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झारखंड और बिहार में भी मज़दूर विरोधी फ़ैसलों के ख़िलाफ़ हुआ ‘हल्ला बोल!’

झारखंड की कोलियरियों समेत रांची,रामगढ़, बोकारो, धनबाद और देवघर इत्यादि कई अन्य स्थानों के साथ साथ बिहार की राजधानी पटना व कई जिलों में मजदूरों–कर्मचारियों व मानदेयकर्मियों ने राष्ट्रीय विरोध दिवस मनाते हुए हल्ला बोल कार्यक्रम किया।
हल्ला बोल

“कोरोना आपदा का मोदी इंतज़ाम, भारत नीलाम – मजदूर गुलाम .... सबकुछ छीनने के बाद आत्मनिर्भरता की बात , मजदूरों का अपमान है ... पूंजीपतियों को टैक्स माफी , कर्मचारियों – मजदूरों की वेतन कटौती नहीं चलेगी ... मालिकों को आज़ादी मजदूरों को गुलामी , नहीं सहेंगे ....” जैसे आक्रोशपूर्ण नारों के साथ झारखंड की कोलियरियों समेत रांची,रामगढ़, बोकारो, धनबाद और देवघर इत्यादि कई अन्य स्थानों के साथ साथ बिहार की राजधानी पटना व कई जिलों में मजदूरों – कर्मचारियों व मानदेयकर्मियों ने राष्ट्रीय विरोध दिवस मनाते हुए हल्ला बोल कार्यक्रम किया।

कोरोना आपदा काल में  मोदी सरकार द्वारा श्रम क़ानूनों और ट्रेड यूनियन अधिकारों को खत्म किए जाने तथा कोयला व अन्य क्षेत्रों के निजीकरण के फैसलों के खिलाफ भाजपा की ट्रेड यूनियन बीएमएस को छोड़ सीटू, एक्टू व एटक समेत देश की 10 प्रमुख प्रतिनिधि राष्ट्रीय ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर मजदूरों ने अपना विरोध–आक्रोश प्रदर्शित किया।

रामगढ़ – हजारीबाग स्थित  कोलियारों में सक्रिय रहनेवाले कोल माइंस वर्कर्स यूनियन के केंद्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बैजनाथ मिस्त्री ने अरगडा स्थित क्षेत्रीय कोल मुख्यालय के समक्ष कोयला मजदूरों के अभियान का नेतृत्व करते हुए कहा कि कोरोना आपदा–लॉकडाउन जैसे संकट की आड़ लेकर मोदी शासन ने देश के मजदूरों श्रम कानूनों पर रोककर अपने फासीवाद चरित्र को ही दिखलाया है। एक ओर,परेशान हाल और भूखे प्यासे पैदल चल रहे लाखों लाख मजदूरों पर पुलिस से लठियाँ चलवा रहा है तो दूसरी ओर मजदूरों के श्रम अधिकारों को छीना जा रहा है । साथ ही कोयला समेत सभी सरकारी उपक्रमों का निजीकरण कर देश व मजदूरों को फिर से गुलाम बनाने के कुचक्र रच रहा है । जिसका सभी मजदूर एकजुट होकर कड़ा जवाब देंगे । मोदी शासन के इस विश्वासघात को मजदूर कभी माफ नहीं करेंगे और आनेवाले दिनों में एक बड़ा प्रातिवाद खड़ा करेंगे ।

कोयला राजधानी कहे जानेवाले धनबाद कोयला क्षेत्र के मुगमा कोलियरी मुख्यालय के समक्ष कोयला मजदूरों के विरोध अभियान के नेतृत्व कर रहे कोयला मजदूर नेता कृष्णा सिंह ने कहा कि देश के सभी मजदूरों व गरीबों को महामारी और भुखमरी की आग में ज़िंदा जलने – मरने को धकेलकर मोदी – शाह सिर्फ कारपोरेट – पूंजीपतियों को बचाने में जुटे हुए हैं। लॉकडाउन के बाद हुई घोषणाओं ने साफ दिखा दिया है कि नरेंद्र मोदी सरकार को देश के मजदूरों – गरीबों से कोई लेना देना नहीं है। इसलिए इस लॉकडाउन में भी जुटकर मजदूरों ने दिखा दिया है कि वे भी अब आर–पार की लड़ाई लड़कर रहेंगे और देश के कोयला सेक्टर को नहीं बेचने देंगे। बाद में डीसी के माध्यम से प्रधानमंत्री को ज्ञापन दिया गया ।

बीसीसीएल एरिया– 12 में भी सभी ट्रेड यूनियनों की ओर से धरना – प्रदर्शन किया गया । कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने एक स्वर से कहा कि कोरोना आपदा काल में भी मोदी शासन मजदूर विरोधी नीतियों को थोपकर अपना अमानवीय चरित्र ही दिखला रहा है । देश में करोड़ों मजदूरों कि रोज़ी रोटी छीन गयी है और लाखों मजदूर भूखे प्यासे हजारों किलोमीटर पैदल चलकर घरवापसी कर रहे हैं। सड़कों पर पुलिस की लठियाँ खा रहें हैं तो कई कई जगहों पर बे मौत मारे जा रहें हैं। फिर भी यह सरकार इनके सभी जायज अधिकारों को छीनकर पूँजीपतियों को ही सुरक्षा में जुटी हुई है। ऐसे में मजबूर होकर मजदूरों ने भी तय कर लिया है कि वे बड़ी लड़ाई लड़ेंगे।

बिहार की राजधानी पटना में संयुक्त ट्रेड यूनियनों की ओर से एक्टू के वरिष्ठ मजदूर नेता आरएन ठाकुर, रसोइयाकर्मी संगठन नेता शशि यादव तथा रणविजय कुमार के नेतृत्व में मजदूर प्रतिनिधियों ने पुलिस रोक से जूझते हुए विरोध मार्च निकाला। बाद में प्रदर्शनकरियों द्वारा राज्य श्रम कार्यालय के समक्ष मोदी सरकार के आदेश की प्रतियाँ भी जलाईं गईं।

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उक्त राष्ट्रव्यापी मजदूर अभियान के तहत खेग्रामस ( बिहार ) ,बिहार राज्य विद्यालय रसोइया संघ, बिहार राज्य निर्माण मजदूर यूनियन व अखिल भारतीय मनरेगा मजदूर संघ, बिहार राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ इत्यादि संगठनों कि ओर से राज्य के कई जिलों में विरोध दिवस कार्यक्रम किया गया। 

खबरों के अनुसार झारखंड मुख्यमंत्री ने तो मोदी सरकार घोषित श्रम क़ानूनों पर रोक के फैसलों को अपने प्रदेश में लागू करने से मना कर दिया है। हैरानी की बात है कि बिहार के सुशासन कुमार का खिताब पाने वाले और प्रदेश के गरीबों–मजदूरों का मसीहा कहलाने वाले नितीश जी इस पर साफ साफ कुछ भी बोलने से लगातार बच रहें हैं।

बिहार में विधानसभा के चुनाव होने हैं। हरबार कि भांति इसबार भी खुद नीतीश कुमार व इनके पार्टी प्रत्याशी के साथ साथ इनकी गंठबंधन सरकार के सहयोगी दल भाजपा के भी नेता– प्रत्याशियों को लोगों के बीच वोट मांगने जाना है। आज जब की इन्हीं की केंद्र सरकार एक के बाद एक मजदूर और गरीब विरोधी फैसले ले रही है जिसका सिर्फ बिहार ही नहीं पूरे देश में तीखा विरोध हो रहा है । ऐसे में आखिर किस बात पर वे और भाजपा के लोग मजदूरों से वोट मांगेगें .... यह भी देखने कि बात होगी।   

कोरोना महामारी आपदा और लॉकडाउन संत्रास अवधि में संभवतः पूरे देश ने खुली आँखों से देखा कि देश के जिस 130 करोड़ आबादी कि दुहाई नेतागण अक्सर देते हुए नहीं थकते हैं , उसकी कितनी बड़ी और विशाल आबादी किस कदर रोजी रोटी की मुहताज ज़िंदगी जी रही है । ऐसे में मेहनत करनेवाले मजदूरों के श्रम अधिकारों को छीनने के फैसले क्या सचमुच में राष्ट्र के लोकतान्त्रिक आर्थिक विकास को सुनिश्चित करनेवाले होंगे .... अहम सवाल है  !

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