Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

जेएनयू : आरटीआई के बाद पुलिस की रिपोर्ट से भी जेएनयू प्रशासन का झूठ सामने आया!

दिल्ली पुलिस ने जानकारी दी है कि जेएनयू में पांच जनवरी की हिंसा से पहले पुलिस ने विश्वविद्यालय प्रशासन को कम से कम चार बार पत्र लिखकर जेएनयू छात्र संघ के साथ संवाद करने की पहल करने को कहा था।
JNU

दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयूके परे घटनाक्रम को लेकर कई खुलासे हो रहे हैंजो प्रशासन की लापरवाही को और जानबूझकर अंदोलन को भड़काने की बात को ही उजागर कर रहे हैं। इसी कड़ी में दिल्ली पुलिस ने जानकारी दी है कि जेएनयू में पांच जनवरी क हिंसा से पहले दिल्ली पुलिस ने विश्वविद्यालय प्रशासन को कम से कम चार बार पत्र लिखकर जेएनयू छात्र संघ के साथ संवाद करने की पहल करने को कहा था। एक वरिष्ठ अधिकारी ने मंगलवार को बताया कि ये पत्र पिछले साल नवंबर और दिसंबर के बीच लिखे गए थे।
 

वसंत कुंज (उत्तरथाने के प्रभारी ने 26 नवंबर को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयूके रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर कहा था कि छात्रावास शुल्क वृद्धि के खिलाफ 18 नवंबर को प्रदर्शन मार्च के दौरान पुलिस द्वारा दो बार छात्रों को रोका गया। इस दौरान कानून व्यवस्था का मुद्दा पैदा हो गया।
नौ नवंबर को छात्रों के एक और प्रदर्शन का हवाला देते हुए पत्र में कहा गया कि जेएनयू प्रशासन की ओर से छात्रों से मिलने कोई नहीं आया।

यही बात छात्र लंबे समय से कर रहे है कि कुलपति या प्रशासन का कोई भी अधिकारी उनकी समस्या को लेकर चर्चा करने को तैयार नहीं है। छात्रों के इन बताओ को अब दिल्ली पुलिस भी सत्यापित कर रही है।
पुलिस के लैटर का एक यह हिस्सा यहाँ देख सकते है कि पुलिस ने कैसे जेएनयू प्रशासन को छात्रों से मिलने को कहा लेकिन प्रशासन ने ऐसा नहीं किया।

JNU.jpg

इसके अलावा मंगलवार को एक आरटीआई ने हिंसा और प्रशासन के दावों को लकेर कई खुलासे किये। आरटीआई से खुलासा हुआ कि जेएनयू के सर्वर रूम में बायोमीट्रिक प्रणाली और सीसीटीवी संबंधी तोड़फोड़ जनवरी के पहले सप्ताह में नहीं हुई थी।विश्वविद्यालय ने यह बात एक आरटीआई आवेदन के जवाब में कही है।

यह विश्वविद्यालय प्रशासन के उन दावों के विपरीत है जिनमें कहा गया था कि छात्रों ने तीन जनवरी को बायोमीट्रिक प्रणाली और सीसीटीवी कैमरों को तोड़ दिया था।

नेशनल कैम्पेन फॉर पीपुल्स राइट टू इन्फॉर्मेशन के सदस्य सौरव दास ने आरटीआई के तहत आवेदन दायर कर यह जानकारी मांगी थी।

विश्वविद्यालय द्वारा दी गई जानकारी में कहा गया है कि सेंटर फॉर इन्फॉर्मेशन सिस्टम (सीआईएसमें जेएनयू का मुख्य सर्वर तीन जनवरी को बंद हुआ था और अगले दिन यह ‘‘विद्युत आपूर्ति में बाधा की वजह से’’ ठप हो गया।

जवाब में यह भी कहा गया है कि पांच जनवरी को अपराह्न तीन बजे से रात 11 बजे तक जेएनयू परिसर के उत्तरी/मुख्य द्वार पर लगे कैमरों की कोई पूरी सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध नहीं है जिस दिन नकाबपोश लोगों ने परिसर में प्रवेश किया था और छात्रों तथा शिक्षकों पर हमला किया था।

