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कर्नाटक चुनाव : हिंदुत्व के मुद्दे को मामूली समर्थन

जैसे-जैसे तटीय इलाक़े से आगे बढ़ते हैं वैसे-वैसे हिंदुत्व का असर कम होता जाता है और वह जातिगत पहचान के इर्द-गिर्द घूमने लगता है।
Karnatka Election
प्रतीकात्मक तस्वीर। फ़ोटो साभार : iStock

नई दिल्ली: कर्नाटक में ध्रुवीकरण की राजनीति में जैसे ठहराव सा आ गया है, बुधवार को राज्य में होने वाले चुनावों में भाजपा के विभाजनकारी एजेंडे को समर्थन देने वालों की संख्या बहुत ही कम है। सत्तारूढ़ बीजेपी, विपक्षी कांग्रेस और जेडी(एस) के बीच कड़ा और त्रिकोणीय मुकाबला होगा।  

हिंदुत्व पर चुप्पी बनाए रखने की अपनी सामान्य रणनीति को छोड़कर, विशेष रूप से चुनावों के दौरान, कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में बजरंग दल और अस्थायी रूप से प्रतिबंधित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) आदि जैसे चरमपंथी धार्मिक संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने का वादा किया है। हालांकि, इसका फायदा उठाते हुए जब भाजपा ने कॉंग्रेस पर जबर्दस्त हमला किया तो कर्नाटक के पूर्व-मुख्यमंत्री (मुख्यमंत्री) वीरप्पा मोइली ने बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने के सुझाव से इनकार करते हुए, नुकसान को कुछ कम करने की कोशिश की। 

कांग्रेस ने शुरू में इतना साहसिक निर्णय क्यों लिया- यह कुछ ऐसा जिस है पर वह उत्तरी राज्यों में विचार करने का साहस भी नहीं कर सकती थी?

अगर ऑब्जर्वरस की माने तो कर्नाटक में हिंदुत्व समरूप नहीं है। यह उडुपी, चिक्कमगलुरु, मैंगलोर और शिवमोग्गा के तटीय जिलों में अधिक है जहां इसने लामबंदी की और अपना प्रभाव फैलाया, और यह जाति, संस्कृति और परंपराओं से बंधा हुआ है। 

मुसलमानों के लिए लगभग तीन दशक पुराने 4 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को समाप्त करने और इसे वीरशैव-लिंगायतों और वोक्कालिगाओं के बीच समान रूप से बांटने और हिजाब और हलाल मांस के मुद्दों को उठाने के भाजपा सरकार के फैसले का निश्चित रूप से तटीय मतदाताओं पर प्रभाव पड़ा है।

पूरे राज्य में माने जाने पूर्व-मुख्यमंत्री और जननेता सिद्धारमैया तथा एक संगठित स्थानीय नेतृत्व के तहत पार्टी कार्यकर्ताओं के एक मजबूत नेटवर्क के साथ, कांग्रेस भी जातिगत अंकगणित को अपने पक्ष में करने में भाजपा से पीछे नहीं है जैसा कि अन्य राज्यों में भाजपा इसमें आगे रहती है। कॉंग्रेस का ओबीसी, एससी और मुसलमानों का अपना सामाजिक गठबंधन है, जिसे अहिन्दा के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा, पिछली कांग्रेस सरकारों की कई कल्याणकारी योजनाओं का श्रेय इसे दिया गया है। 

जैसे-जैसे तटीय क्षेत्र से आगे बढ़ते हैं वैसे-वैसे हिंदुत्व का असर कम होता जाता है और जातिगत पहचान के इर्द-गिर्द घूमने लगता है।

यहां तक कि उडुपी में भी, जहां सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के कारण भाजपा मजबूत है, वहाँ  मुसलमानों आर्थिक रूप से संपन्न हैं, अंतरराष्ट्रीय बाजारों, विशेष रूप से खाड़ी देशों तक उनकी आसान पहुंच है और सार्वजनिक स्थानों पर उनकी बड़ी उपस्थिति नज़र आती है, इसलिए जो बात मायने रखती है की  'मुसलमान अपनी पसंद के हकदार है, वे खुद की सुरक्षा और बचाव' के लिए चिंतित है और 'हिजाब विवाद पर भाजपा गलत है' यह बात काफी हद तक उनके नजरिए से प्रतिध्वनित होती नज़र आती हैं।

उडुपी के एक इंजीनियरिंग के छात्र जो पहली बार मतदाता बने हैं, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, “हिजाब पर प्रतिबंध अन्यायपूर्ण है। मुस्लिम छात्र इसे सिर्फ इसलिए पहनते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हे इसे पहनना चाहिए।" 

