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जियो पेमेंट बैंक और SBI : छोटे से टेंट के अंदर ऊंट ने बनाई जगह?

क्या SBI और जियो पेमेंट बैंक के बीच ज्वाइंट वेंचर में हितों के टकराव साफ़ हैं? रिलायंस जियो में एक लाख करोड़ का विदेशी निवेश हो चुका है, बैंकर्स अब इस निवेश की SBI और जियो पेमेंट बैंक की के निवेश की सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव पर सवाल उठा रहे हैं। यह इस सिरीज़ का सातवां लेख है।
जियो पेमेंट बैंक और SBI

मुंबई/गुरूग्राम: एक पुरानी कहानी ह। एक ठंडी रात में एक ऊंट ने अपने मालिक से पूछा कि क्या वो गर्मी के लिए अपनी नाक उसके टेंट में कर सकता है। मालिक ने कहा, ''बिलकुल, पूछी छूट के साथ स्वागत है।'' इसके बाद ऊंच ने पहले अपनी नाक टेंट के अंदर की, इसके बाद अपना सिर घुसाया।

जल्द ही ऊंट ने आदमी से अपनी गर्दन और आगे के पैर टेंट के भीतर करने की अपली की। एक बार फिर मालिक ने ऊंट की बात मान ली। आखिर में ऊंट ने कहा, ''मालिक, क्या मैं पूरी तरह टेंट के भीतर नहीं हो सकता?'' 

तरस खाकर मालिक ने उसे गर्म टेंट में जगह दे दी। लेकिन जैसे ही ऊंट टेंट में आया, यह साफ हो गया कि दोनों के लिए टेंट काफ़ी छोटा था। तब ऊंट ने कहा, ''मुझे लगता है कि यहां हम दोनों के लिए बराबर जगह नहीं है। बेहतर होगा कि आप बाहर खड़े हो जाएं, क्योंकि आप छोटे हैं। इसके बाद यहां मेरे लिए पर्याप्त जगह होगी।''

इसके साथ ही मालिक को बाहर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड (RIL) के जियो पेमेंट बैंक और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के बीच क्या यही ऊंट और मालिक के टेंट वाली कहानी दोहराई जा रही है? SBI के एक पूर्व निदेशक को तो ऐसा ही लगता है। लेकिन इसके बारे में और जानकारी थोड़ी देर बाद।

रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड (RIL) भारत की सबसे बड़ी निजी कंपनी है, जिसकी अध्यक्षता मुकेश अंबानी करते हैं, जो भारत के सबसे अमीर इंसान हैं। वे दुनिया के भी सबसे अमीर इंसानों में से एक हैं। SBI के सार्वजनिक क्षेत्र का सबसे बड़ा बैंक है।

इस सीरीज़ के पिछले लेख में हमने जियो प्लेटफॉर्म में अमेरिका, अबू धाबी और सऊदी अरब द्वारा किए गए निवेश से सुरक्षा चिंताओं के ऊपजने का परीक्षण किया था। इस लेख में हम इसी मुद्दे के एक विशेष पहलू पर करीब़ से नज़र डालेंगे।

न्यूज़क्लिक ने ''यूनियन एंड एसोसिएशन ऑप एमप्लॉईज़ एंड ऑफिसर्स ऑफ बैंक'' के तीन पूर्व पदाधिकारियों, SBI के दो पूर्व उच्च अधिकारियों और दो विश्लेषकों से हितों के इस टकराव और जियो पेमेंट बैंक के साथ SBI के गठजोड़ से ऊपजने वाली सुरक्षा जटिलताओं पर बात की।  

रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया, एक पूर्व गवर्नर, मौजूदा SBI चेयमैन और बैंक के एक पूर्व चेयरपर्सन को प्रश्नावलियां मेल की गई हैं।

यह लेख लिखते वक़्त तक किसी तरह की प्रतिक्रिया, किसी से भी नहीं आई है। संबंधित लोगों में से किसी का जवाब आने पर इस लेख को अपडेट कर दिया जाएगा।

क्या SBI जियो पेमेंट बैंक की मदद कर रहा है? 

जियो पेमेंट बैंक की शुरुआत SBI और रिलायंस जियो के साझा उपक्रम के तौर पर अप्रैल, 2018 में हुई थी। यह 30:70 की साझेदारी में है, बैंक की वार्षिक रिपोर्ट, 2018-199 के मुताबिक़, SBI की 30 फ़ीसदी हिस्सेदारी का मूल्य 69।3307 करोड़ रुपये है।

उद्योग मंत्रालय में कंपनी रजिस्ट्रार को दी गई जानकारी के मुताबिक़, जियो पेमेंट बैंक लिमिटेड की शुरुआत 3 अप्रैल, 2018 को हुई थी, यह बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 के तहत काम करता है। 31 मार्च, 2019 तक बैंक में कुल 1।10 करोड़ का घाटा हुआ और उसके पास 270 करोड़ रुपये की संपत्ति मौजूद है, जिसमें से 225 करोड़ की संपत्ति सरकार के पास प्रतिभूतियों के तौर पर मौजूद है।

जियो पेमेंट बैंक की पेमेंट सर्विस SBI के ''यू ऑनली नीड वन या YONO'' प्लेटफॉर्म के ज़रिए दी जाती हैं, यह एक डिजिटल बैंकिंग एप्लीकेशन है, जिसकी शुरुआत SBI ने 2017 में की थी।

इन समझौतों को करवाने वाली, तत्कालीन SBI चेयरमैन अरुंधति भट्टाचार्य ने अपने रिटायरमेंट के एक साल बाद, जब ''कूलिंग ऑफ पीरियड'' खत्म हो जाता है, तब रिलायंस के बोर्ड में एक अतिरिक्त स्वतंत्र निदेशक की हैसियत से नियुक्त ली है। उनका SBI में कार्यकाल अक्टूबर, 2017 में खत्म हुआ था। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि SBI-RIL का गठबंधन हितों के टकराव के सवाल पैदा करता है।

हितों का टकराव?

ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कंफेडरेशन के पूर्व अखिल भारतीय महासचिव थॉमस फ्रैंको ने न्यूज़क्लिक को बताया, ''जब यह समझौता हुआ, तब कहा गया कि दोनों के बीच गठबंधन से SBI को ग्रामीण इलाकों में पहुंचने और तकनीक में नवाचार में मदद मिलेगी। अब ध्यान रखना होगा कि SBI देश का सबसे बड़ा बैंक है। उस पर किसी भी इलाके में अपनी ब्रॉन्च खोलने पर कोई पाबंदी नहीं है। इसके लिए बैंक को जियो के साथ गठबंधन करने की जरूरत नहीं है।''

फ्रैंको ने आगे कहा, ''जहां तक बैंकिग क्षेत्र में तकनीक के उपयोग की बात है, तो SBI हमेशा से इसमें अग्रणी भूमिका में रहा है। पहली कोर बैंकिंग सॉल्यूशन SBI ने ही जारी की थी। यहां तक कि बैंक ने SBI इंस्टीट्यूट ऑफ इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी की भी शुरुआत की थी। इसके ज़रिए सॉफ्टवेयर में अपनी जरूरत के मुताबिक़ फेरबदल किया गया था।''

तब अनुभवी बैंकर फ्रैंको सवाल उठाते हुए कहते हैं, ''इस स्थिति में SBI को तकनीकी नवाचार के लिए रिलायंस की शरण में जाने की जरूरत क्यों थी।''

उनके मन में सवाल है कि क्या जियो पेमेंट बैंक को SBI के पूरे खातों के डेटाबेस तक पहुंच उपलब्ध कराई गई है। वह कहते हैं, ''अगर SBI से तुलना करें, तो रिलायंस जियो पेमेंट बैंक में न्यूनतम बैलेंस की जरूरत नहीं है, न उसमें कोई सर्विस चार्ज है। SBI के डेटाबेस तक पहुंच बनाकर जियो पेमेंट बैंक SBI के छोटे खाताधारकों तक पहुंच बनाकर उन्हें ज्यादा आकर्षक शर्तों पर अपनी तरफ खींचने में कामयाब हो सकेगा।''

फ्रैंको का कहना है कि रिलायंस जियो यूनिवर्सल बैंकिंग लाइसेंस के लिए आवेदन कर सकता था और अगर उसे वैसा लाइसेंस दे दिया जाता, ''तो वह आसानी से ज्वाइंट वेंचर से SBI को हटा सकता था और उसका सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी बनकर उबर सकता था।'' फ्रैंको ने आगे कहा, ''SBI चेयरमैन के तौर पर अरुंधति भट्टाचार्य ने रिलायंस जियो के लिए बड़ी मात्रा में कर्ज़ को पास किया और रिलायंस जियो पेमेंट बैंक समझौते पर हस्ताक्षर किए। अब वे रिलायंस के बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर्स में शामिल हैं। क्या यह हितों का टकराव नहीं है? SBI ने अपने प्रतिस्पर्धी के विकास के लिए सुविधाएं बनाईं।''

ऑल इंडिया बैंक एंप्लाईज़ एसोसिएशन (AIBAE) के पूर्व ज्वाइंट सेक्रेटरी देवीदास तुलजापुरकर और AIBEA के पूर्व उपाध्यक्ष विश्वास उतागी फ्रैंको से सहमत हैं, उतागी कहते हैं, ''मेरी राय में ''हितों के टकराव'' वाले मुद्दे पर कोर्ट में बहस होनी चाहिए।''

तुलजापुरकर कहते हैं, ''भारत में कुछ बड़े कॉरपोरेट कानून से बढ़कर दिखाई देते हैं। वे लोग, 'हितों के टकराव से बचने' जैसे अच्छे कॉरपोरेट प्रशासन के लिए जरूरी कुछ पवित्र और अनिवार्य मूल्यों का पालन करना नहीं चाहते हैं। SBI के बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर्स में वित्तमंत्रालय और बैंकिंग क्षेत्र के नियामक RBI के प्रतिनिधि मौजूद हैं। इन लोगों को बैंक के रिलायंस समूह के साथ गठबंधन में कुछ भी गलत या अनोखा दिखाई नहीं दिया। इससे उनके सोचने-समझने के बारे में बहुत कुछ पता चल जाता है।''

SBI के एक पूर्व कर्मचारी भी इस बात से इत्तेफ़ाक रखते हैं। भट्टाचार्य का हवाला देते हुए SBI के एक पूर्व प्रबंधक निदेशक ने कहा, ''यह साफ़ तौर पर अपनी पसंद को तरज़ीह देने का मामला है, क्योंकि भट्टाचार्य के पास SBI और रिलायंस समूह के जियो पेमेंट बैंक समझौते के लिए होने वाली बातचीत की अहम जानकारियों तक पहुंच थी। यह उनके लिए पूरी तरह अनैतिक है कि उन्होंने RIL में पद ले लिया। अब वह एक 'स्वतंत्र निदेशक' कैसे कही जा सकती हैं?''

वह पूछते हैं कि ज्वाइंट वेंचर के शेयर्स का मूल्यांकन करते हुए SBI की 30 फ़ीसदी हिस्सेदारी के लिए 69।3 करोड़ रुपये का आंकड़ा कैसे आया, जबकि उस ज्वाइंट वेंचर का काम शुरू करना भी बाकी था। SBI के इस पूर्व प्रंबध निदेशक आगे कहते हैं, ''मेरे हिसाब से, SBI का इस बैंक में निवेश करना साफ तौर पर हितों का टकराव है, क्योंकि जियो पेमेंट बैंक द्वारा जिन सेवाओं का दिया जाना प्रस्तावित है, वही सेवाएं SBI दे रहा है।''

वह याद दिलाते हैं कि 2006 से 2011 के बीच जब ओ पी भट्ट बैंक के चेयरमैन थे, तब SBI के बोर्ड ऑफ डॉयरेक्टर्स ने भारती एयरटेल समूह का ऐसा ही एक ज्वाइंट वेंचर, जिसमें मोबाइल बैंकिंग सुविधाओं का उपोयग करते हुए छोटी-छोटी पेमेंट की सुविधा देनी थी, उसे बनाने का प्रस्ताव खारिज कर दिया था।