जेएनयू प्रशासन ने तीन जनवरी को दावा किया था कि नक़ाब पहने छात्रों के एक समूह ने सीआईएस में जबरन प्रवेश किया और विद्युत आपूर्ति बंद कर दी जिससे सर्वरसीसीटीवी निगरानीबायोमीट्रिक उपस्थिति और इंटरनेट सेवाएं निष्क्रिय हो गईं।

आरटीआई आवेदन के जवाब में कहा गया, ‘‘जेएनयू का मुख्य सर्वर तीन जनवरी को बंद हुआ और अगले दिन विद्युत आपूर्ति ठप होने से ठप हो गया।’’

इसमें कहा गया, ‘‘30 दिसंबर 2019 से आठ जनवरी 2020 के बीच कोई सीसीटीवी कैमरा नहीं टूटा।’’

जवाब में यह भी कहा गया कि चार जनवरी को दोपहर एक बजे 17 फाइबर ऑप्टीकल केबल नष्ट हुईं। 30 दिसंबर 2019 से आठ जनवरी 2020 के बीच कोई बायोमीट्रिक प्रणाली नहीं टूटी।

आरटीआई आवेदन में यह भी पूछा गया कि क्या जेएनयू परिसर में सीआईएस कार्यालय के भीतर या आसपास सीसीटीवी कैमरों के सर्वर हैं।

इसके जवाब में कहा गया कि सीसीटीवी कैमरों के सर्वर डेटा सेंटर में हैंन कि सीआईएस कार्यालय में। इसमें यह भी कहा गया, ‘‘सीसीटीवी कैमरों की अवस्थिति का विवरण सुरक्षा कारणों से उपलब्ध नहीं कराया जा सकता।’’

आवेदन में यह भी पूछा गया कि 25 दिसंबर 2019 से आठ जनवरी 2020 तक तकनीकी खामी या समस्या की वजह से जेएनयू की वेबसाइट कितनी बार बंद हुई।

इसके जवाब में कहा गया कि इस अवधि में वेबसाइट वैकल्पिक बैकअप प्रबंधों की वजह से लगातार चलती रही।

हालाँकि जनवरी की हिंसा के बादजेएनयू प्रशासन ने दावा किया था कि इस महीने की पहली और चौथी तारीख को जेएनयू में मला हुआ थजिसमें जनवरी को विश्वविद्यालय के डेटा सेंटर को निशाना बनाया गया था। इसी तरहप्रशासन ने कहा था कि इस हमले का नेतृत्व छात्रसंघ के लोगों ने किया था।

जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष आइशी घोष ने कहा कि यह सब खुलासे हमारे पुराने रुख की पुष्टि करत है कि हिंसा पूर्व नियोजित थ। हमले से पहले साबरमती हॉस्टल में साजिश के तहत रोशनी बंद की गई थी,यह कोई एक संयोग नहीं था।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुएघोष ने कहा कि आरटीआई हिंसा की तस्वीर कई तरीकों से साफ़ करता है। उन्होंने कहा, "वीसी द्वारा लगाए गए झूठे आरोप तारीख को हुई घटना से ध्यान हटाने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है ... वीडियो सबूत हैं कि एबीवीपी ने कैसे स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के पास वास्तविक में हिंसा की थी।पंजीकरण प्रभावित करने के मुद्दे पर प्रशासन झूठ बोल रह है।

विश्वविद्यालय से इस बारे में तत्काल कोई टिप्पणी उपलब्ध नहीं हुई है।
अगर हम इस परे घटनाक्रम और अब जो नए खुलासे जो हो रहे है। उन्हें देखेचाहे वो पुलिस की चिट्ठी हो या फिर आरटीआई के माधयम से जो जानकरी मिली है। वो जेएनयू प्रशासन पर कई गंभीर सवाल खड़ा करते हैं कि क्या प्रशासन नहीं चाहता था की छात्रों और जेएनयू प्रशासन के बच का गतिरोध खत्म हो। क्योंकि अगर वो ऐसा चाहता था तो फिर प्रशासन का कोई भी अधिकारी छात्रों से मिलकर बात क्यों नहीं कर रहा था। इस बात की पुष्टि दिल्ली पुलिस ने खुद की है की उन्होंने चार बार प्रशासन से अनुरोध किया की वो छात्रों के साथ मिलाकर बात करे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। क्यों इसके पीछे उनकी क्या मंशा थी। इसका जवाब प्रशासन को देना है।

(समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest