Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

भारत वैश्विक भूख सूचकांक में शामिल 116 देशों के बीच 101 वें पायदान पर

केवल 15 देश भारत से बुरे हाल में हैं जिनमें अफगानिस्तान, नाइजीरिया, मोजांबिक, सोमालिया जैसे देश शामिल हैं। 
hunger
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: सोशल मीडिया

भूख की मार झेल रहे 116 देशों के बीच विश्व गुरु का डंका पीटने वाले भारत शुरू के 100 देशों में भी शामिल नहीं है। साल 2021 के लिए प्रकाशित ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत को 101 वें पायदान पर रखा गया है। भारत का हाल पाकिस्तान से भी बुरा है। उसी पाकिस्तान से जिसका नाम लेकर भारत में सबसे कड़वी राजनीति की जाती है। भारत का हाल अपने पड़ोसी मुल्कों नेपाल बांग्लादेश, श्रीलंका से कहीं ज्यादा बुरा है। यह सब देश अपने लोगों की भूख मिटाने में भारत से बेहतर साबित हुए हैं।

अमेरिका और यूरोप के कई विकसित देश पहले ही इस रिपोर्ट से बाहर हैं। भूख की वजह से वहां की परेशानियां इतनी गहरी नहीं कि उन्हें इस रिपोर्ट में शामिल किया जाए। इस तरह से इस रिपोर्ट में सबसे पहले नंबर बेलारूस है और सबसे अंतिम नंबर पर यानी 116 वें पायदान पर सोमालिया है। तुलना करने पर भारत के राष्ट्र सम्मान पर बट्टा लगाने वाली बात यह है कि केवल 15 देश भारत से बुरे हाल में है। जिनमें अफगानिस्तान, नाइजीरिया, मोजांबिक, सोमालिया जैसे देश शामिल है। जहां अंतहीन लड़ाइयां कई सालों से जारी हैं। राज्य और सरकार जैसा कोई अस्तित्व नहीं है।

4 तरह के पैमानों के जरिए ग्लोबल हंगर इंडेक्स को मापा जाता है। पहला पैमाना यह कि आबादी में कितना बड़ा हिस्सा अल्प पोषण का शिकार है। यानी कुल आबादी में कितने लोग जरूरी कैलोरी से कम कैलोरी लेकर जीवन जी रहे है।

दूसरा पैमाना चाइल्ड वेस्टिंग से जुड़ा होता है। इसका मतलब है कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों में कितने बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन उनकी लंबाई के हिसाब से कम है। तीसरा पैमाना चाइल्ड स्टांटिंग से जुड़ा होता है। इसका मतलब यह कि 5 साल के उम्र से कम उम्र के बच्चों में कितने बच्चे ऐसे हैं जिनकी लंबाई उनके वजन के मुताबिक नहीं है। सबसे अंतिम पैमाना चाइल्ड मोर्टालिटी से जुड़ा होता है। इसका मतलब यह कि 5 साल से कम उम्र के कितने बच्चे 5 साल पूरा करने से पहले ही मर जा रहे है।

इसे भी पढ़े : विश्वगुरु बनने की चाह रखने वाला भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 107 देशों में 94वें पायदान पर

इन चार पैमानों के आधार पर ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 0 से लेकर 100 तक के स्केल के बीच स्कोर दिया जाता है। इस तरह से ग्लोबल हंगर इंडेक्स में जीरो का मतलब भूख की कोई परेशानी का ना होना है और 100 के स्कोर का मतलब सबसे बुरे स्तर की भुखमरी का होना है। 0 से 100 के स्कोर के बीच भूख की हालत को बताने के लिए लो, सीरियस, अलार्मिंग और एक्सट्रीमली अलार्मिंग जैसी कैटेगरी बनाई गई है।

भारत को 27.5 का स्कोर मिला है। भूख से बेहाल देशों के बीच भारत को ' सीरियस ' कैटेगरी में रखा गया है।

लंबाई के हिसाब से वजन की कमी यानी चाइल्ड वेस्टिंग के मामले में भारत का हाल दुनिया में सबसे बुरा है। भारत की बदहाली इस मामले में सोमालिया, जिबूती,यमन जैसे देशों की बदहाली से भी ज्यादा गहरी और बड़ी है। साल 2016 से लेकर 2020 के बीच 5 साल से कम उम्र के 17.3 फ़ीसदी बच्चे भारत में चाइल्ड वेस्टिंग का शिकार है। साल 2014 के बाद चाइल्ड वेस्टिंग के आंकड़ों में बढ़ोतरी हुई है।

इसे भी पढ़े : भूखे पेट ‘विश्वगुरु’ भारत, शर्म नहीं कर रहे दौलतवाले! 

वजन के हिसाब से लंबाई की कमी यानी चाइल्ड स्टंटिंग के मामले 2016 से लेकर 2020 के बीच 5 साल से कम उम्र के 34.7 बच्चें हैं। यह बहुत खराब हाल है। इस ओर इशारा है कि आने वाली पीढ़ी पहले की पीढ़ी के मुकाबले कम लंबी होगी। भारत की कुल आबादी का तकरीबन 15.3 फ़ीसदी हिस्सा अल्प पोषण (undernourishment) का शिकार है।

हम बात-बात में चीन से तुलना करते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक चीन में महज 2.5 फ़ीसदी से कम लोग अल्प पोषण का शिकार। महज 1.9 फ़ीसदी बच्चें चाइल्ड वेस्टिंग जूझ रहे हैं तो महज 4.8 फ़ीसदी बच्चे बौनेपन का शिकार है।

सरकार कह रही है कि इस रिपोर्ट के गणना करने के तरीके में कई तरह की खामियां हैं। वह इसे स्वीकार नहीं करती। लेकिन सरकार के कामकाज पर गौर करने वाले सभी जानते हैं कि यही रिपोर्ट अगर भारत की बदहाली बताने के बजाय भारत की मीडिया की तरह भारत की बदहाली को छिपाकर पेश करती तो इसे पूरे धूमधाम के साथ स्वीकार कर लिया जाता है।

भारत में सबसे अमीर 1 फ़ीसदी लोगों के पास भारत की आधी से ज्यादा संपत्ति है। ऐसे देश में एक बार पूरे भारत के चक्कर लगा लिया जाए तो हर सौ कदम के बाद भारत के हर इलाके में गरीबी की मार झेलता समूह देखा जा सकता है। उसे देखने पर भूख को मापने वाले अल्प पोषण के पैमाने सोचने पर शायद उससे भी भयावह महसूस हो जिसकी बात इस रिपोर्ट में की जा रही है।

इसे भी पढ़े : भुखमरी से मुकाबला करने में हमारी नाकामयाबी की वजह क्या है?

पूरी दुनिया के संदर्भ में देखा जाए तो इस रिपोर्ट का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले नुकसान कोरोना की महामारी और दुनिया भर में चल रहे अंतहीन हिंसक संघर्षों की वजह से भूख की परेशानी के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई रास्ते से भटक गई है। ऐसा लग रहा है जैसे भूख की परेशानी कम होने की वजह और अधिक बढ़ ना जाए।प

पूरी दुनिया ने मिलकर तय किया था कि साल 2030 तक दुनिया से भूख की परेशानी को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा। उसके बाद कोई भी इंसान दुनिया के किसी भी इलाके में भूख की परेशानी का शिकार नहीं होगा। लेकिन इस साल की रिपोर्ट क कहना है कि दुनिया जितने लचर तरीके से भूख की परेशानी का सामना कर रही है उससे अब लग रहा है कि साल 2030 तक भूख की परेशानी का सफाया नामुमकिन लगने लगा है। पूरी दुनिया और दुनिया के तकरीबन 47 देश साल 2030 तक भुखमरी से छुटकारा नहीं हासिल कर पाएंगे। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम चेतावनी दे रहा है कि पूरी दुनिया में तकरीबन 4.1 करोड़ लोग अकाल के मुहाने पर खड़े हैं।

इस रिपोर्ट के आंकड़ें बता रहे हैं कि पूरी दुनिया में भूख की परेशानी कम हुई है लेकिन भूख की परेशानी कम होने की दर पहले से भी कम हो गई है। इसमें सबसे बड़ी वजह अल्प पोषण है। जितना पोषण होना चाहिए उतना पोषण नहीं हो पा रहा है। बच्चों में अल्प पोषण की दर सबसे अधिक है। पूरी दुनिया में भूख की सबसे अधिक मार अफ्रीका और सहारा मरुस्थल का दक्षिणी इलाका झेल रहा है। उसके बाद दक्षिण एशिया का नंबर आता है जिसमें भारत पाकिस्तान अफगानिस्तान जैसे देश शामिल है। यूरोप और मध्य एशिया के इलाकों की हालत इस मामले में सबसे बेहतर है।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest