Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

जींद किसान महापंचायत : "आंदोलन ख़त्म नहीं स्थगित हुआ था", एकबार फिर दिल्ली कूच की तैयारी!

"आगामी मार्च में एकबार फिर देशभर से किसान दिल्ली कूच करेंगें और दिल्ली की गूंगी-बहरी सरकार को अपनी आवाज़ सुनाएंगे।"
kisan

हरियाणा के जींद में एकबार फिर बड़ी संख्या में किसान जुटे और केंद्र सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ एक निर्णायक संघर्ष का ऐलान किया। गुरुवार को 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस के दिन संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले उत्तर भारत के किसान हरियाणा के जींद में नई अनाज मंडी पर इकट्ठा हुए और एक बड़ा विरोध प्रदर्शन किया जिसे किसानों ने 'किसान महापंचायत' का नाम दिया। इस महापंचायत को ज़ोरदार समर्थन मिला। इसमें उत्तर भारत के राज्य-हरियाणा,पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल और उत्तर प्रदेश के किसान हज़ारों-हज़ार की तादाद में पहुँचे थे। जींद में महापंचायत के अलावा 20 राज्यों में पैदल मार्च और ट्रैक्टर रैलियां भी आयोजित की गईं थीं।

महापंचायत में किसान नेताओं ने अपने आगामी मार्च में एकबार फिर दिल्ली में आंदोलन करने का आह्वान किया और कहा कि सरकार ने उनके साथ धोखा किया है।

एसकेएम (संयुक्त किसान मोर्चा) ने कहा, ‘‘एसकेएम के आह्वान पर देशभर के किसान 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाने और राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद ट्रैक्टर रैली, पैदल मार्च और किसान सम्मेलन आयोजित  करेंगें।"

अखिल भारतीय किसान सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हन्नान मोल्ला ने कहा, ‘‘20 राज्यों के 600 से अधिक जगह ट्रैक्टर रैली, पैदल मार्च और प्रदर्शन हुए हैं। 26 जनवरी को ही केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार ने दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन को तोड़ने की साज़िश रची थी लेकिन उस समय भी हमनें अपनी एकता और संयम से सरकार के षड्यंत्र को विफल किया था और आज हम फिर बीजेपी द्वारा किसानों की एकता को तोड़ने की ‘साज़िश’ का पर्दाफाश कर रहे हैं।"

26 जनवरी 2021 को एसकेएम ने दिल्ली में ट्रैक्टर परेड का ऐलान किया था और उसमें दिल्ली पुलिस ने उन्हें एक तय रूट भी दिया था लेकिन किसानों के कई जत्थे उस सड़क से हटकर लालकिले चले गए जहां हिंसक घटनाएं हुई। हालांकि किसानों का आरोप रहा है कि सरकार ने अपने लोगों को भेजकर ट्रैक्टर परेड का रास्ता लालकिले की तरफ कराया था और जानबूझकर हिंसा करा कर आंदोलन को खत्म करने की साज़िश रची थी। जबकि सरकार ने इस पूरी घटना के लिए किसान नेताओं को ज़िम्मेदार ठहराया था। हालांकि अभी भी इस मामलें की जांच चल रही है।

इस पूरे घटनाक्रम के दौरान एक नौजवान की मौत भी हो गई थी। हालांकि इसे लेकर भी किसान और सरकार के अलग-अलग दावे हैं। किसान कहते हैं कि वो पुलिस की गोली से मरा था जबकि पुलिस और सरकार ने इसे साफतौर पर खारिज़ किया है।

इस कार्यक्रम में किसानों के ऐतिहासिक संघर्ष में जान गंवाने वाले सभी शहीद किसानों को श्रद्धांजलि दी गई।

मार्च में होगा किसानों का दिल्ली कूच

किसान नेता दर्शनपाल ने कहा, "अभी जनवरी 2023 खत्म होने को है और आने वाले समय में देशभर मे एसकेएम के नेतृत्व में न्यूनतम समर्थन मूल्य और संपूर्ण कर्जा माफी को लेकर एक बड़ा आंदोलन लड़ा जाएगा। इस देश का किसान कर्जमुक्त बनेगा। आगामी मार्च में एकबार फिर देशभर से किसान दिल्ली कूच करेंगें और दिल्ली की गूंगी-बहरी सरकार को अपनी आवाज़ सुनाएंगे। दिल्ली कूच की तारीख अभी निश्चित नहीं है लेकिन मार्च में होगा ये तय है। इसकी तारीख का ऐलान हम 9 फरवरी को होने वाली एसकेम की मीटिंग के बाद करेंगें।"

पाल ने आगे कहा, "आंदोलन का पहला चरण तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने के इर्द-गिर्द था और इसलिए मोदी सरकार द्वारा इस कानून को रद्द करने की घोषणा के बाद किसानों ने आम सहमति से आंदोलन को स्थगित कर दिया। ये हमारी जीत थी और हमें कुछ ब्रेक की ज़रूरत थी। सामरिक रूप से, हमनें आंदोलन को स्थगित करने का फैसला यह देखने के लिए लिया कि क्या सरकार अपने वादों को पूरा करती है और जब ऐसा नही हुआ, तो हम पिछले साल दिल्ली में फिर से मिले और घोषणा करी कि हम एमएसपी, बिजली संशोधन विधेयक और लखीमपुर खीरी के दोषियों को सज़ा दिलाने के लिए अपना संघर्ष एकबार फिर शुरू करेंगे। हमनें विधायकों और सांसदों को पत्र व ज्ञापन के ज़रिए केंद्र को ये बातें याद दिलाने की कोशिश की। गणतंत्र दिवस कई कारणों से महत्वपूर्ण है; एक, हमनें उत्तर प्रदेश में नवरीत सिंह को खो दिया, जिन्हें पुलिस द्वारा हिंसा का शिकार होना पड़ा। आपको यह भी याद दिला दूं कि आज देश भर में किसान बाइक रैली, सभाएं और सम्मेलन कर रहे हैं। इस सरकार ने एमएसपी पर हमसे झूठ बोला। इसने विद्युत संशोधन विधेयक पेश किया। इस प्रकार, हमारा उद्देश्य सत्तारूढ़ भाजपा-आरएसएस गठबंधन को बेनकाब करना और आम चुनावों से पहले इसे राजनीतिक रूप से अलग-थलग करना है।”

"आंदोलन खत्म नहीं स्थगित हुआ था, अब फिर आंदोलन शुरू होने जा रहा है"

सभी बड़े किसान नेताओं ने कहा, "एक साल पहले दिल्ली की सीमाओं से हमनें अपने आंदोलन को खत्म नहीं किया था बल्कि स्थगित किया था क्योंकि सरकार ने हमें लिखित आश्वासन दिया था। हमनें उसी सरकारी आश्वासन पर अपने मोर्चे हटाए थे लेकिन सरकार ने हमसे वायदाखिलाफी की है इसीलिए एक बार फिर हम बड़ा आंदोलन करने के लिए तैयार हैं।"

भारतीय किसान यूनियन के महासचिव युद्धवीर सिंह ने कहा, "हमनें पहले ही कहा था अगर सरकार वायदाखिलाफी करेगी तो हम फिर आंदोलन करेंगें। आज 13 महीने बीत गए हैं लेकिन सरकार ने अपना कोई वादा पूरा नहीं किया है। आज की पंचायत, आंदोलन की तैयारी चेक करने के लिए थी कि आखिर हमारी तैयारी कैसी है। आज हमनें दिखा दिया कि हमारी तैयारी पूरी है और हम आज से ही अपने संघर्ष का ऐलान करते हैं। इसी तरह हम अपने गाँव, कस्बे और जिले में लोगों को बड़े आंदोलन के लिए तैयार करेंगें और आने वाले समय में दिल्ली में एक बड़ा आंदोलन करेंगें।"

इसके साथ ही उन्होनें सरकार की अग्निवीर योजना को युवा विरोधी बताया और कहा, "ये सरकार कोई नया काम नहीं कर रही है बल्कि एक नालायक औलाद की तरह घर का सामान बेचकर अपनी आमदनी बढ़ा रही है। मोदी सरकार ने रेल, भेल और सड़क से लेकर एयरपोर्ट तक सब बेच दिया। आज पढ़े-लिखे बच्चों के पास नौकरी नहीं है और 27 करोड़ युवा तो जॉब एक्सचेंज मे रजिस्टर्ड हैं जो नौकरी की तलाश में हैं। मोदी सरकार किसान, नौजवान और मज़दूर सभी को तबाह कर रही है और केवल कुछ अमीरों को मदद पहुंचा रही है।"

कर्जमुक्ति से किसानों को सच्ची आज़ादी मिलेगी

भारतीय किसान यूनियन एकता (उगराहां) के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहां ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उन्होनें रैली के प्रबंधन के लिए विस्तृत व्यवस्था की है; हज़ारों लोगों को खाना खिलाने से लेकर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने तक।

किसानों का एक बड़ा जत्था पंजाब के मालवा बेल्ट से आया था जिसे कृषि संकट और किसानों की आत्महत्या के लिए संकटग्रस्त बेल्ट के रूप में भी जाना जाता है। एक अध्ययन के मुताबिक अकेले पंजाब में संकट के कारण साल 2000 से 2016 के दौरान 16606 किसानों ने आत्महत्या की थी।

