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कमला हैरिस: उम्मीदें जितनी, चुनौतियां भी उतनी ही

कमला हैरिस अपने तल्ख़ विचारों की वजह से कई बार विवादों से घिरी रहीं, पर उन्होंने कभी भी विचारधारा के मामले में समझौता नहीं किया। बाक़ी, यह सच है कि हैरिस उन्हीं नीतियों का पालन करेंगी जो बाइडेन तय करेंगे।
कमला हैरिस

जो बाइडेन के राष्ट्रपति चुने जाने के साथ कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद से नवाज़ा गया है; यह अमेरिका और बाइडेन दानों के लिए बड़ी बात है। राष्ट्रपति चुनाव में कमला बाइडेन की ‘मेट’(mate) थी और डेमोक्रैटिक पार्टी से उपराष्ट्रपति पद केलिए मनोनीत एक अनुभवी, मुखर और तेज़-तर्रार प्रत्याशी रहीं।

बाइडेन ने पहले ही कहा था कि वह किसी महिला को अपना मेट बनाएंगे। जॉर्ज फ्लायड की हत्या के बाद अमेरिका में जो माहौल बना और जिस तरह ब्लैक लोगों के बीच एक आक्रोश उभरा तथा न्याय और बराबरी के लिए अभिलाशा जगी, यानी ‘‘ब्लैक लाइव्ज़ मैटर’’(Black Lives Matter) प्रतिरोध ने पूरे अमेरिका को अपने आगोश में ले लिया, उसका भी काफी दबाव रहा होगा कि वे किसी अश्वेत महिला को मनोनीत करें, और हैरिस एक जाना-पहचाना चेहरा थीं।

कमला हैरिस कैलिफॉर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले के दो स्नातकों की बेटी हैं, जो सिविल राइट्स आन्दोलन के दौर में एक्टिविसट के बतौर एक-दूसरे के करीब आए थे और विवाह के बंधन में बंधे। पर बाद में वे अलग हो गए, जिस वजह से कमला को उनकी मां ने अकेले ही पाला। अब दोनों अभिभावकों का स्वर्गवास हो चुका है, पर कमला की एक बहन है। कमला के पिता जमायका से थे और मां भारतीय अयंगार परिवार से। पर कमला अपने आप को अमेरिकी कहते हुए गर्व करती हैं। इसके बावजूद अफ्रीकी-अमेरिकी, एशियायी और खासकर भारतीय लोगों को उनके साथ एक खास किस्म का अपनापन लगता है, और वे अत्यधिक उत्साह में हैं।

हैरिस ने हॉवर्ड विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की और फिर कैलिफॉर्निया विश्वविद्यालय, हेस्टिंग्स में उन्होंने विधि का अध्ययन किया। वह बताती हैं कि उनके बचपन और युवावस्था के दिन एक प्रगतिशील व लोकतांत्रिक माहौल में बीते। वह बर्कले के एक ऐसे सांस्कृतिक केंद्र में समय गुज़ारा करती थीं जिसका नाम था, द रेनबो साइन; यह 1971-1977 में बहुत सक्रिय रहा; उस समय हैरिस टीनेजर रही होंगी। यहां कलाकार, लेखक, कवि, मूर्तिकार सभी आते और लोग उनकी कृतियां देखते या उनकी बातें सुनते। यह मूल रूप से एक ब्लैक कल्चरल सेंटर था जहां एलिज़ाबेथ कैटलेट, मेरी ऐंजेलू और मेरी ऐन पोलर जैसी हस्तियों से भेंट हो जाती। इस केंद्र की कल्पना 11 अश्वेत महिलाओं ने की थी और यह केंद्र बहुलता और न्यायसंगत भविष्य के निमार्ण में ब्लैक कल्चर की प्रमुख भूमिका के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिये जाना जाता था। तो आप समझ सकते हैं कि कमला के फॉरमेटिव दिनों में उनपर किस किस्म का वैचारिक प्रभाव रहा होगा।

