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ज़दीबाल का हाल : घेराबंदी, झड़प और इबादत 

चश्मदीदों के मुताबिक, पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने श्रीनगर में शिया बहुल इलाके, ज़दीबाल में "शांतिपूर्ण शोक मनाने” की वजह से शिया समुदाय के लोगों पर बिना किसी उकसावे के आंसू गैस के गोले और पेलेट गन दागे, जो रविवार शाम को घंटों तक चले संघर्ष का कारण बना।
 श्रीनगर

श्रीनगर: कश्मीर में, मुहर्रम के दसवें दिन को प्रतिबंधों और झड़पों ने लील दिया, इस दिन को  अशूरा कहा जाता है, जो दुनिया भर में शिया मुसलमानों द्वारा मनाए जाने वाला एक पाक दिन है। कई लोग इस झड़प में घायल हो गए- उनमें से कई को आँखों में गंभीर चौंटे हैं- चूंकि सुरक्षा बलों ने शोक संतप्त लोगों पर पेलेट गन से फायर किए थे।

चश्मदीद गवाहों के मुताबिक, पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने श्रीनगर में शिया बहुल इलाके, जदीबाल में "शांतिपूर्ण शोक मनाने" पर बिना किसी उकसावे के आंसू गैस के गोले और पेलेट गन दागे, जो रविवार शाम को घंटों तक चले संघर्ष का कारण बना। घायलों में महिलाएं भी शामिल हैं।

एक युवा जो बीस के दशक के शुरुआती दौर में है वह छर्रों से घायल हो गया है। जब उसे दो अन्य युवकों ने मिलकर अस्पताल ले जाने के लिए उठाया तो वह दर्द के कारण दोनों आँखें नहीं खोल पा रहा था। “पुलिस ने दलीलों के बावजूद जुलूस निकालने की अनुमति नहीं दी। ज्यादा समय गंवाए बिना, हमने घायल युवक को एक नाव में खुशाल सार के माध्यम से निकाला,” उक्त बातें उनके जानकार ने न्यूज़क्लिक को बताई जो युवा को श्रीनगर के श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल में ले गए थे।

जदीबल के अंदर, जिसे मीर शम्सुद्दीन इराकी के यादार स्थल के चारों ओर बनाया गया है, माना जाता है कि इसे एक प्रमुख मध्यकालीन शिया विद्वान ने घाटी में शिया संप्रदाय के लिए इसकी स्थापना की थी, स्थानीय लोगों में हमले के प्रति क्रोध और अविश्वास व्याप्त है। स्थानीय लोगों द्वारा जुलूस निकालने के किसी भी प्रयास को विफल करने के लिए सीआरपीएफ और एसएसबी सहित जम्मू-कश्मीर पुलिस और अर्धसैनिक बल के जवानों ने पूरे इलाके में घेराबंदी की थी। खुशाल सर इलाके के पीछे एक छोटी-सी खस्ताहाल झील है, जिसके मादयम से कई प्रदर्शनकारी अस्पताल पहुंचे या इलाके से निकाल गए थे।

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उन्होंने कहा, कि सुरक्षा बलों ने 'राज्य के स्वास्थ्य विभाग की एंबुलेंस को बी जदीबाल में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी। अंदर वाली एंबुलेंस या तो गैर सरकारी संगठनों या स्थानीय सामाजिक या धार्मिक समूहों से संबंधित हैं, जो मुहर्रम की तैयारी का हिस्सा थी,“ ये बातें एक स्थानीय नगरपालिका प्रतिनिधि तनवीर पठान ने बताई। 

पठान प्रशासन के तरीके से "नाराज़" है, क्योंकि उसने मुहर्रम के इलाके की उपेक्षा की है। “उन्होंने जुलूसों को रोकने के लिए इस क्षेत्र में घेराबंदी की। ऐसा लगता है कि स्थानीय लोगों की तुलना में यहाँ सुरक्षाकर्मी ज्यादा हैं और उन्होंने आपातकालीन स्थिति के लिए सभी सड़कों को पहले ही बंद कर दिया था।

शिया मुसलमान 680 ई॰ के आसपास कर्बला की लड़ाई में उमैयद खलीफा की यजदी सेना द्वारा घेराबंदी के दौरान पैगंबर मुहम्मद के पोते इमाम हुसैन की हत्या पर शोक व्यक्त करने के लिए आशूरा को मनाते हैं।

जम्मू और कश्मीर में शिया आबादी कुल आबादी का लगभग 14 प्रतिशत है और घाटी में, वे ज्यादातर श्रीनगर और बडगाम जिलों में बसते हैं। शिया मुसलमान पारंपरिक रूप से विभिन्न आंतरिक मार्गों से जुलूस निकालते आए हैं, जो मुहर्रम महीने के पवित्र दिनों को मनाने के लिए अशुरा के 8 वें और 10 वें दिन जुलूस निकालते हैं, जिनमें से ये दो सबसे महत्वपूर्ण दिन हैं।

प्रशासन ने कहा कि कोविड-19 के वैश्विक प्रकोप के मद्देनजर इस वर्ष मुहर्रम के जुलूसों सहित सभी धार्मिक समारोहों पर अंकुश लगाया गया है। हालांकि, जदीबाल में स्थानीय लोगों का मानना है कि मुहर्रम के जुलूस पर प्रतिबंध महामारी से परे की बात है।

2011 में, बीजेपी ने शिया आबादी का प्रोफाइलिंग करने के लिए एक सर्वेक्षण किया  विशेष रूप से श्रीनगर और बडगाम में शिया मतदाताओं की चुनावों में भागीदारी ए फायदा उठाया जा सके,  जिसका उपयोग बहुसंख्यक सुन्नी आबादी के खिलाफ “सांप्रदायिक विभाजन दोष” के रूप में किया जा सकता है।

अधिकारियों ने 2010 तक जुलूसों की अनुमति दी टी जब पूरी घाटी में गर्मियों में लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन और झड़पें देखीं आई थी जिसमें लगभग 120 नागरिक मारे गए थे। तब से इन प्रमुख जुलूसों पर रोक ला दी आई थी क्योंकि सरकार को डर था कि वे राजनीतिक रूप से और बाद में कानून और व्यवस्था की समस्या का बन सकते हैं। हालांकि, इलाके भीतर-भीतर छोटे जुलूसों की अनुमति थी।

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वर्ष 2018 में, श्रीनगर और बडगाम में मुहर्रम के जुलूस में, शोकाकुल अनुयाइयों ने हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की प्रशंसा की, और उन्होंने आज़ादी समर्थक नारे लगाए। अगले साल 2019 में, मुहर्रम के पवित्र दिन अनुच्छेद 370 के उन्मूलन के मद्देनजर इस क्षेत्र में लगाए गए प्रतिबंधों से मेल खाते हैं। सभी जुलूसों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था जिसके परिणामस्वरूप स्थानीय लोगों और सरकारी बलों के बीच झड़पें हुईं और साथ ही वे इस साल भी जारी रही हैं।

कई स्थानीय लोग मुहर्रम के दौरान अपनी बालकनियों, खिड़कियों और बरामदों पर काले झंडे लगाते हैं। जदीबाल सहित शिया इलाकों में प्रमुख शिया नेताओं के चित्रों से सजाया जाता है, जिनमें ईरानी क्रांति के वास्तुकार अयातुल्ला खुमैनी, वर्तमान अयातुल्ला खामेनी और हिजबुल्ला के शीर्ष नेता हसन नसरल्लाह शामिल हैं। इनमें से अधिकांश पोर्ट्रेट/तस्वीरें पूरे रास्ते में लंबे समय तक लगी रहती  हैं और वे एक तरह से घाटी के शिया बहुल इलाकों का सीमांकन करती हैं। हाल ही में इसमें दो तस्वीरें जोड़ दी गई हैं जो प्रमुख हैं- कासिम सोलेमानी, जो एक हाई-प्रोफाइल ईरानी इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कमांडर थे, जिनकी इराक में इस साल की शुरुआत में हत्या कर दी गई थी और ईरानी सैन्य अधिकारी युवा मोहसिन होजाजी जिन्हे सीरिया में तीन साल पहले दाइश सेना ने मार दिया था।

1990 के दशक की शुरुआत में घाटी में एक शिया आतंकवादी समूह भी सक्रिय था, जिसे हिज्बुल मोमिनीन कहा जाता था। माना जाता है कि यह समूह हिज्बुल मुजाहिदीन और लश्कर जैसे अन्य संगठनों के समान महत्वपूर्ण नहीं था, लेकिन ऐसा माना जाता है कि इसने 2000 के दशक की शुरुआत में हमले किए थे, लेकिन जल्द ही खत्म हो गया।

स्थानीय लोगों में ईरान के साथ-साथ हिजबुल्लाह के प्रति बेमिसाल श्रद्धा के कारण ईरान और उसके सहयोगियों के प्रति कश्मीरी शियाओं के बीच में काफी समर्थन मिला है।

जदीबाल के एक स्थानीय व्यक्ति ने कहा, "पुलिस ने हमें हिजोबुल्लाह का झंडा नहीं फहराने की चेतावनी दी थी।" एक युवक जो अपनी उम्र के 20 के दशक की शुरुआत में हैं नाम न छपने की एसएचआरटी पर बताया था कि उनकी यह कार्यवाही इजरायल सरकार को उनका "मौन समर्थन" है।

इस महीने की शुरुआत में, ईरान समर्थित हिज़्बुल्लाह के उपनेता शेख नईम कासेम ने भी ऐसे समय में कश्मीर के "आत्मनिर्णय" को अपना समर्थन दिया है, जब भारत और ईरान के बीच संबंध- जोकि पूर्व में मजबूत सहयोगी से भू-राजनीतिक तनाव में बदल रहा है।

इराकी मज़हबस्थल के बाहर मौजूद युवाओं ने कहा कि, "भले ही उन्होंने सभी झंडे हटा दिए हों, हिजबुल्लाह का झंडा हमारे दिलों में है और इसलिए इजरायल के खिलाफ फिलिस्तीनियों के प्रति हमारी एकजुटता जारी रहेगी।"

वह कई अन्य लोगों के साथ इंतजार कर रहा था, ज्यादातर युवा थे, वे सुबह से ही आशूरा जुलूस में शामिल होने के वहाँ आ गए थे, लेकिन इलाके के बुजुर्गों ने पहले ही इसके बारे में फैसला कर लिया था। अन्य लोग थे, जिनमें ज्यादातर बुजुर्ग थे, जो इससे बचना चाहते थे क्योंकि जुलूस के मार्ग पर भारी टाडा में सुरक्षा बल तैनात थे। उनमें से ज्यादातर इस बात के लिए नाराज़ थे जो एक दिन पहले और दो दिन पहले रात के दौरान हुआ था। 

9 वीं मुहर्रम पर, पुलिस ने बेमिना इलाके में दर्जनों शोकसभाओं पर पेलेट गोली चलाई थी, जिसमें कई लोग घायल हुए और कम से कम दो लोगों की आंखों में गंभीर जख्म हो गए थे। 19 वर्षीय सुहैल अब्बास ने कहा, "यह एक शांतिपूर्ण विरोध था और हम सभी एसओपी और मास्क पहने हुए थे, लेकिन पुलिस ने हम पर फिर भी गोली चलाई।"

सुहैल के शरीर को उसकी आँखों से दाईं ओर और उसकी ऊपरी पीठ को छर्रों से पूरी तरह से छिद्रित कर दिया गया है। वह अपनी बाईं आंख खोल नहीं पा रहा है जो छर्रे और घाव के कारण सूजन हो गई है। डॉक्टरों ने पहले ही उसकी आंख की सर्जरी कर दी है और वह एसएमएचएस अस्पताल में प्रतीक्षा कर रहा है। न्यूजक्लिक को कक्षा 12 के छात्र ने बताया कि, "डॉक्टर कह रहे हैं कि वे मेरी आंख बचा सकते हैं।"

उसके ठीक बगल में बडगाम से एक और लड़का डाकिल था, जो उसी घटना के दौरान घायल हो गया था। लेकिन, 15 वर्षीय तनवीर का चेहरा अभी भी सनशेड कपड़े से ढंका था। उसकी दोनों आँखें क्षतिग्रस्त हैं और छर्रों से भरी हैं। उसके पिता नजीर अहमद ने टूटी हुई आवाज में कहा, कि "मुझे नहीं मालूम कि कितने छर्रे उसकी आँख में धसें हैं और मैं उसकी आंखों के बारे में निश्चित नहीं हूं।"

बेमिना में प्रदर्शनकारियों पर इस्तेमाल किए गए दल-बल से ज़दीबाल के कई लोगों में नाराज़गी है, जिनमें से कई ऐसे युवा थे, जिन्होंने इस अधिनियम को "मुसलमानों के खिलाफ साजिश" के रूप में निंदा की थी। चूंकि वे जुलूस निकालने का इंतजार कर रहे थे, उन्होंने अंजुमन ए शायरी के खिलाफ बात की, जो एक स्थानीय तालीम की संस्था है, जो इराकी के धर्मस्थल के भीतर एक मजलिस को छोड़कर स्थानीय सभाओं में किसी भी भागीदारी से बचने को कह रही थी।

अंजुमन के बहिष्कार का आह्वान करते हुए कुछ पोस्टर पहले ही इलाके में उभर आए थे। पठान ने कहा, "यह उपद्रवी लोगों द्वारा विभाजन पैदा करने की साजिश है।"

लेकिन, युवाओं और बुजुर्गों में से कई स्पष्ट रूप से विभाजित थे। मज़हब स्थल के बाहर तीसरे मोहर्रम पर महिला शोककर्ताओं पर पुलिस द्वारा आधी रात को लाठीचार्ज ने भी तनाव को बढ़ा दिया था, जिससे रविवार को हुई झड़पों में पुलिसकर्मियों सहित कई लोग घायल ओ आए थे।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Inside Zadibal: The Siege, Clashes and Reverence

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