जोगिंदर सिंह ने आगे कहा, "किसानों की मुक्ति तब तक हासिल नहीं की जा सकती जब तक वे ऋणी रहेंगें। हम संविधान को उसकी सच्ची भावना में महसूस करना चाहते हैं। जहां कामकाजी लोगों को न्याय मिलेगा। सरकार की बेईमानी और गलत नीतियों के कारण किसान कर्ज तले दब गए हैं। आपने एक ऐसा मॉडल पेश किया जिसने महंगे बीज, खाद और कीटनाशकों के ज़रिए कॉर्पोरेट को फायदा पहुंचाया। कॉर्पोरेट अब पूरे कृषि क्षेत्र को नियंत्रित करना चाहते हैं। हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।"

महिला किसानों ने भी बड़ी संख्या में की भागीदारी

दिल्ली की सीमाओं से लेकर जींद महापंचायत में भी महिला किसानों की भूमिका बेहद सक्रिय रही है। जींद महापंचायत में भी बड़ी संख्या में महिला किसान अपनी मांगों को लेकर पहुंची थीं। पंजाब से आए महिला किसानों के जत्थे के साथ लगभग 70 वर्षीय सरिता अपने परिवार के साथ बस में बैठकर आईं थीं। वो कहती हैं, "मोदी ने हमारे साथ धोखा किया है इसीलिए हम यहाँ आए। हम एक साल तक दिल्ली की सीमाओं पर बैठे थे। अब दोबारा फिर तैयार हैं। मोदी अगर अपना वादा पूरा नहीं करेगा तो हम आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हैं।"

इसी तरह हरियाणा के जींद से महिलाओं का एक बड़ा जत्था लेकर पहुंची अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की नेता शकुंतला जाखड़ ने कहा, "देश की आधी आबादी हम हैं और किसानी में सबसे अधिक काम महिलाएं करती हैं लेकिन समाज से लेकर सरकार तक हमें नज़रअंदाज़ करती है। अगर महिला किसान परेशान होकर आत्महत्या करती है तो उसे किसान आत्महत्या तक नहीं माना जाता है, आखिर क्यों? जबकि पशुपालन से लेकर फसलों की कटाई और रखरखाव का ज़्यादातर काम महिलाओं के ज़िम्मे ही रहता है।"

वो आगे कहती हैं, "लेकिन इस किसान आंदोलन ने महिलाओं को भी आवाज़ दी है। हमनें इसमें शुरू से ही सक्रिय भूमिका निभाई और यह बता दिया कि हम सिर्फ घर ही नहीं बल्कि आंदोलन का मोर्चा भी संभाल सकते हैं। कई महिलाएं जो लोगों के बीच बोल नहीं पाती थीं अब वो आंदोलन मे रहकर भाषण देना सीख गईं और अपने अधिकारों को पहचानने लगी हैं।

लखीमपुर हिंसा में न्याय न मिलने से नाराज़ हैं किसान

26 जनवरी से एक दिन पहले लखीमपुर खीरी हिंसा के आरोपी गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा उर्फ मोनू को अंतरिम ज़मानत मिल गई। इससे किसान काफी नाराज़ हैं। हालांकि कोर्ट ने तीन आरोपी किसानों को भी ज़मानत दी है। इनमें से एक किसान तराई किसान यूनियन के नेता तेजिंदर सिंह विर्क हैं जिन्हें किसान आंदोलन का 'ज़िंदा शहीद' कहा जाता है क्योंकि वो इस घटना के न सिर्फ गवाह है बल्कि मंत्री पुत्र की हिंसा के शिकार भी रहे हैं।

विर्क ने कहा, "ये न्याय नहीं है। अदालत का काम पंचायत करना नहीं हैं। हमें उससे न्याय की उम्मीद है। हमारे किसान बेगुनाह हैं उनको ज़मानत देकर उसकी आड़ में जनसंहार के आरोपी आशीष मिश्र को ज़मानत देना बेहद दुखद है। सरकार ने दिखावे के लिए ज़मानत का विरोध किया लेकिन उस मुस्तैदी ने नही किया जैसा करना चाहिए था। हम सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करते हैं कि वो स्वतः संज्ञान ले और इस आरोपी की ज़मानत रद्द करे।"

संयुक्त किसान मोर्चा ने भी आशीष मिश्रा की ज़मानत का विरोध किया और कहा सरकार को जल्द ही मामले की जांच करके आरोप पत्र कोर्ट में दाखिल करना चाहिए जिससे किसानों को न्याय और दोषियों को सज़ा मिले।

