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झारखंड : 1932 खतियान आधारित स्थानीयता विधेयक को राज्यपाल ने वापस लौटाया, हुआ पुरज़ोर विरोध

उक्त विधेयक का समर्थन कर रहे झारखंडी समुदायों में गहरा रोष है। तो वहीं हेमंत सोरेन सरकार व उसके घटक दलों के साथ-साथ प्रमुख सत्ताधारी दल झामुमो के अलावा वामपंथी दलों में भी काफी नाराज़गी देखी जा रही है।
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आशंका भरे कयास लगाए ही जा रहे थे कि हेमंत सोरेन सरकार द्वारा विधानसभा से पारित ‘1932 खतियान आधारित झारखंड राज्य स्थानीयता नीति विधेयक 2022’ को झारखंड  के राज्यपाल संभवतः अपनी सहमति नहीं देंगें जो आख़िरकार सच भी साबित हुआ। इसे लेकर एक बार फिर प्रदेश की सरकार और राज्यपाल आमने-सामने दिख रहें हैं जिसे मीडिया “टकराव” और “ठन गयी है” इत्यादि कह रही है। हालांकि राज्य सरकार की ओर से ये कहा गया है कि अभी तक राजभवन से इस मामले पर कोई आधिकारिक प्रपत्र नहीं प्राप्त हुआ है।

30 जनवरी की मीडिया ख़बरों के अनुसार हेमंत सोरेन सरकार द्वारा राज्यपाल को भेजे गए उक्त विधेयक को अग्रसारित करने से पहले ही हस्ताक्षर किए बगैर राज्य सरकार को वापस लौटा दिया गया है।

इसे लेकर राज्य में सियासी माहौल काफी सरगर्म हो उठा है। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा और सत्ताधारी दल झामुमो के नेताओं द्वारा मीडिया और सोशल मीडिया में एक-दूसरे के खिलाफ दिए जा रहे परस्पर बयानों की ज़ुबानी जंग छिड़ गयी है।

जहाँ, उक्त विधेयक का समर्थन कर रहे व्यापक झारखंडी समुदायों में गहरा रोष है। तो वहीं हेमंत सोरेन सरकार व उसके घटक दलों के साथ-साथ प्रमुख सत्ताधारी दल झामुमो के अलावा वामपंथी दलों में भी काफी नाराज़गी देखी जा रही है।

मुख्यमंत्री ने तो इस विवादास्पद फैसले की जानकारी प्रसारित होते ही प्रदेश के राज्यपाल और भाजपा के विरोध में अपने बयानों का मोर्चा सा खोल दिया है। 30 जनवरी को कोल्हान क्षेत्र के सरायकेला में ‘खतियानी जोहार यात्रा’ के दौरान आयोजित विशाल जनसभा में उन्होंने राज्यपाल पर भाजपा के “हिडेन एजेंडा” को लागू करने का आरोप लगाया है। जनसभा संबोधन में भाजपा पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, "हम सभी खुली आँखों से लगातार देख रहें हैं कि किस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी अपने द्वारा नियुक्त राज्यपालों के ज़रिए “पिछले दरवाज़े से” सभी गैर-भाजपा शासित राज्य की सरकारों को परेशान कर रही है। इसलिए झारखंड  के राज्यपाल महोदय द्वारा विधेयक को वापस लौटा दिए जाने की ये घटना कोई नई बात नहीं है। लेकिन हम भी बता देने चाहते हैं कि यह कोई दिल्ली या अंडमान-निकोबार नहीं, झारखंड है। यहाँ राज्य सरकार जो चाहेगी वही होगा, राज्यपाल जो चाहेंगे वह नहीं होगा। हम संविधान की धज्जियां नहीं उड़ने देंगे।"

ख़बरों के अनुसार झारखंड के राज्यपाल ने ‘1932 खतियान आधारित स्थानीयता विधेयक’ को राज्य सरकार को बिना हस्ताक्षर किए यह कहकर वापस लौटाया है कि-राज्य सरकार इसकी वैधानिकता की पहले गंभीरतापूर्वक समीक्षा कर ले और विधेयक संविधान व उच्चतम न्यायलय के आदेशों के अनुरूप हो।

सूत्रों के अनुसार यह भी बताया जा रहा है कि राज्यपाल ने उक्त विधेयक की समीक्षा के क्रम में पाया है कि संविधान की धारा-16 जिसके तहत देश के नागरिकों के नियोजन के मामले में सभी को सामान अधिकार प्राप्त है, इसकी धारा-16 (3) के अनुसार सिर्फ संसद को ही ये शक्तियां प्रदत्त है कि वह विशेष प्रावधानों के तहत धारा-16 (ए) के अंतर्गत नियोजन के मामले में कोई विशेष नियम अथवा शर्त बना सकती है। राज्य की विधानसभा को ये अधिकार नहीं हासिल है।