पूर्व प्रबंधक निदेशक कहते हैं, ''यह साफ नहीं है कि तबसे SBI में रिलायंस समूह के साथ ऐसे ही समझौते पर आगे बढ़ने को मजबूर होने के लिए क्या बदल गया। यह गठबंधन उसी ऊंट के टेंट में आने वाली कहानी को याद दिलाता है।''

एक और SBI के उच्च सूत्र ने हमसे बात करते हुए पूछा, ''SBI और जियो पेमेंट बैंक के बीच ज्वाइंट वेंचर पर आगे बढ़ने के लिए क्या यह लेन-देन (क्विड प्रो को) जैसा नहीं है। उन्होंने (भट्टाचार्य) न केवल उस बैंक के हितों को नुकसान पहुंचाया है, जिसमें दशकों काम किया, बल्कि अपनी साख भी खराब की।''

हितों के टकराव में दूसरा मामला मंजू अग्रवाल से जुड़ा है, जो जियो पेमेंट बैंक के बोर्ड में उपस्थित हैं। SBI की पूर्व उप प्रबंध निदेशक रहीं अग्रवाल अपने कार्यकाल के आखिर में बैंक की उप प्रबंध निदेशक (डिजिटल बैंकिंग और न्यू बिज़नेस) रहीं। SBI में अपने कार्यकाल में उन्होंने SBI के YONO प्लेटफॉर्म को लॉन्च किया। अपनी सेवानिवृत्ति से पहले अग्रवाल नेशनल कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCI) में SBI द्वारा नामित निदेशक भी थीं। NPCI देश में पेमेंट और सेटलमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर का नियामक है।

3 जून को इस लेख के एक लेखक ने SBI चेयरमैन रजनीश कुमार को एक प्रश्नावली भेजी, जिसकी एक कॉपी बैंक सीनियर कम्यूनिकेशन ऑफिसर को भी भेजी गई, जिनमें यह सवाल पूछे गए:

एसबीआई को आरबीआई से 30:70 की साझेदारी के लिए अनुमति कब मिली?

क्या यह सही है कि आरबीआई की तरफ से एसबीआई और जियो के ज्वाइंट वेंचर को अनुमति दी गई, जबकि बैंक ने काम करना भी शुरू नहीं किया था?

किस आधार पर एसबीआई कि ज्वॉइंट वेंचर में 30 फीसदी हिस्सेदारी का मूल्यांकन 69।3 करोड़ आंका गया?

अगर जियो पेमेंट बैंक वही सर्विस और उत्पाद की आपूर्ति कर कर रहा है, जिनको एसबीआई प्रदान करता है, तो क्या एसबीआई का निवेश हितों का टकराव नहीं है?

2007 से 2014 के बीच, कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक़ एसबीआई भारती एयरटेल के साथ जियो जैसे ही ज्वॉइंट वेंचर के लिए बातचीत कर रहा था। क्या यह सही बात है कि इनमें से कुछ प्रस्तावों को एसबीआई ने ख़ारिज कर दिया था? अगर ऐसा है तो क्यों रिलायंस जियो पेमेंट बैंक के प्रस्ताव को एसबीआई ने मान लिया और भारती एयरटेल के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया?

30 जून की शाम में इसी ईमेल को एसबीआई के चेयरमैन को कुछ अतिरिक्त सवाल के साथ भेज दिया गया:

मिस मंजू अग्रवाल, पूर्व उप प्रबंध निदेशक (डिजिटल बैंकिंग एंड न्यू बिज़नेस) SBI,  सेवानिवृत्त होने के बाद जियो पेमेंट बैंक के बोर्ड में शामिल हो गईं। क्या यहां हितों का टकराव नहीं है?

इस लेख के प्रकाशित होने तक रजनीश कुमार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

रिलायंस की बैंकिंग महत्वकांक्षाएं

इस लेख के लेखकों से नाम ना छापने की शर्त पर बात करते हुए रिलायंस समूह के एक पूर्व कर्मचारी और बाज़ार विश्लेषक ने बताया कि एसबीआई के साथ अपने संबंधों के जरिए रिलायंस  बैंकिंग क्षेत्र की महत्वकांक्षाओं को पूरा करना चाहती है।

एक चेतावनी देते हुए उस कर्मचारी ने कहा, "रिलायंस को बैंकिंग लाइसेंस नहीं देना चाहिए। पारंपरिक बैंकिंग ढांचा ऐसा है, जिसमें दूसरी जगह बड़े हित वाले संगठनों को बैंकिंग लाइसेंस नहीं दिया जाता, क्योंकि अगर संबंधित व्यापारी के दूसरे बिज़नेस ढप होते हैं, तो बैंक भी डूबता है।"

SBI  के साथ समूह के संबंधों पर चिंता जताते हुए कर्मचारी ने कहा, "सांस्थानिक तौर पर एसबीआई जैसे बड़े बैंक को रिलायंस डुबाने की हैसियत नहीं रखता। लेकिन रिलायंस वहां का पूरा ज्ञान, पूरी क्षमता चूस सकता है। साथ में उसके ग्राहकों का बड़ा हिस्सा भी के सकता है।।। यह रिलायंस द्वारा अपनाई जाने वाली जानी पहचानी तरकीब है।"

भारत की बैंकिंग व्यवस्था में "पेमेंट बैंक" नया जुड़ाव हैं। इनका प्रशासन एनपीसीआई द्वारा किया जाता है। कुछ लोग बैंकिंग व्यवस्था में इन बैंकों के प्रवेश को "बैकडोर एंट्री" मानते हैं। कई कंपनियां और बड़े औद्योगिक समूह, जिन्हें नियामक बाधाओं के चलते बैंकिंग व्यवस्था में प्रवेश नहीं मिलता, उन्होंने पेमेंट बैंक बनाने की प्रक्रिया चालू कर दी है।

अगस्त 2015 में आरबीआई ने जिन 11 नामों का अनुमोदन पेमेंट बैंक खोलने के लिए किया, वे इस तरह हैं:

  1. आदित्य बिरला नुवो लिमिटेड
  2. एयरटेल एम कॉमर्स सर्विस लिमिटेड
  3. चोलमंडलम डिस्ट्रीब्यूशन सर्विस लिमिटेड
  4. इंडिया पोस्ट, GOI
  5.  फिनो पे टेक  लिमिटेड
  6. नेशनल सिक्योरिटी डिपोजिटरी लिमिटेड
  7. रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड
  8. दिलीप शांतिलाल सांघवी
  9. पे टी एम पेमेंट बैंक लिमिटेड
  10. टेक महिंद्रा लिमिटेड
  11. वोडाफोन एम पैसा लिमिटेड

सक्रिय पेमेंट बैंक की सूची इस तरह है।

  1. एयरटेल पेमेंट बैंक
  2. इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक
  3. फिनो पेमेंट बैंक
  4. जियो पेमेंट बैंक
  5. पे टी एम पेमेंट बैंक
  6. NSDL पेमेंट बैंक

भारती एयरटेल समूह ने भारत का पहला लाइव पेमेंट बैंक मार्च 2017 में लॉन्च किया था। इसके बाद पे टी एम, इंडिया पोस्ट, फिनो और आदित्य बिरला समूह ने पेमेंट बैंक लॉन्च किए। चोलमंडलम डिस्ट्रीब्यूशन सर्विसेज, सन फार्मास्यूटिकल्स और तक महिंद्रा ने अपने लाइसेंस लौटा  दिए। जबकि आदित्य बिरला समूह ने अपनी सर्विस 26 जुलाई, 2019 से बंद कर दी।

छोटी पेमेंट और रिटेल ट्रांसेक्शन की बैंकिंग सर्विस देने वाले पेमेंट बैंक अपने ग्राहकों को जीरो बैलेंस पर खाता खोलने की सुविधा से सकते हैं। साथ में ATM  कार्ड जैसी पैरा बैंकिंग सर्विस भी। लेकिन इसे पेमेंट बैंक अपने ग्राहकों को कर्ज या रिटेल बैंक अकाउंट की सर्विस नहीं दे सकते। 

नाम ना छपने की ही शर्त पर एक दूसरे विश्लेषक ने बताया, "2015 में तब के आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन बैंकिंग लाइसेंस के लिए एक "ऑन टॉप" पॉलिसी लेकर आए थे। इस नीति में आवेदकों के लिए एक स्थाई खिड़की खोली गई थी। इस तरह आरबीआई आवेदक संस्थानों की लाइसेंस लेने की अहर्ता पर निर्णय करता।"

विश्लेषक इस नीति को जारी ना रखने पर हैरानी जताते हैं। उन्होंने कहा, "क्या अब आरबीआई बड़े औद्योगिक घरानों और कंपनियों के समूह द्वारा समर्थित, पूंजीगत तौर पर मजबूत संस्थानों को "डिजिटल केवल" बैंक क्षेत्र में प्रवेश करने दे रहे हैं। जहां इन बैंकों की शाखाएं नहीं होंगी और यह केवल मोबाइल बैंक सुविधा ही देंगे।

लेख के एक लेखक ने 16 जून को ईमेल के ज़रिए राजन की टिप्पणी भी जाननी चाही। 30 जून को दोबारा मेल किया गया। लेकिन अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

विश्लेषक ने कहा, यह साफ नहीं है कि कब पेमेंट बैंकों को क्रेडिट कार्ड या कर्ज देने का अधिकार दिया जाएगा। 

विश्लेषक ने आगे कहा, "पता नहीं इस सिस्टम की पूर्व संचार मंत्री  2G कोयला आवंटन के विवादित पहले आओ, पहले पाओ की नीति से तुलना की जा सकती है या नहीं।"

अरुंधति भट्टाचार्य के लिए सवाल

15 जून को इस लेख के एक लेखक ने निम्नलिखित प्रश्नावली अरुंधति भट्टाचार्य को भेजी। प्रश्नावली इस परिचय के साथ शुरू हुई।

22 सवाल मई को रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने एक औद्योगिक समूह के लिए "एक्स्पोज़र लिमिट" 25 फीसदी से बढ़ाकर 30 फीसदी कर दी। यह प्रावधान 30 जून 2021 तक के लिए किया गया। इसके बाद अगर आरबीआई कोई बदलाव नहीं करता है, तो यह  वापिस 25 फीसदी हो जाएगी।  यह वह दर होती है, जितना अधिकतम कोई बैंक किसी औद्योगिक घराने को दे सकता है। ताकि एक समूह की दिक्कतें, दूसरे तक ना पहुंचें और बैंकिंग के ढांचे को खतरा ना पहुंचे।

आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने सार्वजनिक भाषण में कहा था, "मौजूदा दौर में पूंजीगत बाजारों से संसाधन इकट्ठा करने में होने वाली दिक्कतों को देखते हुए बैंकों की ग्रुप एक्स्पोज़र लिमिट 25 से 30 फीसदी की गई थी, ताकि उद्यम अपने लिए जरूरी पूंजी बैंकों से इकट्ठा कर सकें।

यह कहा जा सकता है की आरबीआई के इस फ़ैसले से सबसे ज्यादा फायदा उन औद्योगिक घरानों को होगा जिनका नेतृत्व रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड करता है। आपकी इस पर क्या टिप्पणी है? जब आप चेयरमैन थीं, 7 अक्टूबर, 2013 से 6 अक्टूबर 2017 के बीच में, तब क्या आप SBI सवाल रिलायंस के ज्वॉइंट वेंचर के लिए होने वाली बातचीत में शामिल थीं।

क्या यह सही है कि एसबीआई को आरबीआई से रिलायंस के साथ पेमेंट बैंक के ज्वॉइंट वेंचर के लिए अनुमति तब दी गई थी, जब बैंक ने काम करना भी शुरू नहीं किया था?

किस आधार पर JV  में SBI का मूल्यांकन 30 फीसदी हिस्सेदारी के लिए 69।3 करोड़ मापा गया।

क्या इस बैंक में निवेश करना SBI के लिए अपने हितों के ख़िलाफ़ नहीं जाता है, जबकि जियो पेमेंट बैंक भी वही सेवाएं देने का प्रस्ताव से रहा है, जो SBI देता है?

