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झारखंड: वनपाल की सीधी नियुक्ति का विरोध, बड़े आंदोलन की चेतावनी

सरकार वनपाल के 50 प्रतिशत पदों पर सीधी नियुक्ति की तैयारी में है, जिसे शत-प्रतिशत पदों को वन रक्षकों के प्रमोशन से भरे जाने का प्रावधान था।
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फ़ोटो साभार: प्रभात खबर

झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार इन दिनों वन विभाग के कर्मचारियों का विरोध झेल रही है। ये कर्मचारी बीते मंगलवार, 27 मई से रोष स्वरुप काला बिल्ला लगाकर अपना काम कर रहे हैं। साथ ही सरकार की नई नियुक्ति नीति के खिलाफ अलग-अलग जिलों में प्रदर्शन के माध्यम से भी अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। इन कर्मचारियों का कहना है कि यदि जल्द ही सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं देती, तो वो काम छोड़ कर बड़े आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

बता दें कि ये पूरा मामला झारखंड राज्य अवर वन क्षेत्रकर्मी संवर्ग नियमावली-2014 के भर्ती संशोधन को लेकर है। इसके तहत सरकार वनपाल यानी (forester) के 50 प्रतिशत पदों पर सीधी नियुक्ति की तैयारी में है, जो साल 2014 में बनाए गए नियमों के खिलाफ है। इसमें सभी शत-प्रतिशत पदों को वन रक्षकों के प्रमोशन से भरे जाने का प्रावधान था। झारखंड राज्य अवर वन सेवा संघ इस नई नीति का बीते लंबे समय से विरोध कर रहा है।

प्रमोशन का इंतजार, लंबा संघर्ष

संगठन के पदाधिकारी कामेश्वर प्रसाद ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि बीते लंबे समय से राज्य में वनरक्षी (forest guard) और वनपाल (forester) के हज़ारों पद खाली हैं लेकिन सरकार न तो पदोन्नति दे रही है और न ही इस ओर कोई सकारात्मक पहल कर रही है। वन कर्मचारी कई सालों से प्रमोशन के इंतजा़र में है लेकिन सरकार 2014 के नियमों को लागू करने के बजाय नियमावली में अहितकारी संशोधन करके वनपाल के 50 प्रतिशत पदों पर सीधी नियुक्ति शुरू करना चाहती है, जिससे कर्मचारियों में काफी नाराजगी है।

कामेश्वर प्रसाद के मुताबिक बीते तीन सालों में संगठन ने कई बार सरकार का ध्यान इस ओर आकर्षित करने की कोशिश की लेकिन सरकार ने इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया। अब एक बार फिर सीधी भर्तियों की बात सामने आने के बाद इसके विरोध स्वरूप चरणबद्ध राज्यव्यापी आंदोलन के पहले चरण में विभागीय पदाधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया। दूसरे चरण में पदाधिकारियों से शिष्टमंडलीय वार्ता कर संघ का पक्ष रखा गया। लेकिन विभाग व सरकार के स्तर से कोई सकारात्मक पहल नहीं होने की स्थिति में मंगलवार को काला बिल्ला लगाकर कार्य किया गया। अगले सात दिनों तक वनरक्षी काला बिल्ला लगाकर काम करेंगे।

प्रदर्शन में शामिल कई कर्मचारी बताते हैं कि झारखंड राज्य का निर्माण वनों की सुरक्षा और वनों पर आधारित समुदाय का विकास को ध्यान में रखकर किया गया था मगर वर्तमान समय में ये उद्देश्य बेमानी साबित हो रहा है। इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि झारखंड में 1994 के बाद से आज तक फारेस्ट रेंजर की बहाली नहीं हुई है। इसके लगभग 300 पद खाली हैं। वहीं वन रक्षी की बात करें तो इसके 2,000 से अधिक जबकि वनपाल के 1000 से अधिक पद खाली हैं, ऐसे में जंगलों की सुरक्षा भगवान भरोसे ही है। सरकार पदोन्नति न देकर वन रक्षकों का हक़ मार रही है।

सड़कों पर उतरने को मजबूर

कई वन रक्षियों ने झारखंड राज्य अवर वन क्षेत्रकर्मी संवर्ग नियमावली-2014 की कॉपी दिखाते हुए कहा कि उनकी नियुक्ति सेवा शर्त में ये साफ-साफ वर्णित है कि वनपाल के शत प्रतिशत पद प्रोन्नति के हैं और वो प्रोन्नति से ही भरे जाएंगे लेकिन विभाग एवं सरकार आनन फानन में वनपाल की सीधी भर्ती के लिए नए नियम ला रहे हैं, जो कि उनके अधिकारों का हनन है। इसके अलावा वन कर्मचारी यात्रा भत्ता, राशन मनी और पुलिस कर्मियों के तर्ज पर वेतन नहीं मिलने पर भी निराशा हैं। अब अगर सरकार उनकी मांगे नहीं मानती तो वो सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगे।

गौरतलब है कि फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित India State of Forest Report, 2019 के अनुसार, झारखंड का कुल दर्ज वन क्षेत्र 23,605 वर्ग किमी है जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का 29.61% है। ये वन क्षेत्र राष्ट्रीय औसत से भी कहीं अधिक है। ऐसे में इसे सहेज कर रखना और इसके क्षेत्रफल में वृद्धि करना बड़ी चुनौती है। जानकारों की मानें तो यहां पर्यावरण विभाग में पचास फीसद पद रिक्त हैं। फोरेस्ट रेंजर्स के साथ ही यहां वनपाल और वन रक्षियों की भी भारी कमी है। जिसे सरकार को सभी घटकों से बातचीत कर जल्द ही निपटाना होगा, नहीं तो जंगलों की कमी होते देर नहीं लगेगी।

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