राज्यपाल के फैसले पर भाकपा-माले ने कहा है कि, “1932 आधारित स्थानीयता नीति विधेयक को लौटाना झारखंडी युवाओं के साथ आघात है। राज्य की विधानसभा से सर्वसम्मत पारित विधेयक को लौटाना राज्यपाल का अधिकार है लेकिन इससे झारखंडी आकांक्षाओं को गहरा आघात लगा है। राज्यपाल को झारखंड की विशेषताओं पर गौर करना चाहिए।”

माले के प्रदेश सचिव ने यह भी कहा है कि, "पिछले दिनों चाईबासा कर देश के गृहमंत्री ने 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता विधेयक के विरोध में जिस तरह का भाषण दिया, उसी से स्पष्ट हो गया था कि राजभवन से इस विधेयक को वापस कर दिया जाएगा। भाजपा झारखंडी युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है।" इसके अलावा उन्होंने भाकपा-माले की ओर से हेमंत सोरेन सरकार से मांग भी की है कि वह विधानसभा से विधेयक को पुनः पारित कराकर राज्यपाल को भेजे। झारखंड विधानसभा में माले के विधायकों ने विधेयक को अपना समर्थन दिया था।

सरकार के घटक कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता ने भी आरोप लगाया है कि झारखंड के राज्यपाल भाजपा के हिडेन एजेंडा पर काम कर रहे हैं। 1932 के खतियान आधारित स्थानीयता को महागठबंधन सरकार ने गंभीरता से लेते हुए राज्य की जनता की चिरलंबित मांग को पूरा किया। उस समय सदन में तो भाजपा ने खुलकर विरोध नहीं किया लेकिन अब वह संवैधानिक पदों पर आसीन अपने लोगों के ज़रिए रुकावट पैदा करने का काम कर रही है।

मुख्य सत्ताधारी दल झामुमो के प्रवक्ता ने भी क्षोभ प्रकट करते हुए कहा है कि, "राज्यपाल महोदय को संविधान के अनुच्छेद-31 (बी) का पालन करते हुए राज्य विधानसभा से सर्वसम्मत पारित इस विधेयक को संविधान की 9 वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए संसद को प्रेषित करना चाहिए था, जो नहीं करके उन्होंने व्यापक स्तर पर झारखंडी जनता को काफी निराश किया है।"

उन्होंने आगे यह भी कहा कि, "हालाँकि हम ये जानते थे कि झारखंडी आकाँक्षाओं को पूरा करने वाले इस विधेयक को लेकर भाजपा के नेतृत्व से झारखंड विरोधी शक्तियां शुरू से सक्रीय हो गईं थीं। भाजपा को “बाहरी जनता पार्टी” बताते हुए उन्होंने कहा कि, "झारखंड की सरकार पीछे हटने वाली नहीं है, इस विधेयक को दोबारा विधानसभा से पारित कराकर राज्यपाल को भेजा जाएगा। राज्यपाल इस प्रदेश में लागू पांचवी अनुसूची का संवैधानिक संरक्षक हैं, जिसका अनुपालन यदि वे नहीं करेंगें तो कौन करेगा?"

प्रदेश भाजपा के नेताओं समेत प्रस्तावित नेता प्रतिपक्ष ने राज्यपाल के फैसले का समर्थन करते हुए हेमंत सरकार को विधि सम्मत काम करने की नसीहत दी है।  वहीँ, कई सामाजिक एवं आदिवासी जन संगठनों व उनके प्रतिनिधियों ने राज्यपाल के फैसले पर अपना विरोध जताते हुए भाजपा को आड़े हाथों लिया है।

उक्त प्रकरण में इस बात को कभी भी नज़रंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए कि बीते 15 नवंबर को अपने राज्य गठन के 22 वर्ष पूरा करने वाले झारखंड प्रदेश के लिए झारखंडी जनमानस ने सात दशकों से भी अधिक समय तक संघर्ष किया है। काफी दमन और दुखों का सामना करने के पश्चात उसे ये अलग राज्य हासिल हुआ है, ऐसे में अपने राज्य में कोई विशेषाधिकार हासिल करने की मांग उठाना उनका लोकतान्त्रिक अधिकार बनता है। फिलहाल तो सबको इंतज़ार है कि राज्य विधानसभा का अगला सत्र कब आहूत होता है।

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