2007 से 2014 के बीच कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि एसबीआई भारती एयरटेल बैंक के साथ जियो के ही जैसा पेमेंट बैंक खोलने के लिए बात कर रहा था। क्या यह सही बात है कि इनमें से कुछ प्रस्तावों को SBI  के बोर्ड ऑफ डायरक्टर्स ने ख़ारिज कर दिया था?

अगर ऐसा है तो भारती एयरटेल का प्रस्ताव खारिज क्यों हुआ? जियो का प्रस्ताव क्यों स्वीकार किया गया? हमें बताया गया कि एसबीआई ने अपने संपत्ति प्रबंधन तंत्र, निवेशों के मिश्रण के ज़रिए, हाल के सालों में, जिनमें आपका कार्यकाल भी शामिल है, उनमें बड़े पैमाने पर रिलायंस समूह की कंपनियों के इक्विटी शेयर खरीद कर निवेश किया। इससे रिलायंस को बाज़ार मूल्यांकन में समूह से ज्यादा भारी दर्जे को बनाए रखने में मदद मिली। आपकी टिप्पणी अपेक्षित है। 

रिलायंस में अतिरिक्त स्वतंत्र निदेशक के तौर पर आपकी क्या भूमिका है?

इस लेख के प्रकाशित होने तक भट्टाचार्य की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। उनकी प्रतिक्रिया आने पर लेख को अपडेट कर दिया जाएगा।

क्या फ़ेसबुक डील से जियो पेमेंट बैंक को फायदा होगा?

जनवरी, 2019 में भारत के सबसे अमीर आदमी और रिलायंस समूह के प्रोमोटर मुकेश अंबानी ने घोषणा में कहा कि "डेटा अब नया तेल है।" जियो पेमेंट बैंक में रिलायंस का काम अभी बहुत ज्यादा नहीं है। लेकिन अब फेसबुक के साथ हुई डील से रिलायंस का "नए तेल" के व्यापार की महत्वकांक्षाओं को पर लग सकते हैं।

जब 24 मार्च को पूरे भारत में कोविड -19 से निपटने के लिए लॉकडाउन लगाया गया, तो ई कॉमर्स सर्विस देने वाली अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियों को सरकार द्वारा केवल "जरूरी सामान" पहुंचाने की छूट दी गई।

23  मई को जैसे ही अपने प्रतिस्पर्धियों के व्यापार में बड़ी गिरावट आई, रिलायंस ने अपने ई कॉमर्स बिज़नेस जियोमार्ट की घोषणा कर दी। यह जियो प्लेटफॉर्म और जियो रिटेल के गठबंधन की एक योजना है। इसमें जियो पेमेंट बैंक के ज़रिए भुगतान प्रक्रिया की जाती है।

जियो पेमेंट बैंक के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी एच श्रीकृष्णन ने बताया, रिलायंस समूह में आपसी गठजोड़ और जियो प्लेटफॉर्म के साथ साथ जियो रिटेल के बड़े ग्राहक आधार से जियो पेमेंट बैंक की वृद्धि का मॉडल तैयार किया जाएगा। उन्होंने मार्च, 2020 में एक इंटरव्यू में कहा:

"यह मॉडल भुगतान करने, नगदी को डिजिटल में बदलने और इस प्रक्रिया में तेजी लाने पर आधारित है। इस नजरिए से बड़ी नगदी पर चलने वाले व्यापार, जैसा हमारे समूह में कुछ जगह होता है, बड़ी नगदी वाले व्यापार को हम डिजिटल में बदलने की दिशा में काम करेंगे। हमारे सामने बहुत बड़ा काम है, रिलायंस जियो और रिलायंस रिटेल के पास बहुत बड़ी संख्या में ग्राहक हैं।"

जियोमार्ट  को ऐसे माहौल में सामने लाया जा रहा है, जो डिजिटल सर्विस देने के लिए सबसे ज्यादा माकूल है, तब स्वाभाविक तौर पर जियो पेमेंट बैंक के ग्राहकों में बढ़ोत्तरी होगी।

मूल आलेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Jio Payments Bank and SBI: A Camel Inside A Tent?

(क्रमशः)

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