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जंतर-मंतर : एमटेक फीस बढ़ोतरी के ख़िलाफ़ इंजीनियरिंग छात्रों का प्रदर्शन

अब तक आईआईटी में एमटेक की पढ़ाई करने वाले छात्रों को हर सेमेस्टर में 10 से 30 हजार रुपये तक की फीस देनी होती थी। लेकिन अब इसे एक झटके में बढ़ा कर दो लाख रुपये सालाना कर दिया गया है।
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मानव संसाधन और विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) द्वारा आईआईटी में एमटेक के हालिया शुल्क वृद्धि के खिलाफ अखिल भारतीय इंजीनियरिंग छात्र परिषद द्वारा जंतर-मंतर पर आयोजित प्रदर्शन में सैकड़ों छात्रों ने हिस्सा लिया। मंत्रालय ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) की सलाह से हाल ही में एमटेक की फीस में 900 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है। इसके साथ ही छात्रों को मिलने वाले वजीफे (स्टाइपेंड) को भी रद्द कर दिया है।

प्रदर्शनकारी छात्रों ने बताया कि जो पाठ्यक्रम शुल्क लगभग 10,000 से 30,000 रुपये था, अब धीरे-धीरे बढ़कर 2 लाख रुपये हो जाएगा।

छात्रों के प्रदर्शन को संबोधित करते हुए गेट अकादमी, भिलाई, छत्तीसगढ़ के निदेशक उमेश ढांडे ने कहा, 'यह फैसला उन छात्रों के खिलाफ है, जो पढ़ाई करना चाहते हैं। केंद्र सरकार केवल अमीर घरों के लड़कों के लिए एमटेक कार्यक्रम रखना चाहती है। हम सरकार के इस निर्णय का विरोध करते हैं और मांग करते हैं कि बढ़ी हुई फीस वापस ली जाय। साथ ही छात्रों को दी जाने वाली स्टाइपेंड भी बहाल की जाय।'

उन्होंने कहा कि एमटेक की फीस में 900 प्रतिशत का इजाफा निश्चित रूप से शिक्षा की गुणवत्ता को खराब करेगा। खासकर गेट परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्र इससे हतोत्साहित होंगे।
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आपको बता दें कि शुक्रवार को प्रदर्शन में हिस्सा लेने गाजियाबाद, भोपाल, जमशेदपुर, जयपुर, इलाहाबाद समेत देश के विभिन्न हिस्सों से छात्र जंतर-मंतर आए थे।

प्रदर्शन में हिस्सा लेने आए जमशेदपुर एनआईटी से ग्रेजुएट आरसी भास्कर ने कहा, 'सरकार ने फीस वृद्धि के पीछे ड्राप आउट को जिम्मेदार बताया है। लेकिन इसके लिए छात्रों को जिम्मेदार बतलाना गलत है। दरअसल ज्यादातर छात्र इसलिए पाठ्यक्रम को बीच में ही छोड़ देते हैं क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां (पीएसयू) अगस्त से सितंबर के बीच भर्ती के परिणामों की घोषणा करती हैं। अब 12, 500 की स्टाइपेंड के लिए लोग अपनी 12—15 लाख की नौकरी नहीं छोड़ देंगे।'

उन्होंने आगे कहा,'लेकिन जो छात्र नहीं सेलेक्ट होते हैं वह अपना कोर्स पूरा करते हैं। एमटेक करने वाले ज्यादातर छात्र मिडिल क्लास या गरीब परिवारों से आते हैं। ऐसे में स्टाइपेंड उनके लिए बड़े सहारे का काम करता है।'

एक अन्य प्रदर्शनकारी छात्रा अरुणिमा त्यागी कहती हैं, 'बीच में पढ़ाई छोड़ने का बचकाना तर्क देकर फीस में इतनी भारी बढ़ोतरी किसी भी नजरिए से उचित नहीं है। काउंसिल को अपने इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। एक दूसरा तर्क भी चल रहा है कि आईआईएम की फीस ज्यादा है तो आईआईटी से एमटेक की फीस भी ज्यादा होनी चाहिए लेकिन आईआईएम में पढ़ाई के बाद प्लेसमेंट बेहतर होता है। वो प्लेसमेंट की सुविधा एमटेक के बाद हासिल नहीं है। इस पर कोई भी बात नहीं कर रहा है।'

आपको बता दें कि शुल्क वृद्धि को वापस लेने की मांग को लेकर 66,000 से अधिक छात्रों ने सोशल मीडिया पिटीशन पर हस्ताक्षर किए हैं। कई छात्रों ने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टैग कर इस फैसले को वापस लेने की अपील की है।

क्या निर्णय लिया है एमएचआरडी ने

दसअसल सरकार ने देश के 23 आईआईटी में एमटेक के पाठ्यक्रमों में सुधार के लिए एक तीन-सदस्यीय समिति का गठन किया था। उस समिति की सिफारिशों के आधार पर नए प्रस्तावों पर फैसला किया गया है।
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हाल ही में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की अध्यक्षता में हुई बैठक में आईआईटी काउंसिल ने अपनी बैठक में कई नए प्रस्तावों को हरी झंडी दिखाई है।

अब तक आईआईटी में एमटेक की पढ़ाई करने वाले छात्रों को हर सेमेस्टर में पांच से 10 हजार रुपये तक की फीस देनी होती थी। लेकिन अब इसे एक झटके में बढ़ा कर बीटेक पाठ्यक्रम के समकक्ष यानी दो लाख रुपये सालाना करने का प्रस्ताव है। इसके साथ ही ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग (गेट) के जरिए दाखिला लेने वाले छात्रों को हर महीने 12,400 रुपये की जो फेलोशिप मिलती थी उसे भी बंद करने का फैसला किया गया है।

सरकार का कहना है कि छात्र एमटेक की पढ़ाई का इस्तेमाल नौकरियां तलाशने या किसी प्रतियोगी परीक्षा में पास होने के लिए करते हैं। यही वजह है कि इन पाठ्यक्रमों की पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले छात्रों की तादाद 50 फीसदी से ज्यादा है। यह सरकारी संसाधनों की बर्बादी तो है ही, इससे दूसरे छात्र पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं। उनकी दलील है कि अगर कोई छात्र एमबीए की डिग्री हासिल करने के लिए 20 लाख खर्च कर सकता है तो वह आईआईटी से मास्टर डिग्री के लिए चार लाख जरूर खर्च कर सकता है।

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