Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

फ़सल की वाजिब क़ीमत देने से नहीं बल्कि बाज़ार के लालच की वजह से बढ़ती है महंगाई!

हाल ही में सरकार ने खरीफ़ के फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान किया, जो महंगाई दर के हिसाब से पहले के मुकाबले कम है। उसके ख़िलाफ़ भी यह बात कही जाने लगी कि जब फ़सलों की क़ीमत बढ़ेगी तब लागत बढ़ेगी, जिसकी वजह से खाने के सामान की महंगाई बढ़ेगी।
kisan
Image courtesy : Mint

महंगाई क्यों बढ़ती है? इस सवाल का जवाब ज्यादातर डिमांड और सप्लाई के बीच के अंतर को बताकर दिया जाता है। कहा जाता है कि डिमांड के मुकाबले सप्लाई कम है, इसलिए महंगाई बढ़ रही है। गेहूं की सप्लाई उतनी नहीं है जितनी बाजार में मांग है, इसलिए महंगाई बढ़ रही है। प्याज की सप्लाई उतनी नहीं है जितना खपत किया जाना है, इसलिए महंगाई बढ़ रही है। इसी डिमांड-सप्लाई के बीच के असंतुलन को दूर करने के लिए आरबीआई ब्याज दर बढ़ाने की नीति अपनाती है, जिस पर कहा जाता है कि जब बाज़ार में पैसे की सप्लाई कम होगी तो लोगों की जेब में कम पैसा होगा। कम पैसे की वजह से डिमांड कम होगी। महंगाई काबू में रहेगी। 

यह भी कहा जाता है कि सामान और सेवाओं की लागत बढ़ती है तो कीमत बढ़ती है, इसलिए महंगाई बढ़ती है। जब मजदूरों की मजदूरी और वेतन बढ़ता है तो कीमत बढ़ती है, इसलिए महंगाई बढ़ती है। इन सब तर्कों का आधार बनाकर महंगाई को काबू करने के लिए जितने भी उपाय सुझाये जाते हैं, उनसे आम आदमी पर मार पड़ती है। जैसे रेपो रेट बढ़ता है तो कर्ज लेना महंगा हो जाता है, ब्याज दर बढ़ने लगता है। मासिक किस्तें बढ़ती है। कंपनियां मुनाफा बचाने के लिए रोजगार के अवसर कम करती है।  कर्मचारियों को बाहर निकालती हैं। इस तरह मजदूरों की संख्या और मजदूरी कम करने की बात की जाती है।

महंगाई काबू में करने के लिए यह सारे सुझाव इसलिए प्रचलित हैं क्योंकि कारण के तौर पर कभी यह नहीं बताया जाता कि मुनाफ़ा कमाने की नीति की वजह से महंगाई बढ़ रही है। हाल ही में सरकार ने खरीफ़ के फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य का ऐलान किया, जो महंगाई दर के हिसाब से पहले के मुकाबले कम है। उसके ख़िलाफ़ भी यह बात कही जाने लगी कि जब फ़सलों की क़ीमत बढ़ेगी तब लागत बढ़ेगी, जिसकी वजह से खाने के सामान की महंगाई बढ़ेगी।

बड़ी विचित्र स्थिति है जब खाद्यानों की कीमत बढ़ती है तो हंगामा मच जाता है लेकिन यही हंगामा तब नहीं मचता जब जमकर कॉर्पोरेट मुनाफा बढ़ता है।  कॉर्पोरेट मुनाफे को सफलता की कहानी कहकर बेचा जाता है। यह बात ठीक है कि खाने - पीने की सामान की महंगाई बढ़ती है तो आम आदमी पर ही असर पड़ता है। लेकिन इसके साथ यह बात भी समझने वाले ही कि जब फसल की वाजिब कीमत नहीं मिलती तो आम किसान को ही नुकसान सहना पड़ता है।  आप सबने देखा होगा कि एक रोटी की कीमत बड़े-बड़े रेस्टोरेंट में में 15 से लेकर 30 रूपये तक है। प्रति किलो आटा 30 से 35 रूपये प्रति किलो मिलता है। वही प्रति किलों गेहूं की कीमत 18 - 20 रूपये प्रति किलो के आस पास है। इसमें आप खुद देखिये कि रेस्टोरेंट में रोटी बेचने वाले कितना मुनाफा कमाते होंगे। यही हाल  मक्के के साथ देखते होंगे। एक किलो मक्का गाँवों में 15 से 20 रूपये प्रति किलो के हिसाब से मिलता है और पॉपकॉर्न के नाम पर सिनेमा हॉल में इसे तकरीबन 500 रूपये कप में बेचा जाता है तो सोचिये मुनाफा कमाने वाले कितना पैसा कमाते होंगे। कितनी अधिक मात्रा में बेहिसाब पैसे का संरचरण  होता होगा।

कृषि मामलों के जानकार देवेंद्र शर्मा अपने ब्लॉग पर लिखते हैं कि ऐसे कई मामले देखने को मिलते है जहां प्याज के उत्पादन में केवल 4 प्रतिशत की गिरवाट हुई और प्याज की कीमतों में 600 फीसदी बढ़ोतरी हुई। सुपर मार्किट में अजीब सा ट्रेंड देखने को मिल रहा है। जानकार कहते हैं कि जब किसी सामान का बड़ा पैकेट लिया जाता है तो वह सस्ते दाम में मिल जाता है। लेकिन पिछले तीन महीने से यह ट्रेंड देखने को मिल रहा है कि बड़े पैकेट के दाम बढ़ गए हैं लेकिन इसका पता नहीं चलता क्यों बढे है? 100 ग्राम के टाटा गोल्ड टी के पैकेट का दाम 40 रूपये है। इस हिसाब से 500 ग्राम के पैकेट का दाम 200 रूपये  होना चाहिए। लेकिन 500 ग्राम पैकेट का दाम 300 रूपये के आस पास है।  यह क्यों है? इसका जवाब नहीं मिलता। ढेर सारी फ़ास्ट मूविंग कंस्यूमर गुड्स कंपनियों ने कीमतों में इजाफा नहीं किया लेकिन पैकेट की साइज 15 प्रतिशत छोटी कर दी। यानि जमकर मुनाफा कमाया।  आंकड़ें बता रहे हैं कि फ़ास्ट मूविंग कंजूमर गुड्स कंपनियों ने ईयर ऑन ईयर बेसिस पर 40 प्रतिशत का मुनाफा कमाया है। 

अमेरिका में महंगाई की दर जबरदस्त  उफान पर है। यह तब हो रहा है जब कॉर्पोरेट प्रॉफिट पिछले 70 सालों में सबसे ज्यादा हुआ है। ऑनिंद्यो चक्रवर्ती अपने विश्लेषण में बताते हैं कि अमेरिका में महंगाई का 60 प्रतिशत कारण कॉर्पोरेट प्रॉफिट है।  एक तिहाई वह कारण हैं जिसकी सबसे  अधिक चर्चा की जाती है।  यही हाल भारत का भी सकता है। जब दुनिया भयंकर महामारी के दौर से गुजर रही थी, तब भारत के अमीर जमकर पैसा पीट रहे थे। सरकार की खुद की रिपोर्ट बताती है कि भारत में केवल 10 प्रतिशत कामगारों की आय 25 हजार प्रति महीने से कम है।  इसका साफ मतलब है कि भारत के अमीरों ने अपने वाजिब हक से ज्यादा कमाया है।

इसलिए एक हद तक यह बात ठीक कही जा सकती है कि भारत में महंगाई का कारण सप्प्लाई का कम होना है, रूस यूक्रेन की लड़ाई की वजह से सप्लाई पक्ष पर असर पड़ा।  कोरोना की वजह से  अर्थव्यवस्था की गति रुक गयी है। लेकिन इन सबमे अमीरों ने अपने मुनाफे को पहले से ज्यादा बढ़ाया है।  अमीरों की मुनाफे पर मुनाफे कमाने की लालच महंगाई का अहम कारण बनकर उभर रही है।

देवेंद्र शर्मा लिखते हैं कि इसलिए खाने पीने के सामानों में महंगाई के लिए फसलों के दाम को दोष ठाहराना ठीक नहीं। ऐसे बहुत कम उदाहरण है - जहां पर फसलों का दाम बढ़ने की वजह से खाद्यान्न महंगाई बढ़ी है। अनाज की कम सप्लाई की वजह से कभी कभार  कीमतें बढ़ी हैं लेकिन यह हमेशा नहीं हुआ है। साल 2000 - 2016 के बीच 16 सालों में भारत के किसानों को वैश्विक स्तर पर 15 प्रतिशत कम दाम मिला। कम कीमत मिलने की वजह से किसानों को तकरीबन 45 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। लेकिन इस दौरान क्या ऐसा कि खाने-पीने के सामानों के दाम नहीं बढ़े? इस दौरान भी बढ़े। कहने का मतलब यह है कि मुनाफा कमाने की लालच की वजह से बाजार में मैनिपुलेशन किया जाता है। महंगाई बढ़ती है कॉर्पोरेट जमकर मुनाफा कमाते हैं और आम आदमी पर महंगाई की मार पड़ती है।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest