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झारखंड: राज्य के युवा मांग रहे स्थानीय नीति और रोज़गार, सियासी दलों को वोट बैंक की दरकार

रांची में छात्र युवा मार्च का नेतृत्व करते हुए भाकपा माले के युवा विधायक विनोद सिंह ने राजभवन के समक्ष आयोजित प्रतिवाद सभा को संबोधित करते हुए राज्य के युवाओं तथा आम जनता की जन आकांक्षाओं के अनुरूप काम नहीं करने के लिए हेमंत सरकार की आलोचना की।
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झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार द्वारा हाल ही में घोषित विसंगतिपूर्ण राज्य नियोजन नीति ने इस क़दर तूल पकड़ा है कि विपक्ष के सभी सियासी दल इसी बहाने सरकार को घेरने के लिए पूरी तरह से कूद पड़े हैं। प्रदेश के कई इलाकों में एक सामाजिक विस्फोट की तरह उभरे ताज़ा ‘भाषा विवाद’ प्रकरण के बहाने हेमंत सरकार पर ‘राज्य की नीति व निर्णय में झारखंड की भावना की अनदेखी करने का आरोप लगा रहें हैं। ये अलग बात है कि प्रदेश की सत्ता में रहते हुए कभी भी इन मुद्दों पर न कभी गंभीरता दिखाई और न ही कोई सकारात्मक क़दम उठाया। फिलहाल ‘भाषा विवाद’ प्रकरण के असली मर्म को सिरे से गायब कर मामले को ‘बाहरी-भीतरी’ के टकराव में बदल कर लगे हाथ वोट बैंक जुगाड़ने की भी कोशिश कर रहें हैं।

दूसरी ओर, सरकार की गलत नियोजन नीति के विरोध में आंदोलनकारी छात्र युवाओं की मांगों का समर्थन करते हुए झारखंड आइसा व इंकलाबी नौजवान सभा जैसे कई वामपंथी छात्र-युवा संगठन वर्तमान ‘भाषा विवाद’ की मुख्य जड़ राज्य में सही स्थानीयता की नीति नहीं बनने से झारखंड की युवाओं के रोज़गार के हक मारने का सवाल उठा रहे हैं।

10 फरवरी को उक्त संगठनों द्वारा ‘भाषा विवाद में मत उलझाओ, हेमंत सरकार वादा निभाओ-खतियान आधारित स्थानीय निति बनाओ’ की मांग को लेकर राज्यव्यापी ‘छात्र युवा मार्च’ संगठित किया। स्थानीयता और रोज़गार के सवाल पर आयोजित इस अभियान के तहत राजधानी रांची समेत प्रदेश के कई स्थानों पर भारी संख्या में छात्र युवाओं ने सड़कों पर आक्रोशपूर्ण मार्च निकाल कर प्रतिवाद सभाएं कीं। जिनमें ‘भाजपा आजसू की गलती मत दुहराओ-खतियान आधारित स्थानीय नीति बनाओ, स्थानीय छात्र युवाओं के रोज़गार की गारंटी करो, भाषा विवाद में मत उलझाओ-रोज़गार कहां है यह बतलाओ, छात्र युवाओं से विश्वासघात बंद करो- रोज़गार देने का चुनावी वादा निभाओ' जैसे नारे लिखे बैनर पोस्टरों के साथ प्रदर्शन किया।

रांची में छात्र युवा मार्च का नेतृत्व करते हुए भाकपा माले के युवा विधायक विनोद सिंह ने राजभवन के समक्ष आयोजित प्रतिवाद सभा को संबोधित करते हुए राज्य के युवाओं तथा आम जनता की जन आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं काम करने के लिए हेमंत सरकार की आलोचना की। साथ ही यह भी कहा विधानसभा के कई सत्रों में उन्होंने राज्य में सही स्थानीयता व नियोजन नीति बनाने की मांग कई बार उठायी है। लेकिन समय रहते उन्होंने ने इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया। इसीका नतीजा है कि आज राज्य के छात्र युवा सड़कों पर उतरकर अपना विरोध प्रदर्शित करने को विवश हुए हैं।

संथाल परगना क्षेत्र के देवघर, धनबाद, बोकारो, कोडरमा, गिरिडीह जिला के बगोदर समेत कई प्रखंडों, गढ़वा, पलामू, रामगढ़ व हजारीबाग समेत कई स्थानों पर छात्र युवा मार्च संगठित किए गए।

‘भाषा विवाद’ आंदोलन प्रकरण के बीच ही धनबाद-बोकारो पहुंचे भाकपा माले राष्ट्रीय माहासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने भी आंदोलनकारी छात्र युवाओं का समर्थन करते हुए कहा है कि जब सरकार के फैसले के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर यहां के नौजवान विरोध कर रहें हैं तो सरकार को भी चाहिए कि वह इस पर अविलंब विचार करे। सबसे पहले झारखंडी मूल के युवाओं के रोज़गार की गारंटी करे। इसके लिए सही स्थानीयता तय करे जो कि अभी तक लटका हुआ है।

उधर, ‘झारखंडी भाषा संघर्ष समिति' के बैनर तले जारी आंदोलन का दायरा दिनों दिन फैलता ही जा रहा है। राजधानी रांची में भी कई आदिवासी और सामाजिक संगठनों ने हेमंत सरकार के विसंगतिपूर्ण क्षेत्रीय भाषा आधारित नियोजन नीति के खिलाफ जोरदार विरोध करते हुए जगह जगह विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी लोग झारखंड की भाषा-संस्कृति के अतिक्रमण के खिलाफ हेमंत सरकार की तीखी आलोचना करते हुए झारखंड की जन भावनाओं से खिलवाड़ करने का आरोप लगा रहें हैं।

11 फरवरी को रांची स्थित अलबर्ट एक्का चौक पर हेमंत सरकार का पुतला दहन किया। आदिवासी संगठनों के प्रतिनिधियों ने आक्रोश प्रकट करते हुए कहा कि यह सही है कि मौजूदा सरकार हम लोग ही लाए हैं। मगर अब यह सरकार हम लोगों के विपरीत चल रही है। सरकार गलत-सलत स्थानीय-नियोजन नीति बना रही है, हम लोगों के बाल बच्चे कहां जाएंगे?

आदिवासी प्रतिनिधियों ने हेमंत सरकार की विवादित भाषा नियोजन नीति के समर्थन में सड़क पर उतरने की घोषणा करने वाले गैर झारखंडी भाषाओँ के लोगों से भी कहा है कि आपलोग बिहार में अपनी भाषाओँ को राज्य मान्यता दिलाने के लिए क्यों नहीं सक्रियता दिखला रहें हैं?

वरिष्ठ शिक्षाविद-बुद्धिजीवी और आदिवासी आंदलनकारी डॉ. करमा उरांव ने आदिवासी मूलवासी सामाजिक संगठनों के मोर्चा की ओर से कहा है कि नियोजन नीति के आलोक में प्रदेश की जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओँ को सशक्त व उपयोगी बनाने की बजाय भोजपुरी-मगही को क्षेत्रीय भाषा में शामिल कर हेमंत सरकार ने अनावश्यक विवाद और आपसी संघर्ष की स्थिति पैदा कर दी है।

सरकार का बचाव करते हुए राज्य शिक्षा मंत्री ने मीडिया से जारी बयान में कहा है कि भाषा विवाद मामले में भाजपा और आजसू राज्य के लोगों को गुमराह कर रहें हैं। इन दोनों दलों की भूमिका बिचौलियों वाली रही है। इन लोगों ने पहले इसी नीति को लागू करने की मांग को लेकर विधानसभा का पिछला सत्र चलने नहीं दिया। बैनर पोस्टर लेकर सदन में हंगामा करते रहे और आज यही इसे हटाने की मांग कर रहें हैं।

ये सही है कि हेमंत सोरेन की गैर भाजपा गठबंधन सरकार को अपने गठन काल से ही केंद्र की सत्ता में बैठे प्रतिद्वंदी सियासी दल द्वारा अस्थिर किए जाने की नित नयी तिकड़मों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन यह भी किसी से छिपा नहीं है कि अपने घटक दलों के दबाव में लिए जा रहे विवादित फैसलों ने उसकी साख झारखंडी जनमानस में घटाई है। सही स्थानीयता नीति बनाने और रोज़गार देने के चुनावी वादों को आज तक नहीं पूरा करने जैसे कई अन्य ज़रूरी सवालों को लेकर अब उसे अपने समर्थक जनाधार के तीखे विरोध का सामना करना पड़ रहा है जो नुकसानदेह हो सकता है।

जानकारों के अनुसार हेमंत सरकार द्वारा घोषित क्षेत्रीय भाषा आधारित नियोजन नीति से उठे विवाद प्रकरण में जो राजनितिक प्रवृतियां साफ दिख रही हैं, उसमें सबसे प्रमुख है भाजपा-आजसू समर्थित शक्तियां जो सिर्फ भाषा के मुद्दे को उछालकर सामाजिक विभाजन के ध्रुवीकरण को अंजाम देना चाहती हैं। ये कभी भी मोदी-रघुवर दास शासन की गलत नीतियों और कामों की आलोचना नहीं करती हैं।

देखना है कि वर्तमान के जटिल परिप्रेक्ष्य में प्रदेश की व्यापक लोकतांत्रिक जन भावना ऐसे कुटिल चक्रव्यूहों से कैसे बाहर निकलती हैं !

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