नरेंद्र मोदी के समर्थक होने के बावजूद, छात्र ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा कि राज्य की संस्कृति "सामजस्यपूर्ण और कन्नड़ गौरव" की है। “लव जिहाद का हौवा, हलाल और झटका पर विवाद, ‘हिंदू खतरे में हैं’ जैसे बयान और राष्ट्रवाद के नाम पर नफरत वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने वाली रणनीति है। एक ब्राह्मण और मोदी समर्थक होने के नाते मैंने नफरत की राजनीति को खारिज करता हूं।

मुसलमानों के आर्थिक उत्थान और सार्वजनिक स्पेस जैसे शिक्षा, व्यापार और व्यवसायों और उनके संगठनों के नेटवर्क में उनकी बड़ी उपस्थिति सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का कारण क्यों बनती है?

नाम न छापने का अनुरोध करते हुए मैंगलोर के एक प्रोफेसर ने समझाया कि, "हर जगह उनका नज़र आना उस सजातीय सामाजिक स्पेस को खतरे में डालती है जिसे आरएसएस बनाना चाहता है।"

तटीय क्षेत्र से परे एक सामजस्यपूर्ण/समधर्मी संस्कृति की किंवदंतियाँ और विरासत हैं, न कि हिंदुत्व की कोई विरासत है।

उत्तरी कर्नाटक में, जिसने 12वीं शताब्दी में ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म और इसकी वर्ण व्यवस्था के खिलाफ लिंगायत आंदोलन देखा, वहां स्थानीय मुद्दों के साथ जाति की पहचान हावी है।

दक्षिण कर्नाटक में भी स्थिति लगभग वैसी ही है- कभी उदार शासकों द्वारा शासित एक समावेशी रियासत, जिसने 20वीं सदी में अन्य जातियों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने और सार्वजनिक सेवाओं में ब्राह्मणों के प्रभुत्व को खत्म करने के लिए आरक्षण नीति लागू की थी।

शायद इसीलिए पिछड़ा वर्ग आरक्षण पर हवानूर आयोग का गठन तत्कालीन कांग्रेसी मुख्यमंत्री डी देवराज उर्स ने मंडल आयोग से बहुत पहले किया था। राज्य में 1970 के दशक में भूमि सुधार भी हुआ था। 

“कर्नाटक चुनाव काफी स्पष्ट हैं: यह चुनाव अनियंत्रित भ्रष्टाचार और खराब शासन के खिलाफ हो रहा है। व्यापक भ्रष्टाचार ने समाज के सभी वर्गों को प्रभावित किया है। शासन व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। उदाहरण के लिए, राज्य सरकार ने एससी/एसटी तबके के उत्थान के लिए 13,000 करोड़ रुपये आवंटित किए थे, लेकिन एक भी रुपया खर्च नहीं किया गया," वकील वेंकटेश बब्बरजंग, कर्नाटक के उच्च न्यायालय में एक पूर्व लोक-अभियोजक ने न्यूज़क्लिक को उक्त बातें बताई।  

उन्होंने दावा किया कि, 'यह केवल आरोप नहीं है, बल्कि इसे भाजपा नेतृत्व ने भी स्वीकार किया है। बब्बरजंग ने कहा कि, "जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हमसे कहते हैं कि भाजपा सरकार कर्नाटक को भ्रष्टाचार मुक्त बनाएगी, तो उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि राज्य में भ्रष्टाचार व्याप्त है।" 

वरिष्ठ वकील ने दावा किया कि आम तौर पर लोग "अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुसलमानों के साथ हुए अन्याय और गुंडागर्दी फैलाने वाले दक्षिणपंथी समूहों को सरकार द्वारा दी गई छूट से नाखुश हैं"।

“मैं उत्तर कर्नाटक से ताल्लुक रखता हूं, जिसमें 41 विधानसभा क्षेत्र हैं और इसे अपनी समधर्मी संस्कृति के लिए जाना जाता है। इसमें हिंदुओं द्वारा प्रबंधित दरगाहों की अच्छी संख्या है। इसलिए, भाजपा की विभाजनकारी विचारधारा यहां काम नहीं करती है,”उन्होंने कहा कि ब्राह्मण होने के बावजूद, उनकी मां उन्हें मंदिरों के बजाय दरगाहों पर ले जाती थी।  

जब वे सरकारी वकील थे, तो पुरानी यादों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि एक बार मुसलमानों के एक समूह ने उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर कर एक मज़ार पर नियंत्रण करने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि, "हिंदू मज़ार के उचित प्रबंधन के लिए अदालती निर्देश पर निषेधाज्ञा दायर करने का अनुरोध करने के लिए मेरे पास पहुंचे, और कहा कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो  उन्होंने कहा कि वे इसे अपने कब्जे में ले लेंगे।"

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री [बसवराज बोम्मई] का वह बयान है कि अगर जरूरत पड़ी तो कर्नाटक में योदी आदित्यनाथ मॉडल को लागू किया जाएगा, यह बात "मतदाताओं को रास नहीं आई।" 

उन्होंने कहा कि कर्नाटक यूपी जैसा गरीब राज्य नहीं है। "हमारे पास उच्च साक्षरता दर, अच्छी प्रति व्यक्ति आय, कम अपराध दर और उच्च नौकरी के अवसर हैं। यहां यूपी और बिहार समेत देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग रोजगार के लिए आते हैं। हमारे पास दशकों पुरानी आईटी क्रांति है। यह बेवकूफी वाली बात है कि यूपी के सीएम यहां एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे, जबकि सीएम ने इस तरह का गलत जानकारी वाला बयान दिया।'

उनके अनुसार, कर्नाटक के लोग अपने सांस्कृतिक मुद्दों को लेकर काफी चिंतित हैं। वे नहीं चाहते कि उन पर हिंदी भाषा "थोपी जाए"।

उन्होंने कन्नड़ गौरव पर जोर देते हुए कहा कि, “कन्नड़ भाषा हजारों साल पुरानी है। कन्नड़ और अंग्रेजी दोनों में साइनबोर्ड होने की मांग को लेकर एक बड़ा आंदोलन हुआ था। हमारे पास देवनागरी लिपि नहीं है। हम दक्कनी भी बोलते हैं। कन्नड़ भाषा ने दक्खनी उर्दू से कई शब्द अपनाए हैं और लोग इसे गर्व के साथ बोलते हैं। ”  

बब्बरजंग ने कहा कि संस्कृति के अलावा राज्य में जाति भी मायने रखती है। पिछले हफ्ते, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उकसाते हुए राज्य में अपने सार्वजनिक संबोधन के दौरान बजरंग बली [हनुमान] का उद्घोष किया, लेकिन "शायद, वे भूल गए कि लिंगायत बहुल क्षेत्र बसवन्ना से प्रभावित हैं, जो 12 वीं शताब्दी के दार्शनिक थे और जिन्हे लिंगायत संप्रदाय का संस्थापक माना जाता है"।

"उन्होंने ब्राह्मणवादी हिंदू धर्म और वर्ण व्यवस्था की असमानताओं का विरोध करते हुए कहा कि भगवान की अवधारणा को दूर किया जाना चाहिए। यदि भगवान मौजूद हैं, तो देवता का शिवलिंग की तरह एक भौतिक चित्र होनी चाहिए। इसलिए, कई लोगों द्वारा इसकी जाति व्यवस्था का पालन करने के बावजूद इस क्षेत्र में हिंदू धर्म बहुत स्वीकार्य नहीं है। यही कारण है कि कर्नाटक विधानसभा में कोई ब्राह्मण विधायक नहीं है।”

लिंगायतों को भाजपा के वोट बैंक के रूप में देखे जाने के बारे में पूछे जाने पर, बब्बरजंग ने कहा कि, "समुदाय ने दो कारणों से भगवा पार्टी का पक्ष लिया था: राजीव गांधी युग के दौरान कांग्रेस से इसका अलगाव और 1990 के दशक के अंत में जनता पार्टी का पतन - इसलिए नहीं कि उन्हें आरएसएस ने तैयार किया था।”

लेकिन बहुत कुछ बदल गया है, और दावा किया कि, क्योंकि कांग्रेस ने भी समुदाय के कई भारी नेताओं को मैदान में उतारा है। उनके मुताबिक, 'पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी के जाने से बीजेपी पर असर पड़ेगा क्योंकि दोनों नेता समुदाय के बेहद सम्मानित नेता हैं।'

बब्बरजंग ने कहा कि शेट्टार को जन नेता न मानना एक गलती भरा "प्रचार" है। “वे लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेताओं में से एक हैं। हुबली-धारवार्ड क्षेत्र में उनकी एक मजबूत टीम है, जो बेंगलुरु के बाद सबसे बड़े शहर हैं,” उन्होंने कहा कि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष के बयान कि "हिंदुत्व हमारा एजेंडा है, से लिंगायत समुदाय खुश नहीं है और इसे समुदाय ने बहुत गंभीरता से लिया है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Karnataka Polls: Few Takers for Hindutva

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