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क्या मुस्कान इस देश की बेटी नहीं है?
कर्नाटक के मांड्या के एक कॉलेज में एक युवा मुस्लिम महिला पर चिल्लाने और उन पर फब्तियां कसने के मामले पर सत्तारूढ़ व्यवस्था खामोश है। क्या उसका ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का संकल्प महज एक नारा था?
राजा मुज़फ़्फ़र भट
15 Feb 2022
Muskan Khan

भारत एक विविधता वाला देश और एक बहुलतावादी समाज है। यह अनेक धर्मों, कई संस्कृतियों और भिन्न-भिन्न परंपराओं का एक मिश्रण है। अनेकता में एकता इस राष्ट्र की सदियों से एक महत्त्वपूर्ण विशेषता रही है। देश के बंटवारे के दरम्यान बड़े पैमाने पर हुए दंगों के बाद भी, भारत के नेताओं ने यह सुनिश्चित किया कि आजाद भारत में वह रक्तरंजित इतिहास अपने को कभी दोहरा न पाए। 

डॉ बी आर अम्बेडकर के नेतृत्व में देश ने संविधान को 1949 में अंतिम रूप दिया था, जो इस बहुसांस्कृतिक समाज वाले देश के एकदम अनुकूल था। अपना संविधान विभिन्न जाति, धर्म और समुदायों के विशिष्ट सांस्कृतिक गुणों का संरक्षण सुनिश्चित करता है और सभी धर्मों और संस्कृति में आस्था रखने वाले और भाषाई अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों को मान्यता देता है। इसकी प्रस्तावना में ही "धर्मनिरपेक्ष" शब्द शामिल है कि जो सुनिश्चित करता है कि राज्य किसी भी धर्म के मामलों में कोई भेदभाव नहीं करता है, उसमें हस्तक्षेप नहीं करता है।

वास्तव में, भारत का संविधान धार्मिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों के रूप में जोड़कर धर्मों की रक्षा करता है। अनुच्छेद 25 कहता है कि सभी नागरिकों को सार्वजनिक व्यवस्था के अधीन अपने धर्म को मानने, उसके मुताबिक आचरण करने और अपने धर्म का प्रचार करने का पूरा अधिकार है। फिर अनुच्छेद 26 यह कहता है कि सभी धार्मिक संप्रदाय अपनी आस्था के मामलों का खुद प्रबंधन कर सकते हैं। 

कर्नाटक के ताजा विवाद में इस तथ्य की ओर ध्यान जाता है कि आजादी के लगभग 70 वर्षों तक किसी ने भी इस बात पर उंगली नहीं उठाई कि भारत में अमुक लोग क्या पहनते हैं या क्या खाते हैं। परंतु 2014 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सत्ता में आने के बाद से चीजें बदलने लगीं। शुरुआत में मुसलमानों पर बीफ खाने या उसको स्टोर करने के आरोप में हमला किया गया था। उत्तर प्रदेश के दादरी क्षेत्र में कथित तौर पर अपने रेफ्रिजरेटर में गोमांस रखने के लिए ही मोहम्मद अख़लाक़ की 2015 में हत्या कर दी गई थी। तब से इस देश ने राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और अन्य राज्यों में गायों को ढोने वाले वाहनों पर तथाकथित गौ रक्षकों या गौरक्षकों द्वारा मुसलमानों पर हमलों का एक सिलसिला शुरू होते देखा है। यहां तक कि गौ व्यापारियों को भी नहीं बख्शा गया। कई मारे गए थे। 

राजस्थान के अलवर इलाके में एक 55 वर्षीय डेयरी किसान पहलू खान की उस समय पीट-पीट कर हत्या कर दी गई, जब विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल से जुड़ी भीड़ ने एक लॉरी में मवेशियों को ले जाने के लिए उन पर हमला कर दिया था। इस वारदात के दो साल बाद, स्थानीय अदालत ने पहलू खान की गर्दन को झटकने वाले, उन्हें जमीन पर फेंकते और उन्हें बार-बार लात मारते हुए लोगों को "संदेह के लाभ" के आधार पर बरी कर दिया था। आज भी इस तरह के हमले जारी हैं, लेकिन कई घटनाओं की रिपोर्टिंग ही नहीं की जाती। मध्य प्रदेश के एक 25 वर्षीय व्यक्ति को पिछले साल जून में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में गौरक्षकों की भीड़ ने मार डाला था और एक अन्य को घायल कर दिया था। 

उडुपी कॉलेज में हिजाब पर प्रतिबंध

पिछले दिसम्बर में, कर्नाटक के उडुपी जिले में सरकार द्वारा संचालित एक प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज ने छात्रों को कक्षाओं के अंदर हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था। हिजाब पहनने की इजाजत मांगने वाली लगभग सात मुस्लिम छात्राओं को कक्षाओं में जाने की अनुमति नहीं दी गई। जब कक्षाओं के बाहर बैठी इन छात्राओं  की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं तो इस पर हंगामा मच गया। कॉलेज के अधिकारियों ने संवाददाताओं से कहा कि यह हिजाब कॉलेज में निर्धारित ड्रेस कोड का उल्लंघन करेगा। लड़कियों ने कहा कि उन्होंने सही पोशाक पहनी हुई थी और केवल एक हिजाब पहनना चाहती थी, जो दुनिया भर में इस्लामिक पहनावे का एक हिस्सा है। उडुपी में ये छात्राएं कोई नए ड्रेस कोड का ईजाद नहीं कर रही थीं। कई कॉलेजों की लड़कियां भी वर्षों से बिना किसी आपत्ति के एक हिजाब, बुर्का आदि पहनती रही हैं। 

यदि देश के शिक्षण संस्थान मुस्लिम छात्राओं को एक दुपट्टे से भी वंचित कर देते हैं, तो भारत को बहुलतावादी समाज कहने का क्या मूल्य रह जाता है? यह विवाद तो संविधान को नाहक ही खुली चुनौती देने जैसा है। दुर्भाग्य से, एक कॉलेज के असंवैधानिक निर्णय ने कर्नाटक के अन्य हिस्सों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाला है। 

अब, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जुड़े समूहों ने हिजाब मुद्दे पर राजनीति करना शुरू कर दिया है। कई पुरुष और महिला छात्र जिन्होंने पहले कभी भगवा गमछा या शॉल नहीं धारण किया था, उन्हें स्कूलों में धारण करना शुरू कर दिया है। दक्षिणपंथी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) जैसे छात्र समूह पूरे कर्नाटक में इन उपायों को अंजाम दे रहे हैं, जिससे एक विशाल सांप्रदायिक विभाजन पैदा हो रहा है। भाजपा नेताओं के टीवी शो और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से दिए गए समर्थन ने हिंदुत्व समूहों के मनोबल को बढ़ाने का काम किया है। 

2 जनवरी को कर्नाटक के कोप्पा में एक सरकारी डिग्री कॉलेज में, कई छात्रों ने कक्षा में मुस्लिम महिलाओं हिजाब पहनने का विरोध करने के लिए भगवा गमछा धारण कर लिया था। चिकमंगलूर जिले के एक अन्य कॉलेज में प्रशासन ने 10 जनवरी तक के लिए ड्रेस कोड को स्थगित कर दिया था। इसको देखते हुए प्रिंसिपल को छात्रों के ड्रेस कोड पर चर्चा के लिए उनके माता-पिता की एक बैठक बुलानी पड़ी। 

यह प्रासंगिक है कि उडुपी में मुस्लिम छात्राओं ने जूनियर कॉलेज द्वारा निर्धारित आसमानी नीले रंग का कुर्ता और नेवी सलवार पहनी हुई थी। इसके अलावा, प्रदर्शनकारी लड़कियों ने गहरे नीले रंग का हिजाब पहना हुआ था और अपने चेहरे पर मास्क लगाया हुआ था। कुछ ने अपने चेहरे को कपड़े से ढक लिया, जो कि COVID-19 के प्रोटोकॉल के कारण सार्वजनिक स्थानों पर आम है। ये छात्राएं लंबे काले वस्त्र, घूंघट या बुर्का नहीं पहने हुईं थीं, लेकिन कॉलेज के उचित ड्रेस कोड का पालन कर रही थीं। इसलिए यह समझना मुश्किल है कि कॉलेज के प्रिंसिपल ने आपत्ति क्यों की। 

मुस्कान पर फब्तियां कसी गईं

अपनी लघु कहानी, 'ए स्पार्क नेग्लेक्टेड बर्न्स द हाउस' में, लियो टॉल्स्टॉय दो सामंती पड़ोसियों, इवान और गेब्रियल का वर्णन करते हैं। उनके बीच सालों की तकरार और खालिस नफरत के बाद, गेब्रियल ने इवान का घर जला देने का फैसला किया, लेकिन उसकी लगाई आग में उसका अपना घर भी खाक हो गया। इस कथा में, टॉल्स्टॉय नफरत के प्रतिकूल प्रभावों के बारे में बात करते हैं और दिखाते हैं कि सुलह इनसान को मुसीबत से बचा सकती है। 

अगर उडुपी में कॉलेज के प्रिंसिपल ने इस मुद्दे को भड़कने नहीं दिया होता, तो आंदोलनकारी बदमाशों की मुस्कान को मांड्या में रोकने की हिम्मत नहीं होती। मुस्कान हिजाब पहनकर पीईएस कॉलेज में असाइनमेंट जमा करने गई थी। वहां भगवा गमछा गले में लपेटे युवकों के एक समूह ने मुस्कान को धमकाने के लिए जय श्री राम के नारे लगाए। जैसे-जैसे जयकारा तेज और तीखा होता गया मुस्कान आगे बढ़ती गई। फिर वे युवक मुस्कान के आसपास चले आए और उन्हें घेर लिया। मुस्कान ने उनसे बिना डरे पूरी बहादुरी से अल्लाहु अकबर (भगवान महान है), अल्लाहु अकबर के नारे लगाकर उनकी धमकी वाले जयकारे का जवाब दिया। कुछ स्टाफ सदस्यों ने इस दौरान हस्तक्षेप किया और मुस्कान को कॉलेज की इमारत में दाखिल होने में उसकी मदद की। इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। 

ये लोग कथित तौर पर कॉलेज के बाहर जमा हो गए थे और कॉलेजों में हिजाब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे थे। वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने के लिए कुछ मीडियाकर्मियों को साथ लाए थे, लेकिन मुस्कान की प्रतिक्रिया का अधिक सामाजिक प्रभाव पड़ा। 

देश में ड्रेस कोड

जम्मू और कश्मीर में, हिंदू और सिख छात्रों के कॉलेजों और स्कूलों में अलग-अलग ड्रेस कोड हैं, और प्रबंधन कभी भी छात्रों को हेडस्कार्फ़ पहनने के लिए मजबूर नहीं करता है। भारत भर के अल्पसंख्यक कॉलेजों में भी, भले ही अधिकांश छात्र मुस्लिम हों, प्रबंधन कभी भी गैर-मुसलमानों को अपना सिर ढकने के लिए नहीं कहता है। हिजाब या हेडस्कार्फ़ का उपयोग करना एक सदियों पुरानी प्रथा है, और इसके विरोध में आंदोलन करने वाले केवल मुसलमानों को सताना और डराना चाहते हैं। वे इस पर राजनीति करने के लिए लगातार इस तरह के मुद्दे उठा रहे हैं।(सौभाग्य से इस बहस में कुछ प्रमुख वर्ग भी महिलाओं के अधिकारों के लिए खड़े हैं।)

मांड्या में भीड़ ने जिस तरह मुस्कान को डराया-धमकाया, उन पर फब्तियां कसीं और इसके बावजूद घटना की निंदा करने की बजाए पर पार्टी के नेताओं ने जैसी चुप्पी साधे रखी-गौरतलब है कि इस मामले में अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है-इन सबसे यह स्पष्ट हो जाता है कि भाजपा सरकार के लिए ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ केवल एक नारा है। ऐसे में, मैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई से पूछता हूं कि क्या मुस्कान इस देश की बेटी नहीं हैं? 

(लेखक श्रीनगर स्थित स्तंभकार, कार्यकर्ता और स्वतंत्र शोधकर्ता और एक्यूमेन फेलो हैं। आलेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे गए लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

https://www.newsclick.in/isnt-muskaan-daughter-nation

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Communalism

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