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कर्नाटकः एक तिहाई ज़िले ग़रीबी और कुपोषण के शिकार

कर्नाटक को विकसित राज्य माना जाता है, इस छवि के पीछे की सच्चाई क्या है? कर्नाटक में कुपोषण और ख़ून की कमी के मामलों की स्थिति क्या है? आइये पड़ताल करते हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

भाजपा कर्नाटक में महिलाओं और बच्चों के समुचित पोषण का दावा कर रही है। प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना और अन्य योजनाओं के प्रचार के साथ दावा किया जा रहा कि कर्नाटक में गर्भवती महिलाओं और बच्चों के पोषण, बाल मृत्यु दर और ख़ून की कमी संबंधी मामलों की स्थिति में सुधार हुआ है। लेकिन क्या ये सच है या आपको एक अधूरी तस्वीर परोसी जा रही है?

क्या कुछ आंकड़े और चमकीले पोस्टर उछाल कर कर्नाटक की बड़ी सच्चाई को छिपाया जा रहा है? क्या कर्नाटक में कुपोषण और ग़रीबी नहीं है?

कर्नाटक को विकसित राज्य माना जाता है, इस छवि के पीछे की सच्चाई क्या है? कर्नाटक में कुपोषण और ख़ून की कमी के मामलों की स्थिति क्या है? आइये पड़ताल करते हैं।

कर्नाटक के एक तिहाई ज़िले ग़रीबी और कुपोषण के शिकार

ह्युमन डेवलेपमेंट रिपोर्ट-2022, कर्नाटक सरकार के अनुसार राज्य के एक तिहाई यानी 30 में से 10 ज़िले भयानक ग़रीबी और कुपोषण के शिकार हैं। इनमें कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई का गृह ज़िला हावेरी भी शामिल है। रिपोर्ट के अनुसार हावेरी, यादगिर, कलबुर्गी, रायचुर, कोप्पल, बेल्लारी, बीदर, गडग, बागलकोट और विजयपुरा ये दस ज़िले अत्यंत ग़रीबी और कुपोषण की मार झेल रहे हैं।

यादगिर और कोप्पल ज़िला के पांच वर्ष से कम आयु वर्ग के 45% बच्चे कमवजनी के शिकार हैं। यादगिर ज़िला के पांच वर्ष से कम आयु वर्ग के 76% बच्चे ख़ून की कमी के शिकार हैं। कर्नाटक के आधे ज़िलों में इस आयु वर्ग के बच्चों में ख़ून की कमी का औसत राज्य की औसत यानी 65.5% से ज्यादा है। मुख्यमंत्री के गृह ज़िला हावेरी में 70% बच्चे ख़ून की कमी के शिकार हैं। रायचुर ज़िला की 15-19 वर्ष आयु वर्ग की 64.8% महिलाएं ख़ून की कमी की शिकार हैं।

कर्नाटक की 47.8% महिलाएं ख़ून की कमी की शिकार

31 मार्च 2023 को लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री भारती प्रवीन पवार ने राज्ययवार देश में एनिमिया की स्थिति के बारे में आंकड़े प्रस्तुत किए। जिसके अनुसार कर्नाटक में वर्ष 2015-16 में 6 महीने से 5 साल आयु वर्ग के 60.9% बच्चे ख़ून की कमी के शिकार थे। ये आंकड़ा वर्ष 2019-21 में बढ़कर 65.5% हो गया।

वर्ष 2015-16 में 15 से 19 वर्ष के आयु वर्ग की 45.3% महिलाएं ख़ून की कमी की शिकार थी ये आंकड़ा वर्ष 2019-21  बढ़कर 49.4% हो गया। यानी इस आयुवर्ग की लगभग हर दूसरी महिला ख़ून की कमी की शिकार है।

वर्ष 2015-16 में 15-49 आयु वर्ग की 45.4% गर्भवती महिलाएं ख़ून की कमी की शिकार थी। ये आंकड़ा वर्ष 2019-21 में बढ़कर 45.7% हो गया।

कर्नाटक में वर्ष 2015-16 में कुल मिलाकर 15-49 वर्ष आयुवर्ग की 44.8% महिलाएं ख़ून की कमी शिकार थीं जो आंकड़ा वर्ष 2019-21 में बढ़कर 47.8% हो गया।

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कर्नाटक में विभिन्न आयु वर्ग की महिलाओं में ख़ून की कमी के आंकड़े में कमी नहीं आई है बल्कि लगातार बढ़ोतरी ही हुई है।

बच्चों के पोषण की स्थिति

नेशनल फैमिली हैल्थ सर्वे के अनुसार कर्नाटक में पांच वर्ष से कम आयु वर्ग के 35.4% बच्चों का शारीरिक विकास अवरूद्ध है। यानी कर्नाटक का इस आयु वर्ग का हर तीसरा बच्चा उम्र के हिसाब से कद बढ़ने में रुकावट का शिकार है। पांच वर्ष से कम आयु वर्ग के 32.9% बच्चे कमवजनी के शिकार है। यानी कर्नाटक के लगभग हर तीसरे बच्चे का वजन उसकी उम्र के हिसाब से कम है।

कर्नाटक के 6 महीने से लेकर 2 वर्ष आयु वर्ग के स्तनपान करने वाले बच्चों में मात्र 11% को ही पर्याप्त आहार मिल पाता है। इस आयु वर्ग के वे बच्चे जो स्तनपान नहीं कर रहे हैं, उनमें से 19.5% बच्चों को ही पर्याप्त आहार मिल पाता है। देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र पर गर्भवती महिला की डिलिवरी पर औसत खर्च 2,916 रुपये है जबकि कर्नाटक में सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र में यही ख़र्च 4,954 रुपये है।

ऊपर दिए गए आंकड़े बता रहे हैं कि विकसित कर्नाटक के पीछे की सच्चाई क्या है। एक तिहाई कर्नाटक अत्यंत ग़रीबी और कुपोषण की मार झेल रहा है। खुद मुख्यमंत्री बसवाराज बोम्मई का गृह ज़िला भयंकर कुपोषण का शिकार है। भाजपा द्वारा किए जा रहे तमाम दावों पर ये आंकड़े सवालिया निशान लगा रहे हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं ट्रेनर हैं। आप सरकारी योजनाओं से संबंधित दावों और वायरल संदेशों की पड़ताल भी करते हैं।)

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