"हिमाचल में किसानों ने बीजेपी को सिखाया सबक़, अब देश की बारी"

हिमाचल से भी किसान इस महापंचयत मे शामिल होने आए थे। हिमाचल की खेती बाकी मैदानी इलाकों से अलग है और इसकी समस्या भी अलग है। हिमाचल किसान सभा के अध्यक्ष कुलदीप सिंह तंवर ने कहा, "जब बीजेपी की केंद्र मे पहली बार सरकार बनी तो उसने कहा था कि वो राज्य में पैदा होने वाली सभी पैदावार पर समर्थन मूल्य देगी क्योंकि हिमाचल में गेहूँ और धान कम होता है, वहाँ सेब और अन्य फलों के साथ सब्जी की पैदावार होती है जिसकी कोई सरकारी खरीद नहीं होती है।"

तंवर ने कहा, "आज भी हमें अपनी फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलता है। इसलिए हिमाचल में किसानों ने संयुक्त रूप से संघर्ष किया और बीजेपी को हराया है। आज भी हिमाचल में 90 फीसदी आबादी गांवों में रहती है और उसने बीजेपी को सबक सिखाने का काम किया है। यही चीज़ अब देश में करने की बारी है क्योंकि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार किसान और मज़दूर विरोधी है। हमें इसे बदलना होगा और केंद्र में किसानों के हक मे काम करने वाली सरकार को लाना होगा।"

"रोटी बचाने के संघर्ष में रोटी का सहयोग"

इस महापंचायत में एक बार फिर किसानों का अनुशासन और एकता देखने को मिली। दिल्ली की सीमाओं की तरह ही जींद अनाज मंडी में अलग-अलग किसान संगठनों के लंगर लगे थे। बड़ी संख्या में बेहद व्यवस्थित ढंग से किसान संगठन के कार्यकर्ताओं ने इस ज़िम्मेदारी को संभाला। अलग-अलग गाँव के लोग बड़ी संख्या में दूध, रोटी, चीनी और अन्य खाने का सामान दान कर रहे थे। इस महापंचायत में सबसे बड़ी लंगर की व्यवस्था हरियाणा के स्थानीय लोगों ने की थी। सबसे बड़े लंगर का संचालन हरियाणा किसान सभा और उसके साथ मज़दूर संगठन सीटू, सर्व कर्मचारी संघ, नौजवान सभा और जनवादी महिला समिति द्वारा चलाया जा रहा था।

हरियाणा किसान सभा और एसकेएम के नेता इंद्रजीत ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "क्योंकि ये पंचायत हरियाणा के जींद में थी इसलिए हमारे स्थानीय साथियों ने कहा कि सभी किसानों के भोजन और चाय की व्यवस्था उनकी ज़िम्मेदारी है। इसमे उन्होंने पूरा प्रयास भी किया। पहले हमनें 50 हज़ार लोगों के खाने और 25 हज़ार लोगों के लिए चाय की व्यवस्था की थी लेकिन हमें इतना अधिक सहयोग मिला कि हमनें इससे भी अधिक लोगों के लिए व्यवस्था कर ली। कई गांवों से 200 लीटर तो कई से 100 लीटर दूध आ रहा है। इसी प्रकार कई गांवों से सब्जी और चावल आ रहे हैं जबकि हमनें इस बार ये तय किया था कि हम यहाँ रोटी नहीं पकाएंगें और इसके लिए हमनें गांवों मे घर-घर जाकर लोगों से रोटी का सहयोग करने की मांग की थी। हमनें किसानों और ग्रामीणों से रोटी बचाने के संघर्ष में रोटी का सहयोग मांगा था। हमनें हर गांव में कुछ लोगों को ये ज़िम्मेदारी दी थी जो रोटी एकत्र कर यहाँ लाए हैं।"

आगे वो कहते हैं, "पहले हम सोच रहे थे कि ये कितना कामयाब होगा? लेकिन आज हरियाणा के ग्रामीणों ने बता दिया कि वो पूरी तरह से किसानों और किसानी बचाने के संघर्ष में हमारे साथ हैं।

image

इस लंगर के अलावा भी किसान संगठनों ने कई और लंगर लगाए गए थे। अपने अनुशासन के लिए चर्चित किसान संगठन भारतीय किसान एकता यूनियन उगराहां का भी यहां एक बड़ा लंगर लगा था। इसके अलावा हरियाणा की खाप पंचायतें भी आंदोलन के समर्थन में थीं और उन्होंने भी लंगर में अपना सहयोग दिया।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest