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झारखंड: हेमंत सोरेन के "आदिवासी हिन्दू नहीं हैं" बयान पर विवाद, भाजपा परेशान!

“जब देश का उच्च न्यायालय कह रहा है कि आदिवासी हिन्दू नहीं हैं, तो ये कौन लोग हैं? इन पर कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट का केस होना चाहिए।” 
हेमंत सोरेन

झारखंड मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा हार्वर्ड इंडिया कॉन्फ्रेंस में दिया गया वक्तव्य काफी सियासी रंग लेता जा रहा है। इसे लेकर भाजपा व संघ संचालित हिन्दू संगठनों के प्रवक्ताओं की काफी तीखी प्रतिक्रियाएं लगातार आ रही हैं। तो जवाब में आदिवासी पक्ष के लोगों की प्रतिक्रियाओं के आने का सिलसिला भी जारी है। आदिवासियों के सवाल-समस्याओं को अक्सर हाशिये पर जगह देने वाली गोदी मीडिया इसे 'हिन्दू-मुसलमान' मुद्दे की ही तर्ज़ पर 'हिन्दू बनाम आदिवासी' विवाद बनाकर परोसने में कोई कमी नहीं रख रही है।

ज्ञात हो कि दुनिया के चर्चित हार्वर्ड विश्वविद्यालय की ओर से गत 20 फरवरी की देर रात (भारतीय समयानुसार 21 फरवरी) आयोजित हार्वर्ड इंडिया कॉन्फ्रेंस में पहली बार भारत के किसी आदिवासी राजनेता के बतौर हेमंत सोरेन जी को बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। लगभग 1 घंटे तक चले इस कार्यक्रम में पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने बिना किसी लाग लपेट के अपने विचार व्यक्त किए। झारखंड प्रदेश और यहां बसने वाले आदिवासी समुदायों की वर्तमान दशा-दिशा की गंभीर चर्चा के साथ साथ केंद्र-राज्य संबंध से लेकर भारत के वर्तमान राजनीतिक स्थितियों जैसे गंभीर मसलों पर भी अपनी बेबाक राय रखी। 

हैरानी की बात है कि दूसरे ही दिन जिस तेजी से यह खबर झारखंड समेत कई राज्यों की मीडिया ने सुर्खियों में विवाद बनाकर प्रसारित किया, यह पहले कभी नहीं हुआ था।

हेमंत सोरेन ने अपने वर्चुअल संबोधन में झारखंड के संदर्भ में बताया कि आज़ादी के पूर्व से ही यह क्षेत्र खान एवं खनिज से भरे इलाके के रूप में ही देखा जाता रहा है। इस कारण यहाँ बसनेवाले आदिवासियों को शुरू से ही अनेकानेक बाह्य संकटों–मुश्किलों का सामना करना पड़ता रहा है। इसकी ही राजनीतिक परिणति के तौर पर अलग झारखंड राज्य गठन की मांग उठी थी, जो लंबे आंदोलनों की बदौलत सन 2000 में पूरा भी हुआ। लेकिन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के बावजूद आज़ादी के 72 साल और राज्य गठन के 20 साल बाद भी आदिवासियों की जीवन दशा और उनके प्रति शासन–समाज के नकारात्मक नज़रिये में कोई बुनियादी बदलाव नहीं आया है।

देश के उच्च शिक्षा संस्थानों में आदिवासी समुदाय की नगण्य उपस्थिति के सवाल पर कहा कि हमेशा से आदिवासियों का इस्तेमाल नैपकिन के रूप ही किया जाता रहा है। यदि आदिवासी शिक्षित हो जाएंगे तो कॉर्पोरेट–पूंजीपतियों के ड्राइवर, माली, रसोइया और दाई इत्यादि का काम कौन करेगा। इसीलिए आज भी संविधान में  तमाम विशेष संरक्षण प्रावधानों के बावजूद हमारा कहीं भी समुचित प्रतिनिधित्व नहीं दिखता है। जिसका मूल कारण है कि आज भी आदिवासी समुदायों को लेकर नकारात्मक और दुष्प्रचारमूलक नज़रिये में कोई बुनियादी बदलाव नहीं होना। शासन–समाज में शक्लें बदलीं हैं मानसिकता नहीं। आज भी यही कहा जाता है कि तुम लोगों के लिए यह काम नहीं है, तुम लोग लायक नहीं हो। इसीलिए तो भारत सरकार अलग आदिवासी मंत्रालय–विभाग–संस्थान और बजट का प्रावधान तो रखती है, लेकिन आज तक हमारी स्वतंत्र धार्मिक पहचान को मान्यता नहीं दी है। 

इन्हीं संदर्भों में आदिवासियों की विशिष्ट जीवन शैली–परंपरा और पहचान से जुड़े सवालों के जवाब में ही पूरी दृढ़ता के साथ कहा कि आदिवासी कभी हिन्दू नहीं थे, न हैं और न होंगे। 1951 की जनगणना में हमारे लिए अलग से कॉलम था, जिसे बाद में संशोधित कर ‘अन्य’ में बदल दिया गया और अभी की मोदी सरकार ने तो उसे भी हटा दिया है। अभी होने वाली जनगणना के फॉर्म में सिर्फ 5-6 धर्मों का ही कॉलम दिया हुआ है। ऐसे में आदिवासी समाज के लोग अपनी स्वतंत्र गणना कैसे करवा सकेंगे। यही वजह है कि आदिवासी धर्मकोड की मांग को लेकर आज पूरा आदिवासी समाज आंदोलित है। हमने भी झारखंड विधान सभा से आदिवासियों के लिए सरना कोड की मांग का प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा है। प्रधान मंत्री के साथ मुख्यमंत्रियों की वर्चुअल बैठक में भी उनसे आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड देने की मांग की है।

हेमंत सोरेन के उक्त सभी पहलुओं पर कोई जवाब-टिप्पणी किए बगैर झारखंड प्रदेश भाजपा प्रवक्ता ने सीधा आरोप लगाते हुए ये फतवा दे डाला कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर हेमंत सोरेन ने इस तरह की आंतरिक बातें कहकर विदेशी लोगों को हमारे मामलों में दाखिल देने की अनुमति दे रहें हैं। वे वैटिकन के हाथों खेल रहें हैं।

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण निधि समर्पण समिति की बैठक में रांची पहुंचे विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय महासचिव ने भी कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा है कि झारखंड सरकार आदिवासियों को हिन्दू न कहकर हिंदुओं का अपमान किया है। जबकि सम्पूर्ण वनवासी जीवन रामभक्ति से जुड़ा हुआ है।

अलग सरना धर्म कोड की मांग पर भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने देश व हिंदुओं के खिलाफ साजिश करार देते हुए इसे आदिवासी संस्कृति पर हमला कहा है।

सनद रहे कि आदिवासियों के अलग धर्म कोड की मांग मामले को भाजपा (संघ परिवार) हमेशा से ईसाई मशीनरी संचालित और आदिवासियों के ईसाई धर्मांतरण मुहिम की साजिश करार देती रही है। जिसे रोकने के नाम पर पूर्व की प्रदेश भाजपा सरकार द्वारा लाए गए धर्मांतरण विरोधी विधेयक को आदिवासियों के प्रचंड विरोध का सामना करना पड़ा था। 

हेमंत सोरेन के बयान का विरोध किए जाने पर आदिवासी समुदाय के युवा काफी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कह रहें हैं कि जब देश का सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि आदिवासी हिन्दू नहीं हैं तो ये कौन लोग हैं? इन पर कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट का केस होना चाहिए। 

बिरसा मुंडा के उलगुलान क्षेत्र उलीहातु-अड़की (खूंटी जिला) के सघन आदिवासी इलाकों में लंबे समय से सांस्कृतिक–सामाजिक जागरूकता अभियान चला रहे युवा आदिवासी एक्टिविस्ट गौतम सिंह मुंडा का मानना है कि आदिकाल से आदिवासियों के स्थानीय शोषकों में शामिल रहे जमींदार-सूदखोर–महाजनों की ही वर्तमान पीढ़ी आज भाजपा व संघ परिवार की संचालक है। इनके द्वारा आदिवासियों के बचे-खुचे जल जंगल ज़मीन और प्राकृतिक–खनिज संसाधनों को हड़पने और इनकी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपरा–विरासत के भगवाकरण के लिए ही आदिवासियों को हिन्दू बताने का प्रपंच चलाया जा रहा है। गुजरात में मुस्लिम विरोधी दंगों में जैसे आदिवासियों का इस्तेमाल किया गया था, उसे झारखंड में नहीं दुहराने देंगे। 

आदिवासी हिन्दू नहीं हैं का विवाद प्रकरण अब जमीनी सामाजिक बहसों में पनप रहा है। वहीं देश में होने वाली जनगणना के मद्देनजर आदिवासियों के अलग धर्म कोड की मांग पर जारी सामाजिक अभियानों–आंदोलनों की रफ्तार भी बढ़ती जा रही है।

हेमंत सोरेन द्वारा कही गईं तमाम बातें कहीं से भी देश के व्यापक आदिवासी सवालों के संदर्भ से अलग नहीं दिखतीं हैं। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि भाजपा व गोदी मीडिया इतने गंभीर मामले को हिन्दू–मुसलमान विवाद की सुनियोजित सांप्रदायिक राजनीति की तर्ज़ पर ‘आदिवासी बनाम हिन्दू’ विवाद का रंग देने में जुटी हुई है। साथ ही किसान आंदोलन के समर्थन में आ रहीं वैश्विक प्रतिक्रियाओं को जैसे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कह कर लोगों को उकसाना चाहा, इस मामले में भी सत्तापक्ष के लोग ठीक ऐसा करने का प्रयास कर रहे हैं। 

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