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भारत को चीन-विरोधी गठजोड़ में नहीं शामिल होना चाहिए

ध्यान देने की बात है कि जापान और आस्ट्रेलिया बहुत लंबे समय से अमेरिका के सैन्य सहयोगी हैं। इन दोनों देशों में अमेरिका के सैनिक अड्डे हैं। क्या अब अगली बारी भारत की है?
Malabar Naval Exercise
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : The New Indian Express

नवंबर 2020 के अंत में शुरू होनेवाला मालाबार नौसैनिक अभ्यास अमेरिका के आक्रामक सैन्यवाद और भारत के आक्रामक हिंदुत्व फ़ासीवाद के बीच बढ़ते गठजोड़ का नतीज़ा है। इसका मक़सद हैः चीन को घेरना और भारत में अमेरिकी सैनिक अड्डों की स्थापना की राह आसान बनाना। चीन के ख़िलाफ़ किसी संभावित युद्ध में अमेरिका भारत को अपना साझीदार बनाना चाहता है। लंबे समय से एशिया में अमेरिकी साम्राज्यावाद की यह रणनीति रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जोड़ी इस रणनीति को लगातार युद्धोन्मादी बनाने में लगी है।

द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति (1945) और चीन लोक गणराज्य की स्थापना (1949) के बाद से ही अमेरिका विश्व स्तर पर चीन-विरोधी धुरी बनाने में लगा हुआ है। हिंदुत्व फ़ासीवाद के अलमबरदार नरेंद्र मोदी के राज में भारत इस ख़तरनाक चाल में तेज़ी से फंस रहा है।

भारत की समुद्री सीमा में अरब सागर व बंगाल की खाड़ी में शुरू होनेवाले मालाबार नौसैनिक अभ्यास में चार देशों की नौसेनाएं हिस्सा लेंगी। ये देश हैः अमेरिका, भारत, जापान और आस्ट्रेलिया। इस समूह को चौगुट या क्वाड (QUAD) कहा जाता है।

ध्यान देने की बात है कि जापान और आस्ट्रेलिया बहुत लंबे समय से अमेरिका के सैन्य सहयोगी हैं। इन दोनों देशों में अमेरिका के सैनिक अड्डे हैं। क्या अब अगली बारी भारत की है?

मालाबार नौसैनिक अभ्यास श्रृंखला की शुरुआत 1990  वाले दशक में हुई थी। तब भारतीय और अमेरिकी नौसेनाएं इस अभ्यास में हिस्सा लेती थीं। बाद में इसमें जापान को शामिल कर लिया गया, और अब आस्ट्रेलिया भी इसमें शामिल हो गया है। अमेरिका के नेतृत्व में यह चौगुट शुरू से ही आक्रामक चीन-विरोधी रुख़ अख़्तियार किये हुए है।

1990 से लेकर 2020 तक केंद्र में कई पार्टियों/गठबंधनों की सरकारें रहीं : कांग्रेस, विपक्षी गठबंधन, भाजपा गठबंधन, कांग्रेस गठबंधन, और 2014 से अब तक भाजपा गठबंधन या एनडीए। सभी सरकारें अमेरिका के रणनीतिक उद्देश्य और सामरिक हित के साथ भारत की नियति को अनिवार्य रूप से जोड़ती रही हैं। मालाबार नौसैनिक अभ्यास श्रृंखला इसी की महत्वपूर्ण कड़ी रही है। यह ज़रूर है कि 2014 में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत ने अमेरिका की जी-हुजूरी करने में बड़ी तेज़ी से छलांग लगायी है।

नरेंद्र मोदी सरकार भारत को अमेरिका का जूनियर पार्टनर बनाने पर तुली है। उसे इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं कि भारत के किसी भी पड़ोसी देश ने इस चौगुट में शामिल होने के लिए उत्सुकता नहीं दिखायी। उसे इस बात की ज़रा भी चिंता नहीं कि अमेरिका को फ़ायदा पहुंचाने के लिए इस चौगुट का ख़तरनाक ढंग से सैन्यीकरण किया जा रहा है।

अमेरिका ऐलानिया कहता रहा है कि यह चौगुट चीन-विरोधी गठजोड़ है। इन चारों देशों—भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया—के विदेश मंत्रियों की बैठक टोक्यो (जापान) में 6 अक्तूबर 2020 को हुई थी। उसमें अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो ने कहा : ‘पहले कभी के मुक़ाबले आज यह ज़्यादा ज़रूरी हो गया है कि चौगुट के साझीदार के नाते हम अपनी जनता और साझीदारों को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के शोषण, भ्रष्टाचार व तानाशाही से बचाने के लिए मिलजुलकर काम करें।’

भारत का हित इसी में है कि वह किसी चीन-विरोधी गठजोड़ का हिस्सा हरगिज न बने। यह चौगुट बनाया ही इसलिए गया है कि हिंद महासागर क्षेत्र और प्रशांत महासागर क्षेत्र में अमेरिका के वर्चस्व को कायम किया जा सके। भारत को यह काम क्यों करना चाहिए? लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार इस ओर से भी घनघोर बेपरवाह नज़र आ रही है। वह हर हाल में अमेरिकी ताबेदारी मंज़ूर कर लेने पर आमादा है।

(लेखक वरिष्ठ कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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