Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

जेल में क़ैद पत्रकार रुपेश कुमार ने राष्ट्रपति को लिखा पत्र, राजनीतिक क़ैदियों की दुर्दशा का किया ज़िक्र

13 सितंबर यानी 'राजनीतिक बंदी दिवस' को क्रांतिकारी जतिन दास की पुण्यतिथि है। इस मौक़े पर रुपेश कुमार सहित देश की अनेक जेलों में बंद राजनीतिक क़ैदी भूख हड़ताल पर हैं और सरकार तक अपनी मांगों को पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं।
Rupesh
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अहम नायक जतिन दास की पुण्यतिथि का दिन आज के राजनीतिक क़ैदियों की दुर्दशा की याद दिलाता है। जतिन दास की 13 सितंबर 1929 को अंग्रेज़ों की क़ैद में मौत हो गई थी। उस वक़्त वे महज़ 25 साल के थे, जतिन दास ने भगत सिंह के समर्थन में जेल में भूख हड़ताल की थी। 63 दिन की भूख हड़ताल के बाद हुई जतिन की मौत ने अंग्रेज़ी सत्ता को हिला कर रख दिया था। जतिन दास से ही प्रेरणा लेते हुए मौजूदा समय में जेल में बंद राजनीतिक क़ैदी अपनी दुर्दशा और सरकार के क्रूर रवैये के ख़िलाफ़ भूख हड़ताल पर बैठे हैं। इसी क्रम में झारखंड की सरायकेला जेल में 18 जुलाई से बंद पत्रकार रुपेश कुमार सिंह भी अपनी मांगों के साथ भूख हड़ताल पर हैं।

रुपेश ने जेल में बंदियों को मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराने एवं महान क्रांतिकारी अमर शहीद यतींद्र नाथ दास उर्फ जतिन दास के शहादत दिवस 13 सितंबर को जेल में एक दिवसीय भूख हड़ताल करने के संबंध में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को ख़त लिखा है।

रुपेश ने अपने ख़त में लिखा है, "हमारे देश से अंग्रेजों को गए हुए 75 साल हो गए, आज हमारा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, लेकिन आज भी हमारे देश की जेलों की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है। आज हमारे देश की जेलें क्षमता से अधिक कैदियों से भरा हुआ है। जेलों में न तो पर्याप्त सिपाही है, और न ही पर्याप्त कर्मचारी। जेल कर्मियों को प्रत्येक दिन दो शिफ्ट में लगभग 10 से 11 घंटे ड्यूटी करनी पड़ती है, जो की भारतीय श्रम कानून 8 घंटे कार्य दिवस के खिलाफ है। इन सिपाही को साप्ताहिक छुट्टी भी नहीं मिलती है।"

"क्या यह बंदियों के लिए पौष्टिक आहार है?"

रुपेश ने पहले भी जेल में बंदियों को दिये जा रहे अपर्याप्त आहार की बात उठाई है। पौष्टिक आहार पर सवाल उठाते हुए रुपेश ने लिखा है, "मैं 18 जुलाई 2022 से झारखंड के मंडलकारा सरायकेला में बंद हूं, जहां ना तो बंदियों को पौष्टिक भोजन मिलता है, और ना ही बंदी मरीजों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा, यहां नाश्ता में सप्ताह में तीन दिन मूढ़ी-प्याज, तीन दिन चना-प्याज, एक दिन चूड़ा-गुड़ मिलता है। दोपहर भोजन में प्रत्येक दिन चावल, दाल और सब्जी एवं रात के खाने के लिए रोटी, दाल और सब्जी मिलती है।(जिसकी गुणवत्ता बिल्कुल बदतर होती है, जिससे पोष्टिकता की उम्मीद नहीं की जा सकती)। हां खानापूर्ति के लिए 15 दिन में एक दिन दो पीस मुर्गा का मीट भी मिलता है।

इप्सा ने भी राष्ट्रपति को भेजा ख़त

लेक्चरार और रुपेश की पत्नी इप्सा शताक्षी ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "रुपेश ने मुझे फोन पर ये लेटर पढ़के सुनाया था जिसे मैंने टाइप किया है। उन्होंने जेल सुप्रीटेंडेंट हिमानी प्रिया को ये लेटर दिया था मगर वह इसे राष्ट्रपति को भेजेंगी या नहीं इसकी जानकारी मुझे नहीं है।"

इप्सा ने अपने स्तर पर भी राष्ट्रपति तक यह ख़त पहुंचाया है।

बता दें कि जतिन दास वह पहले राजनीतिक क़ैदी थे जिन्होंने राजनीतिक कैदियों की लड़ाई लड़ते हुए शहादत दी। उनकी ऐतिहासिक भूख हड़ताल ने ब्रिटिश राज में भारतीय राजनीतिक कैदियों पर हो रहे जुल्म और अत्याचार का पर्दाफाश किया और उस सवाल पर एक चेतना पैदा कि जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।

आज देश से अंग्रेज़ों को गए 75 साल हो गए हैं मगर राजनीतिक क़ैदियों की स्थिति सुधार नहीं पाई है। पिछले साल ही वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर स्टैन स्वामी की मृत्यु पुलिस हिरासत में हुई। स्टैन स्वामी लगातार बीमार चल रहे थे लेकिन उनकी जमानत याचिका को अदालत लगातार ख़ारिज करते रही। पार्किंसन्स रोग से ग्रसित 84 वर्षीय स्टैन स्वामी ने जब खाने के लिए 'स्ट्रॉ' और ‘सिप्पर’ की मांग की तो वो भी उनको करीबन एक महीने बाद मिली। सर्दी के कपड़ो के लिए भी उनको याचिका दायर करनी पड़ी थी।

रुपेश ने तमाम राजनीतिक क़ैदियों की तरफ़ से राष्ट्रपति को लिखा है कि "यहां बंदियों को अपने परिजनों को फोन करने में प्रति मिनट के लिए 2:50 रुपये देना होता है। मुलाकाती 15 दिन में एक दिन होता है, जिसमें सिर्फ 10 मिनट बात करने की अनुमति है, क्या यह बंदियों की आर्थिक व मानसिक प्रताड़ना नहीं है?

अतः हम माननीय राष्ट्रपति महोदया से मांग करते हैं कि-

1. बंदियों को उचित पौष्टिक आहार दिया जाए।

2. मरीज बंदियों को अस्पताल में रखा जाए।

3. बंदियों को मुफ्त फोन सुविधा उपलब्ध कराया जाए।(झारखंड जैसे राज्य जहां की अधिकांश जनता ग्रामीण क्षेत्र से आती है जो आर्थिक रूप से बेहद कमजोर होते है, टेलीफोन सुविधा के नाम पर प्रति मिनट 2:50 रुपये अदा करना बहुत ही कष्टदायक है।)

4. मुलाकाती सप्ताह में एक दिन किया जाए व कम से कम 20 मिनट बात करने की अनुमति दी जाए।"

राजनीतिक बंदी दिवस के दिन दिल्ली के प्रेस क्लब में भी प्रेस वार्ता का आयोजन करके राजनीतिक बंदियों की रिहाई की मांग की जा रही है।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest