार महंगाई और मजदूरी के मोर्चे पर फेल साबित हुई है। सबसे पहली बात तो यह है कि उत्तर प्रदेश का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 32% के आसपास है। जो योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने से पहले 38% के आसपास हुआ करता था। पूरे भारत के लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 40% से कम है। पूरी दुनिया के औसत लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट 57% से कम है। यानी उत्तर प्रदेश की बहुत बड़ी आबादी बेरोजगारी में जी रही है। जिसके पास रोजगार नहीं है। फिर भी दैनिक मजदूरी के हिसाब से देखें तो गैर कृषि क्षेत्र में लगा हुआ एक मजदूर साल 2017 में एक दिन काम करके ₹212 कमाता था। अब उसकी दैनिक मजदूरी 2021 में बढकर ₹285 तक पहुंची है। कृषि क्षेत्र में काम कर रहा मजदूर साल 2017 में प्रतिदिन औसतन ₹212 कमाता था 5 साल बाद उसकी दैनिक मजदूरी बढ़कर औसतन ₹275 हुई है। कंस्ट्रक्शन सेक्टर में काम करने वाला मजदूर साल 2017 में ₹270 प्रतिदिन काम आता था उसकी दैनिक मजदूरी बढ़कर के 314 रुपए हुई है।

दैनिक मजदूरी का मतलब यह हुआ कि उसे महीने में 30 दिन काम नहीं मिलता होगा। मुश्किल से 15 से 20 दिन का मिलता होगा। कोरोना जोड़ लीजिए तो हालात और अधिक खराब। इसके बाद उत्तर प्रदेश की महंगाई और दैनिक मजदूरी को जोड़कर महसूस कीजिए तो आपको दिखेगा कि मोदी और योगी का हिंदुत्व का सारा किला आम लोगों के लिए सिवाय झूठ के और कुछ नहीं है। जिस दर से महंगाई बढ़ी है उस दर से मजदूरी नहीं बढ़ी है। मजदूरी अगर बड़ी भी है तो इतनी बड़ी है कि वह जीवन के परेशानियों को थोड़ी भी राहत ना दे पाए।

अब उत्तर प्रदेश के बाद पंजाब पर आइए। पंजाब की खुदरा महंगाई दर पिछले सालों से 5% के ऊपर रही है। पिछले 5 सालों के 3 सालों में 4% से ऊपर रही है। पंजाब की प्रति व्यक्ति आमदनी एक लाख 30 हजार के आसपास है। यानी यहां भी महंगाई की मार पड़ी होगी लेकिन उत्तर प्रदेश से कम पड़ी होगी। वजह यह कि आमदनी के मामले में पंजाब की प्रति व्यक्ति आय उत्तर प्रदेश से काफी अच्छी है। लेकिन पंजाब के रोजगार दर के हिसाब से देखने पर पंजाब की हालत भी खराब दिखती है। पिछले 5 साल के बाद पंजाब का लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट कम हुआ है। पिछले 5 साल के मुकाबल 3 लाख नौकरियां कम हुई है। यानी पंजाब में भी बहुत बड़ी आबादी बेरोजगार है। दैनिक मजदूरी के हिसाब से देखा जाए तो कृषि क्षेत्र में 1 दिन की मजदूरी पिछले 5 साल में ₹317 से बढ़कर ₹357 तक पहुंची है। कंस्ट्रक्शन वर्क 5 साल पहले पंजाब में 1 दिन में ₹338 कमाता था अब उसकी कमाई बढ़कर ₹382 पर पहुंच गई है।

पंजाब की स्थिति उत्तर प्रदेश से अच्छी है। लेकिन इतनी अच्छी नहीं कि कहा जाए कि पंजाब का बहुत बड़ा वर्ग महंगाई को झेल लेता होगा। ₹357 प्रतिदिन के हिसाब से महीने में 20 दिन के काम के लिए जितनी कमाई होगी, वह उत्तर प्रदेश से अधिक तो होगी, लेकिन इतनी नहीं होगी कि यह कहा जाए कि पंजाब का आम आदमी खुशहाली में जीता होगा। कमोबेश यही हाल गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड का भी है जिन राज्यों के विश्लेषण के लिए पूरे आंकड़े मौजूद नहीं है। लेकिन जितने आंकड़े मौजूद हैं, वह बताते हैं कि वहां भी आम आदमी की स्थिति 5 साल में बेहतर नहीं हुई है।

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