कमला सीनेटर बनीं, अलामेडा काउंटी की अभियोक्ता (prosecutor) बनीं, पहली अफ्रीकी-अमेरिकी और पहली भारतीय-अमेरिकी महिला हैं, जो डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी (District Attorney) और बाद में कैलिफॉर्निया की अटॉर्नी जनरल (Attorney General) चुनी गईं। कमला पहले भी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार रह चुकी हैं और भविष्य में भी वह एक तगड़ी उम्मीदवार होंगी। उन्हें उप-राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने के कई कारण रहे होंग, जिनमें से प्रमुख हैं कि वह अश्वेत महिला हैं और जहां तक अमेरिका में लोकतांत्रिक व प्रगतिशील राजनीति की बात है, तो अश्वेत महिलाओं ने सालों से उसमें बहुत अहम् भूमिका निभाई है। इतना ही नहीं, यह समय नस्लीय प्रतिवाद का दौर है। यही नहीं, अश्वेत महिलाओं ने डेमोक्रैटिक पार्टी को भारी संकटों से लगातार बचाया है। आप कह सकते हैं कि डेमोक्रैटिक पार्टी का अस्तित्व अश्वेत महिलाओं पर बहुत हद तक निर्भर रहा है। कई बार जब पार्टी कठिन प्रतिस्पर्धा से गुजर रही थी, इन्हीं अश्वेत महिलाओं ने पार्टी के लिए सफलता का मार्ग प्रशस्त किया। यानी यह समुदाय, जिसकी प्रतिनिधि हैरिस हैं, डेमोक्रैटिक पार्टी का सबसे अधिक वफादार हिस्सा रहा है। क्योंकि कमला की विविध पहचान ने उन्हें अमेरिकी जनता के एक व्यापक हिस्से का प्रतिनिधि बना दिया है, बाइडेन ही नहीं, डेमोक्रैटिक पार्टी को इस चुनाव में कमला की वजह से भारी समर्थन मिला। भविष्य में भी इसका फायदा उन्हें निश्चित मिलता रहेगा।

कमला हैरिस अपने तल्ख विचारों की वजह से कई बार विवादों से घिरी रहीं, पर उन्होंने कभी भी विचारधारा के मामले में समझौता नहीं किया। वह महिलाओं की आज़ादी की मुखर प्रवक्ता हैं, इसलिए उनकी जीत से उन ढेर सारी महिलाओं और युवतियों में उत्साह और आशा का संचार हुआ है जो हिलेरी क्लिंटन की हार के बाद मायूस और निराश हो गई थीं। कमला ने उप-राष्ट्रपति बनने के बाद अपने भाषण में कहा, ‘‘भले ही इस पद पर मैं पहली महिला हूं, लेकिन निश्चित ही मैं आखिरी नहीं रहूंगी’’। उन्होंने कहा कि जो बाइडेन ने हिम्मत दिखाई और एक अश्वेत महिला को उप-राष्ट्रपति पद का दावेदार बनाकर इस देश में (महिलाओं) के समक्ष खड़ी तमाम बाधाओं में से एक बड़ी बाधा को तौड़ा है’’। जीत हासिल कर वह महिलाओं के मताधिकार के सम्मान में सफेद पोशाक में आईं। उन्होंने ब्लैक महिलाओं के त्याग और संघर्ष को सराहा पर यह भी कहा कि उनपर ध्यान नहीं दिया गया।

गर्भपात के अधिकार के लिए कमला ने लगातार बहुत ही मजबूती से आवाज़ उठाई। एक बहस के दौरान कमला ने पूछा,‘‘क्या कभी सरकार पुरुषों की देह के बारे में कोई फैसला करती नज़र आई है, फिर महिलाओं के लिए ही क्यों?’’हैरिस का मानना है कि गर्भ रखने या गर्भपात कराने का अंतिम फैसला महिला के हाथ में होना चाहिय, क्योंकि देह तो उसकी है। उन्होंने वाइस-प्रसिडेंशियल डिबेट में ट्रम्प पर तंज कसते हुए कहा था, ‘‘अपनी देह के बारे में फैसला लेने का अधिकार महिलाओं को होगा न कि राष्ट्रपति ट्रम्प और उप-राष्ट्रपति माइकेल पेंस का’’। वह एक विधेयक एस.1645 के पक्ष में हैं, जो कानून बनने पर गर्भपात पर सभी राज्यों के और संघीय प्रतिबंधों को निरस्त कर देगा। उन्होंने बॉर्न अलाइव अबॉर्शन सर्वाइवर्स प्रोटेक्शन ऐक्ट (Born Alive Aortion Survivors’ Protection Act) के विरुद्ध मतदान भी किया था।

कमला ने कहा है कि देश को महिला मुद्दों को प्राथमिकता देनी होगी। इसके लिए बात करनी हागी अर्थव्यवस्था की, राष्ट्रीय सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की; और अपराधिक न्याय सुधारों व जलवायु परिवर्तन की। उनके कहने का मतलब था कि इन सभी प्रश्नों से महिलाओं का जीवन प्रभावित होता है। वह महिलाओं के लिए प्रजनन स्वास्थ्य सेवा (reproductive healthcare) और परिवारों के लिए ‘पेड लीव’ (paid leave) की मुखर प्रवक्ता रहीं। उनका कहना है कि कामकाजी लोगों को अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए, महत्वपूर्ण कार्यों, बच्चों और परिवार की देखरेख और बीमारों की सेवा करने के लिए वैतनिक अवकाश मिलना चाहिये। उन्होंने एक अत्यन्त महत्वपूर्ण बात यहां जोड़ी, कि किसी परिवार में यौन अत्याचार या घरेलू हिंसा की घटना से उबरने के लिए भी पेड लीव का प्रावधान होना चाहिये। इतना ही नहीं, हैरिस ने कोरोना महामारी के बाद लोगों की बिगड़ती आर्थिक स्थिति को देखते हुए कहा था कि श्रमिकों के लिए अमेरिका की अर्थव्यवस्था श्रमिकों के लिए कुछ भी कर पाने में असमर्थ रहा इसलिए उन्हें सरकार से आर्थिक मदद मिलनी चाहिये। भविष्य में बढ़ते हुए ऑटोमेशन (automation) के मद्देनज़र श्रमिकों के लिए प्रशिक्षण की वकालत भी हैरिस ने लगातार की है।

कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर हैरिस बहुत मुखर रही हैं, मसलन सेक्स वर्क को डिक्रिमिनलाइज़ करना (decriminalisation of sex work), महामारी के दौर में अश्वेतों को समग्र स्वाथ्य सेवा मुहैया कराना, ट्रम्प के प्रस्तावित यूएस-मेक्सिको वॉल का विरोध, अवैध हथियारों को जब्त करवाना और ‘असॉल्ट वेपन्स’ (assault weapons) पर प्रतिबन्ध लगवाना, आपराधिक न्याय व्यवस्था में सुधार करना और अश्वेत महिलाओं की सुरक्षा, जलवायु संकट का समाधान और कई अन्य ऐसे मुद्दे। कमला ने 15 डॉलर प्रति घंटे के न्यूनतम वेतन की मुखालफत भी की थी।

कमला ने विधि के क्षेत्र में काफी काम किया है। अटॉर्नी रहते हुए 3 वर्षों में हैरिस ने गंभीर अपराधों में दोषसिद्धि या कन्विक्शन का दर 52 प्रतिशत से बढ़ाकर 68 तक पहुंचा दिया था। कमला का मानना था कि ट्रायल से पहले ही केस पर काम होना चाहिये, जिससे आरोपित व्यक्ति स्थायी तौर पर अपराधी बनने से बच सके। इससे अपराधों को रोकने में मदद मिल सकती है। वह इस बाबत आरोपित के साथ सामुदायिक बैठकें, काउंसलिंग और रोजगार प्रशिक्षण की मुखर प्रवक्ता रहीं। जिन बच्चों को स्कूल में बिना कारण लंबे समय अनुपस्थित देखा जाता, उनके माता-पिता पर जुर्माना भी लगाया जाता। कमला ने प्रॉपोसिशन 8 (Proposition 8) को समर्थन देने से इन्कार कर दिया था क्योंकि इसके तहत विवाह को केवल एक पुरुष व महिला के बीच संबंध माना गया था, न कि समलैंगिक जोड़ियों के बीच। वह लिंचिंग के विरुद्ध कानून की पक्षधर भी थीं।

जहां तक आर्थिक नीति का सवाल है, कमला का कहना है कि वह पूरी तरह ‘मेक-इन-अमेरिका टैक्स नीति के पक्ष में हैं और आउटसोर्सिंग के खिलाफ हैं। यानी अमेरिकी उत्पाद तैयार करो, अम्रीकी उत्पाद खरीदो और अम्रीकी रोजगार बढ़ाओ। अब यह अमेरिका के लिए फायदेमंद है पर भारत जैसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए कितना फायदेमंद होगा, इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है। बाक़ी, यह सच है कि हैरिस उन्हीं नीतियों का पालन करेंगी जो बाइडेन तय करेंगे। उन्होंने अपने भाषण में बिडेन के पूर्ण समर्थन से यह संकेत दिया है। उनके शब्दों में, ‘‘यू डिलिवर्ड अ क्लियर मेसेज, यू चोज़ होप ऐण्ड यूनिटी, डीसेंसी, साईंस ऐण्ड येस! ट्रूथ। यू चूज़ जो बाइडेन ऐज़ द नेक्स्ड प्रेसिडेंट ऑफ द यूएसए!’’ (“You delivered a clear message. You chose hope and unity, decency, science and yes! truth. You chose Joe Biden as the next President of USA”) कमला जो की नीतियों का पूर्ण समर्थन करेंगी यही स्वाभाविक लगता है।

भारत में प्रगतिशील खेमे में खुशी की लहर दौड़ गई। पिछले दिनों बाइडेन और कमला हैरिस ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे धारा 370 को वापस लेने के भारत सरकार के कदम और सीएए लागू करने के सख़्त खिलाफ हैं। अमेरिका और भारत में कुछ हिन्दूवादियों को यह बहुत अखरा था। कइयों का यहां तक कहना है कि बाइडेन और हैरिस की जोड़ी पाकिस्तान के प्रति नरम रुख अख़्तियार कर रही है, जो भारत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। यह तो भविष्य में देखने की बात है। हैरिस ने एक बयान में कहा था कि वह कश्मीरियों को बताना चाहती हैं कि वे अकेले नहीं हैं; कि उन्हें अंतर्राष्ट्रीय समर्थन मिलेगा। उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर अमेरिका को इस मुद्दे पर हस्तक्षेप भी करना पड़ सकता है। जो बाइडेन और हैरिस भारत के चीन विरोधी तेवर का भी समर्थन नहीं कर रहे हैं। इसलिए मोदी सरकार के अंधराष्ट्रवाद को धक्का जरूर लगेगा। बाइडेन-हैरिस को राजनीतिक खेमों में वाम-पक्षधर और समाजवादी नीतियों का हिमायती भी माना जाता है।

दरअसल अमेरिका में भी भारतीय अमेरिकी वोटरों की संख्या 1 करोड़ के करीब है, जो 5 प्रतिशत मतदाता हैं। तो सबकुछ के बावजूद इन्हें अपने साथ रखना भी जो-हैरिस के लिए जरूरी होगा। दूसरी ओर पाकिस्तान-पक्षधर लॉबियां भी अमेरिका में सक्रिय हैं, जिन्हें नज़रअंदाज़ करना भी संभव न होगा। हैरिस जिस समुदाय से आती हैं उसने उन्हें विविध पहचान तो दी है, पर इसके मायने यह भी हैं कि उनसे बहुलवादी अपेक्षाएं भी होंगी। उन्होंने पहले ही कहा है कि प्रणालीगत नस्लवाद को समाप्त करने के लिए उन्हें काफी मेहनत करनी होगी पर वे इसपर प्रतिबद्ध हैं। नए शासन को हमें समय तो देना होगा, पर संकेत काफी सकारात्मक हैं।

(लेखिका एक महिला एक्टिवसिट हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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